हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार पर क्वाड समूह के देशों के शीर्ष रक्षा अधिकारियों के बीच समुद्री खतरों की बदलती प्रकृति, वैश्विक सुरक्षा और व्यापार के लिए जोखिम और दक्षिण चीन सागर सहित महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए आवश्यक विकसित प्रतिक्रियाओं की चर्चा से यह बात निकल कर सामने आती है कि दक्षिण चीन सागर पर चीन के बढ़ते नियंत्रण से ऐसे जोखिम पैदा हो रहे हैं जो वैश्विक व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा, आपूर्ति शृंखलाओं और भू-राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं। अगर सावधानी से प्रबंधन नहीं किया गया तो बढ़ते तनाव से आर्थिक झटके, मुद्रास्फीति और वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता पैदा हो सकती है।
इस वार्ता में भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी वह सभी ज्ञात चुनौतियों का सामना करने के लिए नौसेना को तैयार रहने को कहते है,चाहे जो कुछ भी सामने आने वाला हो। यह सुनिश्चित करना नौसेना की ज़िम्मेदारी है कि हिंद महासागर क्षेत्र शांतिपूर्ण, शांत रहे और व्यापार की निर्बाध आवाजाही को सुविधाजनक बने रहे। यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड के कमांडर एडमिरल सैमुअल पापारा का कहना है कि चाहे वह ताइवान जलडमरूमध्य में नाकाबंदी हो या पूर्ण पैमाने पर आक्रमण, राजनीतिक स्थिति के आधार पर अमेरिका ताइवान की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक प्रणाली को खतरे में डालने वाले किसी भी बल का विरोध करने की क्षमता बनाए रखेगा। फिलीपींस के सेना प्रमुख जनरल रोमियो एस ब्रॉनर दक्षिण चीन सागर पर चीन की उपस्थिति को अवैध, बलपूर्वक, आक्रामक और विनाशकारी मानते है उनके अनुसार चीन द्वारा कृत्रिम द्वीपों का निर्माण उन्हें पूरे दक्षिण चीन सागर पर प्रभावी नियंत्रण दे देता है, और दुनिया का 50: से अधिक व्यापार दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है। अगर चीन ने इस पर अपना पूर्ण नियंत्रण कर लिया, तो यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए बहुत हानिकारक होगा। इस चर्चा में ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त संचालन प्रमुख एडमिरल जस्टिन जोन्स, और जापान के संयुक्त स्टाफ के प्रमुख जनरल योशीहिदे योशिदा भी शामिल रहे।
दक्षिण चीन सागर पर चीन की उपस्थिति हानिकारक कैसे
चीन अपने पड़ोसियों पर दबाव बनाने के लिए सैन्य और आर्थिक प्रभाव का इस्तेमाल करने, गैरकानूनी समुद्री दावे करने, समुद्री नौवहन मार्गों को खतरे में डालने और चीन से सटे इलाकों को अस्थिर करने के लिए विख़्यात है। इसलिए भी दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा हैं। फिर दक्षिण चीन सागर दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री व्यापार मार्गों में से एक माना जाता रहा है, जहाँ से सालाना 3.4 ट्रिलियन डॉलर का माल गुजरता है। ऐसे में किसी भी तरह के संघर्ष या सैन्यीकरण बढ़ने से व्यापार प्रवाह बाधित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। यही नहीं इससे शिपिंग लागत और देरी होने की शंका भी निर्मूल नहीं है। क्षेत्र में तनाव या संघर्ष बढने से शिपिंग जोखिमपूर्ण होगा, जिससे कार्गाे और जहाजों के लिए बीमा प्रीमियम बढ़ जाएगा। बदले में वस्तुओं की वैश्विक कीमतें बढ़ सकती हैं। संसाधन दोहन और ऊर्जा सुरक्षा जोखिम के नजरिए से इसे देखा जाए तो माना जाता है कि इस क्षेत्र में तेल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं। यदि चीन इन संसाधनों पर एकाधिकार कर लेता है, तो यह वैश्विक ऊर्जा कीमतों में हेर-फेर कर सकता है, विशेष रूप से उन एशियाई देशों को प्रभावित कर सकता है जो दक्षिण चीन सागर से ऊर्जा आयात पर निर्भर हैं।
दक्षिण चीन सागर समुद्री संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन चीन की आक्रामक मछली पकड़ने की नीतियों और कृत्रिम द्वीप निर्माण ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाया है, जिससे पड़ोसी देशों के लाखों मछुआरों की आजीविका को खतरा है। इन कारणों से मछली पकड़ने के उद्योग पर पड़ने वाले प्रभावों का नकारा नहीं जा सकता। फिर ये चीनी एकाधिकार की मंशा भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक अनिश्चितता की दृष्टि से कतई लाभकारी स्थिति नहीं दर्शाती। चीन के क्षेत्रीय दावे फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान के दावों से टकराते हैं। यदि कोई सैन्य संघर्ष होता है, तो यह क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है और निवेशकों को डरा सकता है, जिससे इससे प्रभावित देशों में आर्थिक विकास बहुत कम हो सकता है। चीन ने द्वीप-निर्माण और नौसैनिक गश्त के साथ अपने व्यापक दावों का जब से पालन किया है, तब से यह दूसरों के लिए चिंता का विषय रहा है जब से बीजिंग ने 2009 में एकतरफा रूप से नाइन-डैश लाइन को आगे बढ़ाया-जो उसके सबसे दक्षिणी प्रांत हैनान से सैकड़ों मील दक्षिण और पूर्व में फैली हुई है-दक्षिण चीन सागर को अपना क्षेत्रीय जल घोषित करने के लिए। इस सम्बन्घ में अमेरिका और सहयोगी देशों की प्रतिक्रिया स्वरूप देखें तो संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देश क्षेत्र में नेविगेशन की
स्वतंत्रता संचालन (FONOPs) करते हैं, जिससे संभावित सैन्य गतिरोध पैदा होता है। इस तरह की कोई भी वृद्धि वैश्विक बाजारों को प्रभावित कर सकती है, विशेष रूप से रक्षा, प्रौद्योगिकी और वस्तुओं से जुड़े बाजार को। विनिर्माण केंद्र जोखिम भी इस स्थिति से परे नहीं है। कई वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता सामान, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में सुचारू संचालन पर निर्भर हैं। दक्षिण चीन सागर में नाकाबंदी या बड़े व्यवधान के परिणामस्वरूप उत्पादन लागत और आपूर्ति की कमी हो सकती है। यही नहीं सेमीकंडक्टर विनिर्माण में एक प्रमुख खिलाड़ी ताइवान विवादित जल के निकट है। ताइवान को प्रभावित करने वाला कोई भी संघर्ष वैश्विक चिप आपूर्ति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे दुनिया भर के उद्योगों को नुकसान पहुँच सकता है। आर्थिक प्रतिबंध और व्यापार युद्ध की स्थिति में अगर तनाव बढ़ता है, तो पश्चिमी देश चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते हैं, जिससे निश्चित तौर पर वैश्विक व्यापार बाधित हो सकता है। जवाबी कार्यवाही के बदले में चीन दुर्लभ पृथ्वी खनिजों जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों के निर्यात को प्रतिबंधित कर सकता है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरी और रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक हैं।
चीन का भारत सहित पड़ोसी देशों के साथ व्यवहार
क्वाड में शामिल होकर भारत जहां पूर्वी एशिया में अपने हितों को आगे बढ़ाने में सक्षम हुआ। लेकिन चीन इसे विपरीत विचार रखने वाले देशों के साथ भारत का खुद को जोड़ना शी जिनपिंग से प्रतिस्पर्धा करने की रणनीति मानी गई। भारत के इस कदम से चीन के साथ उसके संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, इसमें दो राय नहीं। क्वाड को चीन के लिए बहुत उत्तेजक माना जाता है। फरवरी 2022 में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने स्पष्ट रूप से समूह की आलोचना करते हुए कहा था कि तथाकथित क्वाड तंत्र, प्रकृति में, चीन को घेरने और अमेरिका के आधिपत्य को बनाए रखने का एक उपकरण है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने देशों से पुरानी शीत युद्ध मानसिकता का हवाला देते हुए भारत को क्वाड समूह को छोड़ने, समूह टकराव को आगे बढ़ाने और भू-राजनीतिक खेल खेलने के अपने गलत दृष्टिकोण को सुधारने और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए रचनात्मक भूमिका निभाने का आग्रह किया था।
चीन के बढ़ते नौसैनिक पदचिह्न और सैन्य प्रतिष्ठानों के साथ कृत्रिम द्वीपों के निर्माण ने जापान, वियतनाम, फिलीपींस और अन्य जैसे पड़ोसी देशों के साथ तनाव बढ़ा दिया है। दूसरी ओर वह वन बेल्ट, वन रोड (ठत्प्) पहल के जरिए, अपने हितों की रक्षा के लिए अपने सैन्य पदचिह्न का विस्तार भी करना चाहता है। देखा जाए तो चीन का लक्ष्य सैन्य विस्तार की अनुमति देने के लिए वैश्विक रसद और आधार अवसंरचना विकसित करना है। यह सैन्य कार्यों का समर्थन करने और इन सुविधाओं के वास्तविक उद्देश्य को छिपाने के लिए मेजबान देश के बंदरगाहों पर वाणिज्यिक व्यवस्थाओं का दुरुपयोग करता आया है। चीन बांग्लादेश, थाईलैंड (तीन पनडुब्बियाँ), म्यांमार, श्रीलंका (फ्रिगेट) आदि को सैन्य उपकरण आपूर्ति करके इंडो-पैसिफिक में खुद को स्थापित कर रहा है। चीन उन देशों में ऋण कूटनीति के माध्यम से इस क्षेत्र का उपनिवेशीकरण कर रहा है, जिन्होंने चीन से ऋण लिया है, जैसे कि श्रीलंका (जहाँ चीन ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाह को वित्तपोषित किया है) और म्यांमार जहाँ बीजिंग कुछ क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए आंतरिक संघर्षों का लाभ उठा रहा है। 2012 में, दक्षिण चीन सागर में स्कारबोरो शोल पर चीन द्वारा आक्रमण किया गया और फिलीपींस के वैध दावों का उल्लंघन करते हुए बैरिकेडिंग की गई।
हिंद महासागर को लेकर क्वाड राष्ट्रों की भूमिका
क्वाड, जिसे आधिकारिक तौर पर चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता कहा जाता है, चार देशों का समूह है- संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान। इनके बीच समुद्री सहयोग 2004 की हिंद महासागर सुनामी के बाद शुरू हुआ था। लेकिन आज ये देश, सभी लोकतंत्र और जीवंत अर्थव्यवस्थाएँ, एक बहुत व्यापक एजेंडे पर काम करते हैं, जिसमें सुरक्षा, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे शामिल हैं। पिछले कुछ सालों में क्वाड की कूटनीति में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। जापान ने शुरू में चार देशों की लोकतांत्रिक पहचान पर जोर दिया, जबकि भारत कार्यात्मक सहयोग पर जोर देने में अधिक सहज दिखाई दिया। ऑस्ट्रेलियाई नेता इस धारणा को बनाने के लिए सदैव से अनिच्छुक रहे हैं। उन्होंने इस समूह को एक औपचारिक गठबंधन भर माना है।
समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु नौसैनिक सहयोग के जरिए क्वाड राष्ट्र संयुक्त नौसैनिक अभ्यास जैसे कि मालाबार अभ्यास करते हैं, जो समुद्री अंतर-संचालन को बढ़ाता है और रक्षा संबंधों को मजबूत करता है। नौवहन की स्वतंत्रता हेतु ये खुले और सुरक्षित समुद्री मार्ग सुनिश्चित करते हैं, जिससे किसी भी एक शक्ति (विशेष रूप से चीन) को महत्वपूर्ण शिपिंग मार्गों पर हावी होने से रोका जा सके। समुद्री डोमेन जागरूकता (एमडीए) उपग्रह के जरिए निगरानी, खुफिया जानकारी साझा करने और क्षेत्रीय देशों के साथ साझेदारी का उपयोग करके, क्वाड हिंद महासागर में अवैध मछली पकड़ने, समुद्री डकैती और तस्करी की निगरानी करने में मदद करता है।
चीन अपनी स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स रणनीति के माध्यम से हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रहा है, जिसमें पाकिस्तान (ग्वादर), श्रीलंका (हंबनटोटा), मालदीव और जिबूती में सैन्य और वाणिज्यिक चौकियाँ शामिल हैं। चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (ठत्प्) का मुकाबला करने के लिए वैकल्पिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं (ब्लू डॉट नेटवर्क और वैश्विक बुनियादी ढाँचे और निवेश के लिए साझेदारी के माध्यम से) में निवेश करें। श्रीलंका, मालदीव और मॉरीशस जैसे देशों के साथ क्षेत्रीय गठबंधन को मजबूत करना ताकि उन्हें चीन पर अत्यधिक निर्भर होने से रोका जा सके। क्षेत्र के छोटे देशों को नौसेना प्रशिक्षण, रक्षा उपकरण और आर्थिक सहायता प्रदान करके क्षमता निर्माण का समर्थन करना।
क्वाड महत्वपूर्ण समुद्री चेकपॉइंट्स को सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करता है जैसे मलक्का जलडमरूमध्य (भारतीय और प्रशांत महासागरों को जोड़ता है), होर्मुज जलडमरूमध्य (तेल शिपमेंट के लिए महत्वपूर्ण) व बाब अल-मंडेब (लाल सागर और स्वेज नहर में प्रवेश) पर। मानवीय सहायता और आपदा राहत (भ्।क्त्) के जरिए क्वाड हिंद महासागर में चक्रवातों, सुनामी और मानवीय संकटों का जवाब देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिसमें तेजी से सहायता तैनाती के लिए अपनी नौसेनाओं का उपयोग किया गया है। कोविड-19 वैक्सीन कूटनैतिक साझेदारी के तहत, क्वाड हिंद महासागर में छोटे द्वीप देशों को टीके की आपूर्ति करने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभा चुका है।
एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भारत अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, भारत हिंद महासागर में सुरक्षा के लिए जिम्मेदार प्राथमिक क्वाड सदस्य है। भारत चीन की उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अपने नौसैनिक ठिकानों को मजबूत कर रहा है। भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ रसद और रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे ईंधन भरने और संयुक्त अभियानों के लिए एक-दूसरे के ठिकानों तक पहुँच की अनुमति मिलती है।
अपने मौजूदा स्वरूप में, क्वाड अपेक्षाकृत हल्के संस्थागत रूप में बना हुआ है। यह न तो कोई सुरक्षा व्यवस्था है और न ही कोई व्यापार समूह। बल्कि, समूह का इरादा इंडो-पैसिफिक को ठोस लाभ प्रदान करना, लोगों से लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना और यह प्रदर्शित करना है कि लोकतंत्र यह कर सकता हैं। कुल मिलाकर क्वाड का इरादा चीन के बढ़ते क्षेत्रीय प्रभाव को कम करना है।
निष्कर्ष
हिंद महासागर में क्वाड की भूमिका क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने, व्यापार मार्गों की सुरक्षा करने, चीन के प्रभाव का मुकाबला करने और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। रक्षा सहयोग, बुनियादी ढांचे में निवेश और कूटनीतिक जुड़ाव को गहरा करके, क्वाड, क्षेत्र में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के प्रतिकार के रूप में कार्य कर रहा है। लेकिन अभी इसे सार्वजनिक रूप से कैसे प्रस्तुत किया जाना चाहिए, इस पर चारों देशों के विचारों का एकमत होना आवश्यक है, तभी चीन के बढ़ते क़दम को वह रोकने में सफल हो सकने में समर्थ हो सकता है।
Author
Rekha Pankaj
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.