भूरणनीतिक तापमान के बीच बढ़ते वैश्विक तापमान की चिंता
बढ़ते तापमान और लगातार होने वाले चरम मौसम के कारण आ रही आपदाएं मानव अस्तित्व पर सवाल खड़ा करने लगी है। सामने आ चुकी इन चुनौतियों के जवाब में, दुनिया समाधान की तलाश में लगी है जिसमें चीन का नवीनतम प्रस्ताव आर्थिक और सामाजिक विकास के सभी क्षेत्रों में हरित परिवर्तन को बढ़ावा देना सराहनीय है वही भारत में भी इस दिशा में लगातार किये जा रहे प्रयासों को कमतर नहीं कहा जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की हाल की रिपोर्ट से पता चलता है कि मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के लिए जिम्मेदार है और अनुमान है कि अगले 20 वर्षों में वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा या फिर उससे अधिक हो जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में मौसम के चरम प्रभाव लगातार देखने को मिल रहे हैं - भारत, अमेरिका और कनाडा के कुछ हिस्सों में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की लहरें, यूरोप, चीन और अमेरिका में भारी बारिश से बाढ़ का कहर, अफ्रीका में सूखा, आस्टेलिया कैलिफोर्निया और तुर्की के जंगलों में आग जैसी खबरों ने पृथ्वी की उबलती तस्वीर दिखाई।
यकीनन यह भयावह स्थिति वैश्विक नेताओं के लिए तत्काल कार्रवाई करने के लिए एक चेतावनी है, चाहे वह शुद्ध शून्य लक्ष्य हो या गहन डीकार्बानाइजेशन लक्ष्य। लगभग 137 देशों ने अब 2050 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसकी पुष्टि कार्बन तटस्थता गठबंधन के प्रति वचनबद्धताओं द्वारा की गई है। कार्बन तटस्थता, या शुद्ध शून्य का उद्देश्य वायुमंडल में नए उत्सर्जन को जोड़ना समाप्त करना है, जिससे ग्रह के साथ एक संतुलित लेन-देन के रिश्ते को बढ़ावा दिया जा सके।
इस संदर्भ में वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी चीन एक तरह से कहा जाये तो अब दुनिया में सबसे लंबे एक्सप्रेसवे माइलेज वाला देश बन स्वच्छ ऊर्जा सुविधाओं की बढ़ती संख्या के साथ-साथ अपने एक्सप्रेस वे को हरित क्रांति के दौर में परिवर्तित कर रहा हैं। उत्तरी चीन के शांक्सी प्रांत में ताइयुआन और शिनझोउ को जोड़ने वाले राजमार्ग के किनारे ढलानों और छतों पर फोटोवोल्टिक (पीवी) पैनलों का एक परावर्तक महासागर दिखाई देता है और ये सेवा क्षेत्रों और टोल स्टेशनों पर इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जिंग पाइल लगातार बढते जा़ रहे हैं। शिन्हुआ समाचार एजेंसी के अनुसार तो चीन ने जलवायु परिवर्तन से निपटने, हरित पट्टी के गठन तथा कम कार्बन विकास के दृढ़ मार्ग पर चलने की कसम ही खा ली है। 2030 से पहले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को चरम पर पहुंचाने और 2060 से पहले कार्बन तटस्थता हासिल करने के संकल्प ने चीन को वैश्विक ग्लोबल वार्मिग के प्रति सावधान कर दिया है।
हरित क्रांति पर चीन का बढ़ता जोर
पेरिस ओलंपिक के दौरान ग्लोबल वार्मिंग के साफ नजर आते प्रभाव को देखकर एक अमेरिकी मीडिया आउटलेट ने यहां तक लिख दिया कि ऐसा लगता है 2050 तक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक केवल दक्षिणी गोलार्ध की सर्दियों में ही आयोजित किए जा सकेगें। इसकी वजह होगी दुनिया के अधिकांश हिस्सों का ओलंपिक खेलों के आयोजन के लिए बहुत गर्म हो जाना। यकीनन तापमान में दिख रही ये बढ़ोत्तरी ही अब दुनिया भर को चेतावनी की तरह लग रही। इसीलिये चीन ने अपने नवीनतम प्रस्ताव में हरित परिवर्तन को बढ़ाना देने हेतु काम करना प्रारंभ कर दिया है। इस योजना का उद्देश्य डिजिटल और हरित समन्वित परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बड़े डेटा, क्लाउड कंप्यूटिंग और औद्योगिक इंटरनेट के साथ हरित उद्योगों को एकीकृत करना भी है। एक तरह से ये चीन को वैश्विक हरित उद्योग श्रृंखला में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए भी प्रोत्साहित भी करेगा। चीन इस संदर्भ में दक्षिण-दक्षिण सहयोग और पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर हरित संक्रमण पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का भी आह्वान भी कर रहा है और विकासशील देशों को चीन की क्षमता के अनुसार सहायता प्रदान करने पर जोर दे रहा है। सक्रिय रूप से हरित विकास की ओर संक्रमण का मार्ग तलाशता चीन, आर्थिक विकास मोड के परिवर्तन को बढ़ावा देकर, पर्यावरण की रक्षा और संसाधनों के संरक्षण की बुनियादी राष्ट्रीय नीति स्थापित कर रहा है, सतत विकास रणनीति को लागू करने पर जोर दे रहा है, हरित विकास की नई अवधारणा की स्थापना कर रहा है। यही नहीं चीन में शीर्ष-स्तरीय डिजाइन और संस्थागत प्रणाली निर्माण को बढ़ावा देने और हरित संक्रमण की ऐतिहासिक उपलब्धियों को बढ़ावा देने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
दरअसल चीन 140 से अधिक देशों का मुख्य व्यापारिक साझेदार है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला हरित संक्रमण की गति और गति को परिभाषित करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति वाले देशों में से भी एक है। 800 से अधिक बड़ी चीनी कंपनियों ने 2060 तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। विशेष रूप से आईसीटी, कपड़ा और विनिर्माण क्षेत्रों में, व्यवसाय राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों से पहले कार्बन तटस्थता तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिये 2050 तक, चीन को लगभग 26 ट्रिलियन डॉलर के हरित निवेश की आवश्यकता होगी। 14वीं पंचवर्षीय योजना में जलवायु परिवर्तन से संबंधित और डिजिटल अर्थव्यवस्था के समर्थन में चीन द्वारा 6 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किए जाने की उम्मीद है। सटीक और वैज्ञानिक प्रदूषण नियंत्रण के उद्देश्य से, चीन ने पारिस्थितिकी प्रबंधन के आधुनिकीकरण को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाया है, फ़्लू गैस नियंत्रण, जल प्रदूषण नियंत्रण, अल्ट्रा-लो उत्सर्जन थर्मल पावर प्लांट और स्मार्ट पर्यावरण निगरानी सहित प्रमुख तकनीकों में सफलताएँ हासिल की हैं। इन तकनीकों ने स्मार्ट शहरों, हरित इमारतों, हरित परिवहन, पारिस्थितिक कृषि, ग्रामीण ई-कॉमर्स और ग्रामीण पर्यटन सहित नए उद्योगों के विकास को बढ़ावा दिया है। उल्लेखनीय रूप से, चीन ने पारिस्थितिक प्रबंधन और उभरती हुई तकनीकों जैसे कि बिग डेटा, एआई और 5 जी और 6 जी जैसे उन्नत दूरसंचार के एकीकरण की पहल की है। एकीकरण ने पारिस्थितिकी संरक्षण उद्योग के लिए नए रास्ते खोले हैं, जिससे यह चीन की नई उत्पादक शक्तियों में एक नया विकास क्षेत्र बन गया है।
भारत में भी जलवायु परिवर्तन को लेकर उठाये जा रहे आवश्यक कदम
2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने की भारत का संकल्प कॉप26 में सबसे महत्वपूर्ण घोषणाओं में से एक कहा जा सकता है। जी 20 नेतृत्व के दौरान भारत द्वारा दिया गया यह नारा ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ मानवता को एक दूसरे से जुड़े होने पर रेखाकिंत करता है। खासकर इस मुत्तालिक स्वंय पीड़ित होने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बार बार उठाये जाने को लेकर। 2022 से लेकर 2024 के मध्य तक, देश में वर्ष के 80ः समय के दौरान चरम मौसम की घटनाएँ दर्ज की गईं, जो इस बात को संकेत दे रहा है कि स्वंय भारत पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेल रहा है। गर्मी की लहरों के मामले में भारत दुनिया के सबसे संवेदनशील देशों में से एक है। इस साल भारत में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से उपर तक चला गया था। जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की मौत हो गई। यहां तक कि भारतीय मौसम विभाग को कुछ क्षेत्रों के लिए अलर्ट जारी करना पड़ा। अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भारत में गर्मी की लहरें आने की संभावना 30 गुना अधिक रहती है। बेमौसम उच्च तापमान का कारण मानसून के मौसम की शुरुआत में देरी है। हालांकि भारत में हर साल 5 से 6 हीट वेव की घटनाएं होती हैं, लेकिन गर्मी की लहरें और भी तेज़ होती जा रही हैं। भारत की आबादी कई कारणों से हीट वेव के हानिकारक प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। यहां कई क्षेत्र बहुत आर्द्र भी हैं, जो गर्म मौसम के खतरनाक स्वास्थ्य प्रभावों को और बढ़ा देते हैं - जिसे वेट बल्ब तापमान के रूप में जाना जाता है।
निजी क्षेत्र सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) पैनलों जैसी मौजूदा तकनीकों के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा और परिवहन समाधानों जैसे कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस), ग्रीन हाइड्रोजन और बैटरी स्टोरेज समाधानों के लिए उभरती हुई तकनीकों की लागत को कम करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत के 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि हरित प्रौद्योगिकी और लचीले बुनियादी ढांचे में किए गए निवेश से अर्थव्यवस्था को भविष्य में जलवायु-प्रेरित अनिश्चितताओं से कैसे बचा जा सकता है। यू ंतो भारत के जलवायु अनुकूलन और शमन कार्य को मुख्य रूप से हरित वित्त के घरेलू स्रोतों से वित्त पोषित किया गया है लेकिन अब यह जलवायु वित्त के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय स्रोतों के पूल को चैनल करने के लिए अपने निवेश मंच को व्यवस्थित करने पर भी सक्रिय रूप से काम कर रहा है। भारत ने हाल के दिनों में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम कर, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि की है, और सभी के लिए विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण बिजली पहुँच में काफी सुधार हुआ है। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की भूमिका की प्रशंसा कर चुके है। उनके अनुसार भारत के पास देश और विदेश को नेतृत्व प्रदान करने की सभी क्षमताएँ मौजूद हैं। ग़रीबी उन्मूलन और सबके लिये ऊर्जा सुलभता मुख्य संचालक हैं और यह दोनों ही भारत की प्रधान प्राथमिकताएँ हैं। स्वच्छ ऊर्जा, विशेषकर, सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग बढ़ाना ही इन दोनों समस्याओं का समाधान हैं। भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या 5 गुना बढ़ी है। वर्ष 2019 में पहली बार सौर ऊर्जा पर ख़र्च की मात्रा कोयले से उत्पन्न ऊर्जा पर ख़र्च से अधिक रही। भारत ने बिजली सर्वसुलभ कराने की दिशा में भी उल्लेखनीय प्रगति की है।
निष्कर्ष
आगे का रास्ता चुनौतियों भरा होने के बावजूद चीन का हरित संक्रमण अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा है, स्वच्छ ऊर्जा विकास आर्थिक विकास और कार्बन कटौती लक्ष्यों की प्राप्ति का केंद्रीय चालक बन रहा है। ऐसा करके ही चीन वैश्विक जलवायु शासन में अपने नेतृत्व को मजबूत करने की ओर अग्रसरित है। अपनी इस योजना के सहारे वह अपनी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के सामंजस्यपूर्ण विकास को सुनिश्चित कर सकता है, और एक स्थायी भविष्य के लिए एक मजबूत नींव रख सकता है। इधर भारत में सरकारें और गैर सरकारी संगठन जलवायु परिवर्तन के विस्तार को सीमित करने के लिए तेजी से काम कर रहे हैं। भारत सदैव ही अपने निरंतर जलवायु समझौतों और पहलों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों को नियंत्रित करने और सीमित करने में अग्रणी रहा है। वीयोन की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि उचित कदम नहीं उठाए गए, तो जलवायु परिवर्तन 80 वर्षों में लगभग 80 मिलियन लोगों की जान ले लेगा। भारत जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है। दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के नाते, भारत ग्लोबल वार्मिंग से प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं के चरम पर है।
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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