चीन से टक्कर लेने के लिए भारत पिछले दो दशकों से अपने विनिर्माण क्षेत्र में व्यापक सुधार लाने हेतु प्रयासरत हैं। फिर भी चीन की तुलना में विनिर्माण क्षेत्र में तेजी और रोजगार में सहवर्ती वृद्धि भारत को अभी तक नहीं मिल पाई है। एक आकलनः-

भारत में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यालय के पूर्व प्रमुख जोश फेलमैन का मानना है कि निश्चित तौर पर भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन रही है। लेकिन अभी इसमें तेजी से बढ़ता तकनीकी क्षेत्र और संघर्षरत पुरानी अर्थव्यवस्था दोनों शामिल हैं, जो सभी के लिए पर्याप्त नौकरियां प्रदान नहीं कर पा रहा। विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश का वैश्विक विनिर्माण में 3 प्रतिशत  से भी कम हिस्सा होता है, जबकि चीन का यह 24 प्रतिशत है। रॉयटर्स द्वारा देखे गए एक आंतरिक दस्तावेज़ के अनुसार, सरकार की योजना वैश्विक विनिर्माण में भारत की हिस्सेदारी को 2030 तक 5 प्रतिशत और 2047 तक 10 प्रतिशत तक बढ़ाने की है। वर्तमान में चीन अगर विनिर्माण और बुनियादी ढाँचे में मज़बूत है तो भारत सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में। दोनों में तेल, कोयला और लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती भूख है। यही भूख इन दोनों के बीच आपस में जमकर प्रतिस्पर्धा को जारी रखे हुए हैं।

 

भारत विदेशी निवेशकों के मुख्य आकर्षण का केन्द्र बन रहा

पिछले पाँच वर्षों में, वैश्विक विनिर्माण परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। कोविड-19 से संबंधित व्यवधानों और बढ़ते अमेरिकी-चीन तनाव के कारण एप्पल और अन्य बहुराष्ट्रीय निगम दुनिया भर काकारखानाकहे जाने वाले चीन से अपने व्यापारिकजोखिम कम करनेकी कोशिश में लग गये। ये वे कंपनिया है जो चीन को पूरी तरह से छोड़ना भी नहीं चाहते और देश में अपनी उपस्थिति को कम करके जोखिम को कम करने के लिए सक्रिय उपाय करना चाहते है। उदाहरण के तौर पर, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा 2023 में सर्वेक्षण किए गए 90 प्रतिशत से अधिक उत्तरी अमेरिकी निर्माताओं ने अपना कुछ या सभी उत्पादन चीन से दूर कर दिया था, जिसके फलस्वरूप मेक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम जैसे नए उत्पादन केंद्र उभर के आये

बिजनेस एनवायरनमेंट रैंकिंग पर नजर डाले तो यह अच्छी खबर है कि, 17 एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में भारत 2023-27 पूर्वानुमान अवधि में 10वें स्थान पर है। चीन की तरफ से बढ़ते जोखिमों के कारण भारत कई कंपनियों के लिए एक आकर्षक विकल्प के रूप में उभर रहा है और देश का बड़ा घरेलू बाजार, श्रम की प्रचुरता, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकारी नीतियाँ में सुधार और अर्थव्यवस्था का विशाल आकार इन जैसे घटक  जिम्मेदार है, जो प्रोत्साहन और सब्सिडी, अनुसंधान और विकास और बुनियादी ढाँचे के निर्माण में निवेश की अनुमति देता है। भारत की अर्थव्यवस्था का आकार इसके विशाल घरेलू बाजार से लाभ उठाने की चाहत रखने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने में एक चुंबक की तरह काम करता है। उदाहरण के लिए, 2022 में, एप्पल ने आईफोन 14 पर उत्पादन अंतराल को कम करने के लिए भारत में अपने विनिर्माण आधार का विस्तार करने का फैसला किया। तब एप्पल के आईफोन के मुख्य निर्माता फॉक्सकोन ने कर्नाटक राज्य में इसकी असेंबली इकाइयाँ स्थापित की हैं।

एक बड़े घरेलू बाज़ार के साथ-साथ 1.4 बिलियन की आबादी और दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति के कारण, भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की बाज़ार मांग में काफ़ी वृद्धि होने की संभावना को दरकिनार नहीं किया जा सकता है, ऐसे में अपने निर्मित उत्पादों के लिए तैयार बाज़ार की तलाश कर रही कंपनियों के लिए भारत एक आकर्षक स्थल बनता नजर रहा है। मॉर्गन स्टेनली द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट की भविष्यवाणी के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए भारत का घरेलू बाज़ार निरंतर उपभोक्ता मांग से प्रेरित होगा और 2032 तक यह 92 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। इसी कारण से कई सरकारें तकनीकी निर्माण मेंचीन के बादका दर्जा हासिल करने की होड़ में हैं और भारत इसके लिए उपयुक्त जगह बन रहा है

 

चीन की उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि भारत के लिए ख़तरनाक?

अभी तक तो सीमा-विवाद के बावजूद दोनों ही देश अपने पुराने सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को भी पुनर्जीवित करते नजर आते रहे है। और यह स्थिति दो पड़ोसियों के बीच गहरे विवाद को उपजने से रोकने के लिए बेहतर है। किंतु यह भी एक कड़ुआ सत्य है कि चीन और भारत के बीच व्यवहारिक-व्यक्तिगत सामंजस्यता के बावजूद आपसी व्यापारिक प्रतिद्वंद्धिता भी किसी से छुपी नहीं हैं और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि चीन की उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि भारत के लिए ख़तरनाक भी हो सकती है, जो लगभग हर पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक संकेतक पर अपने पड़ोसी से पीछे ही है। कुछ पारंपरिक-सांस्कृतिक समरसताओं के बावजूद दोनों देश भू-रणनैतिक कारणों से एक दूसरे की मित्रता को संदेह से परे देख नहीं पाते। इस मुत्तालिक कई पश्चिमी, कुछ चीनी और कुछ भारतीय शिक्षाविदों-सलाहकारों का मानना है कि दोनों ही देश एशिया की निर्विवाद महाशक्ति बनने की होड़ में हैं। यह भी सत्य है कि वे एक-दूसरे के इरादों को लेकर सशंकित भी रहते है। ऐसे में दोनों का सहयोगी बन पाना मुश्किल है।

इसके विपरीत, भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन चीन के साथ तुलना करने के खिलाफ चेतावनी देते हुए एक साक्षात्कार में कहते है, कि चीन की अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है। लेकिन भारत की विकास क्षमता, इसकी युवा आबादी, बुनियादी ढाँचे का निर्माण और इसके मध्यम वर्ग को 800 मिलियन लोगों तक विस्तारित करने की क्षमता विदेशी निवेशकों के लिए एक स्पष्ट मूल्य प्रस्ताव का प्रतिनिधित्व करती है और यह उनके लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। यह केवल लागत प्रतिस्पर्धात्मकता नहीं है, यह बाज़ार, आर्थिक लाभ उत्पन्न करने की क्षमता, कानून का शासन और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के संबंध में नीतियों की स्थिरता भी है जो आपके पैसे को अपेक्षाकृत आसानी से वापस ला सकते हैं।

पर रघुराम राजन, जो भारत के केंद्रीय बैंक के पूर्व प्रमुख, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और अब शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं, उनका मानना है कि भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश के शानदार अवसर को गंवा रहा है। युवाओं की बहुतायत के इस विशाल आर्थिक लाभ के बावजूद, श्रम बल में आने वाले इन युवा बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है। अच्छे रोजगार के अवसरों की कमी के कारण, भारत के कुलीन इंजीनियरिंग स्कूलों के कुछ सबसे प्रतिभाशाली स्नातक विदेश चले जाते हैं। उनके अनुसार चीन और कई अन्य देशों के विनिर्माण-आधारित मार्ग पर चलकर अधिक धन कमाने की कोशिश करने की वर्तमान सरकार की रणनीति काम नहीं कर रही है।

 

दुनिया के सबसे बड़े विकास चालक के रूप में दिखता भारत

ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के विश्लेषण के अनुसार, भारत 2028 तक जीडीपी वृद्धि में दुनिया का नंबर 1 योगदानकर्ता बन सकता है। 1970 के दशक के उत्तरार्ध में सुधारों के बाद, जिसने अपनी अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया, चीन की वृद्धि तीन दशकों तक औसतन 10 प्रतिशत प्रति वर्ष रही। जिससे विदेशी पूंजी के लिए यह एक चुंबक सा काम करने लगा और इसी कारण से इसे विश्व मंच पर अधिक प्रभावशाली बना दिया। यह जरूरी हो गया कि हर बड़ी वैश्विक कंपनी के पास चीन की रणनीति होनी ही चाहिए। लेकिन चीन के विस्तार का तथाकथित चमत्कारिक चरण अब अतीत की बात हो गई है क्योंकि संपत्ति संकट आपूर्ति श्रृंखलाओं के अपने प्रभुत्व और संवेदनशील प्रौद्योगिकियों में प्रगति पर बढ़ती पश्चिमी चिंताओं के साथ यह जुड़ गया है। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के बेस केस परिदृश्य में, भारत की अर्थव्यवस्था दशक के अंत तक 9 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, जबकि चीन 3.5 प्रतिशत तक धीमा हो जाएगा। इससे भारत 2028 तक दुनिया के सबसे बड़े विकास चालक के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा। सबसे निराशावादी परिदृश्य में भी, अगले पांच वर्षों के लिए आईएमएफ के अनुमानों के अनुरूप जिसमें विकास 6.5 प्रतिशत से नीचे रहता है, भारत 2037 में चीन के योगदान से आगे निकल जाएगा।

हालांकि चीन का सकल घरेलू उत्पाद निश्चित रूप से भारत की तुलना में अभी भी बहुत बड़ा है। संभवतः यह एक पुरानी योजना का परिणाम है। 1980 के दशक की शुरुआत में, चीन ने अपने दक्षिण-पूर्वी तट पर विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित किए। फिर भूमि सुधार चीन के विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि का अग्रदूत रहा। सिंगापुर प्रबंधन विश्वविद्यालय में चीनी व्यापार विशेषज्ञ हेनरी गाओ ने कहा कि 1970 के दशक की शुरुआत में, बीजिंग ने स्वामित्व को उपयोग के अधिकारों से अलग कर दिया, जिससे निवेशकों के लिए औद्योगिक भूमि हासिल करना आसान हो गया। इससे बीजिंग की औद्योगिक झोंनिंग नीतियों ने उद्योगों को उन क्षेत्रों में स्थापित करना आसान बना दिया, जहाँ सामग्री और सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध थीं। लेकिन आाज भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि की गति चीन से आगे निकल रही है। टिम कुक ने भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और इसकी बहुत बड़ी, युवा और तकनीक-प्रेमी आबादी को देश के बारे में उत्साहित होने के प्रमुख कारणों के रूप में उद्धृत किया। यह तकनीक-प्रेमी एक अन्य कारक में परिलक्षित होता है जिसे विदेशी निवेशक आकर्षित होते है।

हाल के वर्षों में भारत सरकार ने अपने कौशल भारत मिशन के तहत कई कौशल-विकास कार्यक्रम और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र शुरू करके इस अंतर को पाटने की कोशिश की है। सरकार ने 2024 में दावा किया था कि मिशन ने 14 मिलियन युवाओं को प्रशिक्षित किया है और 5.4 मिलियन लोगों कोअपस्किल्डया री-स्किल्ड किया है। किंतु इससे यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के उपायों से तकनीक-निर्माण उत्पादन में कितनी वृद्धि हो पाई। फिर भी विशेषज्ञों के अध्ययन पर गौर किया जाये तो चीनी विनिर्माण के विकल्प के तौर पर भारत और वियतनाम विदेशी निवेशकों और कंपनियों के लिए आकर्षक विनिर्माण केन्द्र हैं। वियतनाम अभी भी 2023 के निर्यात में $96.99 बिलियन के साथ बहुत आगे है, जबकि भारत का $75.65 बिलियन है। वियतनाम इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है।

 

निष्कर्ष

भारत 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि यह अपने बुनियादी ढांचे को परिवर्तित कर मजबूत करें। शिपमेंट और सड़क मार्ग जैसे डिलीवरी प्रोसेस को त्वरित और आधुनिक प्रक्रिया से और काबिल करे। भारत अभी भी चीन से बुनियादी ढांचे के मामले में 10 साल पीछे है। इसलिए देश को यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है जिससे बुनियादी ढांचे के निर्माण में आगे तो नहीं, पर कम से कम बराबरी से टक्कर तो दे सके। इससे यकीनन भारत की आर्थिक वृद्धि वैश्विक औसत से ही आगे नहीं बढ़ेगी बल्कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में भी हिस्सेदारी बढ़ेगी। वैश्विक शेयर बाजार पूंजीकरण में भी हिस्सेदारी बढ़ने से घरेलू कंपनियों के लिए नये अवसर खुलेंगे। चीन के विकल्प के तौर पर तैयार होने के लिए भारत को पूरे दमखम के साथ सकारात्मक निवेशक भावना के साथ मिल रहे अवसरों का प्रभावी ढंग से दोहन करना ही होगा।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

Subscribe now to our newsletter !

Get a daily dose of local and national news from China, top trends in Chinese social media and what it means for India and the region at large.

Please enter your name.
Looks good.
Please enter a valid email address.
Looks good.
Please accept the terms to continue.