चीनी निर्माता, अमेरिकी टैरिफ विनियमों को कैसे देखते या समझते हैं, वे लगातार नीतिगत परिवर्तनों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हैं, या अनिश्चितता उनके उत्पादन और निर्यात निर्णयों को कैसे प्रभावित करती है ये देखना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि देश की जीडीपी इनके भीतरी कार्य व्यवहार पर निर्भर करती है।

2018 में जब ट्रंप ने चीन पर टैरिफ का पहला दौर लगाया था, तब से बीजिंग के नेताओं ने टैरिफ, आयात प्रतिबंध, निर्यात नियंत्रण-प्रतिबंध, विनियामक समीक्षा और चीन में कंपनियों के व्यापार को सीमित करने के उपायों का एकटूलकिटविकसित कर लिया था जो किसी भी अमेरिकी सरकार द्वारा किसी भी तरह के व्यापार कदम के जवाब में अमेरिकी अर्थव्यवस्था और व्यवसायों को पीड़ा पहुँचाने के लिए ही डिज़ाइन था। अटलांटिक काउंसिल मेंग्लोबल चाइना हबकी वरिष्ठ निदेशक मेलानी हार्ट के अनुसार बीजिंग अब संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ़ पूरी ताकत से उसी टूलकिट को फेंक रहा है, कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर रहा है, अमेरिकी किसानों को मार रहा है और देश को महत्वपूर्ण खनिजों से काट रहा है। चीन अन्य देशों की तुलना में इस तूफ़ान से निपटने में बेहतर स्थिति में है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह अभी भी निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था है। पिछले साल, निर्यात ने देश की आर्थिक वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा बनाया। गोल्डमैन सैक्स के अनुमान के अनुसार चीन में लगभग 10 से 20 मिलियन लोग अकेले अमेरिका-बाउंड निर्यात पर काम करते हैं।

हालांकि व्यापारिक साझेदारी के तहत अपने स्वयं के टैरिफ और निर्यात नियंत्रणों के साथ जवाबी हमला करना लंबी दूरी में बहुत प्रभावी नहीं हो सकता है। चीन अमेरिका को लगभग 160 बिलियन डॉलर के आयात की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक सामान भेजता रहा है। लेकिन इस साल की शुरुआत में  ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था उतार-चढ़ाव देखने को मजबूर है। खुदरा बिक्री में शुरुआती तेजी और फैक्ट्री गतिविधि में मजबूत विस्तार के बावजूद बढ़ती बेरोजगारी और अपस्फीति के दबाव ने अर्थव्यवस्था को और भी नीचे धकेल दिया है, जिससे अर्थव्यवस्था को और अधिक गति देने की मांग बढ़ रही है। अमेरिकी टैरिफ के विरुद्ध जवाबी उपाय लागू कर देने से चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि लक्ष्य 5: के आसपास रहने पर भी संदेह उत्पन्न हो गया है। अब चीनी निर्माता अमेरिकी टैरिफ विनियमों को कैसे देखते या समझते हैं, वे लगातार नीतिगत परिवर्तनों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हैं, या अनिश्चितता उनके उत्पादन और निर्यात निर्णयों को कैसे प्रभावित करती है, ये देखना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि देश की जीडीपी इनके भीतरी कार्य व्यवहार पर निर्भर करती है।

चीन-अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव की वैश्विक व्यापकता 

विशेष रूप से 2018 में शुरू हुए अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध के दौरान लागू किए गए टैरिफ का असर व्यापक रहा है, जिसने अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक व्यापार दोनों को ही प्रभावित किया है। चीन पर हुए मुख्य प्रभावों को देखें तो टैरिफ ने अमेरिका में चीनी वस्तुओं को अधिक महंगा बना दिया, जिससे मांग में कमी आई। व्यापार युद्ध के चलते चीनी निर्यात में गिरावट से चीन की जीडीपी वृद्धि धीमी हो गई। कुछ निर्माताओं ने तो टैरिफ से बचने के लिए अन्य एशियाई देशों (जैसे, वियतनाम, भारत) में उत्पादन स्थानांतरित करना शुरू कर दिया। विवाद के दौरान कई बार युआन का मूल्यह्रास भी देखने को मिला, जिससे टैरिफ प्रभाव आंशिक रूप से कम हो गया, लेकिन पूंजी पलायन की चिंता भी पैदा हुई। अमेरिका भी टैरिफ प्रभाव से अछूता नहीं रहा। अमेरिकी आयातकों द्वारा टैरिफ की लागत वहन करने के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर मशीनरी और कपड़ों तक के सामानों की कीमतें बढ़ गईं। चीन द्वारा अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ की जवाबी कार्रवाई से अमेरिकी किसानों को काफी नुकसान हुआ। अमेरिकी सरकार को इन प्रभावों की भरपाई के लिए अरबों की सब्सिडी प्रदान करनी पड़ी। टैरिफ ने मुद्रास्फीति के दबाब में योगदान दिया, हालांकि अन्य कारकों (जैसे, कोविड-19 के दौरान आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान) ने बाद में बड़ी भूमिका निभाई।

इस बार की स्थिति में टैरिफ के प्रभाव की व्यापकता और बढ़ने की संभावना प्रबल है। एप्पल और पोर्श जैसी कंपनियों ने राष्ट्रपति ट्रंप केलिबरेशन डे’ टैरिफ रोलआउट से पहले इन्वेंट्री को स्टॉक करने के लिए अमेरिका में सामान भेजने के लिए कथित तौर पर हाथापाई की। कार निर्माताओं से लेकर उपकरण निर्माताओं, शराब बनाने वालों से लेकर ऊर्जा दिग्गजों तक के अलावा अन्य कई कंपनियों ने  अपनी आय साझा कर ट्रंप टैरिफ की छाया में निकट भविष्य के लिए अपने पूर्वानुमान भी कर दिए। उसके बाद ही ट्रंप ने 25 प्रतिशत तक ऑटोमोबाइल टैरिफ को आंशिक रूप से वापस लेने के अपने दो आदेशों पर हस्ताक्षर करके ऑटोमेकर्स को कुछ राहत प्रदान की। लेकिन एप्पल जैसी कंपनियां चीन टैरिफ की वजह से भविष्य में उत्पादन के मिश्रण की भविष्यवाणी को लेकर संशकित है। फिलहाल जून तिमाही के लिए, अमेरिका में बिकने वाले अधिकांश आईफोन का मूल देश भारत में रहने की उम्मीद है। चीन को अमेरिका से सबसे कठिन टैरिफ दरों को देखते हुए कंपनी के सीईओ कुक ने भारत पर बढ़ती निर्भरता की निकट-अवधि की पुष्टि की है। भारत को अपेक्षाकृत बहुत कम टैरिफ दर मिली, और यह उन देशों में भी शामिल था, जहां अमेरिका ने 90 दिनों के लिए प्रतिशोधात्मक टैरिफ रोक दिए थे। इसलिए, भारत से निर्माण और निर्यात करना एप्पल के लिए अधिक लागत प्रभावी प्रस्ताव हो सकता है। एप्पल अमेरिका में सालाना 60 मिलियन से अधिक आईफोन बेचता है, और पिछले वित्त वर्ष में इसने भारत में कुल 22 बिलियन डॉलर के आईफोन का उत्पादन किया।

अमेरिकी टैरिफ को अनदेखा कर चीनी निर्माता नये बाजार की तलाश में

अमेरिकी टैरिफ नीतियों को नजरअंदाज कर, टैरिफ को कम करने के लिए चीनी फर्मों ने दुनिया भर में परिचालन का पुनर्गठन आरंभ कर दिया है। कई कंपनियाँ उत्पादन के कुछ हिस्सों को चीन से बाहर स्थानांतरित कर रही हैं, विशेष रूप से कम या रुके हुए टैरिफ वाले देशों में। उदाहरण के लिए, थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया और अन्य जगहों पर औद्योगिक पार्कों में चीनी मांग में वृद्धि की रिपोर्ट दर्ज की गई है। एक थाई डेवलपर के अनुसार चीनी कंपनियाँ अधिक सक्रिय रूप से कारखानों को वहाँ ले जा रही हैं, क्योंकि उन्हें उच्च अमेरिकी शुल्कों का अनुमान है। विश्लेषकों का कहना है कि यह आपूर्ति-श्रृंखला में विविधता लाने के जैसा है, कि अमेरिका मेंपुनर्स्थापनाकी मंशा। आप इसे चीन की विस्थापित क्षमता का अधिकांश हिस्सा अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में स्थानांतरित करने की तैयारी कह सकते है।

कुछ चीनी निर्यातक कानूनी खामियों का भी सहारा ले रहे। एक रिपोर्ट के अनुसार माल को फिर से लेबल किया जा रहा है या तीसरे देशों (जैसे तुर्की) के ज़रिए भेजा जा रहा है, ताकि यू.एस.-चीन लेवी के बजाय 10: टैरिफ (अन्य देशों से आयात पर) लागू हो। यह ग्रे-ट्रेड वर्कअराउंड जटिल और जोखिम भरा होने के बावजूद लोकप्रिय हो गया है। आयात के मामले में, चीनी कंपनियों ने अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए सोर्सिंग को बदल दिया है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सोयाबीन पर उच्च अमेरिकी टैरिफ के बाद, चीनी खरीदार बड़े पैमाने पर ब्राजील और अर्जेंटीना के आपूर्तिकर्ताओं की ओर मुड़ गए। हुआवेई जैसी तकनीकी कंपनियों ने अमेरिकी प्रतिबंधों के जोखिम को कम करने के लिए घरेलू घटकों और स्थानीय चिपमेकिंग के उपयोग में तेजी लाने की रिपोर्ट की है। आधिकारिक व्यापार के आंकड़े बताते हैं कि जी7 देशों को चीन का निर्यात हिस्सा लगातार कम हो रहा है (2024 में लगभग 30: तक) जबकि बेल्ट-एंड-रोड और अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बिक्री में उछाल आया है।

हालाँकि, फर्म दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में अवसरों का हवाला देते हैं। इससे तीव्र प्रतिस्पर्धा बढ़ने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जैसा कि एक एल्युमीनियम निर्यातक ने चेतावनी दी है, हर कोई एक सीमित वैश्विक बाजार पर कब्ज़ा करने के लिए दौड़ रहा है, जिससे मूल्य-कटौती कीपागल चूहा दौड़’ शुरू हो रही है। विश्लेषक इस मुत्तालिक चेतावनी दे रहे है कि इससे विदेशों में मूल्य युद्ध शुरू हो सकता है और लाभप्रदता को नुकसान हो सकता है। बीजिंग और उद्योग समूह इन दबावों से भली-भांति परिचित हैं और उन्होंने इस संबंध में कदम उठा लिए हैं। अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से राहत उपायों का वादा किया है-निर्यात वित्त को आसान बनाने से लेकर कुछ अमेरिकी इनपुट पर मामूली टैरिफ छूट देने तक। उदाहरण के लिए, चीनी सीमा शुल्क ने चुपचाप कुछ उच्च तकनीक घटकों (जैसे विमान इंजन और अर्धचालक) को अपने 125; पारस्परिक टैरिफ से छूट दी, उन कंपनियों से परामर्श करने के बाद, जिनके अमेरिकी सामान अन्यत्र नहीं मिल सकते हैं।

बीजिंग ने सबसे अधिक प्रभावित निर्यातकों को कर छूट, सब्सिडी और त्वरित सीमा शुल्क निकासी की पेशकश की। हालांकि, कई कंपनियों को ये उपाय अपर्याप्त लगते हैं। जैसा कि रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, फर्म घरेलू स्तर पर बिक्री को स्थानांतरित करने के लिए सरकार के आह्वान पर ध्यान देने में अनिच्छुक हैं, क्योंकि घरेलू मार्जिन बहुत, बहुत कम या शून्य है। चीनी अधिकारी लगातार उथल-पुथल के लिए अमेरिका को दोषी ठहराते हैं। वे ट्रम्प की टैरिफ रणनीति को जबरन वसूली और जबरदस्तीकहते हैं। इसके समानांतर, बीजिंग अपनी सफलता की कहानियों (जैसे कि टेक फर्मों द्वारा घरेलू नवाचार का विस्तार) का भी बखान करने से नही चूकता, ताकि कंपनियों को आश्वस्त किया जा सके कि अनुकूलन के माध्यम सेडीकप्लिंगको बनाए रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, ’ डिप्लोमैटके विश्लेषण से पता चलता है कि कई चीनी फर्म प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए आंतरिक सुधारों और विदेशी निवेश के साथ प्रतिक्रिया दे रही हैं। एक अनुभवी उद्योग विशेषज्ञ ने जोर देकर कहा कि छिटपुट टैरिफ छूट किसी बड़े रुझान का प्रतिनिधित्व नहीं करते और इससे फर्मों को आत्मसंतुष्टि में भी नहीं आना चाहिए।

अमेरिकन टैरिफ से बेपरवाह चीनी उत्पादक

चीन के पूर्वी तट पर झेजियांग प्रांत में एक छोटे से चीनी शहर यिवू में 75,000 से ज्यादा दुकानों का एक विशाल शोरूम है, जो दुनिया का सबसे बड़ा थोक बाज़ार माना जाता है। यहां एक एक विभाग में घूमने में ही पूरा दिन लग सकता है। हर विभाग में एक एयरपोर्ट हैंगर के बराबर सामान रखा होता है। 30 से ज्यादा बंदरगाहों वाले इस विनिर्माण और निर्यात केंद्र से 2024 में चीन द्वारा निर्यात किए गए 34 बिलियन डॉलर के खिलौनों में हू तियानकियांग के खिलौनों का भी एक छोटा हिस्सा था। लेकिन इस बार लगे 245: टैरिफ के बाद से हू तियानकियांग को संयुक्त राज्य अमेरिका में बिक्री की परवाह नहीं है और चेन लैंग को तो अमेरिकन राष्ट्रपति के लिए टैरिफ जोड़ना एक चुटकुला सुनाने जैसा मानते है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में सेवा दे चुके पूर्व वरिष्ठ कर्नल झोउ बो को लगता है कि भले ही ट्रम्प पूरी दुनिया के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ रहे हो लेकिन लगता ऐसा है जैसे वे चीन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। लियोनेल जू, जो मच्छर भगाने वाले किट तैयार करते है, के अनुसार ट्रंप एक पागल आदमी है। जू के कई किट कभी संयुक्त राज्य अमेरिका में वॉलमार्ट स्टोर्स में सबसे ज्यादा बिकते थे। अब उनके उत्पाद चीन के एक गोदाम में बक्सों में बंद पड़े हैं और तब तक वहीं रहेंगे जब तक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका जाने वाले सभी चीनी सामानों से टैरिफ़ नहीं हटा लेते। एमी गुआंगडोंग, आइसक्रीम बनाने वाले सामान बेचती है, उनके वॉलमार्ट सहित प्रमुख खरीदार अमेरिका में हैं। उन्होंने फिलहाल उत्पादन बंद कर दिया है क्योंकि उनके पहले के सभी उत्पाद गोदाम में बंद हैं। जू मानती है कि ये मुश्किल समय है लेकिन शायद एक या दो महीने में स्थिति बेहतर हो जाएगी। हाई वियान, जो एक कंपनी चलाते हैं, टैरिफ के प्रभावों को नज़रअंदाज़ करते है। उनके अनुसार अगर अमेरिका नहीं चाहता कि हम निर्यात करें, तो उन्हें इंतज़ार करने दें। हमारा अपना पहले से ही चीन में घरेलू बाज़ार है, हम सबसे अच्छे उत्पाद पहले चीनियों को ही देंगे।

फिलहाल, चीनी निर्यातकों के बीच अमेरिकी व्यापार नीति को लेकर अनिश्चितता की स्थिति दर्ज की गई है। कई लोग हाल की घोषणाओं को अनियमित बताते हैं - उदाहरण के लिए, कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स को 125: टैरिफ से अचानक छूट देने से आपूर्तिकर्ता भ्रमित और निराश हो गए, उन्होंने प्रक्रिया को इतना मनमाना बताया कि वे प्रभावी ढंग से आगे की योजना नहीं बना पा रहे। यहां तक कि चीन के अपने अधिकारी भी इस भ्रम को दोहराते हैं। विदेश मंत्रालय ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उसे किसी भी अमेरिकी छूट सूची कीविशेषताओं की जानकारी नहीं हैऔर उसने वाशिंगटन से वार्ता के बारे मेंभ्रम पैदा करना बंद करने  का आग्रह किया। लगभग आधे चीनी निर्यातक अब ये कह रहे कि वे अमेरिकी व्यापार में कटौती करने की योजना पर काम कर रहे हैं, और 75: से अधिक ने तो कमी को पूरा करने के लिए उभरते बाजारों को लक्षित करने की रिपोर्ट भी दे दी है।

इधर अमेरिका में भी कुछ खिलौना दुकान मालिक टैरिफ से नाखुश है। उन्होंने तो व्हाइट हाउस को पत्र लिखकर टैरिफ को अपने व्यवसाय के लिए विनाशकारी तक कह दिया। लॉस एंजिल्स में एक खिलौना कंपनी के मालिक जोनाथन कैथी का बीबीसी को दिए एक व्यतव्य के अनुसार, टैरिफ अमेरिका भर में छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कैथी ने 2009 में अपनी कंपनी लॉयल सब्जेक्ट्स में अपने आखिरी $500 का निवेश किया था, जिसे वह वेस्ट हॉलीवुड में अपने दो बेडरूम वाले बंगले से चलाते रहे थे। अब जबकि यह कई मिलियन डॉलर का व्यवसाय है, तो उन्हें डर है कि ये टैरिफ उनकी योजनाओं को कहीं पटरी से उतार दे।

 
निष्कर्ष

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन और चीनी सामान खरीदने या असेंबल करने वाले किसी भी देश पर अमेरिका के बढ़ते टैरिफ हमले से बीजिंग खुद को आर्थिक युद्ध करने के लिए तैयार कर चुका है। एक चीनी नीति सलाहकार की माने तो ही जो भी पहले आत्मसमर्पण करता है, वह पीड़ि़त बन जाता है। फिलहाल चीन के इस सख्त़ रवैये से अमेरिका तनावग्रस्त हो रहा। हालांकि, चीन के पास भी कोई बढ़िया विकल्प नहीं है। वह एशिया, यूरोप और बाकी दुनिया के अन्य बाजारों को लुभाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन अन्य देशों के बाजार अमेरिका की तुलना में बहुत छोटे हैं। इस बात का तोड़ चीन अन्य देशों के सहयोग से निकालता है या फिर अमेरिका के साथ किसी समझौते पर आता है, ये ये वक्त ही बतायेगा

 

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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