नए साल पर चीनी वॉल स्ट्रीट जर्नल के द्वारा महिलाओं के बारे में एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें बताया गया कि चीन सरकार अब महिलाओं पर अधिक बच्चे पैदा करने के लिए दबाव डाल रही और लोग नहीं कह रहे हैं। अनुमानों के अनुसार, चीन की जनसंख्या, जो अब लगभग 1.4 बिलियन है, 2100 तक घटकर लगभग आधा बिलियन रह जाने की संभावना है जो चीन के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। जनसांख्यिकीय मुद्दे पर चीनी सरकार के बदलते रूख पर एक नजर

बीजिंग के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) के आंकडों पर देखें तो 2022 के अंत में जन्म दर 9.56 मिलियन थी, जबकि मृत्यु दर 10.41 मिलियन थी। जाहिर तौर पर ये आंकड़े 1961 के बाद से चीन की आबादी में पहली गिरावट का संकेत दे रहे हैं। जन्म दर पर यह गिरावट 1980 में एक-बाल नीति के कार्यान्वयन के बाद से लगातार देखने को मिली, जिसे 2015 में समाप्त कर दिए जाने के बावजूद जनसंख्या ग्राफ को गिरते जाने से चीन सरकार द्वारा रोका जा सका। लंबे समय से दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन भारत से इस मामले में आज मात खा रहा है। हालांकि जनसंख्या में गिरावट कोई अपवाद नहीं है। लेकिन इस समय चीन की कुल प्रजनन दर 1.09 है, जो दुनिया की सबसे कम में से एक है और यह किसी ऐसे देश के लिए बेहद चिंताजनक बात है जिसका शासक उसे महाशक्ति बनाने के दिवास्वप्न देखता हो।

चीन को 'बूढ़ों के देश' या आखिरी पीढ़ी का तमगा देने वालों के लिए कुछ विशेषज्ञों की राय है कि अल्पावधि में नई नीति से कार्यबल तुरंत प्रभावित नहीं होगा। लेकिन 2030 के बाद, सार्वभौमिक दो-बाल नीति के तहत जन्मों में वृद्धि से अपरिवर्तित एक-बच्चे की तुलना में 2040 में 30 मिलियन और 2050 में 60 मिलियन तक कार्यबल में काफी वृद्धि होगी। किसी भी नीतिगत परिदृश्य में देखें तो बुजुर्ग निर्भरता का अनुपात भी तेजी से बढ़ेगा। 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या को 18-64 वर्ष की आयु के कामकाजी आयु वाले लोगों की संख्या से विभाजित करने के रूप में परिभाषित किया गया है, यह वांछनीय है कि यह आंकड़ा किसी भी आबादी में कम रहे। 2030 के बाद ही दो-बाल नीति के जनसांख्यिकीय लाभ एक-बाल नीति की तुलना में काफी कम बुजुर्ग निर्भरता अनुपात उत्पन्न करने में स्पष्ट हो जाएंगे।

जनसांख्यिकीय नीति के प्रभावहीन प्रदर्शन ने चीन का ग्राफ बिगाड़ा

एक बच्चे की नीति 1979 में चीनी सरकार द्वारा शुरू की गई थी, जिसने दशकों के आर्थिक कुप्रबंधन के कारण चीन को गंभीर गरीबी से बाहर निकालने के लिए जनसंख्या नियंत्रण को आवश्यक माना था। 1950 और 1970 के बीच, जनसंख्या 540 मिलियन से बढ़कर 800 से अधिक हो गई थी। 1970 के दशक में ज्यादातर स्वैच्छिक फिर लंबे समय तक कम बच्चों की नीति पेश की गई, जिसने देर से बच्चे पैदा करने, बच्चों के बीच लंबे अंतर और कम बच्चों को प्रोत्साहित करना आरंभ कर दिया। इस नीति के कारण कुल प्रजनन दर में प्रति महिला अनुमानित 5-9 जन्म तक बड़ी गिरावट देखने में आई, जो 1979 तक प्रति महिला 2-9 जन्म तक पहुंच गई। प्रजनन क्षमता में इस गिरावट के बावजूद, अधिक जनसंख्या की आशंका बनी रही, और इसलिए एक-बाल नीति लाई गई। नीति की शुरूआत के बाद, कुल प्रजनन दर में गिरावट जारी रही लेकिन कम तेज़ी से। कई स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि 1990 के दशक के अंत तक कुल प्रजनन दर गिरकर 1-5 और 1-7 के बीच हो गई थी, और तब से यह इसी स्तर पर बनी हुई है।

इस नीति की कुछ और खास बातें गौर करने लायक है, जैसे कि शहरी निवासियों के लिए एक बच्चे का नियम सख्ती से लागू किया गया था, जो 1980 में आबादी का लगभग 20 था, लेकिन 2010 तक लगभग ये आधा हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों में, यह नियम विशेष रूप से अलोकप्रिय था और लगभग अप्रवर्तनीय माना जाता था, इसलिए 1984 के ग्रामीण जोड़ों से अधिकांश प्रांतों में यदि पहला बच्चा लड़की हो तो उन्हें दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति थी। लगभग छह उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में, सभी ग्रामीण जोड़ों को पहले बच्चे के लिंग की परवाह किए बिना, दूसरे बच्चे की अनुमति थी। जातीय अल्पसंख्यकों के लिए दो या दो से अधिक बच्चों की अनुमति थी, जो कुल आबादी का लगभग 9 हैं। इन विविधताओं ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच कुल प्रजनन दर में पर्याप्त अंतर पैदा कर दिया।

अक्टूबर, 2015 में, चीन की एक-बच्चे की नीति को सार्वभौमिक दो-बच्चे की नीति से बदल दिया गया। नई नीति के लाभों में शामिल  अस्वीकृत गर्भधारण के गर्भपात में बड़ी कमी, अपंजीकृत बच्चों की समस्या का आभासी उन्मूलन, और अधिक सामान्य लिंग अनुपात जैसे सभी प्रभावों से स्वास्थ्य परिणामों में सुधार की उम्मीद तो जगी लेकिन घटते कार्यबल और तेजी से घटती जनसंख्या पर नई नीति का प्रभाव स्पष्ट नहीं हो सका।

अपने ही रचे नाटकीय यू-टर्न में फंसती चीनी सरकार

चीनी सरकार के इस नाटकीय यू-टर्न यानी एक दशक से भी कम समय पहले जन्म को सख्ती से सीमित करने से लेकर चीनी महिलाओं को जन्म देने के लिए प्रोत्साहित करने तक, जनसांख्यिकीय समस्या के लिए अगर कोई महिलाओं को दोष दे तो वह केवल 50 प्रतिशत तक दे सकता है लेकिन बाकी की अन्य 50 प्रतिशत को नहीं, क्योंकि ये पारिवारिक जीवन कोसीधा-सपाट’ (तांग पिंग) औरलेट इट रोट’ (बाई लैन) आंदोलनों से बाहर निकलने का विकल्प चुनने का अधिकार है। निष्पक्ष 50 प्रतिशत महिलाएं सरकारी  उत्पीड़न  से तंग आकर और बच्चों के पालन-पोषण के बलिदानों में अपनी माताओं को घिसटे देखकर सावधान हो चुकी है और खुद को बीजिंग या फिर उनके परिवार, जो उनसे चाहते हैं उससे खुद को आगे रखकर फैसले ले रही हैं। दरअसल यह बहुत पहले की बात नहीं है जब चीनी सरकार महिलाओं को प्रताड़ित करने के अलावा और भी बहुत कुछ कर रही थी। एक बच्चे के दिनों में राज्य ने परिवार का स्थान लेने की कोशिश की। सरकारी नौकरशाह द्वारा मासिक धर्म चक्र की निगरानी करवाना, बच्चों को जन्म देने के लिए परिवारों पर जुर्माना लगवाना, गर्भपात अनिवार्य करना और शिशुहत्या को हतोत्साहित करना जैसी बातें सामान्य थी। इन अपवादांे से से गुजर चुकी महिलाओं की अगली पीढ़ी आज चीन में अपने हक के लिए सरकार के नये फैसले के खिलाफ लामबंद हो रही है। इसलिए सरकारी नियमों को मानने से उनके इनकार ने कम्युनिस्ट पार्टी की नींद उड़ा दी है, जिसे अब नजर रही चीन की बूढ़ी होती आबादी को फिर से जीवंत करने के लिए और अधिक बच्चों की सख्त जरूरत है।

चीन की बदलती नीतियों ने जहां नागरिकों में उदासीनता पैदा कर दी है वहीं नीति निर्माताओं के लिए भी कम समस्या नहीं पैदा की। ऐसा नहीं है कि आज की चीनी युवतियां परिवार बनाने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन वे शादी करने और मातृत्व से सावधान रहना ज्यादा बेहतर समझती है क्योंकि उनकी सोच में इससे चीनी महिलाओं पर बोझ बढ़ता है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। फेंग ख्चेन्चेन कहती है  एक बच्चा होने के बाद, मुझे लगता है कि मैंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है, दूसरा बच्चा बहुत महंगा होगा। मैं अपने रिश्तेदारों से कहती है कि अगर आप मुझे 300,000 युआन, लगभग 41,000 डॉलर देने को तैयार  हैं, तो मैं एक और बच्चा पैदा करने को तैयार हूं। और फेंग ख्चेन्चेन ही इस तरह की मांग के लिए अपवाद नहीं है। कई ऐसी विवाहित महिलाएं है जो अपने घर पर और आर्थिक बोझ नहीं डालना चाहती। आज की परिस्थितियों में तो कतई नहीं।  झांग नानफेंग बीजिंग में एक जापानी कंपनी के लिए काम करते हैं। शादी को 12 साल हो गए, वह और उसका पति बच्चे नहीं चाहते। 44 वर्षीय झांग ने वीओए मंदारिन को बताया, जब अन्य लोग बच्चों के पालन-पोषण के कारण होने वाले झगड़ों और बच्चों को होमवर्क के साथ ट्यूशन देने के कारण होने वाली परेशानी के बारे में बात करते हैं, तो मैं खुद को बहुत भाग्यशाली महसूस करता हूं कि मेरे कोई बच्चे नहीं हैं। अमेरिका में रहने वाली और न्यू जर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय में महिलाओं और राजनीति में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाली चीनी नारीवादी कार्यकर्ता लू पिन के अनुसार चीन में, परिवार को राष्ट्रीय स्थिरता के लिए एक बिल्डिंग ब्लॉक माना जाता है और सरकार अब इस पर विचार कर रही है। महिलाएं प्रत्येक परिवार के स्थिरीकरण केंद्र के रूप में है। लिन के नाम से टिप्पणी करते हुए एक नेटीजन अपनी पोस्ट में लिखती है कि केवल महिलाओं के लिए अधिक समान रोजगार का माहौल बनाकर और महिलाओं की स्वतंत्रता सुनिश्चित करके ही सामाजिक संरचना में विवाह और परिवारों को एक स्थिर आधार मिल सकता है।

अविवाहित चीनी युवतियां अब केवल बच्चों की देखभाल करने, घर का काम करने और पति के माता-पिता के बूढ़े होने पर उनकी देखभाल करने तक ही खुद को सीमित नहीं रखना चाहती। एक अध्ययन के अनुसार चीनी महिलाएं अधिकांश घरेलू कार्यों का भार उठाती हैं। वे अपने पतियों की तुलना में घरेलू कार्यों पर लगभग दोगुना समय बिताती हैं

प्रजनन दर में आती भारी गिरावट कई कारण

विशेषज्ञों की सुनें तो जनसंख्या का गणित फेल होने का सबसे बड़ा और पहला कारण एक बच्चा नीति का दीर्घकालिक प्रभाव है, जो 1980 से 2016 तक चला। सख्ती से पालन की गई नीति का ये असर होगा, इसकी कल्पना चीनी शासक ने भी नहीं की होगी। यूं तो आर्थिक विकास में वृद्धि और अर्थव्यवस्थाओं का, कृषि निर्वाह से जटिल और शहरीकृत बाजार अर्थव्यवस्थाओं में स्थानांतरित होने के कारण दुनिया भर में ही जन्म दर में गिरावट देखने में नजर आई लेकिन चीन में जो गिरावट देखी जा रही है, उसका एक हिस्सा उसके आर्थिक विकास का स्वाभाविक उत्पाद है।

दूसरी वजह युवा चीनियों का देर से शादी करना, कम बच्चे पैदा करना या बच्चे पैदा ही करना हैं। 2013 से 2020 तक, चीन में शादी करने वाले जोड़ों की संख्या 13.469 मिलियन से घटकर 8.143 मिलियन रह गई। इसी तरह, पहली बार माता-पिता बनने की औसत आयु 1990 में 24.1 से बढ़कर 2020 में 27.5 हो गई। चीन में शादी के बाहर बच्चे का पालन-पोषण करना मुश्किल है क्योंकि सरकारी नीतियां एकल मातृत्व के आसपास एक कानूनीग्रे ज़ोनबनाती हैं। परिणामस्वरूप, गिरती विवाह दर चीन में जन्म दर में गिरावट का एक महत्वपूर्ण कारक है।

तीसरे कारण में वे चीनी युवा है जो विरोध स्वरूप बच्चे पैदा करने का विकल्प चुन रहे हैं। आज चीन के युवाओं का भविष्य अनिश्चितता में है। खुद को काटने और दोबारा बढ़ने की इजाजत देने के बजाय, कई युवा चीनी सिस्टम से पूरी तरह बाहर निकल रहे हैं। सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने और अपनी अनिश्चित सामाजिक स्थिति को खोने का जोखिम उठाने के बजाय, कई चीनी युवा देश के भविष्य में भाग लेने से इनकार कर अपनी उदासीनता दिखा रहे हैं।

निष्कर्ष

प्रमुख चीनी जनसांख्यिकी विशेषज्ञ यी फुक्सियन के अनुसार चीन की शून्य-सीओवीआईडी नीति ने शून्य अर्थव्यवस्था, शून्य विवाह, शून्य प्रजनन क्षमता को जन्म दिया है। यह ध्यान में रखते हुए कि चीन की शासन प्रणाली राजनीतिक भागीदारी के रास्ते में बहुत कुछ की अनुमति नहीं देती है और लोकतंत्र की पश्चिमी समझ से बहुत दूर है - चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के दावे के बावजूद कि यह वास्तव में, एक चीनी शैली का लोकतंत्र है - युवा चीनियों द्वारा बच्चे पैदा करने के फैसले को सामाजिक परिस्थितियों पर एक प्रकार के जनमत संग्रह के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन यह एक प्रवृत्ति की शुरुआत है जिसका खामियाजा देश, काल और समाज को भुगतना पड़ता है।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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