इस कानून के संबंध चीनी नागरिकों है मिली जुली राय
जब से 14वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने नई वैधानिक सेवानिवृत्ति आयु को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के निर्णय को मंजूरी दे दी है, चीनी सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा और प्रतिक्रिया से लगातार चर्चा में है। कई नेटिज़न्स युवा पीढ़ी के सामने आने वाले दबावों के बारे में अपनी चिंता और इस नये कानून को लेकर निराशा व्यक्त कर रहे है।
दशकों से अपेक्षाकृत कम उम्र में ही अपना कामकाजी जीवन समाप्त कर लेने वाले चीनी कर्मचारी चीनी सरकार के नये फैसले से हैरान परेशान है तो कुछ इस परिवर्तन का स्वागत कर रहे। चीन में अभी तक पुरुषों के लिए 60 और महिलाओं के लिए 50 वर्ष की आयु पर सेवानिव्ृति का नियम रहा। लेकिन सितम्बर माह में नये पारित कानून के अनुसार नए नियमों में पुरुषों की सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़कर 63 हो जाएगी, महिलाओं की 50 से 55 और व्हाइट-कॉलर पदों पर काम करने वालों के लिए 55 से 58 हो जाएगी। लगभग एक दशक से विचाराधीन यह कानून ऐसे समय में आया है जब चीन की अर्थव्यवस्था की रफतार धीमी चल रही है और बीजिंग तेजी से बढ़ती उम्रदराज आबादी और पेंशन फंडिंग संकट के बढ़ते परिणामों से जूझ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चीन की लगभग एक तिहाई आबादी - लगभग 402 मिलियन लोग - 2040 तक 60 वर्ष से अधिक आयु के होंगे, जो 2019 में 254 मिलियन से अधिक है और यह निश्चित तौर पर चीन सरकार के लिए बेहद भयभीत कर देने वाली स्थिति है।
जब से चीन के शीर्ष विधायी निकाय, 14वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने नई वैधानिक सेवानिवृत्ति आयु को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के निर्णय को मंजूरी दे दी है तब से चीनी सोशल मीडिया इस पर व्यापक चर्चा और प्रतिक्रिया जारी रखा हुआ है। लोकप्रिय माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म वीबो पर चाइना सेंट्रल टेलीविज़न द्वारा पोस्ट की गई घोषणा पर तुरंत ही 26,000 से अधिक टिप्पणियाँ आ गई थी, जिसमें कई नेटिज़न्स ने युवा पीढ़ी के सामने आने वाले दबावों के बारे में चिंता और निराशा व्यक्त की।
बढ़ती जनसंख्यायिक समस्या और सहयोग से चीनी नागरिकों का इंकार
चीन वर्तमान में एक गंभीर जनसांख्यिकीय चुनौती से जूझ रहा है, जिसमें रिकॉर्ड-कम जन्म दर और कम सेवानिवृत्ति आयु शामिल है, जिससे कामकाजी आयु वर्ग की आबादी में लगातार गिरावट आ रही है। यकीनन, चीन तेजी से बूढ़े होते समाज का सामना कर रहा है। 2023 में लगातार दूसरे साल इसकी जनसंख्या में गिरावट देखने में आई है। नीति निर्माताओं ने चेतावनी दे दी है कि अगर समय पर कार्रवाई नहीं की गई तो चीनी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण प्रणालियों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, 2023 में कामकाजी आयु वर्ग की आबादी घटकर 61.3% रह गई, जो पिछले वर्ष 62% थी। लगातार सिकुड़ रहे कार्यबल और बढ़ती उम्र की आबादी चीन की पेंशन प्रणाली पर भी दबाव डाल रही है। वर्तमान अनुमानों पर गौर करे तो वह लगतार संकेत दे रहे है कि अगर इस मुत्तालिक हस्तक्षेप नहीं किया गया तो, सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के संसाधन 2035 तक समाप्त हो जाएंगे।
1949 में कम्युनिस्ट चीन की स्थापना के बाद से अपनी सबसे कम जन्म दर दर्ज के आंकड़ों पर चिंतित सरकार ने 2016 से देश की लंबे समय से चली आ रही “एक-बच्चा नीति” को उलट दिया और युवा जोड़ों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन महामारी की मार से त्रस्त चीनी नागरिक और बच्चे पैदा करने में इच्छुक नहीं है और न ही नई पीढ़ी विवाह जैसी संस्था को अपनाने को राजी हो रहा। दरअसल जनसांख्यिकीय पिरामिड को लेकर बदलती नीतियों ने शहरी चीनी नागरिकों को बच्चों की पैदाइश को लेकर उदासीन बना दिया। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर की प्रोफ़ेसर डॉक्टर मु झेंग कहती हैं कि ऐसी स्थितियों ने शादी का बाज़ार बिगाड दिया है, ख़ासकर उन लोगों के लिए परेशानी बढ़ी है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं।
चीन में 2013 से विवाहों के रजिस्ट्रेशन में हर साल गिरावट आ रही है। 2006 के बाद हर वर्ष तलाक की संख्या बढ़ी ही है। कोविड के बाद से तो कई चीनी माता-पिता ऐसे हैं जो दूसरे या तीसरे बच्चे को जन्म देने में अनिच्छुक नजर आये। अधिक बच्चे न पैदा करने के सबसे प्रमुख कारणों में बढ़ती लागत के साथ-साथ बच्चों की देखभाल में लगने वाली लागत, काम का बढ़ता दबाव, आत्म-बोध और व्यक्तिवाद की ओर बढ़ती प्रवृत्ति और बदलते सामाजिक व्यवहार ने लोगों को इस ओर से लगभग उदासीन कर दिया। प्रजनन दर में गिरावट और कोविड-19 महामारी के चलते मौतों की संख्या में इज़ाफ़े के कारण भी चीन की कुल आबादी में कमी आई है। फिर भी विश्व जनसंख्या की तुलना में अभी भी चीन की कुल वैश्विक जनसंख्या में लगभग 18 प्रतिशत की हिस्सेदारी रही।
सितम्बर माह की शुरुआत में नागरिक मामलों के मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की आबादी में अब बुजुर्गों की हिस्सेदारी 20% से अधिक बताई गई है, जिसमें बताया गया है कि पिछले साल के अंत तक लगभग 297 मिलियन लोग 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के थे। राज्य मीडिया में उद्धृत जनसांख्यिकीविदों ने कहा है कि, 2030 और 2035 के बीच, बुजुर्ग आबादी कुल आबादी का 30% होगी। इस सदी के मध्य तक यह आबादी बढ़कर 40% से अधिक हो जाने की संभावना है - जिससे चीन एक “सुपर-एज्ड सोसाइटी” बन जाएगा।
सेवानिवृति के नये कानूनी चाल के पीछे चीनी सरकार की मजबूरी
शीर्ष सरकारी थिंक टैंक, चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज की 2019 की रिपोर्ट में पूर्वानुमान लगाया गया था कि चीन के राज्य पेंशन कोष का हाल, 2035 तक अपने घटते कार्यबल के कारण बंजर जमीन सा होता जा रहा है। महामारी के चलते सख्त प्रतिबंधों की वजह से स्थानीय सरकारों के खजाने कम हो चुके है, जो पेंशन की खस्ताहाली को स्पष्ट करने के लिए काफी है। पिछले साल की शुरुआत में ही हजारों बुजुर्गों ने अपने चिकित्सा लाभ के भुगतान में बड़ी कटौती के खिलाफ कई प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन किया था। उन्हें यह संदेह होने लगा था कि स्थानीय सरकारें राज्य पेंशन कोष की कमी को पूरा करने के लिए उनके व्यक्तिगत खातों से पैसे निकाल रही हैं। हालांकि यह अफवाह भर ही निकल कर आई। महामारी और हाल के वर्षों में सरकार के नेतृत्व वाली उद्योग की कार्रवाई के बाद से कामकाजी उम्र के लोगों के लिए रोजगार भी एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आने से हालात बिगड़ रहे। जिससे निपटने के लिए सरकार ने इस साल लोगों का नौकरियों का आश्वासन दिया।
रेडियो फ्री एशिया वेबसाइट के अनुसार हजारों, तो कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार सैकड़ों की तादाद में वुहान (हुबेई, मध्य-पूर्वी चीन) में प्रांतीय सरकार के मुख्यालय के सामने अपने स्वास्थ्य कवरेज में कटौती का विरोध करने के लिए लोग एकत्र हुए। हालाँकि यह सामाजिक आंदोलन राष्ट्रीय स्तर तक ही सीमित है। यहाँ तक कि 11 मिलियन निवासियों वाले इस शहर में भी, जिसमें लगभग 2 मिलियन पेंशनभोगी ही है, जिसमें बड़ी संख्या में वुहान आयरन एंड स्टील कंपनी से सेवानिवृत्त हैं। ऑनलाइन पोस्ट किए गए एक वीडियो के अनुसार, वे अपने चिकित्सा व्यय के लिए हर महीने मिलने वाले स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में कमी के खिलाफ़ विरोध कर रहे हैं, जिसे 260 युआन से घटाकर 88 युआन या यहाँ तक कि 82 युआन कर दिया गया है। यह स्थिति तब है जबकि कर्मचारी और नियोक्ता दोनों ही स्वास्थ्य बीमा योजना में योगदान करते हैं। इन निधियों का एक हिस्सा व्यक्तिगत खाते में और दूसरा हिस्सा सामूहिक खाते में रखा जाता है। सेवानिवृत्त लोग अब योगदान नहीं करते हैं, लेकिन उन्हें व्यक्तिगत हिस्सा मिलना जारी रहता है, जिससे उन्हें बिना अग्रिम भुगतान किए अपनी नियमित चिकित्सा देखभाल को कवर करने की अनुमति मिलती है। यह वह राशि है जो बिना उन्हें चेतावनी दिए काट ली गई। विद्रोह के मुखर होते स्वर चीन सरकार के माथे पर बल डालने के लिए काफी है। तमाम तरह की अरबो खरबों की परियोजनाओं में आकंठ डूबा चीन बाहरी ताकतों के आगे जितना मजबूत नजर आता है अपने घरेलू मोर्चे पर उतना ही लाचार। इस सेवानिवृति में किये गये बदलाव से एक तरह से वह अपने लिए समय की मांग कर रहा, जिससे वह पेंशनभोगियों के लिए अपने सरकारी खजाने को दुरूस्त कर सके और नई पीढ़ी को सरकार आकर्षण के जाल में फंसा कर तनावमुक्त कर सके।
चीनी सोशल मीडिया पर निकलती भड़ास में जनता की नाराजगी अधिक नजर आ रही
शिन्हुआ की रिपोर्ट सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने और पेंशन नीति को समायोजित करने की योजना को, चीन के लिए औसत जीवन प्रत्याशा, स्वास्थ्य स्थितियों, जनसंख्या संरचना, शिक्षा के स्तर और कार्यबल आपूर्ति के व्यापक मूल्यांकन पर आधारित बता रही। बावजूद इसके इस घोषणा से चीनी इंटरनेट पर संदेह और असंतोष के बादल छाये है। ऑनलाइन, एक संबंधित हैशटैग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो की हॉट सर्च सूची में शीर्ष पर पहुंच गया, जिसने इस वैधानिक घोषणा के बाद से शाम तक 560 मिलियन व्यूज बटोरे, जिसमें कुछ लोग इस कदम के समर्थक रहे। यह मेरी अपेक्षा से अधिक उदार है, मैं इसे स्वीकार कर सकता हूं। 3,000 से अधिक लाइक वाली एक वीबो टिप्पणी में लिखा था। एक अन्य उपयोगकर्ता ने लिखा,
राष्ट्रीय नीतियां देश की परिस्थितियों के अनुरूप हैं। सरकारी सेंसर ने साइट से कई ऐसी पोस्ट को पोस्ट हटा दिए जो नकारात्मक नजर आ रही थी- जाहिर है, एक ऐसे देश में यह आम बात है जहां राष्ट्रीय नीति की खुली चर्चा को संवेदनशील मान दबा दिया जाता है। हालांकि, कुछ निराश नेटिज़न्स फिर भी पोस्ट करने में सक्षम रहे। ऐसी ही एक टिप्पणी के अनुसार, मुझे नहीं पता कि उन्होंने यह नीति कैसे बनाई, युवा लोग पहले से ही बहुत चिंतित हैं, अब सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जा रही है। हम पहले से बना हुआ खाना खा रहे हैं, साझा अपार्टमेंट में रह रहे हैं, अंतहीन शिफ्ट में काम कर रहे हैं। एक और टिप्पणी में लिखा था, सभी को बहुत दुखी नहीं होना चाहिए; 15 साल में, सेवानिवृत्ति की आयु शायद फिर से बढ़ा दी जाएगी। बीजिंग में एक 21 वर्षीय उद्यमी जिसने अपना नाम हा लिडे बताया, ने एएफपी को बताया मुझे आश्चर्य नहीं है, मुझे लगता है कि सेवानिवृत्ति में देरी करने के लिए यह एक अपरिहार्य प्रक्रिया है। अगर वृद्ध आबादी गंभीर है ... तो पेंशन के लिए वितरित करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होगा, उन्होंने कहा। मुझे बस अब तीन अतिरिक्त साल और काम करना होगा। एक उपयोगकर्ता ने कुछ व्यंग्यात्मक ढंग से अपनी बात रखी-जब तक हमें यह चुनने का अधिकार है कि हम वास्तव में सेवानिवृत्त होंगे या नहीं, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। कईयों ने नई सेवानिवृति कानून पर स्पष्टता की कमी पर दुख जताया यह कहते हुए कि 1990 और 2000 के दशक में पैदा हुए लोगों को पिछली पीढ़ियों की तुलना में कितने लंबे समय तक काम करना होगा।
कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ता इस बात से उत्साहित दिखे कि ये बदलाव ज्यादा कठोर नहीं और इनमें कुछ लचीलापन भी शामिल है। जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म वीबो पर एक टिप्पणी जिसे हज़ारों लाइक मिले, में कहा गया “जब तक हमारी इच्छा के आधार पर रिटायर होने या न होने के विकल्प हैं, मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है।” अन्य लोगों ने पेंशन मिलने में देरी और कई सालों तक अतिरिक्त काम करने की संभावना पर असंतोष व्यक्त किया, साथ ही इस बात पर चिंता भी जताई कि क्या यह नीति चीन के पहले से ही कठिन नौकरी बाज़ार पर दबाव डालेगी, जहाँ युवा लोगों में बेरोज़गारी का स्तर बहुत ज्यादा है। “देरी से रिटायर होने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि आप 63 साल की उम्र तक अपनी पेंशन नहीं पा सकते, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तब तक सभी के पास नौकरी होगी!” एक उपयोगकर्ता ने लिखा। हाल के दिनों में चीनी सरकारी मीडिया ने प्रत्याशित बदलावों को एक पुरानी व्यवस्था के लिए एक ज़रूरी और ज़रूरी सुधार के रूप में सराहा है, जिसमें बताया गया है कि मौजूदा नीति 1950 के दशक से ही लागू थी, जब जीवन प्रत्याशा और शिक्षा का स्तर दोनों ही कम थे। अन्य लोगों ने पेंशन मिलने में देरी और कई सालों तक अतिरिक्त काम करने की संभावना पर असंतोष व्यक्त किया, साथ ही इस बात पर चिंता भी जताई कि क्या यह नीति चीन के पहले से ही कठिन नौकरी बाज़ार पर दबाव डालेगी, जहाँ युवा लोगों में बेरोज़गारी का स्तर बहुत ज़्यादा है।
निष्कर्ष
धीमी होती अर्थव्यवस्था, घटते सरकारी लाभ और दशकों से चली आ रही एक-बच्चा नीति ने चीन में जनसांख्यिकीय संकट को जन्म दिया है। चीन भले ही इस नये कानून की आड़ में इस बात को जाहिर न करे लेकिन उसका यह कदम बता रहा कि पेंशन कोष खत्म होता रहा है और देश के पास बढ़ती हुई वृद्ध आबादी की देखभाल के लिए पर्याप्त कोष बनाने का समय नहीं है। अगले दशक में, लगभग 300 मिलियन लोग, जो वर्तमान में 50 से 60 वर्ष की आयु के हैं, चीनी कार्यबल को छोड़ने वाले हैं। यह देश का सबसे बड़ा आयु वर्ग होगा, जो लगभग अमेरिकी आबादी के आकार के बराबर है।
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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