चीन में जन्म दर लगातार निचले स्तर पर रिकार्ड की जा रही है, जबकि एशियाई दिग्गज भारत इस समय दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। दूसरे साल जारी कम जन्म दर, बढ़ती उम्र की आबादी और बढ़ते आर्थिक दबाव के संकट चीन में प्रीस्कूल संस्थानों को बंद करने के लिए मजबूर हो रहे है।

चीन की एंजेसियों से जारी हालिया रिर्पोटों से पता चलता है कि जनसांख्यिकीय बदलावों के चलते किंडरगार्टन की संख्या और उनमें नामांकन की दर में भारी गिरावट आई है। जिसकी वजह से हजारों प्रसिद्ध किंडरगार्टन बंद कर दिए गए हैं। चीनी शिक्षा मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार तो 2023 में किंडरगार्टन की संख्या 14,808 से घटकर 274,400 रह गई है। हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट चीनी मंत्रालय की रिपोर्ट के हवाले से बताती है कि किंडरगार्टन में नामांकित बच्चों की संख्या में लगातार तीसरे साल गिरावट के कारण- पिछले साल की तुलना में 11.55 प्रतिशत या 5.35 मिलियन की गिरावट के साथ यह संख्या 40.9 मिलियन हो गई है। पोस्ट प्राथमिक विद्यालयों की संख्या भी 2023 में 5,645 घटकर 143,500 रह गई, जो 3.8 प्रतिशत की गिरावट दिखा रही है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में किंडरगार्टन को वरिष्ठ नागरिकों के लिए देखभाल केंद्रों में बदल दिया गया है और उनके कई कर्मचारियों ने बुजुर्गों की देखभाल के लिए अपनी नौकरी बदल रहे।


2021 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के आंकड़ों से बता रहे है कि चीन में शिशुओं और छोटे बच्चों वाले 30 प्रतिशत से अधिक चीनी परिवारों को बाल देखभाल की आवश्यकता है, बावजूद इसके केवल 5.5 प्रतिशत ने ही अपने बच्चों को नर्सरी या प्री-किंडरगार्टन में दाखिला दिलाया। इन आंकडों को देखते हुए चीन का चिंतित होना लाजिमी है। संभवतः इसलिए चीन सिकुड़ती और बूढ़ी होती आबादी को देखते हुए एक नई नीति पर काम कर रहा है जिसमंे शादी करना तो आसान बने लेकिन तलाक लेना कठिन हो। हालांकि इस तरह की नीतियों से नई पीढ़ी को आकृष्ट कर पाना मुश्किल होगा तब जबकि वह विवाह बंधन में बंधना ही न चाहती हो और उस पर तलाक पर नियम भी कठोर बना दिये जाये। 


जनसांख्यिकी से छेड़छाड़ चीन को अब पड़ रही भारी


सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के आंकड़ों को देखा जाये तो चीन की 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की आबादी 2023 के अंत तक 300 मिलियन के करीब पहुंच गई। अनुमान है कि यह 2035 तक 400 मिलियन से अधिक हो जाएगी और 2050 तक 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी। 2021 की जनगणना बताती है कि चीन में जन्म दर 1960 के दशक के बाद से सबसे कम स्तर पर आ गई है, जिसके कारण जन्म नियंत्रण नीतियों को समाप्त करने की मांग की जा रही है। हालांकि कुछ चीनी नागरिकों का कहना है कि ये नीतियाँ ही एकमात्र ऐसी चीज़ नहीं हैं जो उन्हें गर्भधारण करने से रोक रही हैं। दो साल से विवाहित, बीजिंग निवासी लिली जो 31 साल की हैं, बच्चे के पालन-पोषण से जुड़ी निरंतर बनी रहने वाली चिंताओं से दूर अपना जीवन जीना चाहती है। लिली के जिन साथियों के बच्चे है, उनकी तुलना में जिन साथियों के बच्चे नहीं है, वे ज्यादा खुश और जी भर के जीवन को जी रहे है। यही फर्क लिली को शादी से दूर रहने की हिदायत देता है। 


इस संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा इसलिए भी है क्योंकि नीति में ढील के साथ पारिवारिक जीवन को सहारा देने वाले अन्य बदलाव नहीं आए, जैसे कि शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता या चाइल्डकेअर सुविधाओं तक पहुँच का सुलभ होना। निरन्तर बढ़ते खर्च के बीच बहुत से लोग बच्चों की परवरिश का खर्च नहीं उठा पा रहे। डॉ. म्यू मानते है कि बच्चे पैदा करने में लोगों की अनिच्छा बच्चे पैदा करने की प्रक्रिया में नहीं, बल्कि उसके बाद की प्रक्रिया में निहित है। अब इसे मात्र जीवन में शादी करने और बच्चे पैदा करने जैसे पारंपरिक मानदंडों से ही परिभाषित नहीं किया जाता है। दरअसल अब यह व्यक्तिगत विकास के बारे में अधिक हो गया है।

अधिकांश लोग चीन के गंभीर जनसांख्यिकीय संकट का कारण दशकों पुरानी एक-बच्चा नीति को मानते हैं, जिसे 2016 में समाप्त कर चीन सरकार द्वारा सभी जोड़ों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी गई थी। यह नीति दूरगामी प्रभाव डालने में विफल रही, इसलिए चीन ने 2021 में जनसंख्या नीति में एक बार फिर संशोधन किया, जिसके तहत लोगों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति मिल गई। पर इस नीति का भी कोई दरगामी असर फिलहाल अभी तक देखने को नहीं मिला। विस्कॉन्सिन-मेडिसन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉक्टर यी फ़ुक्सियान मानते है कि चीन की जनसंख्या की गिरावट का असर दुनिया के दूसरे हिस्सों पर बुरी तरह से पड़ सकता है। चूंकि दुनिया के अधिकतर उद्योग चीन पर निर्भर हैं। जनसंख्या में गिरावट का असर इस मामले में बहुत बड़ा कारक बन सकता है। हॉगकॉग स्थित पेंशन फंड स्टर्लिंग फाइनेंस लिमिटेड के चेयरमैन स्टुअर्ट लैकी के अनुसार यह भविष्य में चीन के लिए सबसे बड़ी समस्या होगी। यदि ऐसी ही स्थिति रही तब चीन की आबादी 2029 में 1 अरब 44 करोड़ के चरम पर पहुंचकर गिरावट के दौर में प्रवेश करेगी। चीनी सोशल साइंस अकादमी से जारी रिपोर्ट का कहना है, देश नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि के दौर में प्रवेश करेगा। 2065 में आबादी एक बार फिर 1990 जैसी हो जाएगी जिससे घरेलू मांग में गिरावट आएगी और आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ेगी। यह बात विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर नहीं है।


चीन में विवाह पंजीकरण में गिरावट के पीछे है कई कारण


चीन के लिए एक बड़ी चिंता का कारण विवाह दर में गिरावट आ रही गिरावट है और यह 2014 से लगातार नीचे जा रही है। जनसांख्यिकी विशेषज्ञ हे याफू ने ग्लोबल टाइम्स के हवाले से कहते है कि महामारी प्रतिबंधों में ढील के बाद दबी हुई मांग के कारण 2023 में थोड़ी वृद्धिदेखी गई थी, लेकिन 2024 में तो यह दर 1980 के बाद से सबसे कम होने की संभावना है। विवाह पंजीकरण में गिरावट के कारणों में युवा लोगों की संख्या में कमी, विवाह योग्य आबादी में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की अधिक संख्या, विवाह की उच्च लागत और बदलते दृष्टिकोण शामिल हैं। उनके अनुसार लंबे समय में चीन की जन्म दर में गिरावट की प्रवृत्ति को मौलिक रूप से बदलना तब तक मुश्किल होगा जब तक कि इस चुनौती से निपटने के लिए भविष्य में पर्याप्त प्रसव सहायता नीतियां लागू नहीं की जातीं। 
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर की प्रोफ़ेसर डॉक्टर मु झेंग मानती है कि ऐसी ही पस्थितियों ने शादी का बाज़ार बिगाड दिया है, ख़ासकर उन लोगों के लिए परेशानी बढ़ गई  जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं। चीन में 2013 के बाद से ही विवाहों के रजिस्ट्रेशन में हर साल गिरावट आ रही है। 2006 के बाद हर वर्ष तलाक की संख्या बढ़ी है। इधर, अकेले लोगों ने अपनी आजादी का आनंद उठाना शुरू कर दिया है। चीन में 11 नवंबर को सिंगल्स डे मनाया जा रहा हैं। 2018 में 30.8 अरब डॉलर की बिक्री के साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा शॉपिंग डे बन गया है। चीन के केंद्रीय बैंक के शोधकर्ताओं ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोधपत्र में कहा, जन्म के समय उदारीकरण को महत्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ निवासी अभी भी बच्चे पैदा करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते हैं। कुछ विशेषज्ञ इस मुत्तालिक सावधानी से कदम उठाने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं, क्योंकि इस संबंध में शहरी निवासियों और ग्रामीण लोगों के बीच भारी असमानता को देखा गया हैं। बीजिंग और शंघाई जैसे महंगे शहरों में रहने वाली महिलाएं बच्चे पैदा करने में देरी करना या उसे टालना चाहती हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाएं अभी भी परंपरा का पालन करती हैं और बड़े परिवार बनाना चाहती हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति भारत में भी देखने को मिलती है। बड़े शहरों की कामकाजी और आत्मनिर्भर महिलाएं या तो बच्चे ही पैदा नहीं करना चाहती या फिर 1 के बाद दूसरा बच्चा नहीं चाहती। जबकि गांव देहात या पिछड़े भारतीय इलाकों में अभी भी कम से कम दो बच्चे पैदा करने की चाहत लोगों में बनी हुई है। दरअसल काम का बढ़ता तनाव, नौकरी में अनिश्चिंता का भाव, बढ़ती लागत, नई जिम्मेदारी बढ़ाने से नई पीढ़ी को रोक रहा है। फिर चाहे वह भारत हो या फिर चीन, दोनों देशों के युवा इस मामले में एक ही सोच रखते है। फिर भी बहुधर्मीय भारत में विवाह और संतान उत्पति को आज भी पीढ़ी और पारिवारिक संस्कार के रूप में महत्व दिये जाने से यह परंपरा कम होने के बावजूद भविष्य में बनी रहेगी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।


नागरिकों को उत्साहित करने के लिए चीनी प्रयास जारी है


अधिक बच्चे पैदा करने के लिए सरकार ने 2021 में नीति को संशोधित किया, जिसके बाद प्रति परिवार तीन बच्चे तक की अनुमति तो मिल गई। लेकिन बढ़ती लागतों के कारण जोड़ों की अधिक बच्चे पैदा करने की अनिच्छा को दूर करना भी चीनी सरकार के लिए जरूरी था। इसके लिए उपाय पर काम भी किया गया, जैसे पहले पेंशन और वृद्धावस्था देखभाल की लागत बढ़ाई गई और फिर पुरुषों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 63 वर्ष और महिला कार्यालय कर्मचारियों की आयु 55 से बढ़ाकर 58 वर्ष कर दी। इन नीतियों का  मिलाजुला असर सोशल मीडिया में देखने को मिला। लेकिन इससे इस बात का भरोसा चीन सरकार को नहीं मिल सका कि लोग चीन की सामाजिक-सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय चिंता को दूर करने को लेकर उत्साहित है। इसके अतिरिक्त चीन के सिविल अफेयर्स यूनिवर्सिटी ने विवाह से संबंधित उद्योगों और संस्कृति को विकसित करने के लिए एक नए स्नातक विवाह कार्यक्रम की घोषणा भी किया लेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने इसका बहुत मजाक उड़ाया। कई लोगों ने तो विवाह दरों में गिरावट के कारणों पर न जाकर, इस तरह के पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर सवाल तक खड़ा कर व्यक्तिगत सोच सरोकारों पर सेंध करना माना।


राज्य परिषद ने बच्चे पैदा करने के लिए सम्मान, सही उम्र में विवाह और बच्चों की देखभाल के लिए माता-पिता की साझा जिम्मेदारी को बढ़ावा देकर एक नई शादी और बच्चे पैदा करने की संस्कृति बनाने के प्रयासों का आह्वान भी किया है। प्रस्तावित उपायों में बेहतर मातृत्व बीमा, मातृत्व अवकाश, बच्चों के लिए सब्सिडी और चिकित्सा संसाधन शामिल हैं। कैबिनेट ने स्थानीय सरकारों से चाइल्डकेयर केंद्रों के लिए बजट बनाने और ऐसी सेवाओं के लिए अधिमान्य कर और शुल्क लगाने का आग्रह किया है। झोंगताई सिक्योरिटीज रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य नीति विश्लेषक यांग चांग का मानना है कि  ऐसी घोषणा भविष्य के उपायों के लिए एक टेम्पलेट के रूप में काम करेगी। इससे 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं की संख्या में कमी आने की संभावना है, और बच्चे पैदा करने की इच्छा में जल्द ही वृद्धि होने की उम्मीद नहीं है, इसलिए जन्म दर में गिरावट की प्रवृत्ति को उलटने में मदद करने के लिए नीतिगत समर्थन महत्वपूर्ण था। चीनी सरकार द्वारा स्थानीय अधिकारियों से आवास और रोजगार के बोझ को कम करने में सहायता करने के लिए की गई गुहार से श्रमिकों के बीच गर्भवती महिलाओं और नई माताओं के लिए सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। इससे कई बच्चों वाले परिवारों को घर खरीदने के लिए अधिक सहायता प्रदान करना भी शामिल है। मंत्रिमंडल द्वारा युवा लोगों के लिए दोस्त बनाने, डेट करने और शादी करने के लिए गैर-वाणिज्यिक प्लेटफ़ॉर्म स्थापित करना जैसी नीतियां जन्म दर को प्रोत्साहित करने के लिए एक बेहतर तरीका साबित हो सकता है।

 

निष्कर्ष


यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि इस वक्त दोहरे संकट का सामना करता चीन एक तरफ जहां जन्म दर और प्रजनन दर में गिरावट वहीं दूसरी तरफ वृद्धों की आबादी में तेजी से हो रही वृद्धि से चिंतित है। फिर भी वह अपनी नीतियाों को घरेलू मामले में कारगर नहीं बना पा रहा। विश्व को चीनी विकास के चमत्कारिक प्रयोग से भौंचक करने वाला चीन अगर चीनियों की भावी पीढ़ी के प्रति और उनके भविष्य को लेकर समय रहते सजग न हुआ तो बुजुर्ग कंधों पर चीनी विकास और उसकी धरोेहरों को संभाल पाना उसके लिए नामुमकिन होगा। 

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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