चीन में बेरोजगारी के आंकड़ों ने एक नए रिकार्ड स्तर को छू लिया। है। गिरते जीडीपी ग्रोथ के साथ-साथ देश में बढ़ रही बेरोजगारी से चीन इस वक्त घरेलू मसलों से बेज़ार है।

दक्षिण-पश्चिमी चीन में चोंगकिंग मेट्रोपॉलिटन कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में स्नातक वर्ग को इस बार अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए सामान्यतः दिए जाने वाले बुलंद संदेश सुनने को नहीं मिले। बजाय इसके  उन्हें वास्तविकता की कठोर खुराक दी गई। कॉलेज के अध्यक्ष हुआंग ज़ोंगमिंग ने जून में अपने 9000 छात्रों को उन्हें उच्च लक्ष्य न रखने की सलाह दी। काम के बारे में अधिक नकचढ़ा पन दिखाने से परहेज करने को कहा, क्योंकि उनके अनुसार इस वक्त देश में मिल रहे अवसर अस्थायी हैं। दरअसल जून में चीन में 16 से 24 वर्ष के युवाओं के लिए बेरोजगारी दर रिकॉर्ड 21.3 प्रतिशत पर पहुंच गई। एक तरह से कहा जाये तो चीन की युवा बेरोजगारी दर पिछले चार वर्षों में दोगुनी हो गई है। बीजिंग के शून्य कोविड के समय उत्पन्न हुई आर्थिक अस्थिरता के दौर ने कंपनियों को काम पर रखने से सावधान कर दिया है। चीन में बढ़ती बेरोजगारी के हालातों पर आकंलन करता लेख।

चीन में बेरोजगारी के आंकड़ों ने एक नए रिकार्ड स्तर को छू लिया। है। अधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि चीन में 16 से 24 साल की उम्र के लोगों की बेरोजगारी दर जुलाई में 21.3 प्रतिशत पहुंच गई है। जबकि अप्रैल महीने में ये आंकड़ा 20.4 प्रतिशत था। गत माह चीन ने इंडिकेटर की सीरीज की एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि लगातार दूसरे महीने बेरोजेगारी दर अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। गिरते जीडीपी ग्रोथ के साथ-साथ देश में बढ़ रही बेरोजगारी से चीन इस वक्त घरेलू मसलों से बेज़ार है।

चीन के शहरों में हर 5वां शख्स बेरोजगार 

यूं तो कोरोना वायरस का कहर दुनिया भर में टूटा था लेकिन वायरस की जन्मस्थली चीन में वायरस ने लोगों की कमर ही तोड़ दी है। सख्त शून्य-सीओवीआईडी नीति, संपत्ति बाजार में गिरावट और प्रमुख प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर नियामक कार्रवाई से जूझ रहे चीन में छोटे-बड़े कारोबारी  खुद को किसी तरह खड़ा करने की कोशिश में है। ऐसे हालात में अपनी फर्म को काबू में लाने का सबसे आसान तरीका एम्पलायर को जो नजर आता है, वह है श्रमशक्ति को कमतर कर देना। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ब्यूरो (एनबीसी) के हिसाब से शहरी बेरोजगारी मई महीने में 5.2 प्रतिशत पर रही। मतलब चीन के शहरों में हर 5वां शख्स बेरोजगार है। आशंका यह भी है कि आने वाले दिनों में चीन में बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ सकती है। बढ़ती बेरोजगारी लोगों के खर्चे पर असर डाल रही है, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। उपभोक्ता मांग में कमी चीनी उद्योगपतियों को उत्पाद की संख्या बढ़ाने से रोक रही। 

बेकाबू होते हालातों में  चीन में जून माह में 20 फीसदी से ज्यादा बेरोजगारी दर रिकार्ड की गई। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ब्यूरो (एनबीसी)के अनुसार जुलाई के महीने में 16 से 24 साल की उम्र के लोगों में बेरोजगारी दर 21.3 प्रतिशत थी। एनबीसी प्रवक्ता फू लिंगहुई के अनुसार जुलाई में यह आंकड़ा और बढ़ेगा जब 12 मिलियन छात्र-छात्राएं ग्रेजुएट होकर नौकरी की तलाश में निकलेगें। फरवरी माह में ही चीन के टॉप इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स ने चीन पर आने वाले इस संकट की चेतावनी दे दी थी लेकिन अर्थव्यवस्था में कमजोरी का संकट झेल रही चीनी सरकार इस ओर से ऑखें मूंद बैठी रही।

रोजगार के लिए बाहरी देशों को पलायन कर रहे है युवा

महामारी प्रतिबंध समाप्त होने और सीमाओं के खुल जाने के बाद विदेश जाने वाले युवा चीनी लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही। बैंकॉक में एक निजी भाषा संस्थान ड्यूक लैंग्वेज स्कूल के मालिक रॉयस हेंग ने कहा कि हर महीने लगभग 180 चीनी लोग वीजा जानकारी और पाठ्यक्रमों के बारे में पूछताछ कर रहे हैं। हालांकि इस पर कोई सटीक डेटा उपलब्ध नहीं  है, सिवाय लोकप्रिय चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ज़ियाहोंगशू के, जिस पर सैकड़ों लोगों ने थाईलैंड में स्थानांतरित होने के अपने फैसले पर चर्चा की है। एक 22 वर्षीय स्नातक की पोस्ट के अनुसार, उसे कोई नौकरी नहीं मिली और वह हर समय घर पर रहता है। उसके माता-पिता काम पर न जाने के कारण उसे  नजरअंदाज कर रहे हैं... वह अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित और भ्रमित रहता है। एक अन्य बेरोजगार स्नातक ने लिखा है कि मेरी माँ यह नहीं देख रही कि मैं कितना चिंतित हूं। हर दिन  वह कहती है कि मैं केवल एक ही चीज़ जानती है कि मुझे कैसे खाना चाहिए। मैं भविष्य के बारे में नहीं सोच रही हूं। मुझ पर अयोग्य होने का आरोप लगता है...लेकिन मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही हूं।

युवा किस उलझन में है इसके कुछ अन्य उदाहरण यहां एजेंसी एपी के हवाले से है तो कुछ एशिया निक्काई से- शंघाई के एक कॉस्मेटिक फर्म में अकाउंटेंट के रूप में काम करने वाली झांग चुआनन ने लॉकडाउन हटते ही अपनी नौकरी खो दी। नौकरी से निकाले जाने के बाद, उन्होंने एक ऑनलाइन थाई पाठ्यक्रम के लिए 1,400 डॉलर का भुगतान कर शिक्षा वीजा प्राप्त किया और चियांग माई के सुंदर उत्तरी थाई शहर में चली गई। झांग उन युवा चीनियों में से एक है जो तीन साल तक सख्त महामारी नीतियों के तहत देश में रहने के बाद देश की प्रतिस्पर्धी कार्य संस्कृति, पारिवारिक दबाव और सीमित अवसरों से बचने के लिए विदेश जाकर काम कर लेना बेहतर समझते है। 

बाली जाने से 38 वर्षीय लिआंग को अधिक स्वतंत्रता और मध्यमवर्गीय जीवन शैली मिली। उनका कहना है कि  समुद्र तट पर लैपटॉप पर काम और दुनिया भर के प्रवासियों के साथ विचार-मंथन करके बाली में जो मिला वह उन्हें चीन में नहीं मिल सकता था। उन्होंने खुद को पहले कभी इतना रचनात्मक नहीं पाया। 2021 में उद्योग पर सरकार की कार्रवाई के बाद एक निजी ट्यूशन कंपनी में 32 वर्षीय हुआंग वानक्सिओनग की नौकरी चली गई। उनका अगला काम राइड-हेलिंग व्यवसाय के लिए प्रतिदिन 16 घंटे से अधिक ड्राइविंग करना था। लेकिन मशीन की तरह लगातार काम करने से तंग आकर उन्होंने बोहोल द्वीप में एक गोताखोर प्रशिक्षक के रूप में योग्यता प्राप्त की, लेकिन अभी भी एक गोताखोर के रूप में आजीविका कमाने की उम्मीद पर समय काट रहे है। यांग यांग अब तक लगभग 100 बायोडाटा जमा कर चुके है लेकिन अभी तक उन्हें कहीं से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। हांगकांग के प्रतिष्ठित चीनी विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बावजूद, वह इस साल नौकरी की तलाश की दौड़ में भाग लेने वाले लाखों छात्रों में से एक है। एक शीर्ष विश्वविद्यालय की डिग्री के साथ, मिया ली ने भी एक चीनी टेक कंपनी में अपनी इंटर्नशिप को स्थायी नौकरी में बदलने का सपना देखा था कि उनके एम्पालयर ने कर्मचारियों को नौकरी से निकालना शुरू नहीं किया।

टेनसेंट और अलीबाबा जैसे अग्रणी तकनीकी समूह, जो कभी नौकरी के लिए बेताब स्नातकों के लिए प्रमुख पाइपलाइन में रहा करते थे, हजारों की संख्या में कर्मचारियों की कटौती कर रहे हैं। स्थिति की भयावहता इसी से समझ आ जाती है कि नौकरीपेशा लोग भी घबराहट से इधर-उधर नौकरी देख रहे हैं क्योंकि कंपनियां न जाने कब नई कटौती की घोषणा कर दे। ग्रेजुएट्स की बढती तादाद को देखकर चीनी एक्सपर्ट्स भी परेशान हो रहे है क्योंकि 10.76 मिलियन कॉलेज स्नातक, इस वे साल सबसे खराब नौकरी बाजारों में से एक में प्रवेश करने जा रहे है। उनके अनुसार अगर बेरोजगारी का चीन में ऐसा ही हाल रहा तो देश को गंभीर स्थितियों से गुजरना पड़ सकता है।

राज्य-स्वामित्व वाली नौकरी की बढ़ती मांग

चीनी ऑनलाइन प्लेसमेंट फर्म ज़िलियन के अनुसार, काम के लिए नौकरी चाहने वालों की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों पर नज़र है। संभावनाओं की बढ़ती कमी ने लगभग 45 प्रतिशत युवा वर्तमान में राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों में काम के लिए आवेदन कर रहे है। अतीत में यह शायद ही कभी शीर्ष विकल्प रहा हो, लेकिन अब युवा अधिक स्थिर एम्पालयर के साथ जुड़ना पसंद कर बन रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार यह साल नौकरी चाहने वालों के बीच स्थिरता की प्राथमिकता को दर्शा रहा है। इसे राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों से भी जोड़ा जा सकता है जो महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए अधिक रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं। झिंजियांग के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र में जमीनी स्तर पर काम शुरू करने वाले स्नातकों को 7 जुलाई को लिखे एक पत्र में, शी ने कहा कि वह चाहते हैं कि डिग्री धारक, पार्टी (चीनी कम्युनिस्ट), मातृभूमि और लोगों के लिए और अधिक योगदान दें। सिस्टम में प्रतिष्ठित नौकरियां सुरक्षा, स्थिति प्रदान कर सकती हैं और अधिक वांछनीय हुकोउ प्राप्त करने में मदद कर सकती हैं, जो स्थानीय सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच से जुड़ा एक आवासीय परमिट है।

इधर चीन के कम विकसित क्षेत्रों में युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकारी योजनाओं में भी भारी वृद्धि की जा रही है। एक शोध सलाहकार, ट्रिवियम चाइना के पार्टनर एंड्रयू पोल्क का कहना है कि राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (एसओई) को छोटी कंपनियों के लिए तुरंत भुगतान और लागत कम करके अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार में मदद करने के निर्देश दिए गये है। पोल्क कहते है कि महामारी के बीच चीन की आपूर्ति-आधारित आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने में एसओई महत्वपूर्ण रही है, हालांकि मांग अब उतनी बरकरार नहीं रही है।

शेडोंग प्रांत में सिविल सेवा परीक्षा के लिए एक आवेदक जोआना यू ने कहा, स्थिरता से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। जियांग जेनक्सिन,  जिन्होंने इस साल स्नातक किया है, इस बात से खुश है कि वे दक्षिणी गुआंग्डोंग प्रांत में काउंटी स्तर की सरकार में काम करते हुए दो साल बिताएंगे। जियांग ने कहा, पार्टी सदस्य के रूप में, नगरपालिका समिति में काम करना लोगों की सेवा करने का एक तरीका है। लेकिन नौकरशाही जीवन उतना आरामदायक नहीं है जितना पहले हुआ करता था। वर्षों से चले आ रहे भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के बीच स्थानीय व्यवसायों से उपहार जैसे पिछले लाभों पर रोक लगा दी गई है।

बेरोजगारी से प्रभावित होती जीवन प्रक्रिया

देखा जाये तो अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी के साथ-साथ चीनी सरकार को आने वाले समय में जिस एक और संकट से कड़ा मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा वह है युवा श्रमशक्ति की कमी का। चीन में उम्रदराज लोगों की संख्या युवाओं पर भारी पड़ रही है। तरह-तरह के प्रलोभन के बावजूद वहां शादी को लेकर नीरसता देखने को मिल रही है। गिरती जन्म दर चीन को बुजुर्गों का देश बना रही। डूबते कारोबार, जाती नौकरियों और आर्थिक मंदी के बादलों के बीच विवाह जैसी जिम्मदारी भरे बंधन में बंधने से लोग कतरा रहे। विवाह करने और कम से कम 2 बच्चे पैदा करने पर दिये जाने वाले सरकार के आकर्षक ऑफर के बावजूद चीनी नागरिक नौकरी खोने की आषंका से ग्रसित है। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में पिछले साल सबसे कम शादियां हुईं और ये आंकड़ा 4 दशक में सबसे कम है। ’व्हार्टन’ के डीन जेफ्री मानते है कि आने वाले समय में चीन इतिहास का पहला ऐसा देश बनने जा रहा है, जो अमीर होने से पहले बूढ़ा होगा। अगले दशक में इसकी आबादी 1.5 बिलियन से कम होगी और फिर धीरे-धीरे मध्य शताब्दी तक लगभग 1.3 बिलियन लोगों तक सीमित हो जाएगी। 2050 तक चीन में ऐसे लोगों की आबादी 70 फ़ीसदी हो जाएगी, जो कामकाजी लोगों पर निर्भर रहेंगे, जो 35 फ़ीसदी है। उनका इशारा स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी है जिस पर आने वाले समय में दबाव बढ़ेगा।

आने वाले दिनों की आहट को चीन की सरकार महसूस कर रही है। संभवतः इसीलिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) धीरे-धीरे बाजारों को संसाधन आवंटन में निर्णायक भूमिका निभाने की अनुमति देने का प्रयास कर रही है। हालाँकि, चीन के राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों (एसओई) की स्थिति सामान्य आर्थिक तस्वीर की तुलना में अधिक जटिल है। चीन फॉर्च्यून ग्लोबल 500 में सूचीबद्ध 109 निगमों का घर है - लेकिन उनमें से केवल 15% निजी स्वामित्व में हैं। चीन के एसओई अत्यधिक भारी हैं और इसलिए बाजार की मांगों का जवाब देते समय लचीलेपन की कमी है। बेरोजगारी की समस्या से निपटते हुए सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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