2035 तक शिक्षा के विषय में महाशक्ति बनने की तैयारी में बीजिंग
जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के अनुरूप अपनी शिक्षा प्रणाली को अनुकूलित करने हेतु चीन शिक्षा सुधारों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 2025 के राष्ट्रीय शिक्षा कार्य सम्मेलन में, शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने अपनी शिक्षा प्रणाली को जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के अनुकूल बनाने, समानता बढ़ाने और नवाचार को बढ़ावा देने की योजनाओं की रूपरेखा तैयार की। देखना ये है कि ये सुधार कितने कारगर साबित हो पाते है।
सितंबर 2018 में, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में टिप्पणी की थी कि चीन का ध्यान ’क्षमता’ से ’गुणवत्ता’ पर स्थानांतरित होना चाहिए, और शिक्षा के आधुनिकीकरण को चीन के आधुनिकीकरण का समर्थन करना चाहिए। जिसके बाद 2019 में, चीनी राज्य परिषद ने चीन के शिक्षा क्षेत्र में निरंतर सुधार और उन्नति के लिए दो महत्वपूर्ण योजनाएं प्रकाशित की, जो पूर्ववर्ती सुधारों की श्रृंखला पर आधारित थीं। इन दस्तावेजों के हिसाब से चीन की ‘शिक्षा आधुनिकीकरण 2035 योजना’ और शिक्षा आधुनिकीकरण में तेजी लाने के लिए ‘कार्यान्वयन योजना (2018-2022)’, का उद्देश्य मूलतः 2035 तक देश की शिक्षा प्रणाली को काफी हद तक आधुनिक बनाना, समाजवादी आधुनिकीकरण को साकार करना और चीन को शिक्षा का महाशक्ति बनाना निहित है।
वर्तमान में, चीन शिक्षा के आधुनिकीकरण के जरिए पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर मजबूत शिक्षा का निर्माण करने वाले महान देश की अवधारणा का अनुसरण करने की आवश्यकता पर बल दे रहा है। ये सच है कि चीन के उदय के साथ, चीनी लोग अधिक सक्रिय, सक्रिय, खुले और उद्यमी बन गए हैं। चीनी नेता की सोच है कि नई शिक्षा नीति से ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल में सक्रिय रूप से योगदान देगा; सभी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग को व्यापक रूप से मजबूत करेगा; खुलेपन के अर्थ को समृद्ध करेगा, साथ ही खुलेपन के स्तर और इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को बढ़ाएगा; और मानव जाति के लिए साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण में योगदान देगा।
एक ’शिक्षा शक्ति’, चीनी भाषा में कहे तो ’जियाओयू कियांगुओ’, बनने और 2035 तक अपनी शिक्षा योजनाओं का पूर्ण विकास हासिल कर लेने की चीन की महत्वाकांक्षा का परिवर्तनकारी रोडमैप चीन के शैक्षिक विकास को समाजवादी आधुनिकीकरण, तकनीकी नेतृत्व और वैश्विक प्रभाव के व्यापक उद्देश्यों के साथ जोड़ता है। गुणवत्ता, समानता और नवाचार पर जोर देकर, यह प्रणालीगत चुनौतियों जैसे जनसांख्यिकीय बदलाव, घटती जन्म दर और बढ़ती उम्र की आबादी जैसी सामाजिक समस्याओं से शैक्षिक सुधारों के माध्यम से निपटने में सहायता करता है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति और राज्य परिषद द्वारा 19 जनवरी 2025 को जारी, ‘शिक्षा शक्ति निर्माण योजना रूपरेखा 2024-2035’ में शहरी-ग्रामीण असमानताओं को कम करने, सभी नागरिकों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए समानता को विशेष रूप से रेखाकिंत किया गया है।
पूर्ववर्ती सुधारों की श्रृंखला में सर्वोच्च प्राथमिकता शिक्षा रही
1966 और 1976 के बीच सांस्कृतिक क्रांति ने चीन की शिक्षा को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया लेकिन 1977 से 1991 तक दुनिया भर के लिए खुलने वाली, एक नई सुधार नीति के साथ, शिक्षा के पुनर्निर्माण के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई। 1978 चीन के आधुनिक इतिहास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि इसने समाजवादी आधुनिकीकरण के रूप में सुधार के एक नए युग में प्रवेश किया। राष्ट्र सामूहिक रूप से सुधार और विकास के एक नए मार्ग पर चल पड़ा। 1978 से, चीन में शैक्षिक नीति ने मुख्य रूप से चार चरणों का अनुभव किया हैः- शैक्षिक व्यवस्था की पुनर्प्राप्ति और पुनर्निर्माण (1978-1984); शैक्षिक प्रणाली सुधार की कुल शुरुआत (1985-1992); बाजार अर्थव्यवस्था प्रणाली के सुधार का सामना करने वाली शैक्षिक नीति का समायोजन (1993-2002) और विकास पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण (जू और मेई, 2009) के मार्गदर्शन में शैक्षिक नीति का नया विकास। ये सभी चरण शिक्षा प्रणाली में सुधार के उद्देश्य से संपन्न हुए।
जू और मेई (2009) ने बताया कि अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास और नौ वर्षीय अनिवार्य शिक्षा की प्राप्ति ने नई सदी में शिक्षा के आगे के सुधार के लिए पर्याप्त आधार प्रदान किया, तो पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नेता देंग जियाओपिंग ने वैज्ञानिक और तकनीकी विकास की तलाश में चीन को पश्चिम से सीखने के लिए प्रेरित किया। समकालीन विश्व में परिवर्तनों और चीनी लोगों की अपेक्षाओं के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया देने के लिए, चीनी शिक्षा प्रणाली में अभूतपूर्व सुधार शुरू हुआ। सुधार में पूर्व-विद्यालय शिक्षा से लेकर सतत शिक्षा तक सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, जिसमें शैक्षिक उद्देश्य, शिक्षकों और शोधकर्ताओं की भूमिका और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल रहे। इस प्रकार, चीन की शिक्षा प्रणाली प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक और उच्च शिक्षा तथा वयस्क शिक्षा से लगातार बेहतर होती चली गई। निःसंदेह अब तक किए गये कई सुधारों ने चीनी शिक्षा में अभूतपूर्व सुधार हुए।
चीन के नई व्यापक शिक्षा की विशिष्ट विशेषताएं
यू तो यह योजना अपने व्यापक और दूरदर्शी दृष्टिकोण के कारण सबसे अलग है, जो शिक्षा के सभी स्तरों को कवर करती है और वैचारिक, तकनीकी और व्यावसायिक सुधारों को एकीकृत करती है। ये यह भी सुनिश्चित करती है कि शिक्षा का हर चरण, प्रीस्कूल से लेकर आजीवन सीखने तक, राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों में योगदान दे। इसमें अविकसित क्षेत्रों में संसाधन वितरण और शिक्षक गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से बढ़ी हुई फंडिंग और पहल के साथ-साथ, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानताओं को कम करने की ओर भी खास ध्यान दिया गया है।
2035 को लक्षित इस योजना के तहत एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली की स्थापना, गुणवत्तापूर्ण प्री-स्कूल शिक्षा में सार्वभौमिक उपस्थिति प्राप्त करना, 1 से 9 की उम्र के लिए उच्च गुणवत्ता और संतुलित अनिवार्य शिक्षा, 10 से 12 की उम्र के लिए वरिष्ठ हाई स्कूल में अधिकतम उपस्थिति की अनिवार्यता, व्यावसायिक शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार करना, अधिक प्रतिस्पर्धी उच्च शिक्षा प्रणाली का निर्माण करना, विकलांग बच्चों/युवाओं के लिए पर्याप्त शिक्षा प्रदान करने के अलावा समाज की भागीदारी के साथ एक नई शिक्षा प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने जैसे विचार को प्रमुखता दी गई है, जैसे केवल सरकारी सहायता पर निर्भर न होकर सभी के योगदान से शिक्षा को हर घर तक पहुंचाना। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, 2035 की योजना में कई ’कार्यों’ की पहचान की गई है, जिनमें शिक्षक की गुणवत्ता और शिक्षा के बुनियादी ढांचे (कानून, नीतियां, योग्यता ढांचा, मूल्यांकन और आकलन) में सुधार; असमानता को कम करना और शिक्षा तक पहुंच को सार्वभौमिक बनाना; आजीवन सीखने को बढ़ावा देना; और विशेष रूप से प्रीस्कूल और वीईटी पर ध्यान केंद्रित करते हुए सभी शिक्षा क्षेत्रों का आधुनिकीकरण करने जैसी अनिवार्यता शामिल हैं।
इस संबंध में ये बात गौर करने वाली है कि नेशनल क्रेडिट बैंक फॉर लाइफलॉन्ग लर्निंग ने अब तक 500 मिलियन से अधिक सीखने की प्रविष्टियाँ दर्ज की हैं, जो बताता है कि चीनी नागरिक को अपने कौशल ज्ञान को बढ़ाने या फिर पुनः कौशल अर्जित करने हेतु कितना उत्सुक हैं। यह व्यवस्था व्यावसायिक शिक्षा और आजीवन सीखने के लिए दी जाने वाली सुविधा के मजबूत ढांचे को रेखांकित करती हैं। कहने को तो ‘डबल फर्स्ट-क्लास’ पहल ने अंतःविषय अनुसंधान को प्राथमिकता देकर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी विषयों को विकसित करके अपने प्रभाव का विस्तार किया है। यह भी प्रशंसनीय बात है कि 2024 तक, चीनी विश्वविद्यालयों में 100 से अधिक विषयों को, दुनिया भर में शीर्ष में से 50वां स्थान दिया गया, जिसमें पर्यावरण विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी और बायोमेडिसिन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
नई शिक्षा योजना की प्रमुख चुनौतियाँ
फ़ुताओ हुआंग जापान के हिरोशिमा विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा अनुसंधान संस्थान में उप-निदेशक और प्रोफेसर हैं, अपने एक लेख में कहते है चीन को अभी अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना को साधने के लिए कई चुनौतियों से पार पाना होगा, जिनमें से खासकर इन दो सबसे बड़ी चुनौतियों से। एक, चीन की घटती जन्म दर, जो 2022 में घटकर 1,000 लोगों पर 6.77 जन्म रह गई, और दूसरी, इसकी तेज़ी से बढ़ती उम्रदराज़ आबादी, जो 2035 तक 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की आबादी का लगभग 30ः हिस्सा होने का अनुमान है। ये एक ऐसी गंभीर समस्या है जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक मज़बूत प्रतिभा पाइपलाइन को बनाए रखने के लिए कई चुनौतियाँ पेश करती हैं। शैक्षणिक संसाधनों, शिक्षक गुणवत्ता और बुनियादी ढाँचे के मामले में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अभी भी महत्वपूर्ण अंतर बना हुआ है। 2022 में, देश के प्राथमिक और माध्यमिक छात्रों में से आधे से अधिक को शिक्षित करने के बावजूद, ग्रामीण स्कूलों में चीन के शीर्ष स्तरीय शिक्षण स्टाफ का केवल 30ः हिस्से का योगदान नजर आया। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण स्कूलों में प्रति छात्र फंडिंग शहरी स्कूलों की तुलना में लगभग 60ः रही, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में असमानताएं और बढ़ गईं। वर्तमान मूल्यांकन प्रणालियाँ अक्सर दीर्घकालिक नवाचार और सामाजिक प्रभाव की कीमत पर रैंकिंग और प्रकाशन गणना जैसे अल्पकालिक परिणामों को प्राथमिकता देती हैं।
यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि चीन की नई शिक्षा नीति के भविष्य में किस तरह के बदलाव सामने आएंगे या आने वाले समय में चीन में शिक्षा का क्या स्वरूप होगा। क्या प्रोफेसरों की जगह एआई समर्थित रोबोट ले लेंगे या विश्वविद्यालय गायब हो जाएंगे या व्याख्यान के रूप में सूचना का पारंपरिक हस्तांतरण अतीत की बात हो जाएगी या फिर विश्वविद्यालय केवल ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करेंगे, ये बात पूरी तरह से साफ नहीं है। फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि आधुनिक तकनीक, जैसे एआई के संभावित क्रांतिकारी प्रभाव के संदर्भ में चीन के शिक्षा आधुनिकीकरण 2035 और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक समुदाय के बीच कुछ तो अंतर होगा ही।
हालांकि यह भी देखने में आता है कि जब शीर्ष अंतरराष्ट्रीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने की बात आती है तो चीनी विश्वविद्यालयों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे उन्नत पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों की तुलना में, चीनी संस्थान अंतरराष्ट्रीय विद्वानों के लिए फिलहाल कम आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय संकाय की दृष्टि से अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कुल कर्मचारियों का लगभग 27ः और यूके विश्वविद्यालयों में 19ः है लेकिन चीनी विश्वविद्यालयों में 2021 तक यह मात्र 2ः अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के स्तर पर था।
अकादमिक स्वतंत्रता, नौकरशाही की अक्षमताओं और अंतरराष्ट्रीय विद्वानों के लिए सीमित समर्थन जैसी चुनौतियाँ भी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बाधा डालती हैं और इस बात को उच्च शिक्षा की उच्चतर स्थिति में एक बड़ी बाधा माना जाये तो अनुचित न होगा। अभी भी चीन के लिए शैक्षिक अनुसंधान को व्यावहारिक अनुप्रयोगों में बदलना एक चुनौती बनी हुई है। महत्वपूर्ण अनुसंधान उत्पादन के बावजूद चीन के 20ः से भी कम विश्वविद्यालय अनुसंधान व्यावसायीकरण से पर्याप्त राजस्व प्राप्त करते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में यह आंकड़ा 50ः से अधिक है।
निष्कर्ष
यकीनन यह योजना अपने व्यापक और दूरदर्शी दृष्टिकोण के कारण सबसे अलग है, जो शिक्षा के सभी स्तरों को कवर करती है और वैचारिक, तकनीकी और व्यावसायिक सुधारों को एकीकृत करती है। है। फिर भी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, नई योजना को लक्षित सुधारों के माध्यम से चीन को प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना ही होगा। ग्रामीण शिक्षा और शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए वित्त पोषण का विस्तार करके क्षेत्रीय असमानताओं को पाटने में मदद मिल सकती है। जैसा कि फ़ुताओ हुआंग अपने लेख में कोट करते है कि ‘सिल्वर एज प्रोग्राम’ जैसी पहलों को आगे बढ़ाने से शिक्षकों की गुणवत्ता में निरंतर सुधार सुनिश्चित होगा। इसके अलावा वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बना, अकादमिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देकर और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए छात्रवृत्ति में इजाफा कर चीन दूसरे देशों के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा लेने हेतु आकर्षित कर सकता है। फिर 2035 के अपने लक्ष्य संधान के लिए ये सब भावी योजना से इतर भी नहीं है।
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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