अपनी ही नीति में एक नाटकीय बदलाव करते हुए, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उच्च अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित 60 व्यापारिक साझेदारों देशों के लिए 90 दिनों के विराम की घोषणा की है। लेकिन बीजिंग पर सम्मान की कमी का आरोप लगाते हुए चीन से आने वाले सामानों पर 125 प्रतिशत तक टैरिफ लगाकर अमेरिका ने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध को छेड़ दिया।

सत्ता संभालने के दो माह बाद ही अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापक टैरिफ़ लगाकर विश्व अर्थव्यवस्था को उलट दिया, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मंदी की आशंकाएँ बढ़ गई। यहाँ तक कि उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के भीतर से भी उनके विरूद्ध आलोचना के सुर बाहर आने लगे है। नौ दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में से छह पर अपेक्षा से कहीं अधिक 32 प्रतिशत से 49 प्रतिशत के बीच टैरिफ लगाए जाने से त्रस्त देश मध्यस्थता के साथ इसका हल निकालने को वार्ता से इसका हल निकालने को तत्पर दिखे। लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से आयात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने की धमकी के बाद से बौखलाये चीन ने अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ़ “अंत तक” लड़ने की कसम उठाते हुए जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी आयातों पर 84 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया। चीन की इस हरकत से बौखलाए अमेरिका ने अन्य देशों को वार्ता के लिए टैरिफ पर 90 दिनों की राहत देकर चीनी निर्यात पर 125 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान चीन के खिलाफ़ टैरिफ़ बढ़ाने की अमेरिकी धमकी को एक गलती के ऊपर एक और गलती का नाम दे रहे है। उनके अनुसार इस तरह के वक्तव्य अमेरिका की ब्लैकमेलिंग प्रकृति को उजागर करता है और यदि अमेरिका अपने इसी तरीके से आगे बढ़ता है, तो चीन भी अंत तक अपनी बात पर अड़ा रहेगा। हालांकि इस तरह से व्यापार युद्ध के आगे बढ़ जाने की संभावना से पूर्व, वाशिंगटन के प्रमुख आर्थिक प्रतिद्वंद्वी बीजिंग ने बातचीत की पेशकश का रास्ता खुला रखा था, जो अब 125 प्रतिशत के गतिरोध के बाद बहुत मुश्किल दिखाई पड़ रहा है।

अर्थ विशेषज्ञों के नजरिए से देखा जाए तो अमेरिका के इन दांवों से चीन पर कोई असर नहीं होने वाला, बल्कि यह समय वह चीन के उठान के लिए बेहतर अवसर के तौर पर देख रहे है। चीन के अर्थशास्त्री मैक्स ज़ेंगलीन के अनुसार सरकारी मीडिया में आई प्रतिक्रिया से पता चलता है कि चीन अमेरिकी टैरिफ के इस नवीनतम दौर से बेपरवाह लगता है और यह एक ऐसा परिदृश्य लगता है जिसके लिए देश पहले से ही तैयार था। बर्लिन में मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ ज़ेंगलीन कहते है कि अपनी अर्थव्यवस्था के लिए कुछ अपेक्षित चुनौतियों के बावजूद, अमेरिका द्वारा अपने कुछ प्रमुख सहयोगियों को अलग-थलग करने के परिणामस्वरूप, होने वाले परिणाम चीन की वैश्विक स्थिति को आगे बढ़ाने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर प्रस्तुत कर रहे है। लोवी इंस्टीट्यूट के प्रमुख अर्थशास्त्री रोलांड राजा तो इस व्यापक टैरिफ को चीन के लिए भू-रणनीतिक जीत मानते है। उनके अनुसार चीन यथास्थिति वाला खिलाड़ी रहा है जबकि अमेरिका को इस क्षेत्र में विघटनकारी खिलाड़ी के रूप में देखा जाता है।

 

भारी अमेरिकन टैरिफ के बावजूद निश्चिंत है चीन 

चीन के लिए स्थिति इस बार उतनी बुरी नहीं कही जा सकती जितनी पहले अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के दौरान रही है। अमेरिकी आर्थिक विश्लेषण ब्यूरो के अनुसार, अमेरिका का वैश्विक व्यापार घाटा 2018 में 5.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। यह दर्शाता है कि चीन के साथ अमेरिकी व्यापार युद्ध के परिणामस्वरूप अमेरिका के लिए व्यापार असंतुलन अधिक गंभीर हुआ है। नतीजतन, यदि इन दोनों देशों के बीच सफल वार्ता होती है तो ण्क दूसरे पर लगाए गए ये अतिरिक्त शुल्क अस्थायी हो सकते हैं। 

ईस्ट एशियन इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो पो चेन व्यापार युद्ध को अपने आप में एक हार-हार वाला परिदृश्य बताते है। टैरिफ के जवाब में चीन की तत्काल प्रतिक्रिया फिलहाल विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका पर मुकदमा दायर करना था। जिसके तुरंत बाद ही कनाडा और मेक्सिको दोनों ने तुरंत अपने जवाबी उपायों की घोषणा की।  हालांकि चीन की अपेक्षाकृत इन देशों की हल्की प्रतिक्रिया दो निहितार्थों को दर्शा सकती है। सबसे पहले, जैसे को तैसे वाली जवाबी कार्रवाई एक अच्छी रणनीति नहीं हो सकती है। दूसरे, चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के लिए अमेरिका की सोच व्यापार से संबंधित मुद्दों से कहीं आगे तक जा सकती है, और इसलिए भी, चीन शायद द्विपक्षीय व्यापार में केवल प्रतिक्रियाओं के साथ जवाब नहीं देना चाहेगा। अगर ये व्यापार युद्ध जारी रहा तो इसके लिए चीन अमेरिका से दो-दो हाथ करने को तैयार होगा, भले ही इसकी खातिर उसे घरेलू मोर्चे पर अपने ही लागों को दबाब में लेना पड़े। चीन वैसे भी कृषि सम्बन्धित आयात साम्रगी पर अब स्वंय को पूरी तरह से आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसरित करने पर तत्पर हो रहा है। इसीलिए चीनी सरकार पिछले सितंबर से अधिक प्रोत्साहन योजनाओं के लिए प्रतिबद्ध हो रही है। केंद्र सरकार के कम ऋण स्तर और वर्तमान में बेहद कम राजकोषीय दर को देखते हुए, चीन के पास अपनी राजकोषीय प्रोत्साहन योजना को लागू करने के लिए पर्याप्त जगह है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह संभावना नहीं है कि अतिरिक्त टैरिफ चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध 2.0 की ओर ले जाएगा, और इस बार लगे टैरिफ चीन की अर्थव्यवस्था के लिए उतने महत्वपूर्ण नहीं हो सकते हैं जितने कि 2018 में थे। कह सकते है चीन उस स्थिति से आगे बढ़ चुका है।

शिन्हुआ समाचार एजेंसी के अनुसार चीन और यूरोपीय संघ के नेताओं द्वारा बनाई गई महत्वपूर्ण सहमति को संयुक्त रूप से लागू करने, संचार और आदान-प्रदान को मजबूत करने और चीन-यूरोपीय संघ व्यापार, निवेश और औद्योगिक सहयोग को गहरा करने के लिए बीजिंग यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। ये स्थिति आगे चलकर यकीनन अमेरिका के लिए चिंतनीय हो सकती है।

 

दक्षिण-पूर्व एशियाई देश जवाबी कारवाई को लेकर कशमकश में 

वियतनाम और थाईलैंड जैसे देश अब तक अमेरिका के भारी निर्यातक रहे है। चीन पर ट्रम्प द्वारा अपने पहले कार्यकाल के दौरान लगाए गए शुल्कों की वजह से ये देश अब तक अच्छा लाभ अर्जित कर रहे थे। थाईलैंड की आर्थिक वृद्धि पिछले साल 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो घरेलू ऋण में वृद्धि के कारण रुकी हुई है। इस साल थाईलैंड को 3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद थी जो इस बढ़े कर की वजह से संदेह के घेरे में आ गई है। लेकिन थाईलैंड के अमेरिका के साथ अच्छे संबंधों का हवाले से वाणिज्य मंत्री पिचाई नारिपथाफन को उम्मीद है कि आपसी वार्ता से इस सबंध में जरूर कोई रास्ता निकल आयेगा। और अब आपसी वार्ता के लिए 90 दिनों के लिए मिली राहत इन देशों के लिए समाधान का कोई नया जरिया बनेगी, ऐसी संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता।

जहां तक भारत का सवाल है, भारतीय प्रशासन फिलहाल टैरिफ नीति में एक ऐसे खंड पर विचार कर रहा है, जो उन व्यापारिक साझेदारों को संभावित राहत प्रदान कर सकता है, जो गैर-पारस्परिक व्यापार व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं।  भारत यूं भी सदैव से ही संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को तेजी से आगे बढ़ाने का इच्छुक रहा है। रॉयटर्स को दी गई अपनी टिप्पणी पर एक भारतीय अधिकारी का कहना है कि पारस्परिक टैरिफ पर 90 दिनों की रोक भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से झींगा निर्यातकों के लिए राहत की बात है। वियतनाम, जहां एप्पल, नाइकी और सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कंपनियों के बड़े विनिर्माण परिचालन रहे है लेकिन अब उन पर 46ः कर लगाया गया। पिछले साल अमेरिका को इसका निर्यात 142 बिलियन डॉलर का था, जो इसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30 प्रतिशत था। मलेशिया, जिस पर 24 प्रतिशत की दर से कर लगाया गया था, ने घोषणा की कि वह प्रतिशोधात्मक शुल्क नहीं लगाएगा। उसका व्यापार मंत्रालय अमेरिकी अधिकारियों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत करने की योजना बना रहा ताकि आपसी बातचीत में समाधान निकाल कर मुक्त और निष्पक्ष व्यापार की भावना को बनाए रखा जा सके। कंबोडिया इस बात को लेकर चिंतित है कि कहीं उस पर लगा 49 प्रतिशत शुल्क उसके परिधान और फुटवियर उद्योगों को नुकसान न पहुंचा दें। जाहिर है ये उसकी उस उम्मीद को तोड़ देगा जिसके भरोसे वह इस क्षेत्र के अन्य देशों से निवेश आकर्षित करने की मंशा बना रहा था। कंबोडिया स्थित एक निवेश सलाहकार की मानें तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत गंभीर स्थिति है। कंबोडिया के लिए यह बेहद चिंतनीय स्थिति है क्योंकि उसके पास बातचीत के लिए कोई साधन नहीं है। और इस उपक्रम में लगे अन्य देशों की लंबी कतार में वह सबसे पीछे है। 90 दिन की इस राहत में संभव है इस कतार में खड़े इन देशों को अपनी बात रखने का अवसर मिल सकेगा।

 

व्यापार युद्ध में लाभ से ज्यादा हानि को भूल रहे दोनों दिग्गज

अपने पहले शासन के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प ने बीजिंग पर दबाव डालने के लिए व्यापार युद्ध शुरू किया ताकि वह अपनी आर्थिक प्रणाली के उन पहलुओं में महत्वपूर्ण बदलाव लागू करे जो अनुचित चीनी व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं, जिसमें जबरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, सीमित बाजार पहुंच, बौद्धिक संपदा की चोरी और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को सब्सिडी शामिल है। ट्रम्प ने तर्क दिया कि एकतरफा टैरिफ चीन के साथ अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करेगा और कंपनियों को विनिर्माण नौकरियों को वापस संयुक्त राज्य अमेरिका में लाने के लिए प्रेरित करेगा।  जुलाई 2018 और अगस्त 2019 के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 550 बिलियन डॉलर से अधिक चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगाने की योजना की घोषणा की, और चीन ने 185 बिलियन डॉलर से अधिक अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई की। ट्रम्प के इस दावे के बावजूद कि व्यापार युद्ध अच्छे होते हैं और उन्हें जीतना आसान होता है, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच पहले चरण के व्यापार समझौते के अंतिम परिणाम, और इससे पहले हुए व्यापार युद्ध, ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है। इस व्यापार युद्ध ने दोनों पक्षों को आर्थिक पीड़ा पहुंचाई और चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों से व्यापार प्रवाह को मोड़ दिया। 

वाशिंगटन पोस्ट में हीदर लॉन्ग के अनुसार, अमेरिकी आर्थिक विकास धीमा हो गया, व्यापार निवेश रुक गया, और कंपनियों ने अधिक लोगों को काम पर नहीं रखा। पूरे देश में, बहुत से किसान दिवालिया हो गए, और विनिर्माण तथा माल परिवहन क्षेत्र पिछले मंदी के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। ट्रम्प की इन कार्रवाइयों ने वर्षों में सबसे बड़ी कर वृद्धि में से एक को जन्म दिया। यही नहीं उस समय अमेरिका-चीन व्यापार तनाव ने दोनों देशों के उपभोक्ताओं के साथ-साथ कई उत्पादकों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया। टैरिफ ने अमेरिका और चीन के बीच व्यापार कम होने से अमेरिका और चीन में उपभोक्ता स्पष्ट रूप से व्यापार तनाव से त्रस्त रहे। कैवलो, गोपीनाथ, नीमन और टैंग द्वारा चीन से आयात पर श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के मूल्य डेटा का उपयोग करते हुए किए गए शोध में पाया गया है कि एकत्र किए गए टैरिफ राजस्व का लगभग पूरा बोझ अमेरिकी आयातकों द्वारा वहन किया गया है।

व्यापार विचलन एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से उत्पादक प्रभावित होते हैं। एकत्रित द्विपक्षीय अमेरिकी डेटा से पता चलता है कि व्यापार में बदलाव आया है, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि चीन से आयात में गिरावट की भरपाई अन्य देशों से आयात में वृद्धि से हुई है।  सोयाबीन के मामले में यह सबसे स्पष्ट रूप से देखा गया, जहाँ चीन द्वारा टैरिफ लगाए जाने के बाद 2018 में चीन को अमेरिका के निर्यात में नाटकीय रूप से गिरावट आई। 2017 में ब्राज़ील के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका चीन का प्रमुख सोयाबीन आपूर्तिकर्ता था। टैरिफ के साथ, अमेरिकी सोयाबीन की कीमत गिर गई जबकि ब्राज़ील के सोयाबीन की कीमत बढ़ गई, क्योंकि चीन को अमेरिका का निर्यात लगभग शून्य हो गया और चीन को ब्राज़ील के निर्यात में वृद्धि हुई। अमेरिकी सोयाबीन किसानों को नुकसान उठाना पड़ा, जबकि ब्राज़ील के किसानों को व्यापार मोड़ और बाज़ार विभाजन से लाभ हुआ।

ये भी बात गौर करने वाले है कि कंसल्टिंग फर्म आरएसएम यूएस के मुख्य अर्थशास्त्री जो ब्रुसुएलस ने चेतावनी दी कि टैरिफ नीति में बदलाव मंदी को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। और ग्राहकों को लिखे एक नोट में, गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों ने अगले 12 महीनों में मंदी की 45 प्रतिशत संभावना का अनुमान लगाया।

 

निष्कर्ष

कुल मिलाकर देखा जाए तो लोवी इंस्टीट्यूट के प्रमुख अर्थशास्त्री रोलांड राजा के कथन से इंकार नहीं किया जा सकता कि एक चीन ही ऐसा देश है जो अमेरिका को पीड़ा पहुँचा सकता है। एशिया के अधिकांश देशों ने टैरिफ के साथ जवाबी कार्रवाई नहीं की है क्योंकि अधिकांश देशों के लिए तो प्रतिशोध वास्तव में समझ से परे की बात है, क्योंकि ये वे देश है जो अमेरिका से बहुत कम आयात करते हैं और न ही ये अमेरिका से टक्कर लेने की सोच सकते है। इसलिए देखा जाए तो टैरिफ को लेकर व्यापार युद्ध सीधे तौर पर अमेरिका और चीन के बीच है। ये दोनों ही दिग्गज अपने-अपने भू-रणनैतिक और जीडीपी कारणों से एक दूसरे से टक्कर लेने के लिए सक्षम है।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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