भले ही म्यांमार राजनीतिक अस्थिरता में उलझा हुआ है, लेकिन यह देश चीन की समुद्री रेशम मार्ग पहल और पश्चिम की ओर खुलने की रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है। हाल ही में, म्यांमार के दो जातीय सशस्त्र संगठनों द्वारा चीन से उनके और सैन्य सरकार के बीच शांति समझौते के लिए, की गई अपील बीजिंग को राजनीतिक अराजकता को समाप्त करने का एक नया अवसर देती है। हालांकि, बीजिंग किस हद तक दोनों हितधारकों के बीच मध्यस्थता करने और अपने बीआरआई प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करेगा, यह अभी देखा जाना बाकी है।

This piece was originally written in English. Read it here. It has been translated to Hindi by Rekha Pankaj. 

11 दिसंबर 2024 को, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सेंट्रल कमेटी (सीसीपीसीसी) के सदस्य गु वुंग ने कुनमिंग में म्यांमार के काचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन की राजनीतिक शाखा के अध्यक्ष एन’बन ला से मुलाकात की। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वुंग ने विद्रोही बलों से सैन्य जुंटा से लड़ना बंद करने का आग्रह किया और म्यांमार में स्थिरता बहाल करने के लिए चीन की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। यह बैठक दो महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के बाद हुई- पहला, म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी और ता’आंग नेशनल लिबरेशन आर्मी ने चीन से सैन्य जुंटा सरकार के साथ मध्यस्थता करने की अपील की। दूसरा, सैन्य सरकार के अध्यक्ष - वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लियांग - ने कुनमिंग में चीनी प्रधानमंत्री क्विंग ली से मुलाकात की और म्यांमार में बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर (बीआरआई) परियोजनाओं के निर्माण को आगे बढ़ाने की गारंटी दी।

म्यांमार का मुख्य भूगोल दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के चौराहे पर है। यह चीन की समुद्री रेशम मार्ग पहल (एमएसआरआई) के लिए महत्वपूर्ण है - जो बीआरआई का एक मुख्य घटक है। 2021 में सैन्य अधिग्रहण के बाद, म्यांमार राजनीतिक उथल-पुथल में रहा है, जो अक्टूबर 2023 में ऑपरेशन 1027 के लॉन्च के साथ और भी बढ़ गया। तब से, चीन ने बार-बार सैन्य जुंटा और जातीय सशस्त्र संगठनों (इएओएस) से राजनीतिक अशांति को समाप्त करने की अपील की है। लेकिन, दोनों पक्ष अपने-अपने लाभकारी पदों से पीछे हटने में हिचकिचा रहे हैं। म्यांमार में हाल के राजनीतिक बदलावों ने चीन को शांति मध्यस्थ बनने और देश में राजनीतिक उथल-पुथल को समाप्त करने का एक नया अवसर दिया है। हालांकि, म्यांमार में अपनी बीआरआई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए बीजिंग अपने प्रभाव का कितना उपयोग करेगा, यह अभी देखा जाना बाकी है।

चीन की समुद्री रेशम मार्ग पहल में म्यांमार की अपरिहार्य भूमिका

बंगाल की खाड़ी पर लगभग 1200 मील की तटरेखा वाला पड़ोसी देश होने के नाते, म्यांमार चीन के एमएसआरआई को आगे बढ़ाने में पूरी तरह से फिट बैठता है। चीन म्यांमार के उत्तर में स्थित है और देश के साथ लगभग 1323 मील की अंतरराष्ट्रीय भूमि सीमा साझा करता है। इस भूगोल का लाभ उठाने के लिए, चीन ने 2013 में बीआरआई से पहले ही म्यांमार में कई परियोजनाएँ शुरू कीं। बीआरआई के तहत शुरू की गई सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाएँ राखीन राज्य में क्यौकफ्यू समुद्री बंदरगाह और विशेष आर्थिक क्षेत्र और राखीन में क्यौकफ्यू समुद्री बंदरगाह और चीन के युन्नान प्रांत में कुनमिंग को जोड़ने वाली गैस और तेल पाइपलाइन परियोजना हैं। चीनी विद्वानों का मानना है कि म्यांमार में ये एमएसआरआई परियोजनाएँ बीजिंग की “वेस्टवर्ड ओपनिंग अप रणनीति“ को बढ़ावा देंगी। इस रणनीति से यह उम्मीद की जाती है कि क्यौकफ्यू समुद्री बंदरगाह और मांडले और युनान को जोड़ने वाली प्रस्तावित रेलवे लाइन के माध्यम से म्यांमार के साथ संपर्क बढ़ाकर, चीन के अल्पविकसित स्थलबद्ध पश्चिमी प्रांतों - युन्नान, सिचुआन और गुइझोउ - को हिंद महासागर तक सीधी पहुंच प्राप्त होगी और उनकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। इससे चीन के आर्थिक रूप से पिछड़े पूर्वी प्रांत और उद्योगपति पश्चिमी प्रांतों के बीच विकास संबंधी अंतर कम होगा।

म्यांमार में बीजिंग के बीआरआई निवेश के दीर्घकालिक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक इरादे हैं। पिछले दो दशकों में, बंगाल की खाड़ी क्षेत्र महत्वपूर्ण शक्ति देशों, विशेष रूप से अमेरिका, भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन गया है। लेकिन हाल ही में भारत के सित्तवे बंदरगाह के चालू होने से, जो चीन के क्युआकफ्यू बंदरगाह से केवल 100 मील की दूरी पर है, बीजिंग चिंतित हो गया है। चीनी विश्लेषकों ने यह भी बताया है कि बीजिंग म्यांमार के भीतर बुनियादी ढांचे के विकास और म्यांमार में बंगाल की खाड़ी में नौसैनिक उपस्थिति के अधिग्रहण के माध्यम से शी जिनपिंग के दो महासागर उद्देश्यों को साकार करने का लक्ष्य बना रहा है।

चीन को यह भी लगता है कि अमेरिका और उसके सहयोगी मलक्का जलडमरूमध्य के आसपास पैर जमाने में कामयाब हो गए हैं, जिससे वह इन महत्वपूर्ण शक्तिसंपन्न देशों से समुद्री सुरक्षा खतरों के प्रति संवेदनशील हो गया है। नतीजतन, बीजिंग का लक्ष्य अपने व्यापार मार्गों के सुचारू ट्रांस-शिपमेंट और अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए माल के अबाधित प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए निर्बाध भूमि और समुद्री मार्ग बनाना है। चीन म्यांमार में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उपयोग करके मलक्का जलडमरूमध्य के लिए एक वैकल्पिक मार्ग बनाने की कोशिश कर रहा है। इसके अतिरिक्त, दक्षिण चीन सागर में बीजिंग और दावेदार देशों फिलीपींस और वियतनाम के बीच बढ़ते तनाव के कारण, चीन म्यांमार में एमएसआरआई परियोजनाओं को वैकल्पिक समुद्री मार्ग के रूप में उपयोग करने की उम्मीद कर रहा है, ताकि मलक्का जलडमरूमध्य पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।

म्यांमार की राजनीतिक अस्थिरता और चीन के लिए चुनौतियाँ

हालाँकि, 2021 में सैन्य अधिग्रहण के बाद से म्यांमार की राजनीतिक अस्थिरता ने चीन की एमएसआरआई परियोजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न की है। 2021 के तख्तापलट के बाद से, बीजिंग ने सैन्य जुंटा को एक वैध सरकार माना है और राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रूप से इसका समर्थन किया है। फिर भी, शी जिनपिंग की सरकार हिंसा को समाप्त करने में सैन्य सरकार की अक्षमता से खुश नहीं है।

उदाहरण के लिए, जबकि क्यौकफ्यू पोर्ट और कुनमिंग को जोड़ने वाली पाइपलाइन 2013 में चालू हो गई थी, क्यौकफ्यू पोर्ट के निर्माण और संचालन के बाद से इसे चीन के लिए गेम चेंजर माना जा रहा है। हालांकि, चल रही उथल-पुथल के कारण बंदरगाह का निर्माण रुका हुआ है, जिससे एमएसआरआई परियोजनाओं की पूरी क्षमता बाधित हो रही है। इसी तरह, न्यू यांगून सिटी परियोजना को भी इन स्थितियों के कारण रोक दिया गया है। जुंटा और ईएओ दोनों की ओर से बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद कि वे चीन की बीआरआई परियोजनाओं और म्यांमार के साइबर घोटाले शिविरों में फंसे चीनी नागरिकों की रक्षा करेंगे, बीजिंग चिंतित है। परिणामस्वरूप, चीन ने हाल ही में बीआरआई परियोजनाओं के प्रबंधन के लिए म्यांमार में एक सहयोगी सुरक्षा कंपनी स्थापित करने का भी निर्णय लिया।

इसके अलावा, जब से ईएओ ने दिसंबर 2023 में चीन के साथ म्यांमार सीमा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, तब से चीन-म्यांमार सीमा द्वार बंद होने से सीमा व्यापार की मात्रा पर असर पड़ा है और 2023 की तुलना में इसमें 41ः की गिरावट आई है। इससे सीमा क्षेत्र में रहने वाले चीनी लोगों पर असर पड़ा है, जो अपनी आर्थिक आकांक्षाओं के लिए सीमा व्यापार पर निर्भर हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, युनान प्रांत के लिनकांग शहर में स्थानीय सरकार का लक्ष्य 2024 में सीमा व्यापार को 17ः और जीडीपी वृद्धि को 7ः तक बढ़ाना है। इसी तरह, युनान प्रांत में अन्य स्थानीय सरकारें भी इसी तरह के लक्ष्य हासिल करना चाहती हैं, लेकिन ये सभी लक्ष्य तभी हासिल किए जा सकते हैं जब सीमा व्यापार फिर से शुरू हो।

आगे का रास्ता अभी देखा जाना बाकी है

म्यांमार में हिंसा बढ़ने के बाद से चीन ने सैन्य जुंटा और ईएओ के साथ बातचीत की है। बीजिंग ने कई बार शांति वार्ता की अध्यक्षता की है और जिसमें पिछले साल वह जुंटा और ईएओ के बीच दो अस्थायी युद्धविराम कराने में कामयाब रहा है। यह दोनों पक्षों पर चीन के प्रभाव को दर्शाता है। म्यांमार में चीन की सक्रिय रणनीति ने उन्हें वहां चल रही राजनीतिक उथल-पुथल का सबसे प्रभावशाली विदेशी अभिनेता बना दिया है। चीन-म्यांमार सीमा क्षेत्र पर स्थित दो मुख्य ई.ए.ओ. द्वारा हाल ही में जुंटा के साथ शांति समझौता कराने की अपील से यह भी पता चलता है कि वे चीन को एक भरोसेमंद सहयोगी के रूप में देखते हैं, जो किसी अन्य देश के पास नहीं है। 

हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि चीन किस हद तक अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके हितधारकों को मध्यस्थता की मेज तक लाएगा और शांति समझौते में मध्यस्थता करेगा। म्यांमार में पिछली घटनाओं के अनुसार, क्षेत्र और सत्ता के प्रबंधन के बारे में जुंटा और ईएओ के बीच हमेशा से ही परस्पर विरोधी विचार रहे हैं। म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त करना चीन के हित में होगा, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि सैन्य जुंटा और ईएओ अपनी मांगों पर किस हद तक समझौता करेंगे और चीन के साथ सहयोग करेंगे। साथ ही, म्यांमार में अपनी बीआरआई परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए चीन दोनों हितधारकों के साथ किस हद तक 

Author

Ophelia Yumlembam is a Research Assistant at the Dept. Of Political Science, University of Delhi. Before joining DU, she interned at the Council for Strategic and Defence Research in New Delhi. She graduated with an M.A. in Political Science from the DU in 2023. Ophelia focuses on security and strategic-related developments in Myanmar, India's Act East Policy, India-Myanmar relations, and drugs and arms trafficking in India’s North Eastern Region. Her writings have been featured in the Diplomat, South Asian Voices (Stimson Centre), 9dashline, Observer Research Foundation, among other platforms.

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