चीनी राष्ट्रवादियों की एक ऑनलाइन फौज, जिसमें चीन की कुछ प्रमुख व्यापारिक हस्तियां भी शामिल है, चीन के लिए एक बड़ी समस्या बन खड़ी हो गई। ये ऑनलाइन दिखते बगावती तेवर देश की व्यापारिक-व्यवसायिक नीतियों के खिलाफ है। मुखर होते विरोध ने चीन सरकार की नींद हराम कर दी। गिरती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए, वह भी अपनी घरेलू कंपनियों को समर्थन देने और उद्यमियों को आश्वस्त करने की कोशिश में लग पड़ी है।

यूं तो दुनिया भर में, अभिजात वर्ग विरोधी भावनाएँ अक्सर आर्थिक मंदी की उपज होती हैं और जिन्हें खुले विचारों, आक्रमक भावनाओं के साथ सोशल मीडिया में व्यक्त करते देखा जा सकता है। लेकिन चीन इस मामले में सोशल मीडिया नियमों पर कड़ाई से नियंत्रण करता आया है। चीनी सेंसर द्वारा अधिक से अधिक राष्ट्रविरोधी विषयों को सीमा से बाहर रखा जाता है। केवल चीन समर्थक भावनाएं व्यक्त करना बचे हुए कुछ विश्वसनीय सुरक्षित क्षेत्रों में से एक है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में, वर्षों से जनता के बीच उत्कट देशभक्ति की भावना को प्रोत्साहित किया जाता रहा है। 

लेकिन अपने देष की गिरती अर्थव्यवस्था को देखते हुए चीन के राष्ट्रवादी अब सभी चीनी लोगों के लिए राजनीतिक और आर्थिक अधिकार चाहते है। वह चीन पर विदेशी नियंत्रण को भी पूरी तरह से ख़त्म करने पर आमादा चीनी नागरिक खुल के मैदान में चुका है। एक ब्लागॅर द्वारा राष्ट्रहित में उठाये गये मुद्दों पर इंटरनेट यूजर्स द्वारा राष्ट्रवाद की भावना से भरी टिप्पणियों को देख चीन सरकार विचलित है। लेकिन राष्ट्रवाद की भावना को आक्रामक भाव से जोडने की़ गलती कर चीन सरकार नागरिक अधिकारों पर चोट कर गई। कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्रपीपल्स डेलीसे जुड़े एक सोशल मीडिया अकाउंट द्वारा इन हमलों की गलत आलोचना ने घी में आग का काम कर दिया। 

घरेलू मोर्चे पर आखिर क्यों सुलग रहा चीन

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक ब्लॉगर्स ने चीन के सबसे अमीर आदमी झोंग शानशान पर हमला बोल उनकी देशभक्ति पर सवाल करते हुए, उसके बहिष्कार के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। इस बहिष्कार की वजह से उनकी पेय कंपनी नोंगफू स्प्रिंग को अरबों डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा। हमला तब और बढ़ गया जब आलोचकों ने बताना आरंभ किया कि कि झोंग के सबसे बड़े बेटे के पास अमेरिकी नागरिकता थी और नोंगफू के पेय पदार्थों में से एक का डिज़ाइन जापानी कल्पना से प्रेरित प्रतीत होता है (जापान के साथ चीन के भयावह इतिहास को देखते हुए, राष्ट्रवादियों की नजर में ऐसा किया जाना जघन्य पाप है) यही नहीं कुछ अन्य लोगों ने इस तथ्य को माना कि नोंगफू के पास विदेशी शेयरधारक हैं, और उन पर चीन की कीमत पर विदेशियों को समृद्ध करने का आरोप लगाया। जब एक साथी टाइकून ने उसका बचाव करना चाहा, तो उस पर भी उन यूजर्स द्वारा हमला किया गया, जिनकी प्रोफ़ाइल में चीनी ध्वज की तस्वीरें लगी थीं। इस बहिष्कार से फैले उत्साह ने सोशल मीडिया यूजर्स को भी उकसा दिया और उन्होंने चीन के तकनीकी उद्योग के बादशाह हुआवेई पर भी गुप्त रूप से जापान की प्रशंसा करने का आरोप लगा दिया। कुछ लोगों ने एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय पर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बहुत अधिक मधुर व्यवहार करने का ही आरोप लगाया और उन पर दबाब बनाया कि वे राष्ट्रीय नायकों को कथित रूप से बदनाम करने के लिए नोबेल विजेता चीनी लेखक मो यान (साहित्य में नोबेल जीतने वाले एकमात्र चीनी नागरिक) की पुस्तकों को कोर्स से हटा दें। कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि बीजिंग में सिंघुआ विश्वविद्यालय के कुछ स्नातक, जो देश के सर्वश्रेष्ठ स्थान पर बैठे हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्ययन हेतु जाते हैं। एक वीबो उपयोगकर्ता द्वारा पोस्ट किए जाने के बाद कि हुआवेई कंपनी को संदिग्ध बताया यह कहते हुए कि चिप्स की एक श्रृंखला का नाम उन्होंनेकिरिनरखा था, जो एक और अस्वीकार्य जापानी संदर्भ है, आलोचकों ने तकनीकी दिग्गज हुआवेई पर भी अच्छी तरह से निशाना साधा।

दरअसल विरोध-विरोधी प्रतिक्रिया चीन में ऑनलाइन राष्ट्रवाद की प्रकृति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को उजागर करती है, जो शक्तिशाली लोगों और अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों को नीचा दिखाने में सक्षम है। इस तरह के अति-देशभक्तिपूर्ण अभियानों का एक समय खुलेआम नेतृत्व और निर्देशन राज्य मीडिया द्वारा किया जाता था। निक्केई एशिया डेटा विश्लेषण से पता चला है कि अब इसमें व्यक्ति अधिक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। आज का चीनी नागरिक इसी भावना से भरे हुए है। बीजिंग फॉरेन स्टडीज़ यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के प्रोफेसर ज़ान जियांग के अनुसार, दस साल पहले राष्ट्रवाद में इतनी गति नहीं थी क्योंकि सोशल मीडिया पर इसका खंडन किया जा सकता था। लेकिन पिछले दशक में, आधिकारिक समर्थन के साथ, विशिष्ट तरीकों से, जिसमें असंतुष्ट टिप्पणियों को सेंसर करना, पोस्ट हटाना और ऑनलाइन टिप्पणीकारों को संगठित करना शामिल है, जिससे राष्ट्रवाद की आवाज़ मजबूत हुई है।

राष्ट्रवाद की भावना कर रही विदेशी ब्रांडों का बहिष्कार 

राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र के भौगोलिक, सांस्कृतिक और समाज में रहनेवाले लोगों में प्रेम और एकता की भावना में लक्षित होता है। यह एक ऐसी भावना है जो विश्वभर में हर देश के लोगों में रहती है। राष्ट्रवाद को किसी प्रकार की स्वायत्तता या स्वतंत्र राज्य की मांग करने वाले राजनीतिक आंदोलनों की परिभाषित विचारधारा से लेकर; किसी राज्य के भीतर अपने सांस्कृतिक-राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को प्राप्त करने या सुधारने का प्रयास करने वाले समूहों की भावना, राज्य की नीतियों या अन्य सामाजिक समूहों द्वारा खतरे में पड़े समुदायों की ओर से विरोध आंदोलन या फिर राज्य द्वारा अपनी नीतियों के लिए जनता का समर्थन जुटाने या उसकी वैधता की पुष्टि करने के लिए नियोजित मूल विचारधारा के रूप में देखा जा सकता है।

कोविड के बाद कमजोर अर्थव्यवस्था ने आर्थिक तंगी, बेरोजगारी और सरकार के बदलते नियम कानूनों ने चीनी नागरिक के लिए अपने ही देश में जीवन को दूभर बना दिया। अपने उत्पादों के बजाय बाहरी उत्पादों की बढ़ती मांग ने चीन के घरेलू मांग को कमजोर कर दिया। इन हालातों ने चीनी नागरिक के राष्ट्रवाद की भावना को ठेस लगाई। उन्होंने सरकार के खिलाफ, अमीर उद्योगपतियों और विदेशी कंपनियों के खिलाफ मोर्चाबंद होना आरंभ कर दिया। नतीजतन स्वीडिश बहुराष्ट्रीय कंपनी एच एंड एम, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कपड़ा खुदरा विक्रेता ब्रांड है, को चीन के प्रमुख -कॉमर्स स्टोर से हटाकर कई प्रमुख नेविगेशन, समीक्षा और रेटिंग ऐप्स द्वारा ब्लॉक कर दिया गया है। सिचुआन प्रांत के चेंग्दू में एक शॉपिंग मॉल ने मॉल के बाहर एच एंड एम का विज्ञापन चिन्ह हटा दिया है। नाइकी और एडिडास भी भारी आलोचना का सामना कर रहा है।

दरअसल गत वर्ष एच एंड एम और नाइके ने शिनजियांग में कपास का उत्पादन करने के लिए जबरन श्रम का इस्तेमाल पर अपनी चिंता जताई थी। इसके बाद मानवाधिकार समूहों ने भी बार-बार बीजिंग पर उइगर और क्षेत्र के अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों को पुनः शिक्षा शिविरों में हिरासत में लेने और उन्हें जबरन श्रम के रूप में उपयोग करने का आरोप लगाया है। शिनजियांग पर संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के हालिया प्रतिबंधों ने चीनी सरकार को नए सिरे से झटका दिया। मुखर स्वर में वे इन ब्रांडो की खिताफत पर उतर आये। अंतत कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली को भी बरबेरी, न्यू बैलेंस और बेटर कॉटन इनिशिएटिव (बीसीआई) के अन्य सदस्यों के साथ इन दो फर्मों के ब्रांडों के व्यापक बहिष्कार का आह्वान करना पड़ा। इसके बाद तो दर्जनों चीनी मशहूर हस्तियों ने नाइके, एडिडास, प्यूमा, कॉनवर्स, केल्विन क्लेन, टॉमी हिलफिगर और यूनीक्लो सहित इन ब्रांडों के साथ अनुबंध समाप्त कर दिए हैं या कहा है कि वे जल्द ही इनसे नाता तोड़ देंगे। एचएंडएम के ब्रांड एंबेसडर अभिनेता हुआंग जुआन और अभिनेत्री सोंग कियान ने कंपनी के साथ काम करने से इंकार कर दिया है। ऑनर ऑफ किंग्स, टेनसेंट का स्मैश-हिट वीडियो गेम, बरबेरी (बीबीआरवाईएफ) के साथ साझेदारी समाप्त कर रहा है और पात्रों के आउटफिट से अपने टार्टन डिजाइन को हटा रहा है।

राष्ट्रवादी भावनाओं का रणनीतिक चेहरा

राष्ट्रवादी भावनाओं को सीसीपी और उसकी प्रचार मशीनों द्वारा चौबीसों घंटे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से निर्मित और बढ़ाया जाता है। जबकि हांगकांग में राजनीतिक स्वतंत्रता को कम करने और शिनजियांग में पुनः शिक्षा शिविरों को लेकर देश के कड़े कदमों को सही ठहराने के लिए अतिराष्ट्रवादी आख्यान बनाए गए। चीन के कोविड-19 के सफल प्रबंधन में यह अधिक दिखाई देता है। यहां तक कि फैंग फैंग द्वारा वुहान कोरोनोवायरस प्रकरण की हल्की आलोचना को भी एक गैर-देशभक्तिपूर्ण कृत्य के रूप में चित्रित किया गया था, और लाखों लोगों ने उसे ऑनलाइन फांसी देने का आह्वान किया था। विद्वान जियांग शिगोंग के अनुसार, शी इस तथ्य से अवगत हैं कि तियानमेन के बाद की आर्थिक गति जिसने पार्टी के लिए वैधता सुनिश्चित की है वह हमेशा के लिए नहीं रह सकती है। लोगों को प्रेरित करने के लिए सीसीपी को कुछ और चाहिए और यहीं पर अतिराष्ट्रवाद एक उपयोगी उपकरण और ध्यान भटकाने वाली रणनीति के रूप में आया है। शी ने धीमी अर्थव्यवस्था और संबंधित चुनौतियों से ध्यान हटाने के लिएचीनी राष्ट्र का महान कायाकल्पऔरकायाकल्प का चीनी सपनाजैसे नारे और साथ हीअमीर बनोऔरशक्तिशाली बनोजैसे नारे भी उछाले हैं।

अमेरिकी नीति निर्माताओं का मानना है कि शी जिनपिंग और सीसीपी को शायद अतिराष्ट्रवादी समूहों को छोड़कर घरेलू जनमत से कोई चुनौती नहीं मिलती है। लेकिन जनता की राय पार्टी लाइन से अलग हो सकती है - और यह किसी की अपेक्षा से अधिक विविध और उदार है। राष्ट्रवादी तो बहुत हैं, लेकिन आर्थिक सुधार और राजनीतिक उदारवाद के पक्ष में मूक बहुमत भी नजर आता रहा है। चीन में जनमत सर्वेक्षणों, फोकस समूहों और साक्षात्कारों पर आधारित कई अध्ययनों में पाया गया है कि शासन और संतुष्टि के लिए समर्थन अपेक्षाकृत अधिक है, खासकर मध्यम वर्ग और उद्यमियों के बीच। चीनी जनता का एक बड़ा हिस्सा विशिष्ट नीतिगत मुद्दों पर सुसंगत विचार रखता आया है। लेकिन इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कई सरकारी नीतियों को नागरिकों द्वारा अमान्य करार किया गया। खासतौर से नई युवा पीढ़ी द्वारा।

शी जिनपिंग प्रशासन सत्तावादी नियंत्रण को मजबूत कर रहे है, लेकिन यहपूंजीवादके रूप में अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अर्थव्यवस्था के प्रति कहीं अधिक हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण भी अपना रहे है। इसमें कई क्षेत्रों में गहन औद्योगिक नीतियां, निजी क्षेत्र पर अंकुश और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों (एसओई) के लिए अधिक समर्थन शामिल है। इस प्रवृत्ति ने चीन और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच तनाव बढ़ा दिया है, यह भी सत्य है कि अब तक इस बात का बहुत कम विश्लेषण किया गया है कि चीनी जनता इन मुद्दों पर क्या सोचती है। पैन और जू के शोध से पता चलता है कि चीन के भीतर भी, अर्थव्यवस्था पर विचार पूरी तरह से शी शासन के अनुरूप नहीं हैं और यह बात हालिया दिनों व्यापक तौर पर देखी गई।

निष्कर्ष

कोविड के बाद के हालातों को समझने में चूकी चीन सरकार बाहर के मोर्चा पर अधिक गंभीर रूख अख्तियार किये रही जबकि घर में बेरोजगारी और आर्थिक तेगी से लोगों की कमर टूट रही थी। उनके उद्योगों को बढावा देने के बजाय बाहरी ब्रांडों को कच्चा माल देने से लेकर उनके ब्राडों को बाजार देने तक के काम से चीन का नागरिक बिफरना ही था। और फिर राष्ट्रवादी नागरिक के लिए देश उससे जुड़ी भावनाएं सर्वोपरि होता है। सत्ता पर कौन बैठा है, ये नगण्य हो जाता है। चीन सरकार चीनी नागरिक की इस भावना को समझकर भावी योजनाओं पर काम करे तो राष्ट्रवाद की भावना प्रज्जवलित रहेगी और दूसरे देश इस भावना के आगे नतमस्तक हो गैरजरूरी बयानबाजी से बचेगें।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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