औद्योगिक प्रगति को समृद्ध करने के लिए ऊर्जा के सर्वाधिक लोकप्रिय रूप में सौर उर्जा से बिजली का उपयोग किया जाना तीव्र गति से बढ़ रहा है और चीन इस दिशा मे अपने सौर ऊर्जा उद्योग के निर्माण में अपनी पूरी ताकत से लगा है। चीन संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक सौर पैनल स्थापित कर चुका हैं। भारत भी वैश्विक सौर क्रांति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है और वर्तमान में सौर ऊर्जा क्षमता में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है।

हाल के वर्षों में उद्योग में सौर परियोजनाओं को लेकर खासी वृद्धि देखी गई है, जो एक स्थायी ऊर्जा के रूप में भविष्य के लिए बेहतर विकल्प बनता नजर रहा है। कई वैश्विक रिपोर्ट से पता चलता है कि सौर ऊर्जा सिर्फ एक विकल्प नहीं बल्कि एक वैश्विक आवश्यकता बनती जा रही है। दरअसल आर्थिक और तकनीकी प्रगति से इतर देखा जाये तो, सौर ऊर्जा पर्यावरणीय लाभों के नजरिए से भी काफी लाभकारी हैं। सौर पैनल अपने कम पारिस्थितिक प्रभाव और न्यूनतम कार्बन पदचिह्न के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता हैं। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण से वायु और जल प्रदूषण में कमी आती है, जिससे एक स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण को बढ़ावा मिलता है। 

चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना है सौर उर्जा पैनल

चीन इस समय अपने सौर ऊर्जा उद्योग के निर्माण में अपनी पूरी ताकत से लगा है। देखा जाये तो संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक सौर पैनल स्थापित कर चुका हैं। यही नहीं इसने अपने द्वारा बेचे जाने वाले पैनलों के थोक मूल्य में लगभग आधी कटौती कर दी जिससे पूरी तरह से असेंबल किए गए सौर पैनलों का इसका निर्यात 38 प्रतिशत बढ़ चुका है। चीन की विधायिका के वार्षिक सत्र में, प्रधान मंत्री ली कियांग की इस घोषणा के बाद कि देश सौर पैनल फार्मों के साथ-साथ पवन और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में तेजी लाएगा, लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से हाल-बेहाल चीन के लिए मुख्य रूप से सौर ऊर्जा पर खर्च में वृद्धि करना, उभरती प्रौद्योगिकियों के नजरिये से एक बड़े दांव की आधारशिला का रखा जाना कीना गलत होगा। आप कह सकते है चीन में उद्योगों की इस नई तिकड़ी - सौर पैनल, इलेक्ट्रिक कार और लिथियम बैटरी - ने कपड़े, फर्नीचर और उपकरणों की की जगह ले ली है। दरअसल इसका एक लक्ष्य चीन के आवास निर्माण क्षेत्र में भारी मंदी को दूर करने में मदद करना भी है।

एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए निम्न कार्बन हरित विकास रोडमैप केस स्टडी के अनुसार सितंबर 2009 में सरकार ने ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए 2020 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से बिजली के साथ अपनी प्राथमिक ऊर्जा मांग का 15 प्रतिशत आपूर्ति करने का इरादा घोषित किया था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, नीति निर्माताओं ने यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में नवीकरणीय ऊर्जा विकास से सीखे गए सबक पर ध्यान दिया और विभिन्न नीतियों के माध्यम से विशेष रूप से घरेलू पवन ऊर्जा उत्पादन में तेजी लाने का निर्णय लिया। 2003 तक, चीन की पवन टरबाइनों की कुल क्षमता 0.56 गीगावॅट से थोड़ी अधिक थी, जो कुल चीनी ऊर्जा क्षमता का केवल 0.15 प्रतिशत थी। पवन ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने के लिए, सरकार ने 2003 में पवन ऊर्जा रियायत परियोजनाओं के लिए एक बाजार-उन्मुख नीति अपनाई, जिसमें वाणिज्यिक पवन फार्मों को भी संबोधित किया गया। राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) ने रियायती परियोजनाओं का प्रबंधन किया, जिसके लिए सार्वजनिक निविदा के माध्यम से निवेशकों का चयन किया गया। उत्पादित पवन बिजली प्रांतीय ग्रिड कंपनियों द्वारा बोली प्रक्रिया के माध्यम से खरीदी गई थी। इस नए दृष्टिकोण के साथ, चीन में एक स्थिर घरेलू बाज़ार का निर्माण शुरू हो गया।

चीन में बिजली की कम कीमतें उद्योग के लिए एक बड़ा सहारा

यूरोपीय आयोग की एक शोध इकाई ने जनवरी में एक रिपोर्ट में गणना की थी कि चीनी कंपनियां 16 से 18.9 सेंट प्रति वाट उत्पादन क्षमता के हिसाब से सौर पैनल बना सकती हैं। इसके विपरीत, यूरोपीय कंपनियों को इसकी लागत 24.3 से 30 सेंट प्रति वाट और अमेरिकी कंपनियों को लगभग 28 सेंट पड़ती है। अंतर आंशिक रूप से चीन में कम मजदूरी को दर्शाता है। चीनी शहरों ने सौर पैनल कारखानों के लिए बाजार मूल्य से बहुत कम कीमत पर जमीन भी उपलब्ध कराई है। राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों ने कम ब्याज दरों पर भारी ऋण दिया है, भले ही सौर कंपनियों को पैसा खोना पड़ा और कुछ दिवालिया हो गईं और चीनी कंपनियों ने यह पता लगा लिया है कि सस्ते में कारखानों का निर्माण और उपकरण कैसे किया जाए। सौर पैनलों के लिए मुख्य कच्चे माल, पॉलीसिलिकॉन के निर्माण के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। सौर पैनलों को आम तौर पर उन्हें बनाने के लिए आवश्यक बिजली की भरपाई के लिए कम से कम सात महीने तक बिजली पैदा करनी होगी। हालांकि कोयला चीन की दो तिहाई बिजली कम लागत पर प्रदान करता है। लेकिन चीनी कंपनियाँ पश्चिमी चीन के रेगिस्तानों में सौर फ़ार्म स्थापित करके लागत को और कम कर रही हैं, जहाँ सार्वजनिक भूमि अनिवार्य रूप से मुफ़्त है।

भारत भी अपने सौर पैनल को लेकर कम प्रोत्साहित नहीं

एनर्जी थिंक टैंक एम्बर म्उइमत द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत ने वर्ष 2023 की पहली छमाही में सौर ऊर्जा उत्पादन में हुई वैश्विक वृद्धि में यूरोपीय संघ के समान, 12 प्रतिशत का योगदान दिया है। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 की पहली छमाही में सौर ऊर्जा से 5.5 प्रतिशत वैश्विक बिजली का उत्पादन हुआ, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि से 16 प्रतिशत (104 टेरावॉट आवर्स)) की बढ़ोतरी है। भारत की 26 प्रतिशत (12 टेरावॉट आवर्स)) की सौर ऊर्जा वृद्धि वैश्विक औसत से अधिक थी, और इसने इसी अवधि में देश में बढ़ी मांग के आधे भाग को बिजली की आपूर्ति की। 50 देशों ने वर्ष 2023 की पहली छमाही में सौर ऊर्जा उत्पादन के नए मासिक रिकॉर्ड बनाए, जिसमें मई माह में भारत भी शामिल रहा। वर्ष 2023 की पहली संपूर्ण छमाही में, भारत ने अपनी 7.1 प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा से उत्पन्न की। एंबर के भारतीय विश्लेषक नेशविन रोड्रिग्स के अनुसार भारत सौर ऊर्जा में प्रमुख वैश्विक पक्ष बनने की क्षमता रखता है। रिन्यूबल एनर्जी क्षमताएं भारत में उत्सर्जन वृद्धि को धीमा करने का काम कर रही हैं, जिससे दुनिया को बिजली क्षेत्र के उत्सर्जनों में एक समान स्तर पर लाने में मदद मिल रही है।

सौर ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करने वाली एक और महत्वपूर्ण पहल सौर पार्क योजना है , जिसे 2025-26 तक 38 गीगावॉट की संचयी क्षमता के साथ 500 मेगावाट और उससे अधिक के 50 सौर पार्क स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये सौर पार्क सौर ऊर्जा उत्पादन के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, निवेश आकर्षित करते हैं और सौर ऊर्जा विकास के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देते हैं। वे बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था हासिल करने, सौर ऊर्जा को अधिक किफायती और सुलभ बनाने में सहायक हैं। इस योजना के तहत, अब तक 8521 मेगावाट की कुल क्षमता वाले 11 सौर पार्क पूरे हो चुके हैं, और 3985 मेगावाट की कुल क्षमता वाले 7 सौर पार्क आंशिक रूप से पूरे हो चुके हैं। इन पार्कों में कुल 10,237 मेगावाट क्षमता की सौर परियोजनाएं विकसित की गई हैं।

भारत केवल एक दर्शक के रूप में नहीं बल्कि वैश्विक सौर क्रांति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में खड़ा है। भारत वर्तमान में सौर ऊर्जा क्षमता में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है। पिछले पांच वर्षों में, देश की सौर स्थापित क्षमता में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है, जो 2023 में 21,651 मेगावाट से बढ़कर 70,096 मेगावाट हो गया है उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और नीतियों के साथ, भारत 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिए खुद को प्रेरित कर रहा है। भारत की प्रतिबद्धता केवल टिकाऊ ऊर्जा के प्रति नहीं है, बल्कि पूरे ग्रह के लिए एक हरित कल को सुरक्षित करने के प्रति है।

सौर उर्जा में भारत-चीन की स्थिति पर एक नजर

औद्योगिक प्रगति को समृद्ध करने के लिए ऊर्जा का सर्वाधिक लोकप्रिय तरीका सौर उर्जा के जरिए सस्ती बिजली का उपयोग किया जाना है। आधुनिक विद्युत ऊर्जा प्रणाली एक इंटरकनेक्टेड नेटवर्क है जो विकसित देशों की सबसे बड़ी जरूरत के रूप में उभर रही है। भारत स्वंय इस दिशा में चीन से आगे निकलने के अपने प्रयास में एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। ब्लूमबर्गएनईएफ द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका चीन संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने से भारतीय सौर उत्पादकों के लिए एक अवसर पैदा हुआ है। भारत द्वारा पिछले साल के पहले 11 महीनों में अमेरिका को लगभग 2 बिलियन डॉलर मूल्य के पैनल निर्यात किए, जो 2022 की तुलना में पांच गुना अधिक है। बीएनईएफ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल के पहले 11 महीनों में अमेरिकी सौर आयात की मात्रा में भारतीय उत्पादों की हिस्सेदारी 9.3 प्रतिशत थी, जो 2022 में 1.9 प्रतिशत थी। आंकड़ों से पता चलता है कि 2023 के पहले 11 महीनों में आयात बढ़कर 4.4 गीगावाट -लगभग 11 मिलियन पैनल - हो गया, जो 2022 में 0.6 गीगावाट से अधिक है। हालांकि चीन दुनिया के 80 प्रतिशत से अधिक पॉलीसिलिकॉन का उत्पादन करता है, जिसका उपयोग सौर पैनल बनाने के लिए किया जाता है, और चीनी कंपनियां लगभग 98: सभी सिल्लियां और वेफर्स बनाती हैं। बीएनईएफ के अनुसार, चीन की लगभग एक-तिहाई पॉलीसिलिकॉन क्षमता झिंजियांग में है। पॉलीसिलिकॉन सिलिकॉन का शुद्ध रूप है और सौर फोटोवोल्टेइक की आपूर्ति श्रृंखला में एक आवश्यक तत्व है, जो सौर ऊर्जा का उपयोग करता है। दुनिया का लगभग 80 प्रतिशत पॉलीसिलिकॉन चीन से आता है। यही नहीं अधिकांश इलेक्ट्रिक वाहनों और अधिकांश पवन ऊर्जा जनरेटरों में उपयोग की जाने वाली बैटरियों के लिए दुर्लभ पृथ्वी नियोडिमियम की आवश्यकता होती है। चूँकि दुनिया के दुर्लभ पृथ्वी निर्यात का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा चीन का है, तो एक तरह से देखें तो पश्चिम का तकनीकी भविष्य चीन के हाथों में सौंप दिया है जिसे विशेषज्ञों की राय में पश्चिमी व्यवसायों और सरकारों के लिए एक सुंदर तस्वीर नहीं कहा जा सकता है।

सस्ते आयातित सोलर पैनल की वजह से पूरे विश्व में भारत में सौर ऊर्जा की दरें सबसे कम हैं। इतना ही नहीं, इसके कारण ऊर्जा सुरक्षा और भू-राजनीतिक सरोकार भी बढ़ गया है। वैसे तो भारत में प्रति वर्ष 3 गीगावॉट सोलर फोटोवोल्टिक बैटरी और 10 गीगावॉट फोटोवोल्टिक मॉड्यूल के उत्पादन की क्षमता है लेकिन भारत में पॉलीसिलिकॉन, वेफर या धातु खंड के उत्पादन की क्षमता नहीं है। इसके लिए उसकी चीन पर निर्भरता उसे एक कदम पीछे कर देती है। हालांकि स्वयं के पॉलीसिलिकॉन निर्माण के लिए कुछ भारतीय कंपनियां काम कर रही है।

निष्कर्ष

निश्चित तौर पर सौर उर्जा भारत-चीन दोनों के भविष्य के लिए बेहद लाभकारी है। इस नजरिये से दोनों देशों के उद्योग क्षेत्र और प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं को देखते हुए एक दूसरे का समर्थन जुटाने के लिए एक विविध दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी। अच्छी तरह से संरेखित नीतियों का एक मजबूत सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, लेकिन नीतिगत अनिश्चितता घरेलू विनिर्माण क्षेत्र में निवेश और विकास में देरी करेगी या उसे रोक देगी। सफल होने पर, नौकरी में पर्याप्त वृद्धि होगी और सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के बाहर कई घरेलू उद्योगों को लाभ होगा, जिसमें सेमीकंडक्टर विनिर्माण और इलेक्ट्रिक वाहन और ऊर्जा भंडारण जैसे उद्योग शामिल होंगे, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रतिस्पर्धात्मकता और रोजगार में और सुधार होगा। यही नहीं पृथ्वी ग्रह के लिए यह हरित क्रांति लाने का सुनहरा अवसर है, बशर्ते प्रत्येक राष्ट्र अपनी-अपनी प्रतिबद्धता के प्रति समयबद्ध और एक मंशा से काम करें।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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