सैन्य वार्ता-सीमा समझौते की बात करना चीन का दोहरा चरित्र दिखाता है, तब जबकि वह सीना तान कर प्रत्यक्ष तौर पर भारत से लगती सीमाओं पर अपनी सैन्य बल की स्थिति को और मजबूत करता नजर आ रहा हो।

चीन और भारत के पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गत चार साल से अधिक समय से चल रहे सैन्य गतिरोध को समाप्त करने, विशेष रूप से डेमचोक और देपसांग से सैनिकों को हटाने की बातचीत किसी निर्णय तक न पहंुच पाने से दोनों देशों के बीच भूराजनैतिक संबंधों में ठहराव की सी स्थिति बनी हुई है। गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी तट, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे क्षेत्रों में बफर जोन के साथ कुछ समाधान जरूर देखने को मिला है। चीनी विदेश मंत्रालय के दावे के अनुसार पूर्वी लद्दाख में चार स्थानों पर सैनिकों ने वापसी कर ली है, जिसमें गलवान घाटी भी शामिल है। उनका कहना है सीमाओं पर फिलहाल स्थिति स्थिर है। इस तात्कालिक असर की वजह ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य वांग यी से एनएसए अजीत डोभाल की भेंट को बताया जा रहा। इस संबंध में वांग यी का मानना है कि अशांत विश्व का सामना करते हुए, दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को एक दूसरे को और नुकसान पहुंचाए बगैर आपस में एकता और सहयोग का चयन करना चाहिए। बात सुनने में फीलगुड का अहसास कराती है बशर्ते यह यूं ही बनी रहे तो और मुकम्मल हो।

जहां तक देपसांग मैदान और डेमचोक की बात है ये फिलहाल अभी तक विरासत के मुद्दे बने हुए हैं, जो एक नरम माहौल में नतीजे की बाट जोह रहे। हालांकि  बिक्स सम्मेलन 2024 में दोनों देशों के प्रतिनिधियों की भेंट के बाद एक बार फिर उम्मीद की किरण नजर तो आयी है। चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग शियाओगांग गत माह एक मीडिया ब्रीफिंग में इस बात  का यकीन दिलाते नज़र आये कि दोनों पक्षों ने एक दूसरे को स्वीकार्य एक प्रारंभिक तिथि पर समाधान तक पहुंचने पर सहमति व्यक्त कर ली है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर चीन के साथ विघटन की समस्याओं में से लगभग 75 प्रतिशत सुलझ जाने को ही इतिश्री नहीं मानते जबकि “असली बड़ा मुद्दा” सीमा पर चीन का बढ़ता सैन्यीकरण भारत के लिए एक बड़ी चिंता का सबब बन रहा हो।  

 

बढ़ते तनाव की वजहें रख रही एक दूसरे पर संदेह की नज़र 

सैन्य स्तर की वार्ता के बावजूद सीमा पर तनाव जारी रहना दो बड़े पड़ोसी देशों के लिए चिंता का विषय रहा है, जिसका फायदा अक्सर शत्रु पक्ष उठाता है। दोंनो देशों के बीच बढ़ते तनाव ने यह मौका उन्हें दिया भी। दिसंबर 2022 में भारत के पूर्वी छोर अरुणाचल प्रदेश राज्य के तवांग सेक्टर के पास सैनिकों के बीच झड़प हुई जिसमें कुछ सैनिकों को मामूली चोटें आईं। लेकिन गलवान घाटी की लड़ाई तो 1975 के बाद से दोनों पक्षों के बीच हुई पहली घातक झड़प थी, जिसने अपनी सारी हदें पार कर दी। बंदूकों की जगह यह लड़ाई डंडों से लड़ी गई, जिसमें कम से कम 20 भारतीय और उनके सिर्फ चार चीनी सैनिक मारे गए। हालांकि ऑस्ट्रेलिया के एक अख़बार ‘द क्लैक्सन’ ने चीन के इन आंकड़ों को गलत बताया। उनकी अपनी  खोजी रिपोर्ट में दावा किया है कि चीन की तरफ़ से अपने सैनिकों का जो आंकड़ा बताया गया था वह उससे 9 गुना ज़्यादा था। इस लड़ाई में कम-से-कम 38 पीएलए जवानों की मौत हुई थी। सोशल मीडिया रिसर्चर्स के ग्रुप के अनुसार चीन को हुआ नुकसान चार सैनिकों की मौत के बीजिंग के दावे से कहीं ज्यादा बड़ा था। एएनआई के मुताबिक़,’ द क्लैक्सन’ के पास चीनी मीडिया की तरफ़ से जारी लड़ाई के फ़ुटेज हैं, जो रिपोर्ट के दावों का समर्थन करते दिखते हैं। रिपोर्ट में रिसर्चर्स के हवाले से यह भी बताया गया कि 15 जून का ख़ूनी संघर्ष एक अस्थायी पुल को लेकर छिड़ा था, जिसे भारतीय सैनिकों ने 22 मई को गलवान नदी के एक सिरे पर खड़ा किया था।

जनवरी 2021 में एक और आमना-सामना हुआ जिसमें दोनों पक्षों के ही सैनिक घायल हो गए। यह सामना भारत के सिक्किम राज्य के पास, भूटान और नेपाल के बीच हुआ। चीन ने भारत पर अपने सैनिकों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया। तो भारत ने भी चीन पर हवा में फायरिंग करने का आरोप लगाया। जबकि 1996 के एक समझौते के तहत सीमा के पास बंदूकों और विस्फोटकों के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी।  दोनों देशों के बीच फिलहाल अब तक एक ही बड़ा युद्ध हुआ है, 1962 में। इस युद्ध में भारत को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि भारत की मंशा तनाव से पैदा हो रहे बढते जोखिम को नकारने की नहीं है। तनाव कभी भी विनाशकारी शक्ल अख़्तियार कर सकता है। हमे भूलना नहीं चाहिए कि दोनों पक्ष स्थापित परमाणु शक्तियाँ हैं। पर्यवेक्षकों का मानना है इसलिए एकमात्र रास्ता बातचीत से ही समाधान निकाल आगे बढ़ने का है, क्योंकि अगर युद्ध हुआ तो दोनों देशों को बहुत कुछ खोना पड़ सकता है। आर्थिक गिरावट तो होगी ही क्योंकि चीन और भारत एक दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है।

चीन भारतीय सैनिकों पर विवादित हिमालयी सीमा को अवैध रूप से पार करने और गश्त कर रहे सैनिकों पर चेतावनी गोलियां चलाने का आरोप लगाता आया है। उनकी सेना का कहना है कि भारतीय सेना ने उसके सैनिकों को जवाबी कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया। हालांकि भारत इस तरह के आरोपों को खारिज करता आया है। उसका कहना है इन आरोपों से इतर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ही ऊंचाई वाले लद्दाख क्षेत्र में एक अग्रिम भारतीय स्थिति के पास जाने की कोशिश कर भारतीय सैनिकों को डराने के प्रयास में हवा में कुछ राउंड फायर करता रहा है। सीमा से आते इस तरह के समाचारों ने ही हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच संबंधों को खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। 

 

जमीनी असलियत से परे है द्विपक्षीय समझौतों की हकीक़त 

1962 के युद्ध के बाद से, दोनों देशों ने स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए विश्वास निर्माण उपायों (सीबीएम) के रूप में कई विभिन्न द्विपक्षीय समझौते किए, जिनमें बहुचर्चित 1996 का समझौता और एलएसी के पास बंदूकों का उपयोग न करने का समझौता भी है। यूएन पीसमेकर वेबसाइट (इंटरनेट पर यह पेज अब उपलब्ध नहीं) के अनुसार, यह समझौता सीमा अभ्यास के दौरान सैन्य प्रकटीकरण और सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य स्तर में कमी की अनुमति देता है। यह आमंत्रण पर एक-दूसरे के क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों का निरीक्षण करने की भी अनुमति देता है। इस समझौते में, दोनों पक्ष पारस्परिक रूप से, भौगोलिक क्षेत्रों के भीतर अपने सैन्य बलों को कम करने या सीमित करने पर भी सहमत हुए थे।

लेखिका लैनी झांग, लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस ब्लॉग में इन समझौते की कड़ी रखती है, जिनके अनुसार, 1996 के बाद चीन-भारत सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास-निर्माण उपायों के कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर एक और प्रोटोकॉल 11 अप्रैल, 2005 को नई दिल्ली में हस्ताक्षरित हुआ। यह प्रोटोकॉल पिछले समझौतों को लागू करने का प्रयास था जो सैनिकों की आवाजाही के बारे में सूचनाओं के आदान-प्रदान और सीमा मुद्दों पर द्विवार्षिक बैठकों के संचालन के लिए प्रक्रियाओं सहित विश्वास निर्माण उपायों को लागू करने के तौर-तरीकों पर सहमत हुआ। इसमें राजनयिक चैनलों के माध्यम से किसी भी समझौते के उल्लंघन या स्पष्टीकरण की आवश्यकता को हल करने के लिए भी सहमति व्यक्त की गई। साथ ही इस समझौते में यह भी व्यक्त था है कि दोनों पक्ष शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण परामर्श के माध्यम से सीमा प्रश्न को हल करेंगे। 17 जनवरी, 2012 को नई दिल्ली में हस्ताक्षरित एक और समझौते में दोनों पक्ष भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखने से संबंधित, महत्वपूर्ण सीमा मामलों से निपटने के लिए डब्ल्यूएमसीसी की स्थापना करने पर सहमत हुए। 23 अक्टूबर, 2013 में एक बार फिर भारत और चीन के बीच सीमा रक्षा सहयोग समझौता बीजिंग में हस्ताक्षरित हुआ। 10-अनुच्छेदों वाले इस समझौते में विवादित सीमा पर दोनों देशों के बीच गलतफहमी को कम करने और संचार को बेहतर बनाने के लिए कई तंत्रों का उल्लेख है।

 

चीन की लगातार बढ़ती सैन्य क्षमता भारत के लिए चिंताजनक

अभी तक के समझौतों को देखें तो सैन्य वार्ता-सीमा समझौते की बात करना चीन का दोहरा चरित्र दिखाता है। अभी के ताजा हालातों में इन समझौतों की अनदेखी भारत से लगती सीमाओं पर देखी जा सकती है जहां वह अपनी सैन्य बल की स्थिति को और मजबूत करता नजर आ रहा है। पिछले एक दशक चीन लगातार अपने सैन्य साज सामानों, सैन्य आवागमन, सैन्य अभ्यास के बुनियादी ढांचे में भारी निवेश करता नजर आ रहा है। अब वह जिस तेजी से तिब्बत में हेलिपैड का निर्माण कर रहा है, वह उसके आक्रामक रफतार लेते सैन्य विस्तार को दर्शा रहा है। तक्षशिला इंस्टिट्यूशन की एक रिसर्च के अनुसार चीन भारत और भूटान के साथ लगती सीमा के पास हेलीकॉप्टर बेस का जाल बिछा रहा है। एलएसी से 5 किलोमीटर, 10 किलोमीटर, 25 किलोमीटर, 50 किलोमीटर, 100 किलोमीटर और 200 किलोमीटर की दूरी पर हेलीपैड और हवाई अड्डे बनाए है। इस रिसर्च में लगभग 109 हेलीपैड का अध्ययन किया गया है। इनमें से केवल दो हेलीपैड 780 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर हैं। 32 हेलीपैड 2700 से 3600 मीटर, 44 हेलीपैड 3700 से 4300 मीटर और 25 हेलीपैड 4400 से 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। छह हेलीपैड 4800 से 5400 मीटर की ऊंचाई पर है।

बेंगलुरु स्थित तक्षशिला इंस्टिट्यूशन में भूस्थानिक अनुसंधान कार्यक्रम के प्रमुख प्रोफेसर वाई नित्यानंदम की अगुवाई में हुई इस रिसर्च रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पहले ऊंचाई वाले इलाकों में हेलीकॉप्टर उड़ाना चीन की कमजोरी मानी जाती थी, लेकिन अब वह इस कमी को तेजी से दूर कर रहा है। चीन अपनी सैन्य रणनीति के तहत हेलीपैड के साथ-साथ हवाई पट्टियों का भी विस्तार कर रहा है। वह 1,000 मीटर से कम लंबाई वाली हवाई पट्टियों को मानवरहित विमानों (यूएवी) के लिए इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है। निश्चित तौर से इतना भारी निवेश एक सोची-समझी भावी रणनीति का ही हिस्सा कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य ऐसे क्षेत्र में दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करना है जहां भौगोलिक परिस्थितियां और ऊंचाई पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के सैनिकों के लिए गंभीर चुनौती पेश करती हैं।

 

निष्कर्ष

भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर पर 22वें दौर की सैन्य वार्ता पर सबकी उम्मीद टिकी है, जिसमें आपसी सहमति के आधार पर दोनों पक्षों की ओर से सैनिकों की तैनाती की समय-सीमा और तौर-तरीकों को तय किया जाना है। यह एक अच्छी पहल है। यह भी सुखद समाचार है कि वर्तमान में एलएसी पर तैनात सैनिक अलर्ट जरूर है पर वे टकराव से बचने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन कब तक? ये सवाल अभी अपनी जगह बना ही हुआ है। इसलिए बहुत जरूरी है कि आपस के हितों का विचार कर भूराजनैतिक कारणों को थोड़ा सा मानवीय दृष्टिकोण से भी सोच कर वार्ता को सफल ही बनाने की कोशिश की जाये।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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