सुरक्षा मामलों को लेकर सतर्क देशों में चीन ही एक ऐसा देश है जिसके पास पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा निगरानी नेटवर्क है। दुनिया भर में उपयोग किए जाने वाले सभी निगरानी कैमरों में से आधे से अधिक को चीनी कंपनियां ही तैनात करती है। बावजूद इसके वर्तमान समय में चीन खुद को ही अधिक जटिल और कठिन राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से घिरा हुआ महसूस कर रहा है। आखिर क्यों? यह आलेख इस पर नज़र डाल रहा है -
मई माह में हुई राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग की एक बैठक की अध्यक्षता में, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने देश के सुरक्षा तंत्र को राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने आने वाली जटिल और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बारे में गंभीरता से जागरूक रहने की हिदायत दी। साथ ही प्रमुख संबंधित मुद्दों को सही ढंग से समझने की जरूरत पर जोर दिया। इस बैठक में आयोग और चीनी सेना के प्रमुख शी अधिकारियों से सबसे खराब स्थिति और सबसे चरम परिदृश्य से निपटने के लिए तैयार रहने का आग्रह कर रहे थे। शी की ये टिप्पणी तब आई है जब दो प्रतिद्वंद्वी शक्तियां चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका कई मोर्चे पर इस वक्त आमने-सामने खड़े हैं। दोनों पक्ष ही एक दूसरे के खिलाफ अपने राष्ट्रीय सुरक्षा जांच को बढ़ा रहे है। अमेरिका ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए पिछले कुछ वर्षों में कई चीनी कंपनियों पर, खासकर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, प्रतिबंध लगाए हैं और चीन ने भी साइबर सुरक्षा जोखिमों का हवाला देते हुए अपने प्रमुख बुनियादी ढांचा ऑपरेटरों को अमेरिकी मेमोरी चिप निर्माता ’माइक्रोन टेक्नोलॉजी’ द्वारा बनाए गए उत्पादों को खरीदने से प्रतिबंधित कर दिया है।
चीन का डिजिटल निगरानी तंत्र दूसरे देशों के लिए बन रहा खतरा?
राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के कार्यालय ने 2023 के वार्षिक खतरे के आकलन में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) द्वारा उत्पन्न साइबर खतरे को स्पष्ट किया है। चीन वर्तमान में अमेरिकी सरकार और निजी क्षेत्र के लिए संभवतः सबसे व्यापक, सबसे सक्रिय और लगातार साइबर जासूसी खतरे का प्रतिनिधित्व करता है। चीन की साइबर गतिविधियों और उसके उद्योग द्वारा संबंधित प्रौद्योगिकियों के निर्यात से अमेरिका के खिलाफ आक्रामक साइबर अभियानों का खतरा बढ़ जाता है। उनका मानना है कि चीन निश्चित रूप से साइबर हमले शुरू करने में सक्षम है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर तेल और गैस पाइपलाइनों और रेल प्रणालियों सहित महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा सेवाओं को बाधित कर सकता है। कुछ समय पूर्व अमेरिका ने जर्मनी को देश के मोबाइल नेटवर्क में हुआवेई की भागीदारी के खिलाफ चेतावनी दी थी। अमेरिका और कनाडा सहित कई देशों ने पहले ही हुआवेई और जेडटीई की नेटवर्क तकनीक को अपने बाजारों से बाहर कर दिया है। अमेरिका का दावा है कि चीन जासूसी के लिए हुआवेई की 5जी तकनीक का इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि हुआवेई ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
मूलतः अधिकांश घरों पर लगाये जाने वाले कैमरे जिस हिकविज़न या दाहुआ द्वारा निर्मित है, वे दो चीनी कंपनियां हैं जो वीडियो निगरानी के व्यवसाय में सुरक्षा टेक्नालाजी बाजार पर हावी हैं। बाजार शोधकर्ता आईडीसी के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2021 में, इन कंपनियों ने लगभग $35 बिलियन (€32 बिलियन) मूल्य के वैश्विक बाजार का एक तिहाई से अधिक हिस्सा बनाया। हुआवेई जैसी चीनी कंपनियों को यूरोपीय देशों में सुरक्षा खतरे के रूप में देखा जा रहा है, जबकि इन दो निगरानी दिग्गजों (हिकविज़न और दाहुआ) पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता है, जिनके उपकरण दुनिया भर में हवाई अड्डों, ट्रेन स्टेशनों और यहां तक कि सरकारी भवनों पर भी नजर रखते हैं। हालिया मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जर्मनी में पुलिस स्टेशनों और मंत्रालयों सहित हजारों हिकविजन डिवाइस ही वर्तमान में अधिक उपयोग में लाये जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में जोश चिन और लिज़ा लिन की नई किताब, ‘सर्विलांस स्टेटः इनसाइड चाइनाज़ क्वेस्ट टू लॉन्च ए न्यू एरा ऑफ़ सोशल कंट्रोल’ में बताती है कि कैसे चीनी अधिकारी पहचान दस्तावेजों, चेहरे की पहचान, उंगलियों के निशान और यात्रा इतिहास को जोड़ने वाले एक परिष्कृत राष्ट्रीय डेटाबेस का उपयोग करते हैं। जांच की दूसरी, अधिक शक्तिशाली परत चीन के सीसीटीवी कैमरों का विशाल नेटवर्क है, जिसके फुटेज का वास्तविक समय हुआवेई, सेंसटाइम, मेगवी और चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी ग्रुप कॉरपोरेशन (सीईटीसी) जैसी कई चीनी कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले ‘आर्टिफिशल इंटेलीजेंस’ सॉफ़्टवेयर द्वारा विश्लेषण किया जाता है।
अपने ही देश में निगरानी के केन्द्र में चीनी नागरिक
सरकारी दस्तावेजों पर रायटर्स द्वारा की गई एक समीक्षा से पता चलता है कि निगरानी उपकरणों को अपग्रेड करने की मांग कर रहे अधिकारियों की मांग को देखते हुए दर्जनों चीनी कंपनियों ने ऐसे सॉफ़्टवेयर बनाए हैं जो निवासियों पर एकत्र किए गए डेटा को क्रमबद्ध करने के लिए ‘आर्टिफिशल इंटेलीजेंस’ का उपयोग करते हैं। रॉयटर्स द्वारा जांचे गए 50 से अधिक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेज़ों के अनुसार, चीन में दर्जनों संस्थाओं ने पिछले चार वर्षों में ऐसे सॉफ़्टवेयर खरीदे हैं, जिन्हें ’’एक व्यक्ति, एक फ़ाइल’’ के रूप में जाना जाता है। यह टेक्नॉलाजी मौजूदा सॉफ़्टवेयर में सुधार करती है, जो केवल डेटा भर एकत्र करता है लेकिन इसे सही क्रम में करने के लिए लोगों पर छोड़ देता है।
न्यूयार्क टाइम्स की खोजपरक रिर्पोट में पाया गया है कि रोजमर्रा के नागरिकों से भारी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने की चीन की महत्वाकांक्षा पहले से अधिक बढ़ गई है। फ़ोन-ट्रैकिंग उपकरण अब हर जगह मौजूद हैं। अधिकारी आम जनता से आवाज के प्रिंट इकट्ठा कर चेहरे की पहचान की तकनीक पर काम कर रहे हैं। अधिकारी लोगों के डिजिटल जीवन को उनकी शारीरिक गतिविधियों से जोड़ने के लिए फोन ट्रैकर्स का उपयोग कर रहे हैं। वाईफाई स्निफर्स और आईएमएसआई कैचर्स के रूप में जाने जाने वाले उपकरण उनके आसपास के फोन से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जो पुलिस को लक्ष्य की गतिविधियों को ट्रैक करने की अनुमति देते हैं। यह किसी के डिजिटल पदचिह्न, वास्तविक जीवन की पहचान और भौतिक ठिकाने को जोड़ने का एक शक्तिशाली उपकरण है। चीनी पुलिस व्यापक रूप से पुरुषों से डीएनए नमूने एकत्र कर रही है। जब पुलिस के पास एक आदमी का डीएनए प्रोफ़ाइल होता है, तो उनके पास उसके परिवार के पैतृक वंश के अलावा अगली कुछ पीढ़ियों की जनकारी होती है। इस सबंध में विशेषज्ञों ने कहना कि कई अन्य देश आपराधिक जांच में सहायता के लिए इस विशेषता का उपयोग करते हैं, जबकि चीन का दृष्टिकोण इससे इतर यथासंभव अधिक से अधिक नमूने एकत्र करने पर केंद्रित है।
बदलते हालात चीनी नागरिकों के लिए मुश्किल भरे हो सकते हैं
सुरक्षा को लेकर कसे जाते नियम कानून में बदलते हालात चीनी नागरिकों के लिए बहुत आसानी भरे और सुकुनतर होगें, ऐसे आसार नहीं लगते। यकीनन बढ़ते सुरक्षा तंत्रों की नज़र उन पर भी लगातार बनी रहेगी। इसके कुछ उदाहरण, [ न्यूयार्क टाइम्स की रिर्पोट के कुछ अंश ] यहां देखे जा सकते है-
चीन के राज्य सुरक्षा मंत्रालय, जो आमतौर गुप्त पुलिस और खुफिया सेवाओं की देखरेख करता है, ने अपना पहला सोशल मीडिया अकाउंट खोला है जिसे आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक जुड़ाव बढ़ाने के प्रयास के रूप में रखा जा रहा है| उनकी पहली पोस्ट जासूसी के खि़लाफ़ संपूर्ण समाज को लामबंद करने का आह्वान थी। चीनी विश्वविद्यालयों ने फैकेल्टी मेंबर्स को राज्य के रहस्यों की सुरक्षा पर पाठ्यक्रम लेने का निर्देश जारी किया है। इसमें वे भी है जो पशु चिकित्सा जैसे विभागों में काम करते हैं। पूर्वी शहर तियानजिन में एक किंडरगार्डन ने अपने स्टाफ सदस्यों को चीन के जासूसी विरोधी कानून को समझने और उपयोग करने का तरीका सिखाने के लिए एक बैठक आयोजित की।
चीन ने अपने जासूसी-विरोधी कानून को संशोधित कर गतिविधियों के पहले से ही व्यापक दायरे को और बढ़ा दिया है। हालाँकि बड़े पैमाने पर सतर्कता के आह्वान ने व्यापक सावधानी बरतने को प्रेरित किया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इस पर जमीनी स्तर पर किस हद तक कार्रवाई हो रही है। हाई-स्पीड ट्रेनों में, लूप पर एक वीडियो यात्रियों को सोशल मीडिया के लिए तस्वीरें लेते समय सावधान रहने की चेतावनी देता है। उन्हे संवेदनशील जानकारी शेयर न करने की हिदायत देता है। सरकारी कार्यालयों में जहां निवासी नियमित कागजी कार्रवाई करते हैं, वहां लगे पोस्टर्स लोगों को रक्षात्मक रेखा बनाने की याद दिलाते हैं। युन्नान प्रांत की एक स्थानीय सरकार ने वहां के एक जातीय समूह ’यी’ की पारंपरिक पोशाक में पुरुषों और महिलाओं का एक वीडियो प्रकाशित किया, जो चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के बारे में खुशी से नाच रहे थे और गा रहे थे। गाने के बोल थे- जो लोग रिपोर्ट नहीं करेंगे उन पर कार्रवाई की जाएगी, अपराधों को कवर करने पर जेल होगी, आदि आदि। अधिकारियों के सुरक्षा समाधान में, युवाओं को अधिक सतर्क रहना, सिखाना है। विश्वविद्यालयों ने छात्रों के ऐसे दल बनाए हैं जिन्हें ऐसे लोगों की रिपोर्ट करने का काम सौंपा गया है, जो अन्य बातों के अलावा, विदेशी वेबसाइटों का उपयोग करते हैं।
सुरक्षा को लेकर बढ़ी चीन की चिंता पर क्या कहते है विद्वान
बीजिंग के ताइहे संस्थान के वरिष्ठ सहयोगी और सिंघुआ विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय रणनीति संस्थान के एक वरिष्ठ शोधकर्ता झी माओसॉन्ग का कहना है कि शी की नवीनतम टिप्पणियों से पता चलता है कि चीन को अमेरिकी प्रतिद्वंद्विता के संभावित विनाशकारी परिणाम के बारे में कोई भ्रम नहीं, इसीलिए वह अपनी तैयारी के लिए गंभीर प्रयास कर रहे। चीन जितना बेहतर तैयार होगा, वास्तव में परमाणु युद्ध जैसे परिदृश्य घटित होने की संभावना उतनी ही कम होगी। उनके अनुसार सुरक्षा को लेकर बढ़ी चिंता में अन्य संभावित चुनौतियां, एक नई महामारी या एक बड़ा भूकंप या फिर अत्यधिक मौसम के बिगड़ने के कारण होने वाली आपदाएँ हो सकती हैं।
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के एसोसिएट प्रोफेसर अल्फ्रेड वू कहते है कि शी की टिप्पणियों का मतलब है कि, चीन-अमेरिका संबंधों में हाल के मामूली सुधार अल्पकालिक होंगे इस बात पर बीजिंग आश्वस्त है। वे ऐसा इसलिए मानते है कि हाल के दिनों में शी ने चीन की समस्याओं के लिए अमेरिका को दोषी बताया है। चीन के कुछ अन्य विद्वान भी चीन-अमेरिका संबंधों के बारे में खुले तौर पर निराशाजनक विचार रखते है। उनके अनुसार आपसी संबधों की यह गिरावट चीन और अमेरिका में घरेलू राजनीतिक गतिशीलता के कारण उत्पन्न हुई है। अब चाहे कितने भी संवाद कर लें, कोई बुनियादी सुधार होना मुश्किल है।
निष्कर्ष
चीन वर्तमान में आर्थिक मंदी, बेरोजगारी के साथ-साथ पश्चिम के साथ कुछ अन्य देषों के साथ बढ़ते तनावपूर्ण संबंधों के कारण बाहरी-भीतरी परेषानियों से दो-चार हो रहा है। ऐसे में चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा देश के भीतर कथित खतरों से बचाव के लिए आम लोगों को इस तरह के अभियान में शामिल करना, एक तरह से अपने ही नागरिकों को असंमजस और संदेहात्मक वातावरण देकर अपने मानसिक उन्माद और सतर्कता के बीच की रेखा को धुंधला करने जैसा है। किसी भी राष्ट्र के लिए अपनी सरहदों और अपने भीतरी मामलातों को सुरक्षा के कवच से ढकना जरूरी होता है, लेकिन बिना किसी आम नागरिक की जानकारी में लाए। वे तभी स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है जब उन्हें इस बात का इल्म होता है कि वे अपने वर्तमान शासक के नेतृत्व में सुरक्षित और निश्चिंत है। लेकिन शासक जब उन्हें ही सुरक्षा के लिए अपना हथियार बना लें तो ये सवाल भी जायज हो जाता है आखिर इतनी सतर्कता किसलिए? जैसा कि ग्लोबल टाइम्स के एक संपादकीय टिप्पणी में कहा गया - अगर आपने कुछ गलत नहीं किया है तो आप इस क़दर डरे हुए क्यों है?
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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