हाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा उनके सबसे महत्वाकांक्षी विदेश-नीति कार्यक्रम बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की दसवीं वर्षगांठ पर दावा किया गया कि बीआरआई ने 420,000 नौकरियां पैदा की हैं और 40 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। लेकिन पश्चिम का इस बारे में सोचना है कि ये भ्रामक बातें है। इस प्रोजेक्ट का असल उद्देश्य महज एक चीनी नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था का निर्माण करना है जिसमें निरंकुशता का बोलबाला हो और जो विश्व के कुछ निरंकुश प्रतिनिधियों के छत्र छाया में विश्व भर पर अपना शासन जमा सके। चीन का यह प्रोजेक्ट संदेह की स्थिति से घिरता जा रहा है। एक विश्लेषण

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के योजना, ड्रीम प्रोजेक्ट बीआरआई के तहत ऐसा नेटवर्क तैयार करने की थी जो पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की आधिकारिक चीनी मुद्रा, रॅन्मिन्बी के अंतर्राष्ट्रीय उपयोग का विस्तार करे और एशियाई कनेक्टिविटी में बाधा को तोड़ दे। ये परियोजना अफ्रीका, ओशिनिया और लैटिन अमेरिका में शुरू हुई, औश्र यकीनन इससे चीन के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव में काफी विस्तार हुआ है। हालांकि बीआरआई को लेकर चीन की समग्र महत्वाकांक्षा चौंका देने वाली है। पिछले 10 सालों में 147 देशों-जिनमें दुनिया की दो-तिहाई आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत हिस्सा है-ने इस परियोजना पर हस्ताक्षर किए हैं। पहले इसेवन बेल्ट, वन रोडकहा जाता था, लेकिन अब इसेबेल्ट एंड रोड इनिशिएटिवका नाम दिया गया। बीआरआई को शुरू में चीन के आधुनिक तटीय शहरों को उसके अविकसित अंदरूनी हिस्सों और उसके दक्षिणपूर्व, मध्य और दक्षिण एशियाई पड़ोसियों से जोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिससे अधिक जुड़े हुए विश्व के केंद्र में चीन की स्थिति मजबूत हो सके। तब से यह पहल अपने मूल क्षेत्रीय गलियारों से आगे निकल गई है और दुनिया के सभी कोनों तक फैल गई है। इसके दायरे में अब एक डिजिटल सिल्क रोड भी शामिल है जिसका उद्देश्य प्राप्तकर्ताओं के दूरसंचार नेटवर्क, कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्षमताओं, क्लाउड कंप्यूटिंग, -कॉमर्स और मोबाइल भुगतान प्रणाली, निगरानी प्रौद्योगिकी और अन्य उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में सुधार करना है, साथ ही एक हेल्थ सिल्क रोड को परिचालन में लाना है। चीन ने बीआरआई को इस विश्वास के साथ आगे बढ़ाया कि यह पहल एक साथ कई मुद्दों का समाधान कर सकती है। दुनिया भर में सैकड़ों परियोजनाएं अब बीआरआई छत्रछाया के अंतर्गत आती हैं। देखा जाये तो वैश्विक वाणिज्य को संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप से हटाकर चीन की ओर पुनः उन्मुख करना ही इसका मूल मकसद है।

कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के डगलस पाल का तर्क है कि चीनी नेतृत्व ने पूर्व नेता देंग जियाओपिंग के प्रसिद्ध कथन, अपनी ताकत छिपाओ और अपना समय बर्बाद करो को प्रभावी ढंग से दफन कर दिया। पाल के अनुसार, इसके स्थान पर, नए चीनी नेतृत्व ने आसपास के क्षेत्रों में अधिक सक्रिय कूटनीति को आगे बढ़ाया है। लेकिन क्या ये कूटनीति स्वयं के उत्थान और दूसरों के पतन की स्थिति को उजागर करती नहीं प्रतीत होती।

कुछ देशों पर चीन के बढ़ते ऋण बोझ को देखकर बीआरआई के प्रति अरूचि बढ़ी

आरंभिक तौर पर जिन पड़ोसी देशों के साथ चीन ने इस प्रोजेक्ट की शुरूवात की उनमें से अधिकांष देष आज चीन के कर्जदार हो चुके है। श्रीलंका से चीन ने अपने इस प्रायोजित बुनियादी ढांचे का विकास आरंभ किया था। लेकिन परिणामस्वरूप इन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने श्रीलंका को चीन के लगभग 8 बिलियन डॉलर के कर्ज के नीचे दबा दिया। श्रीलंका अपने बकाये का भुगतान नहीं कर सका, तो उसने हंबनटोटा बंदरगाह परियोजना के लिए ऋण-फॉर-इक्विटी स्वैप पर बात कर उसने स्वंय को इस मुश्किल से उबारने की कोशिश की। हालांकि श्रीलंका ही अकेला देश नहीं था जिन्हें चीन ने उनके विकास के नाम पर स्वंय के निवेश-जाल में उलझाया। 147 से ज्यादा देशों के साथ उसने वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव का फायदा उठाने की पहल में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया। कम आय वाले देशों की आर्थिक स्थिति यूं भी गंभीर रहती है, इस परियोजना के बाद इन देयाों के हालात बदतर होने के कगार पर है। उपलब्ध डेटा के अनुसार कम आय वाले देशों पर 2022 में चीन के ऋण का 37 बकाया है, जबकि बाकी दुनिया के लिए यही ऋण 24 है। एक तरह से इस परियोजना में शामिल लगभग 42 देशों पर चीन का कर्जा है। एडडेटा और बीआरआई के आंकड़ों के अनुसार, सड़क-रेल-बंदरगाह-भूमि बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए चीनी वैश्विक परियोजनाएं इसमें शामिल सभी देशों के लिए ऋण का एक प्रमुख स्रोत रही। इसमें पाकिस्तान 77.3 अरब डॉलर के ऋण के साथ सबसे आगे है। इसके बाद अंगोला (36.3 अरब डॉलर), इथियोपिया (7.9 अरब डॉलर), केन्या (7.4 अरब डॉलर) मालदीव (6.39 अरब डॉलर) और श्रीलंका (7 अरब डॉलर) का कर्जदार है। चीन ने मालदीव में सिनामाले पुल और एक नए हवाई अड्डे जैसी बुनियादी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया गया था। बांग्लादेश पर बीजिंग के कुल विदेशी ऋण का 6 बकाया है, यानी लगभग 4 बिलियन डॉलर का कर्जा है। अफ्रीका पर बीजिंग का 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा का बकाया है। जाम्बिया भी चीनी बैंकों के लगभग 6 बिलियन डॉलर के साथ ऋण चुका रहा है।

एक ओर तो कर्ज में डूबे देशों के हालात दूसरे यूक्रेन में युद्ध ने यूरोप के लिए ट्रांस-यूरेशियन कनेक्टिविटी के बीआरआई के लक्ष्य को झटका दे दिया है। हालाँकि अपने कर्जदार साथियों के साथ चौथी बार फोरम का उत्सव मनाने वाले शी पुतिन के साथ से ही गद्गद् नजर आते है। रूस भी, अपने विशाल यूरेशियन पदचिह्न के साथ, बीआरआई के माध्यम से अपने सहयोग का विस्तार करने के लिए उत्सुक दिखाई देता है। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के वारंट का सामना करने के बावजूद, व्लादिमीर पुतिन ने बीआरआई फोरम में भाग लेने के लिए रूसी सीमाओं के पार अपनी पहली यात्रा की, जो बीआरआई में जुड़ाव को गहरा करने में रूस की रुचि का संकेत है। बावजूद इसके बीआरआई की गति और समझौते से अंसतुष्ट इटली ने हाल में जी 20 के दौरान खुद को चीन के इस मेगा प्रोजेक्ट से खुद को अलग कर लिया। चार साल बाद, बीआरआई को लेकर हुए समझौते में इटली के लिए बहुत कुछ नहीं हो पाया। दरअसल इटली उस समय बीआरआई में शामिल हुआ था जब वह निवेश और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बेताब था। उस समय इसकी सरकार ने यूरोपीय संघ के साथ मधुर संबंध साझा नहीं किए थे, और जो धन वह इसमें लगा सकती थी, उसके लिए वह चीन की ओर रुख करके खुश थी। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के आंकड़ों के अनुसार, इटली में चीनी एफडीआई 2019 में 650 मिलियन डॉलर से घटकर 2021 में सिर्फ 33 मिलियन डॉलर रह गया। वास्तव में, देश ने यूरोप में गैर-बीआरआई देशों में कहीं अधिक निवेश किया। व्यापार के संदर्भ में, बीआरआई में शामिल होने के बाद से, चीन को इटली का निर्यात 14.5 बिलियन यूरो से बढ़कर मात्र 18.5 बिलियन यूरो हो गया, जबकि इटली को चीनी निर्यात 33.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 50.9 बिलियन यूरो हो गया। हालाँकि, इन स्पष्ट समस्याओं के बावजूद, यदि इटली समझौते से बाहर निकलता है, तो इसका कारण केवल अर्थशास्त्र नहीं होगा।

बोस्टन विश्वविद्यालय के वैश्विक विकास नीति केंद्र द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, चीन द्वारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को दिया जाने वाला ऋण 2016 के आसपास कम होना शुरू हो गया था। यह इस समय के आसपास था कि कुछ देनदार चीन के आगामी ऋण के बोझ तले दबने लगे थे। वेनेज़ुएला विशेष रूप से उल्लेखनीय है। तब से, ग्लोबल साउथ देशों को इन बैंकों के ऋण में गिरावट जारी रही है। जबकि चीन घरेलू स्तर पर अपने पर्यावरण रिकॉर्ड को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है, बीआरआई बीजिंग के लिए अपनी कुछ सबसे प्रतिकूल जलवायु प्रौद्योगिकी को निर्यात करने का माध्यम भी साबित हुआ है। बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास के कारण होने वाले सामाजिक विस्थापन के अलावा, स्थानीय श्रम कानूनों के उल्लंघन सहित बीआरआई से जुड़ी अन्य मानवाधिकार संबंधी चिंताएं भी हैं। बीआरआई देशों में कई चीनी परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी ने इस विवाद को जन्म दिया है कि चीन अपने बढ़ते आर्थिक प्रभाव का उपयोग कैसे करना चाहता है। ऐसी अटकलें हैं कि चीन सार्वजनिक संपत्तियों तक दीर्घकालिक पहुंच प्रदान करने के लिए देशों को फंसाने के लिए भी ऋण का उपयोग करता है। वास्तविकता यह है कि चीन अभी भी एक ऐसा समाधान खोजने के लिए संघर्ष कर रहा है जो कई बीआरआई देशों के ऋण स्थिरता मुद्दों में शामिल सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य हो।

मेगा परियोजना की लागत भी बन रही बीआरआई के रास्ते का रोड़ा

बीआरआई यकीनन शी जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना है और इसे एशियाई राष्ट्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि अभी तक चीनी अधिकारियों ने ये भी नहीं बताया है कि कुल कितनी लागत इस परियोजना के लिए प्रस्तावित है और ये बात कई तरह के संदेह पैदा करता है। लेकिन गार्जियन में छपी 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना की लागत 1 ट्रिलियन से ज्यादा ही आंकी गई थी। हालांकि इस पर अलग-अलग अनुमान हैं कि आज तक कितना पैसा खर्च किया जा चुका है। एक विश्लेषण से पता चला है कि चीन ने इस पहल के लिए 210 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है, जो एशिया में किसी भी परियोजना में निवेश की गई योजना में सबसे ज्यादा है। कहने वाले ये भी कह रहे कि चीन अपने तीस ख़रब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार से इस परियोजना के लिए फ़ंड देता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू हेम्पशर के राजनीतिक विज्ञान विभाग में प्रोफ़सर लॉरेंस सी रियर्डन कहते हैं कि यह रक़म चीन ने 1980 में अपनी ज्यादा खुली विकास नीति अपनाने के बाद से जुटाई है।

अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 तक इस पहल के माध्यम से सालाना लगभग 100 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा रहा था, लेकिन तब से यह आंकड़ा 60 बिलियन डॉलर से 70 बिलियन डॉलर के आसपास रह गया है। चीन की आर्थिक मंदी ने इस गिरावट में योगदान दिया है। इसका विदेशी भंडार, जो नए निवेशों को वित्त पोषित करता है, मोटे तौर पर $3 ट्रिलियन से अधिक पर स्थिर बना हुआ है। ऐसे में उभरते देशों में निवेश करने की इसकी क्षमता में नाटकीय रूप से वृद्धि की उम्मीद नहीं है। इंस्टिट्यूट (एईआई) के मुताबिक़, चीन से सबसे ज्यादा निवेश हासिल करने वाले शीर्ष 15 देश हैं- इंडोनेशिया, पाकिस्तान, सिंगापुर, रूस, सऊदी अरब, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, पेरू, लाओस, इटली, नाइजीरिया, इराक़, अर्जेंटीना और चिली। यूरेशिया ग्रुप में पूर्वी एशियाई मामलों के विशेषज्ञ जेरेमी चौन कहते हैं कि चीन से सबसे ज़्यादा फंड लेने वाले 15 देशों में इकलौता इटली ही है जिसने संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन के पक्ष में सबसे कम बार वोट किया है और अब तो इटली ने बीआरआई छोड़ने के संकेत भी दे दिए हैं। चीन की अर्थव्यवस्था में हालिया मंदी बीआरआई के लिए एक और बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। भारी बेरोज़़गारी, कमज़ोर उपभोक्ता मांग, व्यापार और विकास का निम्न डाटा और कुछ बड़ी कंपनियों के वित्तीय स्वास्थ्य के बारे में चिंताएं चीन को घर की ओर देखने के लिए मजबूर कर रही है। यह चीन की घोषित रणनीतिदोहरे परिसंचरणके दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, जो घरेलू अर्थव्यवस्था को बाहरी व्यापार और निवेश से जोड़ती है.

हालांकि जापान रिसर्च इंस्टीट्यूट के जुन्या सानो का कहना है कि बेल्ट एंड रोड ने चीन को संयुक्त राष्ट्र के भीतर अलग-थलग होने से बचाए रखा है। 2019 और 2021 के बीच, पश्चिमी देशों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में शिनजियांग और हांगकांग की स्थितियों पर चिंता व्यक्त करते हुए चार संयुक्त बयान जारी किए। सानो ने कहा, लेकिन हर बार पश्चिम की तुलना में अधिक देशों ने चीन का ही पक्ष लिया। बेल्ट और रोड देशों के साथ चीन का व्यापार लाभ भी बढ़ा है। 2023 के पहले सात महीनों में यह आंकड़ा कुल 197.9 बिलियन डॉलर था और यह पूरे साल के नए उच्चतम स्तर पर है। इस लाभ ने बढ़ते द्विपक्षीय तनाव के बीच देश को अमेरिका के साथ व्यापार पर कम भरोसा करने में मदद की।

बीआरआई को लेकर भारत की चिंता की वजहें भी कुछ कम नहीं

चीन की बयानबाजी और उसके व्यवहार के बीच काफी बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, इसके लगातार दावों को लें कि बीआरआई परियोजनाएं सभी संबंधित पक्षों के लिए जीत-जीत के अलावा कुछ और नहीं जबकि बीआरआई की दस साल की अवधि में, चीन ने यह छवि बनाने की अथक कोशिश की है कि बीआरआई एक मात्र आर्थिक परियोजना है जिसका उद्देश्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप में बुनियादी ढांचे के लिए महत्वपूर्ण विकास की आवश्यकता को पूरा करना और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के परिपेक्ष्य में स्वंय के कद की साये में जीने को मजबूर करना है। पाकिस्तान, श्रीलंका के हश्र के बाद बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर भारत द्वारा दिखाया गया ठंडा रुख तेजी से सही साबित होता दिख रहा है। बावजूद इसके बीआरआई को लेकर भारत की चिंताएं कम नहीं। कारण, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) है। ये गलियारा चीन के शिनजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक जाता है। उसके बाद ये गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। आंतकवादी गतिविधियों से त्रस्त भारत के लिए ये गलियारे एक नई परेषानी के सबब बनने जा रहे थे। इसके अलावा निवेश परियोजना में पाकिस्तान के राष्ट्रीय राजमार्ग 35 काराकोरम राजमार्ग का नवीनीकरण भी शामिल है। इसे चीन-पाकिस्तान मैत्री राजमार्ग भी कहा जाता है। इस परियोजना में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उत्तर में गिलगित को स्कर्दू से जोड़ने वाले राजमार्ग का नवीनीकरण भी शामिल है। नवंबर 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली क्विंग की मेजबानी में एससीओ की डिजिटल बैठक में इस परियोजना पर भारत की असहमति जताते हुए कहा था कि कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सदस्य राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिए।

चौथी बार फोरम में भाग लेकर भारत ने बीआरआई के प्रति अपना रूख कायम रखा। इस संबंध में भारत अपने मत पर दृढ़ है कि यह परियोजना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती है। भारत इस बात को लेकर भी चिंतित है कि यह परियोजना क्षेत्र में चीन की रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाती है जो किसी भी हाल में भारत के लिए श्रेयकर नहीं। इन सभी राजमार्गो से भविष्य में हो सकने वाले संकटों की आहट से भारत सरकार कतई ऑंख मूंद कर नहीं रह सकती। गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र में एस. जयशंकर जयशंकर ने पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बिना सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर अपने भाषण में कहा था कि कई दशकों से सीमा पार आतंकवाद का ख़मियाज़ा भुगतने के बाद, भारत इसको लेकर ज़ीरो टॉलरेंस के दृष्टिकोण का दृढ़ता से समर्थन करता है। हमारा मानना है कि आतंकवाद को हम किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहरा सकते हैं. कोई भी लफ़्फ़ाज़ी ख़ून के धब्बों को नहीं धो सकती है। उन्होंने यह भी कहा था कि संयुक्त राष्ट्र आंतकवाद का जवाब उसके साज़िशकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाकर देता है। जो लोग कभी-कभी घोषित आतंकवादियों का बचाव करने की हद तक यूएनएससी 1267 प्रस्ताव का राजनीतिकरण करते हैं, वे अपने जोखिम पर ऐसा कर रहे हैं। मेरा विश्वास करिए कि इसके ज़रिए वे तो अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं और ही अपनी प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाते हैं।

निष्कर्ष

बीआरआई की कुछ परियोजनाओं ने अच्छा काम भी किया है। इंडोनेशिया में हाल ही में देश की पहली तेज़ रफ़्तार रेल सेवा का उद्घाटन हुआ है, जिसका नाम है- वूश है। यह राजधानी जकार्ता को लोकप्रिय पर्यटन स्थल बांडुंग से जोड़ती है। दोनों शहरों के बीच की दूरी 350 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से महज 40 मिनट में तय की जा सकती है, जिसमें पहले तीन घंटे लगते थे। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि वूश की कोई ज़रूरत नहीं थी क्योंकि पहले से ही वहां सड़क मार्ग और सस्ती ट्रेनें थीं। लेकिन इंडोनेशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएनडीईएफ़) में शोधकर्ता तौहीद अहमद के अनुसार बावजूद इसके इंडोनेशिया में बहुत से लोग बीआरआई की परियोजनाओं के पक्ष में हैं। लाओस में राजधानी विएंतिएन को चीन के युन्नान प्रांत से जोड़ने वाली रेल सेवा का उद्घाटन साल 2021 में हुआ था। इस रेल सेवा ने विएंतिएन से चीन के साथ लगती सीमा तक पहुंचने का समय अब सिर्फ़ तीन घंटे कर दिया है। इससे यात्री अब एक ही दिन में विएंतिएन से कनमिंग पहुंच सकते हैं। बेल्ट एंड रोड की सफलता के और भी कई उदाहरण हैं। जैसे कि ग्रीस का पीरियस बंदरगाह जिसे अक्सर यूरोप काड्रैगन का सिरकहा जाता है। इस बंदरगाह के 60 फ़ीसदी हिस्से पर अब चीन की सरकारी स्वामित्व वाली एक कंपनी का नियंत्रण है। अब इस बंदरगाह में जहाज़ों से भारी मात्रा में आने वाले कंटेनरों का प्रबंधन किया जाता है।

चीन के लिए, बीआरआई इतना महत्वपूर्ण है कि वह इसे अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में कम किए जाने की अनुमति नहीं दे सकता। परियोजनाओं की संख्या और निवेश की राशि में कुछ कटौती होने की संभावना है और चीन जांच-पड़ताल को बढ़ाकर और निरीक्षण के साथ विदेशों में छोटी परियोजनाओं को ले सकता है। हालांकि, चीन को बीआरआई को एक सफल कहानी के रूप में पेश करना ही होगा जिसकी निरंतरता पूरी वैश्विक समुदाय के हित में है। किंतु इसके लिए चीन को अपनी पुरानी नीतियों को बदलने की जरूरत के सााथ-साथ अपनी छवि को सुधारने की आवष्यकता है, तभी विष्व समुदाय के हित को साधने के लिए बने इस मेगा प्रोजेक्ट का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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