सफेद रेत वाले समुद्र तटों और फ़िरोज़ा लैगून के लिए लोकप्रिय राष्ट्र मालदीव चीन के साथ नये समझौते में वर्तमान राष्ट्रपति मुइज्जू की विदेश नीति के नजरिए से भारत समर्थित अपने पूर्ववर्ती इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की तुलना में एक महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा कर रहे है। इस छोटे से दक्षिण एशियाई राष्ट्र, जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पर्यटन स्थल के रूप अधिक देखा जाता रहा है, चीन की इस पहल के बाद एशियाई राजनीति पर क्या असर डालेगा, खासतौर से भारत के परिपेक्ष्य में इसे देखना जरूरी है। एक आकलन-

अपने पूर्ववर्ती इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की तुलना में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू में चीनी दृष्टिकोण के प्रति अधिक लचीलापन देखने को मिल रहा है। नवंबर 2023 में चुनाव जीतने के बाद जनवरी 2024 में चीन की अपनी पहली राजनैतिक यात्रा में ही उनके साथ कई समझौते कर लौटे मुइज्जू के भारत विरोधी तेवर मुखर हो गये। बीजिंग द्वारा मालदीव में अधिक से अधिक चीनी पर्यटकों को भेजने की प्रतिबद्धता के साथ-साथ 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान काबक्सालेकर आये मुइज्जू का मंत्रालय इसेमुफ्तसौदे का नाम दे रहा, जो चीन जैसे देश को लेकर संदेह से परे नहीं हो सकता और तब तो कतई नहीं जबकि हिंद महासागर द्वीपसमूह में चीन का समर्थन करने के बाद से ही मालदीव के दिन बहुरते नजर आने लगे थे। अब ये समझौते, जो अभी पूरी तरह से अभी साफ भी नहीं, इस छोटे से द्वीप में एक बड़े बदलाव का इशारा कर रहे। ऐसे में भारत के प्रति बदलते उसके दृष्टिकोण पर नजर बनाये रखना नई दिल्ली के लिए अहम हो जाता है।

भौगोलिक निकटता और ऐतिहासिक और आर्थिक संबंधों को देखते हुए, भारत दशकों तक मालदीव का सबसे करीबी सहयोगी था। 1965 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत, माले को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था। 1988 में देश के लंबे समय तक तानाशाह मौमून अब्दुल गयूम के खिलाफ तख्तापलट के प्रयास को विफल करने से लेकर गयूम को बचाने और व्यवस्था बहाल करने के लिए पैराट्रूपर्स भेजने तक भारत सदैव भारत के साथ खड़ा रहा। सुनामी की आफत हो या कोविड महामारी से निपटने में सहायता की बात हो, भारत ने अपने इस पड़ोसी का सदैव साथ दिया। संभवतः अपने इन्हीं पारंपरिक संबंधों को ध्यान में रख मालदीव पर चीन के बढ़ते प्रभाव को देखकर सचेत नई दिल्ली ने अपने स्वयं के पुल के लिए 500 मिलियन डॉलर के पैकेज की घोषणा की। यह मालदीव में बनने वाली सबसे बड़ी नागरिक बुनियादी ढांचा परियोजना के रूप में प्रस्तावित, 6.7 किलोमीटर (4.1 मील) का पुल और मार्ग होगा, जो राजधानी माले को पास के तीन द्वीपों से जोड़ेगा और लंबाई, पैमाने और कीमत में चीनी पुल को पीछे छोड़ देगा।

 

चीन की मालदीव से लगाव बढने की वजह हिंद महासागर  

सदैव से भारत के पड़ोसी देशों में खास दिलचस्पी रखना चीन की नीयत में शामिल रहा है। पाकिस्तान श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, वर्मा हो या भूटान-चीन भारत पर नजर बनाये रखने के लिए किसी भी देश को अपने भूराजनैतिक मकसदों को पूरा करने के लिए साध लेता है। मालदीव आधे मिलियन से भी कम लोगों की आबादी वाला, लगभग 1,200 निचले मूंगा द्वीपों का द्वीपसमूह, हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जल और शिपिंग लेन के एक बड़े हिस्से में फैला हुआ राष्ट्र है, जिसको साथ लेकर चलना, चीन के अपने भावी मकसदों को पूरा करने के लिए बेहद जरूरी है। 2023 में मालदीव ने भी एक चीनीअनुसंधान जहाज (कुछ आलोचक इन जहाजों को चीन का जासूसी उपकरण मानते है) को माले के पास डॉक करने की अनुमति देकर अपनी स्थिति जाहिर कर दी। दरअसल चीन से चोट खा कर बैठे श्रीलंका ने अपने बंदरगाहों में डॉकिंग करने वाले ऐसे चीनी जहाजों पर एक साल के लिए रोक लगा दी है।

2013 में जब मालदीव में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सत्ता संभाली थी, तब भी मालदीव नई दिल्ली से दूर हो बीजिंग के करीब हो गया था। उस वक्त  उसे अपने मूंगा द्वीपों को विकसित करने के लिए करोड़ों डॉलर का चीनी धन प्राप्त हुआ। लेकिन 2018 के अंत में यामीन की आश्चर्यजनक चुनावी हार ने भारत को अपने इस पड़ोसी के साथ संबंध सुधारने का मौका दिया।  हालातों ने फिर करवट बदल ली है और मालदीव एक बार फिर चीन के साथ में अपना हित देख रहा और इधर श्रीलंका से बढती़ राजनैतिक दरार के बाद से चीन भी हिंद महासागर में अपने गुप्तलाइन ऑफ एक्शनके लिए मालदीव पर अपनी निर्भरता महसूस कर रहा है।

मुइज्जू का भारत विरोधी चेहरा पहली बार सामने नहीं आया है। पहले भी वे कई बार भारत विरोधी बयान दे चुके है। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद से मुइज्जू लगातार भारत विरोधी रुख का इजहार किये जा रहे हैं। मालदीव के इस बदले व्यवहार पर इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ डॉक्टर कमर चीमा अपने एक ब्लाग में कहते है देर-सबेर मालदीव को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उनके अनुसार भौगोलिक रूप से मालदीव के लिए, जो सबसे नजदीकी मार्केट को छोड़ दूर चीन की तरफ जाना हितकर नहीं है। ये कुछ ऐसा है, जैसे पाकिस्तान अपने पड़ोसी भारत से संपर्क बनाए और अमेरिका चला जाए। मालदीव विशेषज्ञ जे जे रॉबिन्सन का मानना है कि मालदीव अभी भी दशकों की निरंकुशता से एक दर्दनाक संक्रमण के अंतिम चरण में है और इस परिवर्तन को पूरा होने मे समय लगेगा। उनके नुसार तो भारत और चीन के पास ही मालदीव के लोकतंत्रीकरण को सुविधाजनक बनाने की कोई क्षमता या इच्छा है। फिर भी उनका मानना है कि मालदीव के अपने लोकतंत्र को मजबूत करने में एक अलोकतांत्रिक चीन की तुलना में भारत की अधिक रुचि है। ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक प्रतिष्ठित फेलो, मनोज जोशी के अनुसार भारत के पश्चिमी तट से निकटता के हवाले से देखा जाये तो मालदीव भारत के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। वे ये भी मानते है कि भारत, मालदीव में चीनी सुरक्षा को प्रभावित करने के लिए कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन चीन मालदीव में भारतीय सुरक्षा को प्रभावित करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है।

 

भारत के पड़ोसियों को साधने के चीन के प्रयास नये नहीं

व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी बनाने के लिए मालदीव के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध चीन भले ही ये कहे कि चीन और मालदीव के बीच बन रहे सामान्य सहयोग किसीतीसरे पक्षको लक्षित नहीं करने वाला वक्तव्य अपनी सफाई पेश करते लगते है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग की इस टिप्पणी कि ये संबंध किसीतीसरेपक्षद्वारा बाधित नहीं किया जाएगा के पीछे मालदीव को अपना यकीन दिलाने औरतीसरे पक्षको धमकाने की शालीन शैली के अतिरिक्त क्या है। भूराजनैतिक नजरिए से गौर करें तो येतीसरा पक्षभारत के अलावा कोई और नहीं हो सकता। यूं भी चीन के लिए दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत ही एकमात्र अर्थव्यवस्था की दौड़ में उसके लिए एक बड़ी चुनौती है। भारत को चीन के खिलाफ पश्चिम का सपोर्ट से वह बेखबर नहीं है।

भौगोलिक, ऐतिहासिक और आर्थिक संबंधों को देखते हुए, भारत दशकों तक मालदीव का सबसे करीबी साझेदार रहा। दरअसल नई दिल्ली इस क्षेत्र को अपने अब तक पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र के हिस्से के रूप में देखती आई है। लेकिन नवंबर में पद संभालने के बाद से राष्ट्रपति मुइज्जू द्वारा चीन के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने के प्रयास उसके लिए चिंता के सबब बन गये। चुनाव के दौरानइंडिया आउटचुनावी अभियान के परिणाम को देखते हुए, जिसमें कि मालदीव की धरती से भारतीय सैनिकों को हटाने और अपनी खोई राष्ट्रीय संप्रभुता को फिर से स्थापित करने का वादा किया गया था, मुइज़ू ने द्वीपसमूह राष्ट्र में तैनात भारतीय सैन्य कर्मियों की पूर्ण वापसी के लिए 15 मार्च 2024 की समय सीमा तय कर दी थी। लेकिन फिर नई दिल्ली से बातचीत के बाद यह तय हुआ कि सैनिक चरणों में हटाये जायेगें। पहली वापसी 10 मार्च से पहले और बाकी 10 मई से पहले हो जाएगी। रॉयटर्स के मुताबिक, मालदीव में भारतीय सशस्त्र बलों के 77 भारतीय सैनिक और 12 चिकित्सा कर्मी हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने मालदीव को दो हेलीकॉप्टर और एक डोर्नियर विमान भी दिए हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से समुद्री निगरानी, खोज और बचाव कार्यों और चिकित्सा निकासी के लिए किया जाता है।

पाकिस्तान, तिब्बत, श्रीलंका पर अपनी पकड़ मजबूत कर चुके चीन का उद्येश्य भारत की सीमाओं पर अपनी नजर बनाये रखना सर्वोपरि नीति है। लेकिन इधर श्रीलंका के अंसतोषजनक सहयोगात्मक व्यवहार के बाद, नेपाल का नया गठबंधन चीन के लिए परेशानी का सबब हो रहा। प्रचंड का चीन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण चीन को व्यथित कर रहा है जबकि पूर्ववर्ती ओली ने भारत पर निर्भरता को कम करने की खातिर बीजिंग के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए और उसके साथ एक पारगमन व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी किया था। लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति पुष्प कमल दहलप्रचंडने भारत के साथ अपने रणनीतिक संतुलन बनाये रखने के हित को ध्यान में रखते हुए अपनी सितंबर 2023 में चीन या़त्रा के दौरान स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति शी के सुरक्षा सिद्धांत का समर्थन करने से इनकार दिया। चीन अब प्रचंड सरकार से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ आपस की पारंपरिक दोस्ती को गहरा करने, व्यावहारिक सहयोग को मजबूत करने, विकास और समृद्धि के लिए चिरस्थायी दोस्ती को बनाये रखने के समझौतों के साथ काम करने की इच्छा जाहिर कर रहा है। चीन की तुलना में भारत अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों को तटस्थ और स्थिरता प्रदान कर चलने में यकीन रखता है। इसलिए, चीन से मिलते सपोर्ट के चलते मालदीव का हालिया व्यवहार उसके लिए आश्चर्यजनक हो सकता है पर अपने पारंपरिक संबंधों को देखते हुए उसमें विश्वास बनाये रखने में ही वह अपना हित साधता है।

 

निष्कर्ष

माइकल कुगेलमैन, जो अमेरिका में वुडरो विल्सन सेंटर में एशिया कार्यक्रम के उप निदेशक और दक्षिण एशिया के वरिष्ठ सहयोगी हैं, के अनुसार एक पर्यटन स्वर्ग, तीव्र जलवायु भेद्यता के लिए एक पोस्टर चाइल्ड ऐसी छबी से पता चलता है कि देश में और भी बहुत कुछ है-यह एक रणनीतिक रूप से स्थित राज्य है जो दुनिया की दो सबसे परिणामी प्रतिद्वंद्विताओं, भारत और चीन, और अमेरिका और चीन के लिए ग्राउंड ज़ीरो के रूप में कार्य करता है। दोनों प्रतिद्वंद्विताएं निश्चित रूप से जब तीव्र होंगी, तो मालदीव का भू-रणनीतिक महत्व बढ़ेगा नहीं, पर कायम तो रहेगा ही।

भारत के नजरिए से देखा जाये तो हिंद महासागर में मौजूद मालदीव की भौगोलिक स्थिति का रणनीतिक रूप से फायदा उठाने वाला उसका प्रतिस्पर्धी देश चीन उसके लिए मालदीव से कहीं अधिक एक गहन चिंता का विषय है, क्योंकि मालदीव के जरिए भारत के पश्चिमी ब्लॉक, दूसरी तरफ अरब सागर में पाकिस्तान के जरिए भारत के खिलाफ एक रणनीतिक बढ़त हासिल करने की चीन की मंशा किसी से छुपी नहीं है।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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