अनुमान आधारित सकारात्मकता के साथ लक्ष्य पर निगाह
शहरी रोज़गार में 0.2ः की वार्षिक कमी दिखने से चीनी मंत्रालय इस दिशा में किये जा रहे प्रयास से उल्लसित है। 2024 की पहली छमाही में 6.98 मिलियन नौकरियाँ को जोड़ बेरोज़गारी दर को 5.5ः पर लेकर आने का ये चीनी प्रयास चीनी युवाओं के लिए को किस हद तक चीनी अर्थव्यवस्था के लिए कारगर हो सकेगा, ये देखना होगा।
चीन के मानव संसाधन और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय के अनुसार, जून में देश की सर्वेक्षण की गई शहरी बेरोज़गारी दर पाँच प्रतिशत थी, जबकि रोज़गार की स्थिति सामान्य रूप से स्थिर रही। एक अनुमान के अनुसार यह वृद्धि वर्ष की दूसरी छमाही में भी जारी रहेगी, जो अनुकूल नीतियाँ बनाने के लिए चीन की प्रतिबद्धता को दिखाती है। ये सकारात्मक रुझान निरंतर आर्थिक पुनरुद्धार, बढ़ती सेवा खपत और नई सामग्री और उच्च-अंत उपकरणों जैसे उन्नत विनिर्माण क्षेत्रों के विस्तार के कारण ही संभव हो सका। हालांकि मंत्रालय अपनी रिर्पोर्ट में जटिल अंतरराष्ट्रीय माहौल, घटती घरेलू मांग और परिचालन दबाव जैसी बाधाओं को भी रेखांकित करना नहीं भूला। वह यह भी मान रहा है कि किस तरह कुछ उद्योगों को रोजगार उपलब्ध कराने में चीनी मंत्रालय को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। मानव संसाधन और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय के अधीन चाइना एकेडमी ऑफ पर्सनेल साइंसेज की पिछले साल की एक रिपोर्ट के अनुसार, लाइव स्ट्रीमिंग शॉर्ट वीडियो के नए उद्योग ने ऑनलाइन मार्केटर्स और रिक्रूटर्स सहित 174 नए व्यवसायों को जन्म दिया। नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के उप निदेशक शेंग लाइयुन ने अप्रैल माह में अपनी एक ब्रीफिंग में कहा था कि अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है और समग्र रोजगार की स्थिति भी पहले से बेहतर नजर आ रही है। ब्यूरो के अनुसार, चीन ने गत वर्ष में शहरी क्षेत्रों में 12 मिलियन से अधिक नौकरियाँ जोड़ीं। उनके कथनानुसार इस साल भी इसी तरह की वृद्धि का पूर्वाअनुमान है।
बेरोजगारी सुधारने के चीनी प्रयासों के बावजूद चीन की वस्तुस्थिति सुनहरे भविष्य से इतर नजर आती है। अधिक मृत्यु दर और कम जन्म दर के कारण युवा चीनी महिलाओं को नौकरी पाने या बनाए रखने में आज भी अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि समाज और नियोक्ता उन्हें काम पर रखने के लिए अनिच्छुक रहते हैं। पारंपरिक चीनी सोच उन्हें नौकरी के बजाय घर पर रहने और बच्चों को पालने के लिए अधिक प्रेरित करती हैं। पहले 1 बच्चे की नीति और फिर अधिक बच्चा पैदा करने की सोच आज के चीनी युवाओं को बगावती बना रही। वे मैरिज जैसी संस्था और बच्चे पैदा करने जैसी जकड़न भरे जीवन से देर रहना चाहते है। कोई दो राय नहीं कि इस तरह की स्थितियां चीनी उत्पादकता और विकास पर आने वाले समय में नकारात्मक प्रभाव से स्वंय को बचा न सकेगी।
बेरोजगारी दर का पूर्वानुमान सकारात्मकता तस्वीर से अभी दूर
2017 में, चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने देश में बेरोज़गारी का जो सर्वेक्षण पेश किया था। वह चीन के शहरी क्षेत्रों में श्रम शक्ति के बीच मासिक सर्वेक्षणों पर आधारित रहा। सर्वेक्षण में बेरोज़गारी ने पंजीकृत बेरोज़गारी के आँकड़ों की जगह ले ली, जिनकी अक्सर सही तस्वीर पेश नहीं करने के लिए आलोचना की जाती रही। वर्तमान बेरोज़गारी के आँकड़ों में अभी भी ग्रामीण क्षेत्र को शामिल नहीं करना चीन सरकार की दोहरी मानसिकता का प्रदर्शन करता हैं। सच तो यह है कि चीन की वर्तमान रोज़गार स्थिति में एक मुख्य चिंता बड़े क्षेत्रीय अंतरों में निहित नजर आती है। सर्वेक्षण के हिसाब से चीन के पूर्वात्तर क्षेत्रों में 2021 तक बेरोज़गारी दर चीन के दक्षिणी भागों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से अधिक थी, जो लगभग 3.2 प्रतिशत आंकी गई थी। हेइलोंगजियांग प्रांत के शहरी क्षेत्रों में 2022 में बेरोज़गारी दर लगभग 3.2 प्रतिशत थी। इसी वर्ष से चीन का मानव संसाधन और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय पंजीकृत बेरोज़गारी के आँकड़ों को प्रकाशित न कर बेरोज़गारी पर डेटा एकत्र करने के लिए सर्वेक्षण पद्धति पर स्विच कर रहा है। इस वजह से वह सभी प्रांतों के लिए वर्तमान क्षेत्रीय डेटा अभी तक प्रकाशित नहीं कर पा रहा है। जनवरी 2024 में, चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने 14.9 प्रतिशत की युवा बेरोज़गारी दर की रिपोर्ट की, जो तृतीयक स्नातकों की अधिक आपूर्ति और उन्हें समायोजित करने में असमर्थ सीमित सेवा क्षेत्र के बीच संरचनात्मक विसंगति को उजागर करता है। दिसंबर 2023 में युवा बेरोज़गारी दर 14.9 प्रतिशत थी। बीजिंग ने साल-दर-साल लगातार वृद्धि के बाद अगस्त 2023 में ये डेटा जारी करना स्थगित कर दिया, जो अंततः जून 2023 में 21.3 प्रतिशत के आधिकारिक रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था।
कई अन्य कारणों से भी इस क्षेत्र में चीनी युवाओं को आकर्षित करने की अक्षमता बढ़ गई है। चीन की कोविड-19 लॉकडाउन नीतियों ने छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों को तबाह कर दिया, जो 2020 से पहले कुल शहरी रोजगार का लगभग दो तिहाई हिस्सा हुआ करते थे। महामारी से पहले प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था, स्कूल के बाद ट्यूशन और रियल एस्टेट विकास में व्यवसायों ने बड़ी संख्या में स्नातकों को काम पर बनाये रखा था। लेकिन 2020 से विनियामक सख्ती और घरेलू आर्थिक मंदी के कारण, तीनों उद्योगों में बहुत ज्यादा संकुचन का अनुभव हुआ, जिससे नियोजित स्नातकों की संख्या सीमित होकर रह गई और छंटनी की वजहें बढ़ गई। राष्ट्रीय सुरक्षा और चल रहे भू-राजनीतिक तनाव के नाम पर विदेशी व्यवसायों पर पड़ते छापों ने विदेशी फर्मों और निवेशकों को डरा दिया है, जिससे चीनी बाजार से बड़े पैमाने पर निकासी हुई है। इन सभी बातों ने व्हाइट-कॉलर पदों को उत्पन्न करने में कमी को बढ़ावा दे दिया है, ठीक उसी समय जबकि उनकी मांग बढ़ गई।
सामाजिक प्रतिष्ठा का पारंपरिक पैमाना एक बड़ी रूकावट
चीन में अभी भी एक व्यापक धारणा है कि शैक्षणिक योग्यता एक अच्छी नौकरी के लिए एक सुरक्षित मार्ग है। हालाँकि, जैसे-जैसे आबादी अधिक शिक्षित होती जा रही है, वैसे-वैसे श्रम बाजार में युवाओं की अपेक्षाओं और उपलब्ध नौकरियों के बीच एक अंतर बढ़ता जा रहा है। ब्लू-कॉलर श्रमिकों और कुशल फैक्ट्री श्रमिकों की अब कमी है, फिर भी कई स्नातक कारखानों या अन्य उद्योगों में काम करने के लिए अनिच्छुक हैं। दरअसल चीन में शिक्षा को लेकर कन्फ्यूशियस के आदर्शों का अनुकरण किया जाता है, जिसमें अपने दिमाग से काम करने वालों को सामाजिक रूप से उन लोगों से ऊपर स्थान दिया जाता है जो अपने हाथों से काम करते हैं। यही कारण है कि तेजी से बाजारीकृत होती अर्थव्यवस्था में, कई चीनी लोग व्यावसायिक काम को अब असुरक्षित मानते हैं। व्यावसायिक शिक्षा को निम्नतर और अकादमिक रूप से खराब प्रदर्शन करने वाले लोगों को मात्र एक विकल्प के रूप में देखा जाना युवा चीनी छात्रों पर विश्वविद्यालय योग्यता प्राप्त करने का अतिरिक्त दबाव बना रहा है।
चीन में व्यवसायिक शिक्षा को शैक्षिक पदानुक्रम के निचले पायदान पर रखा गया है, जो ‘कम अच्छे’ अकादमिक रिकॉर्ड वाले ‘बचे हुए’ छात्रों को शामिल करता है। कन्फ्यूशियन सिद्धांत [ कन्फ्यूशियस सिद्धांत प्राचीन काल के चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की नैतिक और नैतिक शिक्षाओं को संदर्भित करते हैं। ये सिद्धांत पितृभक्ति, अधिकार के प्रति सम्मान और सामाजिक सद्भाव जैसे गुणों पर जोर देते हैं] के विशेषज्ञों ने, ‘विशेषाधिकार प्राप्त अन्य’ के रूप में, परीक्षा प्रणाली के माध्यम से जो अपनी ताकत से काम करते हैं’ और ‘जो अपने दिमाग से काम करते हैं’ की सामाजिक रैंक निर्धारित की है। संस्थागत तर्क सिद्धांत के इन विचारों की विरासत ने समकालीन चीनी समाज में व्यवसायों और व्यावसायिक शिक्षा की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
हालिया अध्ययन सत्र की टिप्पणियों में शी जिनपिंग भीचीन के नौकरी बाजार में कौशल बेमेल पर अपनी चिंता जाहिर करते नजर आये। उन्होंने ऐसे आधुनिक और उच्च-गुणवत्ता वाले कार्यबल को पर्याप्त मात्रा में बढ़ाने पर जोर दिया जो अनुकूलित संरचना में उचित रूप से देश के कार्यक्षेत्रों में समान रूप से वितरित हो सके।
चीन के युवा श्रम बाजार में बढ़ते सुस्ती के कारण
देश की कामकाजी उम्र की आबादी घट रही है उस पर युवा बेरोजगारी पर दिखता असर लंबे समय तक बने रहने की संभावना से इंकार नहीं करता। ईआईयू के विश्लेषकों ने चीन 2024 आउटलुक रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट रूप से इंगित किया है कि चीन के श्रम बाजार में समग्र रूप से उछाल के बावजूद, सबसे बड़ा सुधार मध्यम आयु वर्ग के समूहों और प्रवासी श्रमिकों पर केंद्रित है। इसके विपरीत, कोविड के बाद की रिकवरी ने युवा श्रम बाजार में सुस्ती को कम नहीं किया। नए स्नातकों में बढ़ोत्तरी होने के साथ-साथ नए रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि नहीं हो पाने से स्थिति की भयावहता ने चीनी युवाओं को निराश किया। फिर श्रम की अधिक आपूर्ति के बीच नए कर्मचारियों को कम वेतन दिया जाना, चीन में नौकरियों की संख्या के लिए एक और खतरे का संकेत दे रहा है। चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के मासिक आंकड़ों के अनुसार, छात्रों को छोड़कर, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में 16 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं के लिए बेरोजगारी दर दिसंबर में 14.9ः थी। इसकी तुलना उसी महीने के चीन की व्यापक शहरी बेरोजगारी दर 5.1ः से की जाती है।
दरअसल युवा चीनी श्रमिकों से नियोक्ता की मांगें बहुत अधिक हैं। श्रमिकों से नियमित रूप से 9-9-6 यानी सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक और सप्ताह में छह दिन काम करने की अपेक्षा की जाती है। कम वेतन पर घंटों तक काम का मानसिक दबाव झेलते, चीनी युवा लोग इससे बाहर निकलने का विकल्प के तौर पर आराम की जिंदगी चुन रहे हैं जिसमें निष्क्रिय रहना और काम नहीं करना या किसी भी आर्थिक गतिविधि में शामिल नहीं होना जैसी बातें देखने में आ रही है। परिणामस्वरूप काम में होने वाला बर्नआउट युवाओं के बीच बढ़ती बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण हो रहा है। सामान्य आर्थिक मंदी और विशेष रूप से संपत्ति और आवास बाजार के पतन ने भी भर्ती में मंदी ला दी है और जो नौकरियां नए श्रम बाजार में प्रवेश करने वालों के लिए सबसे उपयुक्त हो सकती हैं, वे ही सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं। दूसरी ओर कुछ पारंपरिक चीनी माता-पिता अपने बच्चों के लिए सिविल सेवा में ही रोज़गार चाहते हैं। सिविल सेवकों को आमतौर पर मिलने वाली बेहतर चिकित्सा बीमा, तरजीही पेंशन योजना, लगातार बोनस भुगतान और सुरक्षित आजीवन रोज़गार ही नहीं बल्कि इसलिए भी पसंद आती है क्योंकि वे ऐसी नौकरी पाने को वे राज्य द्वारा उत्कृष्टता की मान्यता के रूप में देखते हैं। यांग जियांग चीन की आर्थिक नीतियों के विद्वान हैं और डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं। वे हाल के वर्षों में आवेदकों की रिकार्ड संख्या में तेज़ी से हो रही वृद्धि से हैरान नहीं है। उनके अनुसार, इसका एक कारण नौकरी के बाजार में प्रवेश करने वाले चीनी स्नातकों की समान रूप से उच्च संख्या है। उनके अनुसार आवेदकों की इस उच्च संख्या का मुख्य कारण चीनी अर्थव्यवस्था है जबकि उनके अनुसार चीन में आर्थिक स्थिति अभी अनिश्चित है।
निष्कर्ष
इसमें कोई संदेह नहीं कि कोविड संकट से हुई हानि को स्वीकार करने में चीन सरकार विफल रही और फिर उससे उबरने के प्रयासों में सरकार की प्रतिक्रिया धीमी रही। युवाओं को काम पर रखने के लिए श्रम कानूनों और वित्तीय प्रोत्साहनों को लागू करने के अलावा व्यापक आर्थिक जोखिम और साथ ही दीर्घकालिक संरचनात्मक या सामाजिक चुनौतियों जैसे शिक्षा की प्रासंगिकता, तेजी से शहरीकरण और भावनात्मक मानसिक स्वास्थ्य आदि कुछ बातें युवाओं के दृष्टिकोण से भी चीनी सरकार को देखनी होगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन की बड़ी भूमिका है। इसके कमजोर होने से दुनिया भर में युवा श्रम बाजारों पर असर पड़ने की संभावना को आप नकार नहीं सकते।
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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