चीन के प्रभारी मा जिया ने कुछ दिन पूर्व कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के लद्दाख क्षेत्र में स्थिति के कारण भारत-चीन के आपसी संबंध कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लेकिन कोई भी पक्ष युद्ध या टकराव नहीं चाहता है। हम आश्वस्त हैं क्योंकि चीन और भारत दोनों में से कोई युद्ध नहीं चाहता। जब तक हमारे पास इस तरह का इरादा और एक-दूसरे की समझ है, तब तक मुझे विश्वास है कि हम कोई रास्ता निकाल सकते हैं। सीमा मुद्दे पर किसी समझौते पर पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि यह ‘बहुत जटिल है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति से दोनों पक्षों को रास्ता निकालने में मदद मिल सकती है। दोनों देशों के बीच चलते सीमा विवाद के तनाव के कारकों और निष्कर्ष पर एक नजरः

चीन के साथ भारत का विवाद 64 साल से अधिक पुराना हो चला है। इसका एक बड़ा कारण इंटरनेशनल बॉर्डर का क्लियर होना है। भारत जहां मैकमोहन लाइन को ही वैध करार देता है, वही चीन इस लाइन को अवैध मानता है। दोनों देश करीब 4057 किमी की सीमा साझा करते हैं और ये सीमा भारत के पांच राज्यों से जुड़ती है-जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। जम्मू कश्मीर में 1954 किमी का हिस्सा चीन की सीमा से जुड़ा है। अरुणाचल प्रदेश के 1080 किमी के हिस्से में दोनों देश सीमा साझा करते हैं। उत्तराखंड में 463 किमी और हिमाचल प्रदेश में 345 किमी का इलाका चीन की सीमा से जुड़ा हुआ है। सिक्किम से चीन का सिर्फ 220 किमी का बार्डर ही जुड़ता है।

 

सीमा-सुरक्षा के साथ-साथ मालिकाना हक़ है विवाद की वजह 

पैंगोंग त्सो लेक से आगे के पहाड़ी इलाके में 8 पहाड़ हैं। पहाड़ों के अलग-अलग उभार वाले फिंगर को 1 से लेकर फिंगर 8 तक नाम दिये गये है। इन पर भारत अपना दावा करता है जबकि चीन फिंगर 8 से फिंगर-2 तक को अपना इलाका कहता है। गलवान घाटी में विवादित क्षेत्र अक्साई चिन में है। लद्दाख और अक्साई भारत-चीन सीमा के बीच स्थित है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पाकिस्तान, शिनजियांग और लद्दाख सीमा के साथ लगा हुआ है। दूसरी ओर, पश्चिमी सेक्टर  में विवाद की बड़ी वजह, पैंगोंग त्सो झील है जो 134 किलोमीटर लंबी है और जिसका 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में पड़ता है। झील का 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है। एलएसी वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के बीच से होकर गुज़रती है। पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ़ से अतिकमण के एक तिहाई मामले इसी पैंगोंग त्सो झील के पास होते हैं। इस क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं है।

इसके अतिरिक्त, बीजिंग के लिए, सिक्किम सेक्टर का डोंगलांग, जिसे डोकलाम इलाका भी कहते हैं, एक बड़ा लक्ष्य है। यह एक ऐसे जंक्शन पर स्थित है जो तिब्बत, भूटान और भारत को जोड़ता है और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को इसकी जरूरत अपने सामरिक लाभ के लिए है। इसके लिए उसने 1996 में भूटान के साथ क्षेत्र के आदान-प्रदान की पेशकश भी की थी, जिससे वह भूटान के उत्तर में विवादित क्षेत्रों पर अपना दावा छोड़ना चाहता था और बदले में पश्चिमी भूटान में रणनीतिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र छोड़ने को तैयार था। पर यह प्रयास पूर्णरूप से सफल हो सका। इसके अलावा उत्तर में बेयुल खेनपाजोंग का पवित्र बौद्ध क्षेत्र और पूर्व में सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य  जो सीमा पर नहीं बैठता है, भी 2020 में चीनी मांगों में दिखाई दिया। ये सभी दावे बीजिंग की दुर्भावनापूर्ण बातचीत को दर्शाते है। आपसी तकरार के चलते ही नाथू ला दर्रा को, जो भारतीय तीर्थयात्रियों के कैलाश मानसरोवर की यात्रा का सुगमतर मार्ग था, बंद कर देना, चीन की कुंठित मानसिकता का परिचायक है। 

सीमा विवाद के अतिरिक्त, तिब्बत के विद्रोही तेवर पर भारत का समर्थन भी एक और बड़ा कारण है। 1950 और 1960 के दशक में दो-मोर्चे को लेकर चीन की चिंताओं का असल कारण भारत के पास तिब्बत को लेकर उसकी अतिसंवेदनशीलता का लाभ उठाने की क्षमता को लेकर रहा। आज भी सीमा पर चीनी हरकतों का असल उद्देश्य तिब्बत में हो रहे भारतीय हस्तक्षेप को रोकने का ही है। इसके अलावा एक मुख्य मुददा एलओसी की तरह एलएसी के संरेखण पर सहमति का होना, और ही इसका चित्रण और ही सीमांकन किया जाना है। सार्वजनिक डोमेन में भी कोई आधिकारिक मानचित्र नहीं है जो एलएसी को दर्शाता हो। कहने का मतलब है कि यह उन सीमान्त क्षेत्रों को प्रतिबिंबित करता है, जो वर्तमान में, प्रत्येक पक्ष के नियंत्रण में हैं। अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताने वाले चीन ने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और 2020 में गृह मंत्री अमित शाह के अरुणाचल जाने पर भी अपनी आपत्ति जताई, जिस पर हर बार भारत ने चीन की आपत्ति को ख़ारिज किया। चीन अरुणाचल प्रदेश में 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अपना दावा करता है जबकि भारत कहता है कि चीन ने पश्चिम में अक्साई चिन के 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अवैध रूप से क़ब्ज़ा कर रखा है। 1957 में चीन ने अक्साई चिन के रास्ते पश्चिम में 179 किलोमीटर लंबी सड़क बना ली थी। दोनों  देशों  को संभावित तौर पर अपना कहे जाने वाले इलाकों में निर्माण कार्य करने पर भी तकरार है। डोकलाम में चीन के सड़क बनाने से भारत को ऐतराज है और चीन को भारत के पैंगोंग त्सो (झील) इलाके में सड़क बनाने पर ऐतराज है। वह भारत द्वारा गलवान घाटी में डारबुक-शायोक-दौलत बेग ओल्डी सड़क को जोड़ने वाली सड़क बनाने और गलवान नदी पर पुल बनाये जाने पर पर वह अपना ऐतराज जताता रहा है।

 

दोहरे मोर्चे  के तनाव में फंसे दो प्रतिस्पर्धी देश 

शत्रु का शत्रु मेरा मित्र”, इस पुरानी कहावत को चीन ने पाकिस्तान के साथ नजदीकी बड़ा कर साबित कर दिया। भारत को अपनी सीमा पर पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिरोधी देशों के कारण दो-दो मोर्चे पर पेश आने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं से आये दिन दो-चार होना पड़ता है। यह ख़तरा उस वक्त उभरकर सामने आया, जब 2020 में पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने 2003 के युद्धविराम समझौते का उल्लंघन किया और उसी दरम्यान लद्दाख में चीन ने भारत और चीन के बीच आपसी सहमति का उल्लंघन किया। चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के साथ आमने-सामने (पीएलए) की स्थिति से उपजने वाले विवाद से बने लंबे गतिरोध को देखते हुए उस वक्त भारत ने फरवरी 2021 में पाकिस्तान के साथ एक नया युद्धविराम समझौता किया। इस मुत्तालिक मैं तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के इंडो-पैसिफिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च एनालिस्ट अमित कुमार का सीमा तनाव पर विस्तार पूर्वक लिखे समीक्षात्मक आलेख  ‘‘दो-दो मोर्चों पर चीन की दुविधाः भारत-चीन बॉर्डर के हालातों पर एक नज़रिया!,’’ के कुछ हिस्से पर आपका ध्यान खींचना चाहूंगी -

इस आलेख के अनुसार 1950-60 के दशक में दो मोर्चों से जुड़े ख़तरे को लेकर चीन की चिंताओं में तेज वृद्धि हुई और इस अवधि में भारत-चीन सीमा पर झड़पों में इज़ाफ़ा भी होने लगा। एक तरह से देखा जाये तो भारत-चीन संबंधों के इतिहास में यह सबसे अस्थिर और विस्फोटक वक्त था। जैसे-जैसे चुनौतियां बढ़ी हैं, वैसे-वैसे भारत-चीन सीमा पर चीन की ओर से किए जाने वाले उल्लंघन की संख्या में समानांतर इज़ाफ़ा हुआ है। 1959 के बाद के दशक में, चीन ने, जानबूझकर या शायद अनजाने में ही सही, दो-मोर्चों को लेकर भारत की असुरक्षा का फ़ायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसा करते हुए उसने इस संबंध में अपनी दुविधा को हर बार भारत के मत्थे पर मढ़ दिया है। 2008 के आसपास की अवधि में दो घटनाक्रमों का जिक्र इस आलेख में है जो भारत को लेकर चीन की बढ़ती चिंता की ओर इशारा करता है। पहला भारत-अमेरिका के बीच हुआ परमाणु सहयोग सौदे पर मुहर लगाने का फ़ैसला, दूसरा फ़ैसला 2008 में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एसएसजी) में दी गई छूट से जुड़ा था। अमेरिका के साथ हुआ यह सौदा और बाद में उसे एनएसजी में मिली छूट इस बात को दर्शाने वाली साबित हुई कि एक परमाणु शक्ति के रूप में भारत का कद बढ़ने लगा और अमेरिका की विदेश नीति में भारत को लेकर एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक बदलाव आने लगा। एक और घटनाक्रम ने चीन की चिंता में इजाफा कर दिया जब 2008 के आसपास भारत ने अपनी सीमा पर अवसंरचना को लेकर निवेश बढ़ाना शुरू कर दिया था। इसके तहत लद्दाख में फुक्शे और न्योमा में उन्नत लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) को क्रियाशील करना; लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को पुनः सक्रिय कर देना; दो नए पर्वत मंडलों की स्थापना को मंजूरी देना; और 2012 से शुरू होकर 10 वर्षों में एलएसी के करीब 15,000 किमी सड़क के निर्माण को मंजूरी देना।

अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के गहराने के बीच अमेरिका के साथ भारत के रणनीतिक संरेखण ने चीन को नया सिरदर्द दे दिया। 2016 में, भारत ने अमेरिका के साथलॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट‘ (एलईएमओए) समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसी वर्ष, भारत और अमेरिका नेक्वॉड्रीलैटरल सिक्यूरिटी डायलॉग अर्थात चतुर्भुज सुरक्षा संवाद‘ (क्वाड), को पुनर्जीवित करने का फ़ैसला लिया, जिसमे जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हुए। इस समूह को चीन ने अपने खि़लाफ़ खड़े समूह की दृष्टि से देखा। इसी अवधि के दौरान एलएसी पर चीन के सीमा उल्लंघन की घटनाएं अधिक देखने को मिली। जिसके परिणामस्वरूप 2020 का लद्दाख संकट पैदा हुआ। यह संकट लद्दाख में कई जगहों पर पीएलए के सीमा उल्लंघन के साथ शुरू हुआ-गलवान (पीपी 14), पैंगोंग त्सो (उत्तर और दक्षिण छोर), गोगरा (पीपी 15) और हॉट स्प्रिंग (पीपी 17) आदि। इन सभी स्थानों पर, पीएलए के सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करते हुए पीएलए ने अस्थायी बुनियादी ढांचे का निर्माण भी कर दिया, जिसकी वज़ह से भारतीय गश्ती इकाइयों को परेशानी का सामना करना पड़ा। यही नही पीएलए ने अक्टूबर 2021 और दिसंबर 2022 में अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से में भारतीय सैनिकों को दो बार और चुनौती देने की कोशिश की हैं।

 

चीन और भारत को ही लेना होगा समझदारी से काम

सिंगापुर में नानयांग तकनीकी विश्वविद्यालय के एस राजरत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में दक्षिण एशिया कार्यक्रम के वरिष्ठ विश्लेषक निशांत राजीव, एशिया में लगातार बनी हुई सीमा विवाद की इस रणनीतिक अस्थिरता का मुख्य केन्द्र भारत, चीन और पाकिस्तान को मानते है। उनके अनुसार यह संपूर्ण क्षेत्र एक व्यापक सुरक्षा दुविधा का सामना कर रहा है, जहां परमाणु-सशस्त्र देश-चीन, भारत और पाकिस्तान-अपने विरोधियों से कथित खतरों की प्रतिक्रिया के रूप में अपने स्वयं के शस्त्रागार की बढ़ती संख्या को उचित ठहराते हैं। यह दुविधा इस जोखिम को बढ़ाती है कि कही ये सीमा विवाद परमाणु सीमा के पार पहुंच जाये। हालाँकि इसकी संभावना नहीं है, किंतु एलएसी पर बुनियादी ढांचे के विकास और सैन्य गश्त से पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह के नए सैन्य निवेश को बढ़ावा मिलता है, जो सीमा पर तनाव की खतरनाक दुविधा को और जटिल बनाता है। ऐसे में सीमा पर शांति बनाए रखने का भार भारत और चीन को मिलकर बराबरी से उठाना होगा। चीन ने जिस तादाद में अपने सैनिकों को तैनात किया है भारत को भी प्रभावी ढंग से जवाबी कार्रवाई करने के लिए एलएसी पर बहुत अधिक संख्या में सैनिकों को तैनात करने की ज़रूरत है। हालांकि वक्त पड़ने पर बलपूर्वक जवाब देने में भारत कभी पीछे नहीं हटा। गलवान, पैंगोंग त्सो, और यांगत्से संकट के दौरान चीन यह भी देख चुका है।

हाल मे चुशुल में भारत-चीन कोर कमांडरों के बीच हुई बातचीत में दोनों देशों की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को शीघ्र हल करने पर सहमति उनके खुले और दूरदर्शी विचारों के हस्ताक्षर है। इस बीच, दोनों पक्षों में लगातार संवाद द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर शांति बनाए रखने पर सहमति होना आवश्यक हो चुका है, जो की क्षी जिनपिंग के जी 20 में अनुपस्थिति के वजह से और मुश्किल होता दिखाई दे रहा है|  

 

Image Source: PTI

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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