सामुद्रिक शक्ति-सामुद्रिक संचार एवं परिवहन की स्वतन्त्रता पर जोर- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही अपनी भौेगोलिक स्थिति के कारण हिन्द महासागर विश्व की राजनीतिक, आर्थिक, एवं सामरिक गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। अपनी महत्त्वपूर्ण केन्द्रीय भू-रणनीतिक कारणों से ही हिन्द महासागर विश्व की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण सामुद्रिक गलियारे के रूप में पूर्व और पश्चिम अर्थात् प्रशान्त और अटलांटिक महासागर को जोड़ता है। अतएव भारत और पश्चिमी राष्ट्रों की राजनीतिक, आर्थिक, रणनीतिक एवं सुरक्षा गतिविधियों के लिए हिन्द महासागर क्षेत्र जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही चीन के राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों के लिए भी है। हिंद महासागर में चीन के बढते वर्चस्व पर एक आकलनः-

चीन का विश्व परिदृश्य पर एक राजनीतिक, आर्थिक, सैनिक और तकनीकी शक्ति के रूप में उदय ने पश्चिमी राष्ट्रों के वैश्विक प्रभुत्व को हिलाकर रख दिया। चीन को अपनी प्रगति, समृद्धि और प्राप्त वैश्विक स्तर को बनाए रखने के लिए न केवल थल पर बल्कि वायु और समुद्र पर भी नियंत्रण बनाए रखने की आवश्यकता है। चीन को विश्व की दूसरी महाशक्ति का प्राप्त राजनीतिक दर्जा और तीव्र गति से वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्था के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधनों और खनिज पदार्थों की आवश्यकता है। इसीलिए चीन के सुरक्षा सिद्धान्त में क्षेत्रीय सुरक्षा एवं अखण्डता के साथ ही साथ ऊर्जा के संसाधनों, व्यापार एवं वाणिज्य तथा सामुद्रिक परिवहन एवं संचार के मार्गों की सुरक्षा अब बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। चीन को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने के लिए ऊर्जा के संसाधनों की उपलब्धता, निर्बाध आपूर्ति और परिवहन की राष्ट्रीय आवश्यकता ने चीन की सुरक्षा का सीधा सामुद्रिक शक्ति और सामुद्रिक संचार एवं परिवहन की स्वतन्त्रता के साथ जोड़ दिया है। 

चीन की भू-राजनीतिक एवं भू-स्त्रातेजिक स्थिति और हिन्द महासागर :

चीन की भू-राजनीतिक और भू-स्त्रातेजिक स्थिति की दृष्टि से उसका पश्चिमी और दक्षिणी भू-भाग हिन्द महासागर की ओर से निकटस्थ स्थित है। परन्तु उसके पास भी हिन्द महासागर में सीधे प्रवेश का कोई मार्ग नहीं है और उसकी स्थिति भी शीत युद्ध काल के सोवियत संघ के समतुल्य जान पड़ती है ।

       शीत युद्ध के उपरान्त विशेष रूप से अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद अमेरिका के लिए पाकिस्तान का स्त्रातेजिक और सामरिक महत्त्व समाप्त हो गया। दूसरी ओर भारत भी आतंकवाद के कारण पाकिस्तान के विरूद्ध राजनीतिक, कूटनीतिक एवं आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद की नीति का अनुपालन कर रहा है। इस स्थिति में पाकिस्तान को चीन के निकट जाने के लिए बाध्य होना पड़ा और पाकिस्तान, चीन का सबसे निकट घनिष्ट मित्र राष्ट्र बन गया है । चीन ने अपनी मजबूत आर्थिक शक्ति को अपनी राजनीति और कूटनीति का साधन बनाकर अरब सागर और फारस की खाड़ी से प्रत्यक्ष सम्पर्क के लिए ‘‘चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)’’ का निर्माण कर लिया जो चीन के नगर काशगर को सीधे ग्वादर बन्दरगाह से जोड़ता है।

हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन के राष्ट्रीय और सुरक्षा हित :

हिन्द महासागर क्षेत्र से जुड़े चीन के राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को निम्नवत् संकलित किया जा सकता है :- 

(i) चीन की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने के उद्देश्य से।

(ii) क्षेत्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए।

(iii) हिन्द महासागर के तटवर्ती राष्ट्रों के साथ अपनी आर्थिक, व्यापारिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों की सुरक्षा हेतु। 

(iv) समुद्री संचार और परिवहन मार्ग की सुरक्षा के लिए। 

(v) चीनी नागरिकों और निवेश की सुरक्षा ।

(vi) चीन विरोधी संगठनों और आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों को संचालित करने के उद्देश्य से। 

(vii) ‘‘आसूचना संग्रह’’, के लिए ।

(viii) संघर्ष पूर्ण वातावरण में प्रभावशाली सैन्य संक्रिया के लिए आवश्यक योग्यता और क्षमता को बनाए रखना। 

उपरोक्त वर्णित राष्ट्रीय और सुरक्षा सम्बन्धी अपने महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील हितों के संरक्षण के लिए चीन उन्हीं राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक एवं सैनिक उपायों का अनुसरण कर रहा है, जिसका पश्चिमी जगत पिछले दो सौ वर्षों से करता चला आ रहा है।आधुनिक विश्व का स्वरूप थ्यूसीडीड्स ट्रैप के सिद्धान्त को सत्य प्रमाणित करता है ।  जिसका सरल अर्थ यह है कि एक उदयमान शक्ति पहले से स्थापित शक्ति को चुनौती देने के लिए बाध्य होती है और चुनौती की प्रतिक्रिया स्वरूप पूर्व स्थापित शक्ति द्वारा किए गए उपायों के परिणाम के रूप में दोनों के मध्य प्रतिस्पर्धा जन्म लेगी भले ही वह संघर्ष या युद्ध का रूप न ग्रहण करे। इसी सिद्धान्त के आधार पर चीन का एक महाशक्ति के रूप में उदय और सर्वोच्च शक्ति के रूप में अमेरिका की प्रभुता और प्रभाव को चुनौती उत्पन्न हुई  इसी कारण एशिया और एशिया प्रशान्त क्षेत्र को 21वीं शताब्दी में अमेरिका के लिए ‘‘धुरी क्षेत्र या जिसे बाद में पुनर्सन्तुलन की नीति और स्त्रातेजी के रूप में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा 17 नवम्बर 2011 को आस्ट्रेलिया की संसद में घोषित किया था । जिसे चीनी राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और सैन्य विशेषज्ञ अमेरिका की चीन विरोधी नीति के रूप में देखते हैं। 

सुरक्षा परिधि की नीति और हिंद महासागर :

सुरक्षा परिधि की नीति के सिद्धान्त के आधार पर चीन की स्थिति पर विचार किया जाय तो एक ओर जहाँ मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया उसकी सुरक्षा की आन्तरिक परिधि पर स्थित है तो हिन्द महासागर और प्रशान्त क्षेत्र उसकी बाह्य परिधि पर स्थित है। अत: चीन वास्तविक रूप में इन्हीं क्षेत्रों में स्थित देशों से घिरा हुआ है। जो उसकी सुरक्षा और हिन्द महासागर में सीधे प्रवेश दोनों को प्रभावित करते हैं। 

बढ़ती अमेरिकी उपस्थिति और हस्तक्षेप के विरूद्ध चीनी अपनी नीति को ‘‘प्रति-प हस्तक्षेया हस्तक्षेप विरोधी ‘‘(Counter Intervention-C.I.) नीति के नाम से सम्बोधित करते हैं। अमेरिकी प्रशासन चीनी नीति को, ‘Anti-Access, Area Denial या (A2AD)’ के नाम पुकारते हैं। भारतीय इसे चीन की विस्तारवादी और प्रभुत्ववादी नीति कहते हैं। चीन की इस नीति के दो घटक हैं - प्रथम, Anti-Access का अर्थ प्रादेशिक सीमा क्षेत्रों में शत्रु के प्रवेश को रोकना। दूसरे, Area Denial का अर्थ अपने सीमावर्ती क्षेत्र के निकट स्थित क्षेत्र में शत्रु को बिना रूकावट या बिना चुनौती के कार्य करने की स्वतन्त्रता से रोकना है।  इसीलिए चीन के राष्ट्रीय और सुरक्षा हित प्रत्यक्ष रूप से हिन्द महासागर और उसके तट पर स्थित राष्ट्रों के साथ जुड़ जाते हैं। जिन्हें निम्नवत् रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है :- 

ऊर्जा सुरक्षा :

चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा खनिज तेल उपभोक्ता राष्ट्र है तथा विश्व का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश है। अत: चीन की ऊर्जा सुरक्षा का सीधा सम्बन्ध हिन्द महासागर और फारस की खाड़ी से जुड़ जाता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में प्रवेश मार्ग की दृष्टि से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और ग्वादर बन्दरगाह उसकी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक, आर्थिक और स्त्रातेजिक सफलता है, क्योंकि खाड़ी क्षेत्र से आयातित तेल मल्लका की खाड़ी से गुजर कर चीन तक पहुँचता है। किसी संघर्ष या तनावपूर्ण स्थिति में मलक्का की खाड़ी चीन की सुरक्षा और आर्थिक प्रगति एवं समृद्धि के मार्ग में एक भारी अवरोध है। जिसे 2003 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने ‘‘मलक्का दुविधा’’ के रूप में वर्णित किया है।  इस अवरोध का सबसे अच्छा निदान ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ है ।

 

आर्थिक समृद्धि- 

चीन ने  को अपनी सुरक्षा, समृद्धि, आर्थिक प्रगति और विश्व की सर्वोच्च शक्ति के रूप में उदय को स्थायी बनाने के लिए विशाल महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसे ‘‘वन बेल्ट वन रोड’’ और ‘‘बेल्ट रोड इनिशिएटिव’’ के नाम से जाना जाता है, का निर्माण किया है। जहाँ बेल्ट का अर्थ - रेल और सड़क मार्ग का स्थलीय गलियारा और रोड का अर्थ - पोत परिवहन गलियारा है। जिसकी घोषणा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अक्टूबर 2013 में कजाकिस्तान में की थी। जिसे चीन के प्रसिद्ध ऐतिहासिक व्यापारिक एवं वाणिज्यिक मार्ग “सिल्क रूट को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में भी जाना जाता है। चीन ने इस परियोजना को सबकी समृद्धि, सरल व्यापार, संचार और सभी लोगों को जोड़ने के प्रयास के रूप में प्रस्तुत किया। चीन की 995.6 बिलियन डालर की यह विशाल परियोजना अब तक किसी राज्य द्वारा पोषित सबसे बड़ी योजना है जो 71 देशों को जोड़ती है, जहाँ विश्व की आधी आबादी और विश्व की सम्पूर्ण जी0डी0पी0 का एक चौथाई भाग है। इस परियोजना से जुड़े 15 देश हिन्द महासागर के तटवर्ती राष्ट्र हैं।

यद्यपि चीन हिन्द महासागर का तटवर्ती राष्ट्र नहीं है, फिर भी चीन की सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का मार्ग हिन्द महासागर से होकर ही गुजरता है।  

हिन्द महासागर क्षेत्र में मलक्का की खाड़ी की दुविधा के प्रभाव को कम करने के लिए ग्वादर के अतिरिक्त एक अन्य वैकल्पिक मार्ग म्यांमार और थार्ईलैण्ड को सीधे चीन की मुख्य भूमि से जोड़ता है। चीन म्यांमार के रखाइन (Rakhine) प्रान्त में क्याउकफ्यू (Kyaukphyu) नामक स्थान पर एक गहरे समुद्री बन्दरगाह का निर्माण कर रहा है जो दक्षिणी-पश्चिमी चीन को सीधे हिन्द महासागर से जोड़ता है जिसकी लम्बाई 2400 किमी0 है तथा इसके साथ रेल मार्ग और खनिज तेल एवं गैस हेतु पाइप लाइन भी बिछाई जा रही है। जो मलक्का की खाड़ी से होकर चीन जाने वाले मार्ग की दूरी को 1200 किमी0 कम कर देता है। यह चीन द्वारा अपनी ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता की विविधता के क्षेत्र में एक महान स्त्रातेजिक उपलब्धि है।

चीन की हिन्द महासागर क्षेत्र सम्बन्धी स्त्रातेजी महान के सामुद्रिक शक्ति सम्बन्धी अवधारणा पर आधारित है, जिसमें उसने केन्द्रीय स्थिति को स्थल और जल दोनों पर समान रूप से आक्रमणात्मक और रक्षात्मक कार्यवाहियों के लिए अनुकूलता प्रदान करने वाली बताया है। ऐसी भौगोलिक स्थिति आक्रमण के लिए आन्तरिक एवं सबसे छोटी रेखा प्रदान करती है। अत: चीन को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक प्रगति एवं समृद्धि के स्थायित्व प्रदान करने के लिए हिन्द महासागर क्षेत्र के प्रमुख प्रवेश मार्गों एवं महत्त्वपूर्ण केन्द्रीय स्थानों की श्रृंखला की आवश्यकता पड़ती है, जो उसके समुद्र पार हितों की रक्षा के लिए अनिवार्य सैद्धान्तिक आवश्यकता है। उसके इसी प्रयासों को ​स्ट्रिंग आफ पल्स, सामुद्रिक संचार और परिवहन की सुरक्षा, दबावपूर्ण आर्थिक कूटनीति (कर्ज जाल में फंसाने की कूटनीति), चीन की साम्राज्यवादी नीति इत्यादि अनेक नामों से पुकारा जाता है। चीन की नीति का उद्देश्य अनेक केन्द्रीय स्थानों पर बन्दरगाहों एवं नौ सैनिक आवश्यकता के अनुरूप केन्द्रों की स्थापना करना है। इन केन्द्रीय स्थानों की श्रृंखला के अन्तर्गत चीन म्यांमार में क्याउकफ्यू (Kyaukphyu), बांग्लादेश के चिटगाँव बन्दरगाह, श्रीलंका में हम्बनकोटा बन्दरगाह, मालदीव में माराओ बन्दरगाह, पाकिस्तान में ग्वादर, केन्या मे लामू और पोर्ट सूडान के निर्माण में संलग्न है। यह श्रृंखला न केवल चीन की ऊर्जा सुरक्षा निर्बाध बनाती है, बल्कि यह एक आर्थिक, सैनिक और तकनीकी महाशक्ति के रूप में उदय के लिए भी अतिआवश्यक है। इसे चीन की लुक वेस्ट नीति भी कहा जा सकता है। इससे राष्ट्रों के बीच परस्पर निर्भरता और सहयोग में वृद्धि होगी जो शान्ति और सुरक्षा को मजबूत बनायेगी।

निष्कर्ष :

चीन की समस्त राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक, सैनिक और तकनीकी विकास    सम्बन्धी नीतियों पर दृष्टिपात किया जाये तो स्पष्ट होता है कि चीन ने पश्चिमी प्रभुत्व और प्रभाव के उदय एवं स्थापना के उन समस्त स्त्रातेजिक, सामरिक, आर्थिक एवं तकनीकी सिद्धान्तों के अध्ययन एवं विश्लेषण के उपरान्त एक बहुआयामी महान स्त्रातेजी को समन्वित रूप प्रदान किया है, जिसमें महान के समुद्र पर नियंत्रण, मैकिण्डर के स्थल पर नियंत्रण, डूहेट, मिचेल, सर्वेस्की द्वारा प्रतिपादित वायु पर नियंत्रण, हैमिल्टन के आर्थिक सिद्धान्त, फ्रेडरिक लिस्ट के सिद्धान्त और बिस्मार्क की कूटनीतिक श्रेष्ठता के सिद्धान्त सम्मिलित रूप में दिखाई पड़ते हैं। जो चीन के सर्वोच्च विश्व शक्ति के रूप में उदय और स्थापना के उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं तथा हिन्द महासागर पर नियंत्रण और प्रभुत्व इसका एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

 

Author

Ankit is a Ph.D scholar at Dr. Shyama Prasad Mukherjee Govt. Degree College, University of Allahabad

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