दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए, अगले कुछ दशक प्रौद्योगिकी और वैश्विक विकास द्वारा प्रस्तुत अवसरों के संदर्भ में उत्साहजनक साबित हो सकते हैं, लेकिन निरंतर जोखिमों के कारण उथल-पुथल भरे भी हो सकते हैं, जैसे कि एक अपरिवर्तित और अस्थिर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे द्वारा उत्पन्न जोखिम को फेस करना। हालांकि इस मुत्तालिक सभी देशों के नीति निर्माताओं द्वारा अभी तक सब कुछ सही तौर से नहीं किया है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वे सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। साउथ ईस्ट एशिया की कंपनियाँ बड़ी मात्रा में और अपने बेहतर रूप में आगे बढ़ रही हैं, जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं को नई चुनौतियों के लिए लचीले और प्रभावी ढंग से समायोजित करने में मदद मिल रही है। एक अनुमान के आधार पर ये दावा किया जा रहा है कि 2025 में दक्षिण पूर्व एशिया की कुल इंटरनेट अर्थव्यवस्था 194 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 330 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकती है।
भूरणनीति को देखे तो भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देश आपस में इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस, ब्रुनेई, थाईलैंड, म्यांमार, फिलीपींस, कंबोडिया, सिंगापुर और मलेशिया भूमि और समुद्री दोनों सीमाओं को साझा करते हैं। आप इन्हें सभ्यतागत साझेदार कह सकते हैं। विश्व जीडीपी का 7 प्रतिशत और विश्व जनसंख्या का 26 प्रतिशत हिस्सा ये आपस में साझा करते हैं। कह सकते है कि आज दक्षिण-पूर्व एशिया दुनिया की सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में विकसित हो गया है।
दक्षिण-पूर्व एशिया के वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अत्यधिक एकीकृत बने रहने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता और इस वैश्विक वित्तीय प्रवाह के निरंतर संपर्क से दो चुनौतियाँ सामने आ सकती है। एक, वित्तीय बाज़ार में तनाव का बढ़ना। ये बाजार कभी-कभी झटके और प्रत्यक्ष संकटों के अधीन होते हैं। इस समस्या की जड़ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचना में अधिक देखी गई। पर वहीं कुछ कुछ संकटों में सुधार होने से वैश्विक वित्तीय प्रणाली को मजबूत करने में मदद भी मिली है। बावजूद इन सुधारों के आने वाले समय में दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य जगहों पर उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएँ बड़े और अस्थिर पूंजी प्रवाह से प्रभावित होती रहेगीं। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि क्षेत्रीय मुद्राओं में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव मौद्रिक नीति निर्माण को जटिल बनाते हैं और व्यवसायों के लिए अनिश्चितता पैदा करते हैं। लेकिन अन्य समय में, पूंजी प्रवाह बहुत अधिक अस्थिर हो सकता है, जिससे मुद्रा, इक्विटी और बॉन्ड बाजारों में घबराहट पैदा हो सकती है, जिसका आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
विशेषज्ञों की राय में 2025 में अध्यक्षता ब्राजील के पास आने के बाद, गतिशीलता के कुछ हद तक विकसित होने की उम्मीद है। जैसा कि एक अधिकारी ने रूस के कज़ान ब्रिक्स बैठक के बाद आसियान वोंक को बताया कि एक अत्यधिक संकीर्ण चीन-रूस लेंस इस वास्तविकता को अनदेखा करते है कि ब्रिक्स की जटिल गतिशीलता इस संक्षिप्त नाम के अन्य अक्षरों के बारे में भी है।
चीन की प्रमुखता आर्थिक रणनीति और भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडे पर
9 दिसंबर को 2025 की प्रमुख प्राथमिकताओं को रेखांकित करने के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा की गई बैठक में महासचिव शी जिनपिंग की अध्यक्षता में, 14वीं पंचवर्षीय योजना की प्रगति पर नज़र रखने पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा आने वाले वर्ष में आर्थिक, शासन और भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए आगे की रणनीति बनाई गई। 2025 के लिए आर्थिक नियोजन में शी जिनपिंग के शासन के तहत स्थिरता और प्रगति पर जोर दिया जा रहा है, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाले विकास को बढ़ावा देना, घरेलू मांग का विस्तार, रियल एस्टेट और शेयर बाजारों को स्थिर करना और तकनीकी और औद्योगिक नवाचार को बढ़ावा देना आदि शामिल है। देश का लक्ष्य शहरी-ग्रामीण एकीकरण विकसित करना है, साथ ही हरित विकास और गरीबी उन्मूलन पर अपना ध्यान केंद्रित करना है।
इस वार्ता में भ्रष्टाचार से निपटने और सख्त शासन को बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया। अनुशासन निरीक्षण नीतियों और पर्यवेक्षण तंत्रों की शुरूआत भ्रष्टाचार विरोधी प्रथाओं को लागू करने और नागरिकों को प्रभावित करने वाले कदाचार को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करेगी, जिससे शासन के सभी स्तरों पर ईमानदारी सुनिश्चित होगी। कुल मिलाकर चीनी नेता शी जिनपिंग की इस बैठक का मतलब चीन को भीतरी बाहरी दोनों मोर्चो पर, दक्षिण पूर्व एशिया के एक महान और शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित करना चाह रहे। हालांकि 2024 में उनका समय भीतरी समस्याओं से दो-चार होने बीता। नये नागरिक कानूनों ने जनता में रोष भी उत्पन्न किया। रोजगार के लॉलीपाप, रिटायरमेंट की समयावधि बढ़ाने की नीतियों के जरिए उसे उसे भरने की कोशिश में चीनी नेता को जनता का सहयोग मिला भी और नहीं भी।
घरेलू माहौल से जुझते चीनी नेता विदेश नीति के जरिए अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयास करते रहे। ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन के प्रोफेसर पैड्रेग कार्माेडी के द्वारा बीबीसी को दी गई अपनी टिप्पणी के अनुसार, ब्रिक्स के ज़रिए चीन अपनी शक्ति और प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, ख़ास तौर पर अफ्रीका में वह वैश्विक दक्षिण की अग्रणी आवाज़ बनना चाहता है। समूह की अन्य प्रमुख विश्व शक्ति का उद्देश्य अलग है।
2025 में दक्षिण पूर्व में सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता नज़र आयेगा भारत
इस वर्ष भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति की दसवीं वर्षगांठ मना रहा है, जिसने भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को नई ऊर्जा, दिशा और गति दी है। दक्षिण पूर्व एशिया में ग्यारह देश शामिल हैं जो पूर्वी भारत से चीन तक फैले हैं, और आम तौर पर मुख्य भूमि - म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम और द्वीप - मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ब्रूनेई और पूर्वी तिमोर का नया राष्ट्र (पूर्व में इंडोनेशिया का हिस्सा), क्षेत्रों में विभाजित है। हालांकि गौर करें तो पिछले दो वर्षों से आसियान भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में, सिंगापुर भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का एक प्रमुख स्रोत और बाहरी वाणिज्यिक उधार और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है।
कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने द्विपक्षीय बिजली व्यापार नेटवर्क का तेजी से विस्तार कर रहा भारत दरअसल दक्षिण-पूर्व एशियाई समूहों के साथ मिलकर काम करने में गहरी दिलचस्पी रखता है ताकि छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों के बढ़ते उपयोग के साथ हरित ऊर्जा संक्रमण के लिए एक क्षेत्रीय नीति ढांचा तैयार किया जा सके। भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश व्यापार सुविधा और एकीकरण को बढ़ाने और एमएसएमई और स्टार्ट-अप के विकास को बढ़ावा देने के लिए सिंगल विंडो प्लेटफॉर्म पर सहयोग की संभावना तलाश रहे हैं। उच्च संभावनाएं प्रदान करने वाले क्षेत्र फार्मास्यूटिकल्स, स्वास्थ्य, डिजिटल और ई-कॉमर्स, वित्तीय और समुद्री सुरक्षा हैं।
एईपी ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी का सांस्कृतिक घटक साझा ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों का लाभ उठाकर भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देषों के साथ संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के पुनरुद्धार जैसी परियोजनाओं के माध्यम से बौद्ध विरासत को बढ़ावा देना शामिल है, जो म्यांमार, थाईलैंड और कंबोडिया जैसे देशों के साथ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करता है और बौद्ध सर्किटों के पुनरुद्धार को बढ़ावा देने में भारत की सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता है। शैक्षिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जिसमें भारत आसियान छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है और आसियान-भारत सांस्कृतिक केंद्र के तहत आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय की स्थापना करता है। मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में भारतीय प्रवासी सांस्कृतिक पुल के रूप में कार्य करते हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करते हैं। इसके अतिरिक्त, योग कूटनीति ने प्रमुखता से अपनी जगह बनाई। दक्षिण-पूर्व एशिया के देषों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को अपनाने से भारत की सांस्कृतिक पहुंच उन तक और मजबूती से बढ़ गई है। एईपी का सांस्कृतिक घटक भारत की रणनीतिक और आर्थिक पहलों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह आपसी समझ को सुगम बनाता है और कूटनीतिक प्रयासों को मजबूत करता है।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कहलायेगा कि चीन अगर मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ना जारी रखेगा, तो भारत विनिर्माण के अधिकतर क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने की तरफ काम करेगा, जिससे इसके बुनियादी ढांचे और कारोबारी माहौल में सुधार होगा और इसके निर्माता अर्थव्यवस्थाओं का बेहतर तरीके से दोहन करने में सक्षम होंगे।
निष्कर्ष
दक्षिण-पूर्व एशिया का वक्त के साथ चुनौतियों का जवाब देने का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर देखा गया है। इसीलिए इस बात पर भरोसा करने के कईक कारणों की वजह से ये भी निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यह ऐसा करना आगे भी जारी रखेगा। चीन-भारत सहित अन्य देश अपनी पूर्व की खामियों से सीख लेकर विश्व के आगे एक मिसाल कायम करेगे, ऐसी ही नीति निर्माताओं से उम्मीद है।
Author
Rekha Pankaj
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.