वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था गहराते आवास संकट, स्थानीय सरकारी ऋण संबंधी चिंताए, धीमी वैश्विक वृद्धि और भू-राजनीतिक तनाव के बीच महामारी के बाद मजबूत सुधार के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं दूसरी ओर भारत ने 2023 में वैश्विक चुनौतियों के बीच उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया। कठिन वैश्विक माहौल के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था विगत कुछ वर्षों में 7 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जिससे यह सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गई। एक आकलन 2024 के नजरिए सेः-

शी जिनपिंग के अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद से, पीआरसी अपनी मुखर शैली से अन्य राष्ट्रों को अपनी गतिविधियों से सशंकित करती आई है। चीन के आर्थिक दबाव को विश्व स्तर पर कई बार महसूस किया गया है क्षेत्रीय दृष्टिकोण से, रियल एस्टेट, जो चीन की जीडीपी का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है, अभी भी गंभीर संकट का सामना कर रहा है। कर्ज के बोझ से दबी संपत्ति दिग्गज एवरग्रांडे और कंट्री गार्डन ने एक ऐसे क्षेत्र पर प्रकाश डाला है, जिसने अक्टूबर तक $124.5 बिलियन (यूएस) मूल्य के बांड पर चूक की थी, जिससे वित्तीय प्रणाली और व्यापक अर्थव्यवस्था पर डोमिनो [ मास्क ] प्रभाव की आशंका पैदा हो गई थी। 

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई), शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), ब्रिक्स, ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव, चीन-अरब स्टेट्स कोऑपरेशन फोरम (सीएएससीएफ) और क्षेत्रीय जैसी पहलों में भाग लेने वाले देशों को इसने बुरी तरह प्रभावित किया है व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के अतिरिक्त, चीन का प्रभाव अन्य क्षेत्रीय व्यापार समझौतों और समूहों, जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) में सलाहकार भूमिकाओं और संवाद साझेदारी के माध्यम से महसूस किया जाता रहा है

इसके अतिरिक्त चीन घरेलू स्तर पर जनसांख्यिकीय समस्या के साथ-साथ जिस सबसे गंभीर मुद्दे का सामना कर रहा है वह है युवा बेरोजगारी का बढ़ता स्तर युवा बेरोज़गारी डेटा के जून मे निकले अंतिम ब्यौरे में बेरोज़गारी दर 21.3 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर दिखाई गया है। स्नातक होने के छह महीने के भीतर  बड़ी तादाद में छात्रों के अपने अपने ग्रामीण घरों में लौटने से नौकरी बाज़ार में एक बड़े संकट का संकेत दिखाई दिया। आवास की बढ़ती लागत और धीमी होती अर्थव्यवस्था की मार महसूस करते हुए, बेरोजगार स्नातक उन शहरों को खोने लगे हैं जो पारंपरिक रूप से मध्यम वर्ग को अपनी संपत्ति अर्जित करने के लिए उपयुक्त माने जाते है।

 

चीन की भावी योजनाओं से विश्व भूराजनीति प्रभावित होने की आशंका

अमेरिकी खुफिया समुदाय और अन्य विशेषज्ञों के आकलन के अनुसार, 2024 में चीन के खतरे में आर्थिक जबरदस्ती, प्रचार और गलत सूचना का प्रसार, चुनाव में हस्तक्षेप, आतंकवाद के लिए समर्थन, क्षेत्रीय विवाद और ताइवान पर युद्ध की संभावना शामिल है। चीन एआई और व्यापक बड़े डेटा विश्लेषण क्षमताओं के साथ मिलकर, केवल बीजिंग के आर्थिक दबाव को मजबूत कर रहा है, बल्कि इसके सहारे अपनी जासूसी क्षमताओं, साइबर गतिविधियों और प्रचार और गलत सूचना के बढ़ते प्रसार के माध्यम से घातक प्रभाव वाले संचालन को भी बढ़ा रहा है। यह पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से जुड़े सैन्य और सुरक्षा विकास पर रक्षा विभाग की 2022 रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुरूप है, जो स्पष्ट करता है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने अपने आधुनिकीकरण उद्देश्यों के प्रारंभिक चरण को सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है और वर्तमान में इसका प्रसार कर रही है। अपने अगले चरण, जिसमें सशस्त्र बलों का बौद्धिकरण शामिल है, जिसके 2027 तक पूरा होने की उम्मीद है।

घरेलू स्तर पर चीन के लिए आर्थिक जोखिम और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ महंगी लड़ाई की संभावना 2024 में कई तरीकों से हो सकती है। हालांकि ये भी एक संभावना है कि राष्ट्रपति शी विदेश नीति पर आक्रामक रूप से आगे बढ़ने के लिए कम इच्छुक हो जाएं। जब घरेलू राजनीति अत्यधिक अस्थिर हो - और इसके बढ़़ने के संकेत पहले से ही अधिक नजर रहे हो, तो पहले घर बचाने के ही प्रयास किये जाते है। आर्थिक मंदी या अधिक भयावह परिदृश्य की संभावना की बात आती है, तो कंपनियों और संगठनों के लिए उनका परिचालन लचीलापन और स्थितिजन्य जागरूकता को समझाने की पर्याप्त आवश्यकता नहीं होती है। अच्छी खबर यह है कि जब इस तरह की बड़े पैमाने की चुनौतियों से निपटने की जब बात आती है, तो इसे टालने के बजाय संगठन / कंपनियां इस पर काम करती है। पिछले कुछ वर्षों में चीन की मंदी जैसी घटनाओं में कई चेतावनी संकेतों से कंपनियों / संगठनों को लगातार सूचित किया जाता रहा कि वे बाद में उस पर कार्य करने के बजाय अभी से उसकी तैयारी करें। विश्लेषकों को उम्मीद है कि चीन अगले महीने से अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में निवेश और खर्च को पुनर्जीवित करने के लिए कर कटौती और प्रत्यक्ष सरकारी ऋण जैसे राजकोषीय उपायों को तरजीह देगा।

 

भारत में आर्थिक परिवर्तन की उम्मीद कम, लेकिन वर्तमान स्थिति स्थिर रहेगी

2024 में भारत में राष्ट्रीय चुनाव है और उनके परिणाम के नतीजों पर ही बाद की भूराजनैतिक परिस्थितियां निर्भर करती है। वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और भू-राजनीतिक जोखिमों के बावजूद भारत ने वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में 7.7 प्रतिशत की मजबूत जीडीपी वृद्धि हासिल की। औद्योगिक गतिविधि में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है, जो ऋण दरों में वृद्धि के बावजूद एक दशक की उच्च गैर-खाद्य ऋण वृद्धि में उल्लेखनीय रूप से परिलक्षित हुई। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट और एसोचौम द्वारा भारत भर में एमएसएमई की व्यावसायिक गतिविधि के प्रति आशावाद को मापने के लिए त्रैमासिक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पाया गया कि घरेलू मांग और लाभप्रदता के लिए छोटे व्यवसायों के बीच आशावाद 2023 की चौथी तिमाही में 7 तिमाहियों के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया। हालांकि भूराजनीतिक बाधाएं और आर्थिक अनिश्चितताएं भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह बढ़ाने के सरकार के प्रयासों में बाधा बनी रही।

विशेषज्ञों की नजर में भारत के लिए 2024 कोई बड़ा आर्थिक परिवर्तन लेकर नही लाने वाला है। चुनावी तौर पर, कृषि संरचनाओं में बदलाव करना मुश्किल है। देश में फलों और सब्जियों की पोषण संबंधी आवश्यकता के बावजूद, किसानों को उनके द्वारा उगाए गए खाद्यान्नों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की निश्चितता सर्वोपरि है, जो उनके लिए अधिक लाभदायक हो सकता है| लेकिन इसके लिए अधिक प्रभावी आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवश्यकता होगी, जिसके लिए सरकारी नीतियों में लचीलापन रखना आवश्यक है। इस संबंध में अर्थशास्त्री भारत में जिस बड़े अंतर की पहचान करते हैं, वह विनिर्माण की कमी - उन उत्पादों का निर्माण की कमी जो दुनिया चाहती है - इनसे जुड़ी नौकरियां जो उनके साथ चली जाती हैं। अभी भी भारत के कुछ राज्यों में शिक्षा का बेहद निम्न स्तर है और अल्प-रोज़गार युवाओं के एक बड़े हिस्से में बुनियादी कौशल का अभाव नजर आता है। हालांकि अर्थव्यवस्था के दूसरे छोर पर, भारत के बड़े निगम आम तौर पर इस बात से संतुष्ट नजर आते हैं कि परमिट, श्रम कानूनों और अप्रत्याशित कर परिवर्तनों की उलझन विदेशी प्रतिस्पर्धियों को यहां आने से रोकती है।

अर्थशास्त्री भारत की वृद्धि का श्रेय बढ़ती खपत, बुनियादी ढांचे के खर्च और देश में स्थापित किए जा रहे अधिक व्यवसायों को देते हैं, लेकिन वे चेतावनी भी देते हैं कि फिलहाल अभी परिस्थितियां भारत के लिए अनुकूल नहीं हैं और बढ़ती मुद्रास्फीति और भू-राजनीतिक तनाव के कारण इसके और अधिक बढ़ने की संभावना है। हालांकि नैटिक्सिस में एशिया प्रशांत की मुख्य अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया-हेरेरो भारत की वर्तमान परिस्थिति को एक दूसरी नजर से देखते है। सीएनबीसी को दी गई एक टिप्पणी में उनका कहना है कि वैश्विक आर्थिक तस्वीर में भारत का एक उज्ज्वल स्थान बना रहेगा। उनके अनुसार देश को हाल के वर्षों में विदेशी निवेशकों द्वारा पसंद किया गया है, जो युवा जनसांख्यिकी और तेजी से बढ़ते मध्यम वर्ग द्वारा समर्थित इसके आशाजनक दीर्घकालिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

 

2024 में भारत-चीन के आपसी संबंध सुधरने के आसार कम

चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल वू कियान ने जनवरी में एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि पिछले तीन वर्षों में, चीन और भारत ने सैन्य और राजनयिक चैनलों के माध्यम से संचार और समन्वय बनाए रखा है। भारत के साथ सीमा विवाद एक विरासती मुद्दा है। सीमा मुद्दे को समग्र संबंधों से जोड़ना एक नासमझी है, क्योंकि यह द्विपक्षीय संबंधों की पूरी तस्वीर का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उनके हिसाब से यह दोनों देशों के साझा हितों के खिलाफ भी है। एक तरह से देखा जाये तो यह बात सही भी है और नहीं भी। शैक्षिक, पर्यटन और व्यापारिक संबंधों में दोनों ही देशों को एक दूसरे की आवश्यकता है। निवेशकों को, व्यापारियों के लिए ऐसे सबंध अपने निवेश व्यापार के लिए भरोसा बढ़ाते है। लेकिन सीमा पर होने वाला विवाद किसी भी तरह के संबधों में हल्की सी हलचल पैदा करके उन्हें आने वाले दिनों के लिए संदेह से भर देता है और यकीनन इस तरह की आहटें लंबी अवधि के व्यापारिक समझौतों या फिर निवेश के मामलों के लिए ठीक नहीं है

लंदन के स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ़्रीकन स्टीडज़ के चायना इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव सैंग बीबीसी को दिये गय अपने साक्षात्कार में वे कहते है कि अगर चीन और भारत अपना सीमा विवाद शांतिपूर्ण ढंग से नहीं सुलझा पाते और युद्ध की स्थिति पैदा हो जाती है तो विश्व की दो बड़ी परमाणु शक्तियों के बीच टकराव हो सकता है। उनके हिसाब से चीन भारत को अपनी सुरक्षा के लिए किसी गंभीर ख़तरे की तरह नहीं देखता है। फ़िलहाल भारत उसके लिए सीमा पर एक परेशानी मात्र है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत और चीन संबंधों पर नज़र रखे हुए है। उनके अनुसार इन दोनों के बीच बुनियादी समस्या और तनाव में बदलाव नहीं आएगा। इसलिए भी संबंध सुधरने की संभावना कम ही लगती है।

 

निष्कर्ष

विश्लेषकों की राय में वर्ष 2024 एक गतिशील और मुखर चीन का गवाह बनेगा, जो आर्थिक, सैन्य और राजनयिक मोर्चों पर मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देगा। हालांकि जैसे-जैसे पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना शी जिनपिंग के नेतृत्व में अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं को आगे बढ़ा रहा है, वैसे विश्वस्तरीय मामलों पर इससे पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। चीन का विविध दृष्टिकोण, जैसे आर्थिक दबाव, सैन्य प्रगति और प्रौद्योगिकी और खुफिया तकनीकी का रणनीतिक उपयोग वैश्विक परिदृश्य के नजरिए से जटिलताओं के ही संकेत देता है। आने वाले वर्षों में चीन के बढ़ते प्रभाव से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए इन कारकों के बीच आपसी संबंधों को समझने की आवश्यकता है।

वहीं दूसरी ओर भारत आम चुनावों के बाद विश्वपटल पर अपनी निर्णायक भूमिका के तौर पर कितना असरकारक साबित होगा, यह देखना होगा। फिर भी यह तय है कि निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक व्यय का उपयोग करने से भारत के लिए वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने और उच्चस्तरीय विकास को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तैयार होंगी।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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