वाशिंगटन पोस्ट की एक जांच के अनुसार बीजिंग के हैकरों द्वारा भारत सरकार के 95.2 गीगाबाइट आव्रजन डेटा को हैक किया गया था। इसमें भारत के अलावा दक्षिण कोरिया, हांगकांग, कजाकिस्तान, मलेशिया, मंगोलिया, नेपाल और ताइवान की अन्य दूरसंचार कंपनियों को भी निशाना बनाया गया। हैकरों से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल, अन्य देशों के उपर निगरानी किए जाने को लेकर चीन पर संदेह की तिरछी नजर यूं ही तो नहीं। एक विश्लेषणः-

चीन की खुफिया और साइबर-निगरानी के टारगेट में कुछ अन्य प्रमुख देशों में भारत भी एक है जिस पर चीन अपने हर तरह के जासूसी तरीके अपनाता आया है जिसमे पारंपरिक निगरानी से लेकर अपारंपरिक माध्यम भी शामिल है ये सभी जानते है कि दूसरे देशों की राजनैतिक गतिविधियों पर मानव निगरानी के जरिए हर देश अपने देश-नागरिको की सुरक्षा करता आया है; लेकिन चीन पर ये आरोप लगातार लगते रहे है कि वह व्यापारिक समझौतों को नजरअंदाज करते हुए अपने उत्पादों के जरिए या कभी सायबर हैकिंग के जरिए अन्य देशों की गतिविधियों पर नजर रखता है।

फिलहाल एपी की रिपोर्ट के अनुसार, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ इस बारे में अनिश्चित हैं कि हालिया लीक के पीछे कौन है, लेकिन लीक्ड फाइलें वैध लग रही है। साइबर सुरक्षा फर्म सेंटिनलवन के चीन विश्लेषक डकोटा कैरी के अनुसार फाइलें घरेलू राजनीतिक प्राथमिकताओं के साथ चीन के सुरक्षा तंत्र की ओर से हैकिंग करने वाले के अनुरूप हैं। भारत के अलावा, लीक हुई फाइलों से पता चलता है कि कम से कम 13 अन्य विदेशी सरकारों को अलग-अलग क्षमताओं में आई-सून द्वारा साधा गया था, जिनमें थाईलैंड, ताइवान, मलेशिया, हांगकांग, वियतनाम, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, नाइजीरिया, अफगानिस्तान और मंगोलिया शामिल थे।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार लीक हुई फ़ाइलें कुछ दिन पहले सार्वजनिक वेबसाइट Github पर गुमनाम रूप से पोस्ट की गईं थीं। संदेह ये जताया जा रहा है कि आईसून जो चीन की कईक उद्यमशील कंपनियों में से एक है और यह चीन के आक्रामक राज्य-प्रायोजित हैकिंग प्रयासों का समर्थन करती है। आईसून पर आरोप है कि इस फर्म ने पिछले आठ वर्षों के दौरान किसी समय भारत सरकार के डेटा में सेंध लगाई थी और भारत से 92.5 गीगाबाइट आधिकारिक आव्रजन डेटा प्राप्त कर इसे बेचने का प्रयास किया है, जिसमें भारतीय नागरिकों और विदेशी यात्रियों की उड़ान और वीज़ा विवरण शामिल पाये गये। इसी ने 2018 में भारत के कर्मचारी भविष्यनिधि संगठन के डेटा पर भी सेंध लगाई थी, जिससे सैकड़ों भारतीय नागरिकों के डेटा उजागार हो गये थे।

 

भारत चीन के साइबर जासूसी का पुराना शिकार

मार्च 2021 में, सिंगापुर स्थित कंपनी, CyFirma ने इस बात का खुलासा किया था कि चीन समर्थित एक हैकर्स समूह ने दो भारतीय वैक्सीन निर्माताओं - भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियों को अपना टारगेट बनाया था। इन कंपनियों के टीके भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम और वैक्सीन कूटनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। चूंकि वैक्सीन, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका/कोविशील्ड का उपयोग 183 देशों में किया गया, जबकि चीन की प्रमुख सिनोफार्म वैक्सीन (90 देशों में प्रयुक्त) की पहुंच लगभग आधी थी। यकीनन चीनी हैकर्स व्यावसायिक रूप से मूल्यवान डेटा चुरा कर वैक्सीन निर्माताओं को लक्षित करके उस अंतर को पाटने की कोशिश कर रहे थे 

इसलिए भी इस बात पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती कि चीन वाणिज्यिक साइबर-जासूसी के जरिए अपने लक्ष्यों की सीमा का विस्तार करने की पूरी कोशिश करता है और आगे भी करता रहेगा। इसमें सेवाओं जैसा हर वो क्षेत्र शामिल हो सकता है जहां भारत को तुलनात्मक अधिक लाभ है। एक संभावित लक्ष्य भारत का स्टार्ट-अप इनोवेशन इकोसिस्टम शामिल है, जहां भारत ने चीनी निवेश पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। अफसोस की बात तो ये है कि व्यावसायिक विचारों से परे, चीन का साइबर-जासूसी अभियान अधिकांषतः त्वरित आक्रोशजनित रणनीति का भी प्रदर्शित करता है-जैसे लंबे समय से चल रहे सीमा गतिरोध के बीच लद्दाख में पावर ग्रिड को निशाना बनाना। स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि चीन भारत को एक राजनीतिक संदेश भेजना चाह रहा है, यह संकेत देते हुए कि आवश्यकता पड़ी तो बीजिंग द्विपक्षीय सुरक्षा प्रतिस्पर्धा में अन्य गैर-सैन्य मोर्चे खोल सकता है। चीनी हैकरों द्वारा भारत के बिजली क्षेत्र पर यह दूसरा ऐसा हमला था।

अक्टूबर 2020 में, सबसे खराब बिजली कटौती में से एक में, मुंबई के बड़े हिस्से में व्यापक ब्लैकआउट देखा गया, जिससे उपनगरीय ट्रेन सेवाएं और अस्पताल प्रभावित हुए। महीनों बाद, रिकॉर्डेड फ़्यूचर ने नोट किया कि चीन से जुड़े हैकर समूह, ’रेडइकोने भारतीय बिजली क्षेत्र में सेंध लगाई थी, जिसके कारण मुंबई की बिजली गुल हो गई थी, हालांकि घटना की जांच करने वाली महाराष्ट्र सरकार की उस समय की तकनीकी ऑडिट समिति ने इस आरोप का खंडन किया। लेकिन रिकॉर्डेड फ़्यूचर ने कहा कि बिजली क्षेत्र के अलावा, चीनी हैकरों ने दो भारतीय बंदरगाहों और रेलवे बुनियादी ढांचे के कुछ हिस्सों को भी निशाना बनाया। जून 2020 में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के मद्देनजर, भारत के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को निशाना बनाना धमकी और प्रतिशोध की भावना की व्याख्या करता है। जाहिर तौर पर भारत चीन के इस सायबर अटैक से नावाकिफ नहीं है। गलवान घाटी की घटना के बाद, चीनी मोबाइल एप्लिकेशन्स के खिलाफ भारत ने जबरदस्त कार्रवाई कर कईक ऐप को बैन कर दिया था।

 

साइबर अटैक को लेकर उजागार हो चुका है चीन का निगरानी तंत्र

इस लीक से यह बात भी सामने आई है कि किर्गिस्तान, थाईलैंड, कंबोडिया, मंगोलिया और वियतनाम सहित चीन के पड़ोसियों की सरकारी एजेंसियों की वेबसाइटें या ईमेल सर्वर प्रभावित हुए थे। ब्रिटिश सरकारी विभागों से लेकर थाई मंत्रालयों तक, लक्ष्यों की लंबी सूची है। लीक हुई चैट में आई-सून स्टाफ यह दावा करता हुआ नजर आया कि उन्होंने पाकिस्तान, कजाकिस्तान, मंगोलिया, थाईलैंड और मलेशिया सहित अन्य देशों में दूरसंचार सेवा प्रदाताओं तक पहुंच हासिल की है। यही नहीं, उन्होंने हांगकांग और स्व-शासित ताइवान में उच्च शिक्षा संस्थानों तक बैक-एंड पहुंच हासिल करने का दावा किया, जिसे चीन अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा करता है। अपनी चैट में, आई-सून के कर्मचारियों सहकर्मियों को बताते है कि उनका मुख्य ध्यान ट्रोजन हॉर्स बनाना था, वैध सॉफ़्टवेयर के रूप में छिपा हुआ मैलवेयर जो हैकर्स को निजी डेटा तक पहुंच की अनुमति देता है। इसी बातचीत के एक स्क्रीनशॉट में, कोई व्यक्ति विदेश सचिव के कार्यालय, विदेश मंत्रालय के आसियान कार्यालय, प्रधान मंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी और एक अनाम देश के अन्य सरकारी विभागों तक विशेष पहुंच के लिए ग्राहक के अनुरोध का वर्णन भी करता है।

जॉन हल्टक्विस्ट, जो गूगल के मैंडिएंट इंटेलिजेंस के मुख्य विश्लेषक है, वह न्यूयार्क टाइम्स को दी गई अपनी टिप्पणी में कहते है कि इस लीक से पता चला है कि आई-सून कई चीनी सरकारी संस्थाओं के लिए काम कर रहा था जो हैकिंग को प्रायोजित करती हैं, जिनमें राज्य सुरक्षा मंत्रालय, पीपल्स लिबरेशन आर्मी और चीन की राष्ट्रीय पुलिस शामिल है। कई बार कंपनी के इन कर्मचारियों ने विदेशी लक्ष्यों पर भी काम किया और अन्य कईक मामलों में उन्होंने चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय को घरेलू और विदेशी चीनी नागरिकों की निगरानी में भी मदद की है।

हैकिंग, स्पाईवेयर, मोबाइल ऐप जैसे डिजिटल स्वरूप के अटैक की वजह से चीन पहले से ही संदेह के कठघरे में खड़ा है। 2023 में अमेरिकी आकाश में चीनी स्पाई बैलून की वजह से चीन सरकार की खुलकर आलोचना हुई। उसके इस निंदनीय व्यवहार ने उसे अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों को अपने विरूद्ध खड़ा होने को मजबूर कर दिया।

 

सायबर निगरानी तंत्रों के जरिए हायब्रिड युद्ध की तैयारी कर रहा चीन?

यूं तो चीन की निगरानी तंत्र प्राचीन होने के साथ-साथ विरासती तौर पर काफी समृद्ध है। फिर भी आर्थिक और सैन्य महाशक्ति की स्थिति को बेहतर बनाने के लक्ष्य के साथ ही वह अपने निगरानी नेटवर्क को डिजिटल तरीके से और मजबूत, व्यापक और सुलभ बना रहा है चीनी जासूसी एजेंसी राज्य सुरक्षा मंत्रालय (कुओआनबू) दुनिया भर में व्यापक नेटवर्क वाली एक प्रमुख जासूसी एजेंसी है और इनके सीसीटीवी कैमरे और मोबाइल उस विशाल अदृश्य नेटवर्क का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। चीनियों ने वर्षों से भारत के आसपास और भीतर चतुराई से इसका जाल बिछाने की कोशिश की है चीन भारत के खिलाफ अपने जासूसी नेटवर्क को मजबूत करने और फैलाने के लिए विभिन्न प्रक्षेप पथों का उपयोग करता आया है। इसमें उसने गैरजाहिरी तौर पर पाकिस्तान, नेपाल को भारत के खिलाफ स्थायी निगरानी नेटवर्क के रूप में साथ कर लिया है।  चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तत्वावधान में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत कई परियोजनाओं के चालू होने से उसे भारत के खिलाफ काम करने में पर्याप्त अवसर मिल जाते हैं। इस तरह से बीजिंग को अपने श्रवण यंत्रों को भारतीय सीमा क्षेत्रों के करीब रखने में आसानी भी होती है।

सितंबर 2020 में, इंडियन एक्सप्रेस ने एक श्रृंखला प्रकाशित की थी जिसमें पता चला था कि शेन्ज़ेन स्थित सूचना प्रौद्योगिकी फर्म, झेनहुआ डेटा, जो चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी बताई जाती है, किस तरह से कम से कम 10,000 भारतीयों सहित दुनिया भर में 2.5 मिलियन से अधिक व्यक्तियों की निगरानी कर रही है। राष्ट्र के कायाकल्प के लिए चीनी सरकार किसी भी हद तक जाने को तैयार है, यह उसने अपने पिछले 10 सालों से लेकर अब तक के शासन काल के दौरान दिखा दिया। विकास के सीढ़ी पर रफतार से दौड़ते चीन को 2022 के बाद लगे आर्थिक झटके ने ब्रेक लगाई, जिसके कारण कुछ घरेलू मामलों में उलझकर चीनी सरकार का ध्यान बाहरी लड़ाईयों से हटा। लेकिन दूसरे दशों में बढ़ती चीनी उपकरणों की मांग का लाभ उठा कर चीनी सरकार जासूसी के पारंपरिक तरीकों के साथ साथ गैरपारंपरिक तरीके से अन्य देशों के खिलाफ उतरने से बाज नहीं आया। इस हायब्रिड वार का महज अपनी राजनैतिक उददेश्यों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर चीन दूसरे देशों के बुनियादी ढ़ाचें को हिलाकर खुद को महाशक्ति में बदलने का सपना देखने लगा है। 

वैश्विक खुफिया नेताओं ने चेतावनी दी है कि एआई और अन्य व्यापार रहस्यों सहित प्रौद्योगिकी में चीन द्वारा की जा रही बौद्धिक संपदा की चोरी पश्चिम के लिए एक बड़ा खतरा है। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खुफिया नेता - जिन्हें सामूहिक रूप से फाइव आइज़ के रूप में जाना जाता है - बताते हैं कि चीन की चोरी का पैमाना अभूतपूर्व है। एफबीआई निदेशक क्रिस्टोफर रे की नजर में चीन इस पीढ़ी का निर्णायक खतरा है। ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा महानिदेशक माइक बर्गेस ने कहा, सभी देश गुप्त रूप से जानकारी हासिल करने के लिए जासूसी करते हैं। बर्गेस ने चीन के बारे में कहा, लेकिन जिस व्यवहार के बारे में हम यहां बात कर रहे हैं वह पारंपरिक जासूसी से कहीं आगे है। चोरी का यह पैमाना मानव इतिहास में अभूतपूर्व है।

 

निष्कर्ष

एक महान राष्ट्र बनने के लिए एक महान सोच के साथ काम करना जरूरी होता है। चीनी सरकार को भी चाहिए कि अब वे एक महान राष्ट्र की तरह काम करना शुरू करें। चाणक्य के अनुसाऱ विदेश नीति का लक्ष्य भौगोलिक सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक समृद्धि प्रदान करना है। ये दोनों बातें एक दूसरे को बल प्रदान करते हैं। इसके अलावा राजा का पांच सिद्धांतों के तहत काम करना देशों के आपसी संबधों को मधुर ही नहीं करता बल्कि एक दूसरे के विकास में सहयोगी भी बनाता है, जैसे-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान, परस्पर गैर आक्रामकता, परस्पर गैर हस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ, और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व। शीर्ष पर पहुंचने को बेताब चीनी नेता को विदेश नीति के इन गुणों पर विशेष घ्यान देने की आवश्यकता है।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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