हाल ही में चीन की विधायिका ने देश की भावनाओं को ठेस पहुंचने वाले कपड़े पहनने वाले लोगों पर जुर्माना लगाने और हिरासत में लेने संबंधी मसौदे को तैयार किया है जिसे जल्द ही कानून के तहत लाने का प्रस्ताव भी दिया है। इस तरह के कानून देश के नागरिकों पर लागू करने से चीन सरकार कहीं दूसरा उत्तर कोरिया तो नहीं बनना चाह रही या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने के पीछे पड़ोसी मुल्क को नीचा दिखाना इसकी वजह है? एक विश्लेषण

सीमा विवाद, आर्थिक मंदी की मार, बढ़ती बेरोजगारी, भीतरी असुरक्षा के अलावा विदेश मंत्री, रक्षामंत्री की गैरहाजिरी के सवालों से घिरी चीन सरकार भीतरी-बाहरी मामलों से निपटने के बजाय लगातार नये अजीबोगरीब मुद्दों को हवा दे रही है। ताज़ा वाक़या देश हित में नागरिक क्या पहने या क्या पहने, सरकार द्वारा इसका निर्धारण करना है। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति द्वारा चीनी राष्ट्र की भावना के लिए हानिकारक माने जाने वाले परिधानों और प्रतीकों पर प्रतिबंध लगाने की मांग से बहस का बाज़ार गरम हो रहा। इस कानून के लिए तैयार किए गये मसौदे में उत्पादन, प्रचार और प्रसार करने वाले लेखों या देश संबंधी टिप्पणियों पर भी रोक लगाये जाने का मशविरा दिया गया है। इस कानून के बन जाने के बाद प्रतिबंध के तहत 15 दिन की कैद और 5,000 युआन (भारतीय मुद्रा में 79,002 रूपये) तक का जुर्माना किया जा सकता है। इस नए प्रस्तावित कानून के पास हो जाने के बाद पुलिस के पास संदिग्ध पोशाक वाले किसी से भी व्यक्ति से पूछताछ करने और उसे दंडित करने का ठोस कानूनी आधार हो जाएगा। एक तरह से यह मसौदा देश के लगभग 1.4 अरब लोगों की भावनाओं को कुचलने के अलावा चीन के नागरिकों के लिए खौफ़ का मंजर तैयार कर रहा है।

जब एक जापानी परिधान बन गया कानूनी मसौदे की वजह?

पिछले साल सूज़ौ में एक लड़की से उसके किमोनो पहनने को लेकर पुलिस ने कड़ी पूछताछ की थी। उससे हुई पूछताछ ने देश भर में बहस छेड़ दी थी। किसी के किसी भी तरह के पहनावे पर सवाल उठाना निश्चित तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करना है। दूसरे देशों की पांरपरिक पोशाक पहनना, उस पोशाक में फोटो खींचवाना और फिर सोषल मीडिया में उसको शेयर करना आज एक आम बात हो चुकी है पर चीनी सरकार इस व्यवहार को अपनी संस्कृति के लिए अपमानजनक समझ रही। दरअसल हाल के वर्षों में राष्ट्रवाद और जापानी विरोधी भावना में वृद्धि के बीच चीन में सार्वजनिक रूप से किमोनो पहनना तेजी से विवादास्पद होता जा रहा है। चीन के युवाओं के बीच जापानी संस्कृति बेहद लोकप्रिय रही है जिसे बदलते माहौल के साथ बढ़ती आलोचना और संदेह का सामना करना पड़ रहा है।

सदियों से चीन की छवि माओ जैकेट की तरह रही है। बुर्जुआ जीवन शैली के आदि हो चुके चीन में 1980 के दशक में, इस बात पर बहस थी कि क्या युवाओं को अपने बालों को रंगना चाहिए या जींस और धूप का चश्मा पहनना चाहिए। आपको याद होगा हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने रैलियों के दौरान सादे काले टी-शर्ट, पतलून और चेहरे के मुखौटे को अपनी वर्दी के रूप में अपनाया था। तब चीनी सरकार ने  काले कपड़े के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस वक्त अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं में काली शर्ट के अलावा कुछ अन्य कपड़े, हेलमेट, छाते, वॉकी-टॉकी, ड्रोन, काले चश्मे और धातु की चेन भी प्रतिबधिंत सामानों में शामिल थे। हाल ही की बात है जब चीनी अधिकारियों ने संगीत समारोहों में इंद्रधनुष वाली शर्ट पहनने वाले या एलजीबीटीक्यू+ समर्थक प्रतीकों वाले झंडे बांटने पर लोगों पर सख्ती कर दी थी। नए ड्रेस कोड संशोधनों के प्रस्तावित होने से कुछ ही दिन पहले चीनी सोशल मीडिया पर शादी के लिए किस तरह से खुद को दिखाने के तरीके वायरल हो रहे थे, जिसमें वेइबो ( टिविटर की तरह का चाइनीज हैंडिल) के प्रभावशाली लोगों ने महिलाओं को मध्यम लंबाई और सफेद-गुलाबी रंग के गहरे कपड़े पहनने के सुझाव दिये जा रहे थे। एक तरह से देखा जाये तो इस तरह का सुझाव चीनी महिलाओं के प्राकृतिक आकार को निखारने के साथ-साथ चीनी रूढ़िवादिता और स्त्री पवित्रता की संकीर्ण मानसिकता को सामने रखता हैं।

किमोनो महज एक वजह, दशकों पुराना है चीन का जापान से विवाद

दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में गिने जाने वाले चीन और जापान के बीच समस्या केवल राजनयिक स्तर पर नहीं है बल्कि नागरिकों के स्तर पर भी रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन पर जापान के क्रूर आक्रमण के कारण, जापान के खिलाफ चीनी जनता की भावनाएं घटती-बढ़ती रही है। 1949 से 1976 के बीच माओ के दौर में नानजिंग में हुए क़त्लेआम की उपेक्षा भी इसकी एक बड़ी वजह है। जापानी सैनिकों ने नानजिंग शहर को अपने क़ब्ज़े में लेकर हत्या, रेप और लूट को अंजाम दिया। यह क़त्लेआम 1937 में दिसंबर महीने में शुरू हुआ था और होकर 1938 में मार्च महीने तक चला था। इतिहासकारों और चौरिटी संगठनों के अनुमान के मुताबिक़, नानजिंग में उस वक़्त के ढाई से तीन लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। ये वाक़या चीनी नागरिकों के जे़हन पर हावी है, जो विश्व भर में बदलते हालातों के साथ मद्धिम भी होता रहा। हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच दो छोटे द्वीपों सेनकाकु (जापान) और दूसरा दिओयु (चीन) को लेकर विवाद हुआ। ईस्ट चाइना सी को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव जगजाहिर है। हाल ही में क्षतिग्रस्त जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से उपचारित अपशिष्ट जल को समुद्र में छोड़ने के टोक्यो के फैसले पर चीन ने अपनी नाराजगी जाहिर की।

दरअसल चीन अपने नागरिकों को गाहे-बगाहे जापान के क्रूरतम व्यवहार की याद दिलाना नहीं भूलता। अक्सर जब भी दोनों देशों में कोई नया विवाद सामने आता है शी जिनपिंग स्वंय ही इस मौके का नहीं छोड़ते और भर रहे उन अतीत के घावों को कुरेद देते है, जिसे माओ तक ने भूल जाना ही उचित समझा। आज भी चीन की घरेलू राजनीति और द्विपक्षीय संबंधों की परिस्थितियां कभी-कभार नागरिकों के मन मस्तिष्क को भावनात्मक चोट देने की वजह भी बन जाती है। ये कुछ-कुछ वैसी ही भावनायें है जिनकी तुलना हम भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय लगी चोट से कर सकते है, जिसकी चिंगारी कभी सीमा-विवाद तो कभी आपसी तात्कालिक तल्खि़यों की वजहें भारतीय नागरिकों के दिलों-दिमाग को सुलगा देते है।

मसौदे पर क्या कह रहे चीनी नागरिक से लेकर बुद्धिजीवी तक

इस प्रस्तावित कानून के कारण सोशल मीडिया पर चीनी नागरिकों में खासी नाराजगी देखने में रही है। चीनी जनता ने परिधान कानून के तैयार किए गये मसौदे पर जल्द ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी थी। ऑनलाइन माध्यमों पर लोगों ने इसे अत्यधिक बेतुका बताते हुए इसकी निंदा की और सवाल किया कि कानून प्रवर्तन अधिकारी स्वयं कैसे निर्णय ले सकते हैं कि किस बात से और किस तरह से देश की भावनाएं आहत हुई हैं या नहीं। बीबीसी के अनुसार, एक उपयोगकर्ता ने वीबो पर पोस्ट किया कि क्या सूट और टाई पहनना मायने रखेगा? मार्क्सवाद का जन्म पश्चिम में हुआ। क्या चीन में इसकी उपस्थिति भी राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचाने के रूप में मानी जाएगी?

वेइबो पर खुद को वकील बताने वाले डु झाओयोंग ने 8,800 लाइक्स पाने वाली अपनी एक पोस्ट में कहा कि कानून निश्चित रूप से भारी अनिश्चितता लाएगा और मनमानी और अनधिकृत सजा के लिए सुविधा का द्वार खोल देगा। झाओयोंग की यह पोस्ट कुछ समय बाद वेइबो से गायब थी।

चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ पॉलिटिकल साइंस एंड लॉ में कानून के प्रोफेसर झाओ होंग ने कानून लागू करने वालों द्वारा कानून के दायरे से परे अपने स्वयं के नैतिक निर्णय थोपने के जोखिम की बात कही। यकीनन पहनावे पर प्रतिबंध के बहाने चीनी सरकार स्वंय के हित के लिए इन कानून के तहत चीनी नागरिकों के रोजमर्रा की जीवन षैली पर हावी होने की कोषिश कर रही। कभी कोविड के बहाने तो कभी देश की सुरक्षा के नाम पर सरकार यूं भी अपने ही चीनी नागरिकों पर नज़र बनाये रहती है। संघुआ विश्वविद्यालय में आपराधिक कानून के प्रोफेसर लाओ डोंगयान के अनुसार ये कदम सामाजिक स्थिरता के लिए नए जोखिम लाने जैसा काम होगा। कई कानूनी विद्वानों और ब्लॉगर्स ने अपने संपादकीय और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए उक्त कानूनी मसौदे में कुछ खंडों को हटाने का आग्रह किया।

बीजिंग न्यूज़ रेडियो, जो कि एक सरकारी रेडियो स्टेशन है, ने माना कि 40,000 से अधिक लाइक और 4,000 टिप्पणियों वाली पोस्ट में वे लोग हैं जो खुले तौर पर इस बदलाव का विरोध कर रहे हैं। अखबार के पूर्व संपादक हू ज़िजिन एक ओर तो अपनी एक राय में कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट करने का आग्रह करते है, दूसरी ओर, कानून के मूल मसौदे का हू समर्थन भी करते नजर आते है। वे कहते है किसी भी हाल में चीनी राष्ट्र की भावना और भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जानी चाहिए।

निष्कर्ष

सच तो ये है कि ये मसौदा स़ख्त कानून के नज़रिए से राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन में एक व्यापक प्रवृत्ति का उदाहरण देता है। 2012 में सत्ता में आने के बाद से, शी ने एक आदर्श चीनी नागरिक के गठन को एक बार फिर से परिभाषित करने की कोशिश की है। इसमें 2019 में नैतिकता दिशानिर्देश जारी करना शामिल है, जो शी और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी पर जोर देते हुए विनम्रता और देश के तौर-तरीकों के अनुकूल ही नागरिकों के व्यवहार को प्रोत्साहित करता है।

किंतु यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 1970 के दशक के अंत में पूर्व सर्वाेपरि नेता डेंग जियाओपिंग द्वारा शुरू किया गया चीन का सुधार और खुलापन केवल आर्थिक उदारीकरण के बारे में था बल्कि विचार की मुक्ति और व्यक्तिगत विकल्पों की सहनशीलता के बारे में भी प्रकाष डालता है। यकीनन 2020 से पहले चीन के आर्थिक उछाल ने लोगों को अपनी जीवनशैली को बदलने के विकल्पों में स्वतंत्रता प्रदान की है, जिसमें बाहर कहाँ भोजन करना है, कहाँ यात्रा करना है और कौन से कपड़े पहनना वगैरह से लेकर अपनी जीवन शैली का प्रचार-प्रसार भी शामिल है। यह नई पीढ़ी की जरूरत भी है। जीवन के खुशनुमा पहलू को ही जीने वाली आज की युवा पीढ़ी यूं भी चीनी सरकार के कायदे-कानून से परे नये ढरे पर जीना पसंद करेगी। संकीर्ण तौर-तरीकों से खुद को आज़ाद करती चीनी औरतें इसका ताजा उदाहरण है। और इसलिए भी चीन सरकार को अपने नागरिक कानूनों के मामले में लचीला रूख अपनाने की जरूरत है तब जबकि यहां का युवा बुजुर्ग आबादी के मुकाबले कमतर हो रहा, दूसरे बेरोजगारी का अवसाद उसे सरकार की खि़लाफत को किसी भी क्षण उकसा सकता हो।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

Subscribe now to our newsletter !

Get a daily dose of local and national news from China, top trends in Chinese social media and what it means for India and the region at large.

Please enter your name.
Looks good.
Please enter a valid email address.
Looks good.
Please accept the terms to continue.