चीन की ऑनलाइन प्रॉपर्टी एजेंसी, ’पेईख चाओफांग ‘ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले साल चीन में बिके कुल घरों की लगभग आधी मालिक महिलाएं थीं, जिन्होंने देश के प्रथम श्रेणी के शहरों में फ्लैटों के लिए औसतन 4.7 मिलियन युआन (यूएस $ 744,073) का भुगतान किया। इस सर्वेक्षण के अनुसार, महिला गृहस्वामियों की संख्या 2017 में 45.5 प्रतिशत से बढ़कर पिछले साल 48.6 प्रतिशत हो गई, जिसमें चीन के 38 शहरों में 2021 में किए गए संपत्ति लेनदेन को भी शामिल किया गया। प्रतिरोध स्वरूप दर्ज ये कदम उन चीनी पुरूषों के खिलाफ था जो घर पर अपना मालिकाना हक जताते आ रहे है। यह लेख चीनी महिला की बदलती स्थिति पर रोशनी डाल रहा है|
सरकारी अखबार ‘चाइना यूथ डेली’ के हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 94 प्रतिशत प्रतिवादियों ने एकल महिलाओं द्वारा संपत्ति खरीदने को मंजूरी दी, जबकि दो-तिहाई इसे लैंगिक समानता की इच्छा का संकेत मानते है। 2020 में एक सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया कि संपत्ति के स्वामित्व वाली अविवाहित महिलाओं का प्रतिशत एक दशक पहले के 6.9 प्रतिशत से बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गया है। संख्यात्मक उछाल और भी अधिक था, क्योंकि इसी अवधि के दौरान 25 वर्ष और उससे अधिक उम्र की एकल महिलाओं की संख्या लगभग 10 मिलियन बढ़ गई थी। पेईक चाओफैंग के एक सर्वेक्षण अनुसार, महिला गृहस्वामियों की संख्या 2017 के 45.5 प्रतिशत से बढ़कर पिछले वर्ष 48.6 प्रतिशत हो गई है।
महिला खरीदारों की संख्या में बढ़ोतरी चीन के आवास क्षेत्र में तीव्र उथल-पुथल के साथ-साथ बढ़ती महिला आत्मनिर्भरता की ओर भी इशारा कर रही है। सुश्री गुओ मियाओमियाओ जैसे खरीदारों ने इस अवसर का लाभ तो उठाया ही, साथ ही चीन की पारंपरिक कुंठित सोच को ठोकर मार स्त्री की आजाद सोच का बिगुल बजाया। सुश्री गुओ संपत्ति खरीदने वाली अविवाहित चीनी महिलाओं की बढ़ती संख्या में से एक हैं -जो, एक प्रवृत्ति मसलन चीनी समाज के सबसे गहरे लिंग मानदंडों में से एक पर हमला करती है। सदियों से, पुरुषों से, चाहे उनकी आय का स्तर कुछ भी हो, विवाह के योग्य होने के लिए अपना घर रखने की अपेक्षा की जाती रही है। विवाहित महिलाओं के लिए, बदले में, उनके पति का घर प्रभावी रूप से उनका एकमात्र घर बन जाता है, क्योंकि उन्हें अब उनके जन्म के परिवारों का हिस्सा नहीं माना जाता है, या जैसा कि एक चीनी कहावत है-एक विवाहित बेटी दूर फेंके गए पानी की तरह होती है।
बदलते नजरिए और व्यावहारिक बदलावों ने दी सोच को हवा
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2021 में कॉलेज शिक्षा प्राप्त करने वाली चीनी महिलाओं की संख्या पुरुषों की संख्या से आगे निकल गई और शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिकों की संख्या एक दशक पहले की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत अधिक बढ़ गई। कानून की विकसित नियमावली ने वैवाहिक और अवैवाहिक महिलाओं को भी पति के नाम के घर के वित्तीय जोखिमों के बारे में जागरूक बना दिया है। 2011 तक, तलाक अदालतें पारिवारिक घरों को संयुक्त संपत्ति मानती थीं। लेकिन जैसे ही संपत्ति की कीमतें और तलाक की दरें बढ़ीं, चीन की सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया कि शादी से पहले अर्जित की गई संपत्ति केवल उस व्यक्ति की है जिसने या तो अग्रिम भुगतान किया था या संपत्ति को सीधे खरीदा था। इस फैसले से कई तलाकशुदा महिलाएं बेघर होने लगी, भले ही उन्होंने उसको बनाने में संवारने में अपना योगदान दिया हो। फिर धीमी होती अर्थव्यवस्था और स्वतंत्र जीवन शैली के लिए उपजती प्राथमिकताओं को लेकर चिंताओं ने भी कई युवा चीनी लोगों को शादी को पूरी तरह से अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया है, जिसकी वजह से 2022 में विवाह पंजीकरण की संख्या गिरकर 6.8 मिलियन के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई है।
चीन में 20 से 60 साल के लगभग 400 करोड़ महिला उपभोक्ता हैं, जो सालाना 10 ट्रिलियन युआन तक के व्यय को नियंत्रित करती हैं। ऑनलाइन संपत्ति एजेंसी इस बारे में सकारात्मक सोच रखती है। उसके अनुसार महिलाओ द्वारा अपने लिए घर खरीदने का यह व्यवहारिक कदम रियल स्टेट के गिरते उद्योग के लिए नए अवसर लेकर आएगा। सर्वेक्षण ने कई रुझानों पर प्रकाश डाले तो हाल के वर्षो में चीनी महिलाओं के बीच शादी से पहले अपना घर बनाने की अधिक इच्छा बलवती हुई है। अपनी संपत्ति का मालिक होना उन्हें शादी की तुलना में अधिक सुरक्षा की भावना देता है। घर किराए पर लेने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है, जो पांच साल पहले 42.6 प्रतिशत से बढ़कर पिछले साल 44.6 प्रतिशत हो गई। प्रथम श्रेणी के शहरों में, वे प्रति माह औसतन 5,683 युआन का भुगतान करते हैं, जबकि नए प्रथम श्रेणी के शहरों में प्रति माह 2,386 युआन और दूसरी श्रेणी या उससे नीचे के शहरों में 1,972 युआन का भुगतान करते हैं। हालांकि हालिया रुझान संपत्ति के स्वामित्व में लंबे समय से चले आ रहे लैंगिक असंतुलन को खत्म करने से अभी भी दूर है। पेकिंग यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, 2018 में, सभी शहरी महिला निवासियों के बीच संपत्ति के स्वामित्व की दर पुरुष निवासियों की तुलना में केवल आधी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर अधिकाधिक गंभीर है।
विषम लिंग अनुपात ने असमानता का बीजारोपण किया
प्रारंभिक बचपन में लड़कों और लड़कियों के साथ असमान व्यवहार, तुलनात्मक रूप से उच्च महिला मृत्यु दर के दीर्घकालिक प्रभावों के साथ मिलकर, जो कि बीसवीं शताब्दी के अधिकांश भाग की विशेषता रही है, ने चीन को दुनिया के उन दुर्लभ देशों में से एक बना दिया है जहां पुरुषों की संख्या महिलाओं से कहीं अधिक है। चीन में जन्म के समय दुनिया का सबसे विषम लिंग अनुपात देखने को मिलता है। 2020 में, चीन में कुल जनसंख्या का लिंग अनुपात प्रति 100 महिलाओं पर 105.302 पुरुष है। चीन में 738,247,340 या 738.25 मिलियन पुरुष और 701,076,434 या 701.08 मिलियन महिलाएँ हैं। पुरुष जनसंख्या 51.29 प्रतिशत की तुलना में महिला जनसंख्या का प्रतिशत 48.71 प्रतिशत है। चीन में महिलाओं की तुलना में 37.17 मिलियन पुरुष अधिक हैं । चीन केवल भारत से पीछे है, जहां पुरुषों की संख्या महिलाओं से 54 मिलियन अधिक है। महिला-पुरुष अनुपात के मामले में चीन 201 देशों/क्षेत्रों में से 183वें स्थान पर है । एशियाई देशों में इसका स्थान 51 देशों/क्षेत्रों में 37वां है।
समाज में लिंगों के बीच असमानताएं न केवल शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य तक पहुंच के संबंध में हैं, बल्कि विरासत, वेतन, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और परिवार के भीतर निर्णय लेने के मामलों में भी हैं। मौखिक और शारीरिक हिंसा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आर्थिक नियंत्रण, जबरन यौन संबंधों के एसीडब्ल्यूएफ सर्वेक्षणों द्वारा उपलब्ध कराए गए अन्य संकेतक यह भी दर्शाते हैं कि पति-पत्नी की भूमिकाएं गहराई से लैंगिक आधार पर बनी हुई हैं और महिलाएं कई मामलों में स्पष्ट रूप से अपने पतियों के नियंत्रण में रहती हैं। खास तौर पर घरेलू बड़े फैसलों में उनकी भागीदारी उनके हिस्से के विचारों के आदान प्रदान में प्रतिबंध का शिकार रही हैं। फिर भी पिछले 25-30 वर्षों में चीनी महिलाओं के रोजगार में भी बड़े बदलाव होने से यह स्थिति बदलाव की ओर है। नौकरी के मामले में चीन की महिलाओं की स्थिति पर हालिया सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि चीन में महिलाओं के लिए रोजगार दर दुनिया में सबसे ज्यादा देखने को मिलता है। समग्र रूप से चीन में, चार में से लगभग तीन महिलाएँ काम करती हैं। यदि हम इस क्षेत्र के अन्य बड़े देशों की स्थिति पर विचार करें तो यह बहुत उच्च स्तर है। उदाहरण के लिए, भारत में, तीन में से केवल एक महिला ही आधिकारिक तौर पर कार्यरत है, और जापान, कोरिया गणराज्य और फिलीपींस में, यह आंकड़ा दो में से एक से भी कम है।
लू पिन एक चीनी नारीवादी कार्यकर्ता और स्तंभकार हैं। वह 1990 के दशक के अंत से चीन में महिलाओं के अधिकारों को संगठित करने और उनकी वकालत करने में शामिल रही हैं। वे मानती है कि एक बाजार अर्थव्यवस्था के उद्भव का मतलब है कि महिलाओं ने शैक्षिक और व्यावसायिक उपलब्धियों का अभूतपूर्व स्तर हासिल किया हैं। चीनी विश्वविद्यालय के छात्रों में आधे से अधिक (2020 में 53 प्रतिशत) महिलाएं हैं और बेहतर प्रदर्शन के साथ स्नातक हुई हैं। वे वेतनभोगी श्रम बल का उच्च हिस्सा (2020 में लगभग 70 प्रतिशत) और आर्थिक योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (2015 में 41 प्रतिशत) बनाए रखना जारी रखते हैं। अकादमिक क्षेत्र और उभरती सेवा अर्थव्यवस्था महिलाओं को पेशेवर सफलता हासिल करने के सबसे बड़े अवसर प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आंकड़ों में वरिष्ठ विशेषज्ञ और तकनीशियन के रूप में संदर्भित महिलाओं का प्रतिशत 2016 में 38 प्रतिशत तक पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़े यह भी बताते हैं कि इंटरनेट क्षेत्र में महिला उद्यमियों का अनुपात 2019 में 55 प्रतिशत से अधिक हो गया।
प्रारंभिक और सीमित अंतर्दृष्टि से मुक्ति की ओर
राजनैतिक विचारक और साम्यवादी (कम्युनिस्ट) दल के नेता माओ त्से-तुंग ने वादा किया था कि अगर महिलाएं साम्यवादी ’नए चीन’ को अपना लेंगी तो वे ’आधे आसमान पर कब्ज़ा’ करने में सफल रहेगीं। एक लंबे अर्से तक वे ये आसमान छूने में विफल रही है । फिर विफलता के लिए केवल सरकारी लापरवाही और नीतिगत कमियों कोही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसकी जड़ें उन क्षेत्रों में वैचारिक हेरफेर और भ्रम तक फैली हुई हैं जहां पर महिलाओं की भलाई को मापने के प्रश्न प्रासंगिक हो जाते हैं| दरअसल चीनी महिला को बताया जाता रहा कि वह ’मुक्त‘ हो गई है या आधे आकाष पर उनका अधिकार है, लेकिन लैंगिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए उसे हतोत्साहित भी किया जाता आ रहा है। ये इस तरह से भी देखा जा सकता है कि चीन की आर्थिक वृद्धि से समग्र समृद्धि में सुधार हुआ है, लेकिन चीनी महिलाओं को इन लाभों से न के बराबर लाभ हुआ है या फिर संसदीय सीटों के लिए तुलनात्मक रूप से उन्हें निम्न स्तर का सामना करना पड़ता है। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (डब्लयूईएफ) राजनीतिक भागीदारी के मामले में चीन को 78वें स्थान पर रखता है, समान आबादी वाले भारत (19वें) से नीचे। आइसलैंड अपनी संसद में 38.1 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं के कब्जे के साथ विश्व स्तर पर पहले स्थान पर है। 1980 के दशक के दौरान, श्रम बल में महिला भागीदारी औसतन लगभग 80 प्रतिशत इतनी उच्च थी । 2018 तक आते-आते, महिला कार्यबल की भागीदारी घटकर 68.6 प्रतिशत हो गई थी, जो अमेरिका (66.1 प्रतिशत) से थोड़ी ही अधिक और लगभग जापान (68.7 प्रतिशत) के बराबर थी। यह घटती प्रवृत्ति ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य प्रमुख विकासशील देशों के विपरीत है, जहां इसी अवधि में महिला भागीदारी में वृद्धि देखी गई।
महिलाओं के बारे में प्रमुख चीनी धारणाओं और परिवार तथा समाज में उनकी स्थिति का उनका दुर्भाग्य से अति-सरलीकृत सर्वेक्षण, महिलाओं के लिए ’स्थानीय पारंपरिक’ आवाज के रूप में उनके दोषों के बारे में केवल प्रारंभिक और सीमित अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इस संदर्भ में वांग यूकिन का यह सुझाव प्रषंसनीय है कि ’आध्यात्मिक बेड़ियों’ में जकड़ी चीनी महिलाओं को अपनी मुक्ति की दिशा में पहला कदम स्वयं उठाना होगा। यकीनन दक्षिणी चीन में अपने अपार्टमेंट के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय, 32 वर्षीय अवैवाहिक गुओ मियाओमियाओ जैसी कई अन्य महिलाओं ने एक गृहस्वामी के रूप में स्वंय को महसूस कर इस बेड़ी को तोड़ा है। यहीं नही इन महिलाओं ने इसके साथ ही, एक चीनी महिला को विवाह में जो भूमिका निभानी चाहिए, उसके बारे में चीन की पुरानी पारंपरिक सोच को खारिज करने का भी एक तरीका ढूंढ निकाला है।
Image Source: womenofchina.cn
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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