चीनी नेता अब आखिर क्यों कर रहे पांच सिद्धान्तों का महिमामंडन
क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए परस्पर सम्मान; परस्पर गैर-आक्रामकता; आंतरिक मामलों में परस्पर गैर-हस्तक्षेप; पारस्परिक लाभ के लिए समानता और सहयोग; और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए बनाये गये पांच सिद्धांत या पंचशील समझौता अब तक चीन के रवैये की वजह से कागजी कारवाई से अधिक कुछ न कर सका। लेकिन इसकी सत्तरहवीं वर्षगांठ में अचानक चीनी नेता द्वारा पांच सिद्धान्तों का महिमामंडन करना भारत को उनकी अगली चाल से सतर्क करता है?
पंचशील समझौता पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके चीनी समकक्ष झोउ एनलाई की विरासत का हिस्सा कहा जा सकता है, जो विवादित सीमा संघर्ष का समाधान खोजने का एक असफल प्रयास था, जिसे अब चीनी प्रमुख संयुक्त सुरक्षा और मानवता के लिए साझा भविष्य के रूप में देख रहे है। पंचशील सिद्धांत की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहली बार पांच सिद्धांतों को उनकी संपूर्णता में निर्दिष्ट करते हुए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ, पश्चिम के साथ चलते अपने संघर्ष के बीच वैश्विक दक्षिण में प्रभाव का विस्तार करने की मांग कर रहे। शी जिनपिंग द्वारा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों को, विकसित हो रहे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के साथ सभी राष्ट्रों के मौलिक हितों के अनुरूप बताना, अपनी वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) से जोड़ना, अपने ड्रीम प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) सहित विभिन्न पहलुओं के वैश्विक प्रभाव को बढ़ावा देने संबधी सभी बातें उनकी दक्षिण एशिया में बादशाहत कायम करना है।
क्या है ये ’पांच सिद्धांत या 'पंचशील सिद्धांत’
चीन जिसे ’पांच सिद्धांत’ कहता है, भारत में उसे ’पंचशील’ नाम से जाना जाता है। संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक गैर-आक्रामकता, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में पारस्परिक गैर-हस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व इसके प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत है। यह ऐतिहासिक समझौता, जिसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से प्रमुखता मिली, शुरू में 1954 में चीन और भारत के तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापारिक समझौते के लिए स्थापित किया गया था।
भारत के 1947 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के दो साल बाद, चीनी कम्युनिस्ट भी गृहयुद्ध में विजयी हुआ। तब माओत्से तुंग ने ’पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की घोषणा की। भारत चीन के साथ विश्वास और आपसी सम्मान के आधार पर अच्छे संबंध स्थापित करने के इच्छुक थे। शुरुआत में चीन ने भी ऐसी ही चाहत का प्रदर्शन किया। 1954 में, तिब्बत पर भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ता का आरंभ हुआ जिसमें चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा, जिसका भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी समर्थन किया। इस समझौते पर 29 अप्रैल, 1954 को चीन में भारतीय राजदूत एन राघवन और चीन के विदेश मंत्री झांग हान-फू ने हस्ताक्षर किए। समझौते का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार और सहयोग को बढ़ाना, एक दूसरे के प्रमुख शहरों में प्रत्येक देश के व्यापार केंद्र स्थापित करना और व्यापार के लिए एक रूपरेखा तैयार करना था। समझौते में महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थयात्राओं, तीर्थयात्रियों के लिए प्रावधान और उनके लिए उपलब्ध स्वीकार्य मार्गों और पासों को भी सूचीबद्ध किया गया था। इस पृष्ठभूमि में, न केवल भारत और चीन ने सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर हस्ताक्षर किए, बल्कि इसे 1955 में अफ्रीकी-एशियाई बांडुंग सम्मेलन में मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाया गया और बाद में 1957 में भारत, यूगोस्लाविया और स्वीडन द्वारा संचालित संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया। वे 1961 में बेलग्रेड में पहले नाम शिखर सम्मेलन में भी पंचशील को समूह के ’सिद्धांत मूल’ के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
द्विपक्षीय मोर्चे सहयोग के भारत-चीन पुराने साथी
वैसे तो भारत और चीन अनेक मोर्चों पर वर्षों तक अपने मैत्रीपूर्ण संबंध के कारण एक दूसरे के सहयोगी रहे है। किंतु सही माएने में देखा जाये तो भारत-चीन संबंधों की नींव 1954 में पड़ी, जब दोनों देशों के प्रतिनिधियों द्वारा पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों ने उन्हें पहली शताब्दी ईसवीं से ही एक साथ बांधे रखा था। व्यापार पहले ही बढ़ रहा था, सिल्क रोड कॉरिडोर के माध्यम से इसमें और वृद्धि हो गई। चीन से कई तीर्थयात्री अध्ययन के लिए भारत आते रहे। नालंदा विश्वविद्यालय जैसे शैक्षणिक संस्थानों ने चीनी तीर्थ यात्रियों को बौद्ध धर्म पर उल्लेखनीय शिक्षा प्रदान की। बौद्ध धर्म की शिक्षा से प्रभावित चीनियों सर्वाेपरि धर्म बौद्ध धर्म ही बन गया। बौद्ध धर्म के विचारों और शिक्षाओं को फैलाने के लिए बहुत से बौद्ध भिक्षु भी चीन की यात्रा करने लगे थे। देखा जाये तो दोनों देशों के बीच जो धार्मिक संबंध स्थापित हुए वे आज तक कायम हैं। व्यापारिक और सांस्कृतिक गठबंधन ने इन्हें मजबूत ही किया।
संभवतः इन्हीं संबंधों के हित में कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों और डू जियांगुओ जैसे लाखों फॉलोअर्स वाले सोशल मीडिया प्रभावितों ने 2022 में पिछले 60 वर्षों में चीन-भारत संबंधों को गलत तरीके से संभालने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) नेतृत्व पर सीधे तौर पर आरोप लगाया। उन्होंने तर्क दिया कि घरेलू हलकों में गलत तरीके से पीड़ित कार्ड खेलकर (जबकि वास्तव में चीन को भारत के हाथों कभी कोई नुकसान नहीं हुआ है), अनावश्यक रूप से सख्त होकर, मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके और भारत के साथ संघर्ष को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके चीनी नेतृत्व ने देश को दो मोर्चों पर प्रतिकूल स्थिति में डाल दिया है, भले ही चीन और भारत ने कभी भी एक-दूसरे के प्रति कोई ऐतिहासिक द्वेष या नफरत साझा नहीं की हो। चीनी राजनयिकों से लेकर थिंक-टैंक के विद्वानों से लेकर चीनी मीडिया तक ने, सभी स्तरों पर जानबूझकर गलवान की घटना को कम करने और चीन-भारत संबंधों के समग्र कामकाज से चल रहे सीमा गतिरोध को अलग करने का एक ठोस प्रयास किया गया है।
पंचशील सिद्धांत को लेकर चीनी नेता की बढ़ती दिलचस्पी
तिब्बत और झिंजियांग में आंतरिक अलगाववाद से जूझता चीन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने मतदान रिकॉर्ड को सही ठहराने और हस्तक्षेप करने वाली पश्चिमी शक्तियों की निंदा को सही ठहराने के लिए अपने इन्हीं सिद्धांतों का संदर्भ देता आ रहा है। अपने संघर्षों में गैर-हस्तक्षेप पर एक सैद्धांतिक रुख अपनाकर, चीन अपनी सरकार के आंतरिक मामलों से निपटने की बाहरी आलोचना को खारिज करने में सदैव सक्षम रहा है। इस संबंध में विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग का कहना है कि पिछले छह दशकों में, सिद्धांतों ने परीक्षणों का सामना किया है और विश्व शांति और विकास की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शी जिनपिंग के लिए ये पाँच सिद्धांत विषम अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन के संदर्भ में उसके सर्वाेत्तम योगदान को मूर्त रूप देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार चीन को अगर एशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका से अलग क्षेत्रीय नेतृत्व का एक सम्मोहक मॉडल पेश करना है, तो वह इन सिद्धांतों से शुरुआत कर सकता है। हालांकि इन पाँच सिद्धांतों के नजरिए से देखें तो पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में हाल ही में किए गये चीनी दुस्साहस विश्व शांति से उलट नजर आते है। चीन यूं भी कई देशों के साथ विवादों में उलझा हुआ है। इतिहास गवाह है कि झोउ और नेहरू को भी पांच सिद्धांतों के खोखलेपन का पता तब चल गया जब दोनों देशों ने “शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व” का साहसपूर्वक वचन देने के आठ साल बाद युद्ध लड़ा। वर्तमान समय में भी भू-राजनीतिक स्थिति कहीं अधिक विकट और खतरनाक होने के कारण चीन की भौतिक और मानचित्रीय आक्रामकता बढ़ती जा रही है। ज्यों-ज्यों चीन वैश्विक प्रमुखता की ओर बढ़ रहा है, उसे लगने लगा है कि जिन पांच सिद्धांतों को वह अपनी विदेश नीति के स्तंभों के रूप में स्थापित करना चाहता था, वे उसके राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के उसके चयनित तरीकों के साथ मेल नहीं बिठा पा रहे हैं।
भारत के लिए ‘पंचशील समझौता’ कितना लाभकारी रहा
भूरणनैतिक दृष्टि से भारत के लिए यह समझौता कभी फायदेमंद नहीं रहा। पंचशील समझौते के पहले ही दशक में हुए घटनाक्रमों ने भारत को चीन के साथ बनने वाले आगामी संबंधों की पोल खोल कर रख दी थी। पांच सिद्धांतों पर सहमति जताने के कुछ ही महीनों के भीतर चीन ने इसका उल्लंघन करने का पहला प्रयास किया। इस संबंध में पहली उल्लेखनीय घटना रही बारा होटी पर उसका क्षेत्रीय दावा पेश करना, जो परंपरागत रूप से भारतीय क्षेत्र रहा है। वार्ता के दौरान भारत ने यह भी प्रस्ताव दिया कि दोनों पक्षों में से कोई भी विवादित क्षेत्र में सेना नहीं भेजेगा। इस बार चीन ने सैद्धांतिक रूप से तो भारतीय प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन मात्र दो महीने बाद ही क्षेत्र में सेना भेजकर व्यवहार में इसका उल्लंघन किया। ध्यान देने योग्य है यह कि जब भी भारत ने सीमा के विवादित चरित्र को मान्यता देने की तत्परता व्यक्त की और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से समाधान का सुझाव दिया, चीन ने ऐसे प्रयासों को अवरुद्ध कर दिया। 1950 के दशक के उत्तरार्ध में, चीनी घुसपैठ, क्षेत्र पर दावे और सड़कों का निर्माण जारी रहा और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की अग्रिम गतिविधियों द्वारा इसका समर्थन किया जाता रहा। 1958 के बाद से, चीनी क्षेत्रीय दावे और अधिक मुखर हो गए। 1959 में लोंगजू और कांगला दर्रे में सैन्य हमले और भारतीय सीमा रक्षकों की हत्या इस संबंध में कुछ अन्य उदाहरण है जिन्होंने बीजिंग के पांच सिद्धांत के पाखंड को उजागर किया। 1962 का युद्ध वास्तव में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों का उल्लंघन रहा।
वर्तमान परिस्थिति में भारत-चीन संबंध शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास के बजाय विशुद्ध रूप से रणनीतिक और भू-राजनीतिक गणनाओं से ओत-प्रोत है। विद्वान राम माधव ने तर्क देते है कि हमें पंचशील से आगे बढ़ने की जरूरत है जो रणनीतिक धोखे और सतहीपन से प्रभावित है। यदि चीन अड़ियल रवैया जारी रहता है तो भारत अपनी तिब्बत नीति के संबंध में सुधार कर सकता है क्योंकि ऐसे विषाक्त वातावरण में हमेशा की तरह काम करना केवल मूर्खों के स्वर्ग में ही संभव है। यकीनन बार-बार सीमा पर गतिरोध पैदा करना, बयानबाजी कर अपना विरोध प्रकट करना या छुटपुट सैन्य कारवाई के जरिए भारत की सीमाओं को अंशात बनाये रखने जैसी बातें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत को विफल करते है। जबकि भारत के नजरिए से देखें तो वह अभी भी इन सिद्धांतों में विश्वास रखता है। वसुधैव कुटुम्बकम के अपने सिद्धांत के माध्यम से वह मैत्री भाव और सांस्कृतिक, व्यापारिक दृष्टिकोण से संबंधो को मजबूत बनाने की दिशा में काम करता है।
निष्कर्ष
चीन के लिए आवश्यक है कि बिना आधिपत्य जताये वह क्षेत्रीय और वैश्विक नेतृत्व के लिए अपना रास्ता तलाशे और भारत अपने वसुधौव कुटुम्बकम की नीति पर काम करते हुए इस पथ का नेतृत्व करे। जो भी देश इस खंडित दुनिया में शांतिपूर्ण अस्तित्व का परचम लहराने की मंशा रखता होगा वह किसी भी हालत में पंचशील सिद्धांतों को खारिज नहीं कर सकता हैं। विदेश नीति के क्षेत्र में इन सिद्धांतों के दो प्रवर्तकों के बीच इनका क्या नतीजा निकला, यह इतिहास में सर्वविदित है। दो देशों के बीच किसी भी समझौते या समझ को लागू करने के लिए वास्तविक रुचि, गंभीर इरादा और पर्याप्त जवाबी क्षमता और आपसी सम्मान आवश्यक है, और उसके लिए जरूरी नहीं कि पर्याप्त शर्तें रखी जाये। किसी भी मामले में इसे दोनों देशों को वास्तविक रणनीतिक दृष्टिकोण से संचालित करना होगा और निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि ये नामुमकिन भी नहीं।
Image Source: DNA India
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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