जापानी आक्रमण के विरुद्ध चीनी जन प्रतिरोध युद्ध, फासीवाद के विरुद्ध चीन के वैश्विक संघर्ष का एक अभिन्न अंग रहा था। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और चीन ने जुलाई 1945 में पोट्सडैम घोषणा जारी की, जिसमें जापान से बिना शर्त आत्मसमर्पण का आह्वान किया गया। जापान ने अगस्त 1945 के मध्य में अपने आत्मसमर्पण की घोषणा की, और 2 सितंबर, 1945 को जापान द्वारा इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के बाद चीन ने विजय की घोषणा की। तभी से हर साल, चीन मार्को पोलो ब्रिज (लुगुओ ब्रिज) के पास जापानी आक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक युद्ध की शुरुआत की सालगिरह मनाता है, जो लगभग लगभग 88 साल पहले हुई थी।
चीन ने 15 से 29 जुलाई तक चलने वाले अपनी ऐतिहासिक विजय के 80वीं वर्षगांठ समारोह के लिए दुनिया भर के पत्रकारों को आमंत्रित किया है, जिनमें हांगकांग, मकाऊ और ताइवान के पत्रकार भी शामिल हैं ताकि वे जापानी आक्रमण के विरुद्ध चीनी जन प्रतिरोध युद्ध और विश्व फ़ासीवाद-विरोधी युद्ध की वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित होने वाले आगामी कार्यक्रमों को कवर कर सकें।
इस आक्रामकता का कारण और नुकसान
1852 से पहले, जापान अलगाववादी था जो चीन के कदमों को मंचूरिया के रेलमार्गों और क्वांटुंग लीज्ड टेरिटरी पर अपने नियंत्रण के लिए एक खतरे के रूप में देखता था। चीन के हाथों कुछ भी खोना जापानी लोंगो के नजरिए में सराहनीय नहीं था। यही वजह थी कि, 1931 में, जापानियों ने रेलमार्ग और क्वांटुंग लीज्ड टेरिटरी में अपने हितों की रक्षा के लिए मंचूरिया पर आक्रमण कर मंचूकुओ नामक एक कठपुतली राज्य की स्थापना भी कर दी, जिसे किसी ने भी वैध राज्य के रूप में मान्यता नहीं दी। इसने जापान को अलग-थलग कर दिया। एक तरह से यह चीनियों के साथ सीमा पर संघर्षों का एक निरंतर सिलसिला भी बन गया।
जापानी आक्रमण के विरुद्ध चीनी जन-प्रतिरोध युद्ध, चीन द्वारा घोषित एक व्यापक राष्ट्रीय युद्ध था, जिसकी शुरुआत 1931 में मुकदेन घटना से हुई और 1937 में मार्कपोलो ब्रिज घटना के साथ यह और भी व्यापक रूप में सामने आ गया। यह संघर्ष, द्वितीय विश्व युद्ध का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता है। कुछ विषेशज्ञ तो द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ, 7 जुलाई, 1937 को, पोलैंड या पर्ल हार्बर में नहीं, बल्कि चीन में हुआ, मानते है। चीन और जापान के बीच शुरू हुए इस युद्ध में पहले कोई भी पश्चिमी शक्ति खुलकर शामिल नहीं आई। च्यांग काई-शेक के नेतृत्व वाली चीनी राष्ट्रवादी (कुओमितांग) सरकार को पूर्वी चीन के अंदरूनी इलाकों में जाना पड़ा क्योंकि जापानियों ने शंघाई, बीजिंग और नानजिंग जैसे पूर्व के बड़े शहरों पर आक्रमण कर दिया था। पहले पहल तो युद्ध नतीजों से ऐसा लग रहा था कि चीन को जापानी शर्तों पर आत्मसमर्पण करना होगा और शांति स्वीकार कर लेनी होगी। लेकिन जब चीन ने सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन से कुछ अनौपचारिक सहायता प्राप्त कर अपना प्रतिरोध जारी रखा। हालांकि उस वक्त ब्रिटेन और सोवियत संघ हिटलर की बढ़ती ताकत को रोकने में लगे थे। लेकिन अमेरिका ने जापान को रोकने के लिए 80 प्रतिशत तक तेल पर प्रतिबंध लगाकर चीन की मदद कर दी, जिसका खामियाजा उसे पर्ल हार्बर के रूप में भुगतना पड़ा।
आठ साल तक चले इस चीन-जापान युद्ध में विजय चीन की हुई। 1945 में जापान ने बिना शर्त चीन के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप दोंनों ही पक्षों की भारी जनहानि हुई। इस युद्ध के आठ वर्षों के दौरान, शाही जापानी सेना के 1.1 मिलियन सैनिक हताहत हुए, मारे गए, घायल हुए और लापता हुए। वहीं चीनी सेना ने लगभग 3.22 मिलियन सैनिक खोए। 9.13 मिलियन नागरिक गोलीबारी में मारे गए, और 8.4 मिलियन गैर-सैन्य हताहत हुए। जुलाई 1937 में मुद्रा विनिमय दर के अनुसार, चीनियों की संपत्ति का नुकसान 383,301.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक था, जो उस समय जापान के सकल घरेलू उत्पाद (770 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का लगभग 50 गुना था। चीनी इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण कालखंड बन गया।
चीनी लोगों के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध आधुनिक चीनी इतिहास की सबसे विदारक घटना थी, जिसमें विजयी पक्ष होकर भी चीन के लगभग 1.5 करोड़ लोगों की मृत्यु, औद्योगिक अवसंरचना और कृषि उत्पादन के व्यापक विनाश और राष्ट्रवादी सरकार द्वारा शुरू किए गए अस्थायी आधुनिकीकरण के बिखराव के कारण उस वक्त वह पूरी तरह से तबाह हो गया था। दो एशियाई देशों के बीच का यह युद्ध अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बमबारी के साथ समाप्त हुआ, लेकिन इतनी भारी जनहानि के बाद भी एशिया महाद्वीप को शांति नहीं मिल पाई क्योंकि शीत युद्ध के नए संघर्ष मलबे से उभरकर सामने आ रहे थे।
प्रतिरोध युद्ध की वर्षगांठ मनाने के पीछे की चीनी सोच
सीजीटीएन ने एक लेख ंके अनुसार चीनी जन प्रतिरोध युद्ध और विश्व फासीवाद विरोधी युद्ध में अपनी जीत की 80वीं वर्षगांठ मनाने के पीछे सोच है कि कैसे, हंड्रेड-रेजिमेंट अभियान, उत्तरी चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना (सीपीसी) के नेतृत्व में आठवीं रूट आर्मी द्वारा जापानी आक्रमण के विरुद्ध सबसे बड़ी और सबसे लंबी रणनीतिक लड़ाई, लडी गई और यह कि देश ने आधुनिकीकरण के लिए अपने अतीत से किस प्रकार शक्ति प्राप्त की है। इस वर्शगांठ को उद्येष्य नई पीढ़ी को यह बताना भी है कि किस तरह से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूर्वी मोर्चे पर, चीन के लंबे प्रतिरोध ने बड़ी संख्या में जापानी सैनिकों को बाँधे रखा, जिससे प्रशांत और यूरोप में मित्र देशों की सेनाओं पर दबाव कम हुआ। इस वैश्विक संदर्भ में, हंड्रेड-रेजिमेंट अभियान ने फासीवाद पर विश्व विजय में चीन के महत्वपूर्ण योगदान का उदाहरण प्रस्तुत किया, एक ऐसी विरासत जो आज भी राष्ट्र की पहचान और प्रगति को आकार दे रही है।
मूल आकांक्षा के प्रति सच्चे रहते हुए शांक्सी प्रांत के यांगक्वान शहर में शिनाओ पर्वत की ढलानों पर स्थित, हंड्रेड-रेजिमेंट अभियान स्मारक हॉल इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण की स्मृति का एक महत्वपूर्ण स्थल है। जो कभी एक भीषण युद्धक्षेत्र था, वह अब गहरे राष्ट्रीय स्मरण का स्थल बन गया है। ऐतिहासिक स्मृति और उच्च-गुणवत्ता वाले विकास के सम्मिश्रण ने शांक्सी को आध्यात्मिक और संरचनात्मक दोनों तरह के दोहरे परिवर्तन को आगे बढ़ाने में मदद की है, जिससे क्रांतिकारी भावना आधुनिक पुनरोद्धार के लिए एक उत्पादक शक्ति में बदल गई है। स्मारक कक्ष के अंदर, अभियान से संबंधित प्रदर्शनियाँ और अवशेष इतिहास को जीवंत कर देते हैं। झुलसी हुई वर्दियाँ, घिसी-पिटी राइफलें और श्वेत-श्याम तस्वीरें गोलाबारी के बीच साहस की कहानियाँ बयां करती हैं। इनमें बायोनेट असॉल्ट हीरो कंपनी की वस्तुएँ भी शामिल हैं, जो सबसे खतरनाक परिस्थितियों में अपने निडर हाथों-हाथ युद्ध के लिए जानी जाती है। इस इकाई की विरासत आज भी जारी है, क्योंकि यह आपदा राहत, रक्षा अभियानों और शांति अभियानों में अभी भी सक्रिय है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग उस यु़द्ध को भविष्य के लिए मार्गदर्शक के रूप में देखते है। उनके अनुसार इतिहास को भूलना दिशा-बोध खोने का जोखिम है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के बाद से, शी जिनपिंग ने शांक्सी का कई बार दौरा किया है और साथ ही इसके विकास के लिए उच्च उम्मीदें व्यक्त की हैं। उन्होंने शांक्सी से अपनी समृद्ध क्रांतिकारी विरासत और सांस्कृतिक संसाधनों से शक्ति प्राप्त करने और उच्च-गुणवत्ता वाले विकास एवं परिवर्तन में नई सफलताएँ हासिल करने का आह्वान किया है।
स्थानीय सरकारों ने रेड टूरिज्म, क्रांतिकारी विरासत पर केंद्रित यात्रा अनुभव, का भरपूर लाभ उठाया है और इसे ग्रामीण पुनरोद्धार रणनीतियों के साथ जोड़ा है। वर्तमान में, शांक्सी के सभी 11 प्रान्त-स्तरीय शहरों में 35 थीम वाले रेड टूरिज्म मार्गों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो 3,400 से अधिक क्रांतिकारी विरासत स्थलों को जोड़ते हैं। इस तरह की सांस्कृतिक गतिशीलता प्रभावशाली परिणाम देती रही है। 2024 में, शांक्सी में 318 मिलियन घरेलू पर्यटक आए, जो साल-दर-साल 13.9 प्रतिशत की वृद्धि है, और कुल पर्यटन राजस्व 276.15 बिलियन युआन (लगभग 38.5 बिलियन डॉलर) तक पहुँच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 25.9 प्रतिशत अधिक है। ऐतिहासिक स्मृति और उच्च-गुणवत्ता वाले विकास के सम्मिश्रण ने शांक्सी को आध्यात्मिक और संरचनात्मक दोनों ही रूपों में एक दोहरे परिवर्तन को आगे बढ़ाने में मदद की है, जिससे क्रांतिकारी भावना आधुनिक पुनरुत्थान के लिए एक उत्पादक शक्ति में बदल गई है।
Author
Rekha Pankaj
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.