भारत और चीन का व्यापार 2023 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। मध्य वर्ष में मंदी के बावजूद द्विपक्षीय व्यापार 2022 के आंकड़े को पार कर गये। ये इस बात का संकेत है कि दोनों ही देश आपसी व्यापार को लेकर संजीदा है। भूराजनैतिक मसलों को नजरअंदाज करें तो ये व्यापारिक प्रगाढ़ता नागरिकों के बीच कहीं अधिक विश्वसनीय तरीके से दृश्यमान है। आज भारत जितना चीनी उत्पाद पर निर्भर है उतना ही चीन भारत जैसे खरीददारों पर। इस व्यापारिक साझेदारी में भारत-चीन की स्थिति पर एक नजरः-
सीमाओं को लेकर चलते तमाम वाद-विवादों के बावजूद दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों भारत और चीन के बीच एक नाजुक रिश्ता है जो व्यापारिक संबंधों के रूप में सामने आता है। चीनी उत्पाद और टेक्नालॉजी पर निर्भरता ने चीन को, भारत के ऐसे साथी के तौर पर रख दिया है जिस से व्यापारिक सांठगांठ तो सुहाती है लेकिन उसके राजैनैतिक दावपेच आपको चैन से बैठने भी नहीं देते। पिछले डेढ़ दशक से लंबे समय में कील-छाते जैसे सबसे सरल उत्पादों से लेकर परिष्कृत इलेक्ट्रॉनिक और फार्मास्युटिकल जैसे मध्यवर्ती उत्पादों की व्यापक रेंज तक भारतीय बाजार पर धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से कब्जा चुके चीन को भारतीय बाजार की अब पहले से ज्यादा जरूरत है। चीन का बढ़ता यह बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इन क्षेत्रों की आवश्यकताओं की बढ़ती मांग को देखते हुए विशेष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के नजरिए से बेहद चिंता का विषय है।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर चायनीज़ एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज़ की प्रोफ़ेसर डॉ. गीता कोचर की इस बात में कोई दोराय नहीं कि चीन से भारत के लिए जितना सामान निर्यात किया जाता है उतना भारत से चीन के लिए नहीं होता। इसकी वजह है संसाधनों की कमी के साथ-साथ निर्माण की वस्तुओं का महंगा होना। जबकि नितप्रति उपयोग की वस्तुएं आधुनिक टेक्नॉलाजी के साथ चीन से सस्ते में मिल जाने से ये भारत के खरीदारों को बेहद आकर्षित और फायदेमंद सौदा लगता है। मगर यह भी सत्य है कि 2020 के बाद भारत चीन पर सामान के लिए निर्भरता कम करने और अपने उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए कई कदम उठा रहा है। जिसमें चीन की कंपनियों के भारत में व्यापार पर नियंत्रण पर जोर देने से लेकर टैक्स वसूली और चीन के टेक्नोलॉजी व्यापार पर अंकुश जैसे फ़ैसले भी शामिल हैं।
नया आर्थिक परिदृश्य क्या भारत के लिए हितकारी होगा
कोविड महामारी के बाद से हुए फेरबदल से विश्व बाजार एक नये आर्थिक परिदृश्य के रूप में सामने आया, जिसमे आवश्यकता, खरीद के अलावा ब्रांडेड कंपनियों के बिक्री के तौर तरीकों में भारी फेर बदल हुआ। डिजिटलीकरण ने पूरी तरह से बाजार की परिभाषा बदल दी। बाजार विश्लेषकों के हिसाब से इस परिदृश्य में 2024 में चीन अधिक मध्यम और भारत एक नई आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी बढ़त करेगा जिससे बढ़ती कामकाजी आबादी, कृषि से लेकर सेवाओं तक के उद्योगों के विस्तार और चीन का विकल्प तलाशने वाले निवेशकों की पूंजी के प्रवाह से भारत को लाभ होगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, अपने कड़े शून्य-सीओवीआईडी प्रतिबंधों को समाप्त करने के बाद, चीन पिछले साल की मध्यम 3 प्रतिशत की वृद्धि से एक मजबूत पलटाव के लिए तैयार दिखाई दिया, लेकिन इसने 2023 में 5 प्रतिशत की अनुमानित आर्थिक वृद्धि के साथ एक और सुस्त वर्ष का उत्पादन किया। महामारी से पहले के दशक में, चीन का सकल घरेलू उत्पाद औसतन 7.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। इस नई आपूर्ति श्रृंखला से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया को लाभ होता दिख रहा है।
इस सबंध में बैंक ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के अनुसार भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2010 से दोगुना हो गई। बैंक ने अपने आउटलुक के अनुसार विदेशी कंपनियां चीन में निवेश जारी रखेंगी, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला स्थानांतरण से आसियान और भारत को ही इसका फायदा होगा क्योंकि जापान सहित अमेरिका के करीबी देश नए एफडीआई के लिए चीन के मुकाबले इन क्षेत्रों को प्राथमिकता देना जारी रखेंगे। हालांकि विकसित और उभरते दोनों बाजारों में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने बेरोजगारी में उल्लेखनीय वृद्धि या आर्थिक विकास में गिरावट के बिना मुद्रास्फीति को केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य स्तर के करीब कम होते देखा है। इसके अलावा भारत आर्थिक मामलों में अपने पड़ोसियों पर नजर रख उनके बेहतर सहयोगी के रूप में काम कर रहा है जो व्यापारिक, सामरिक और राजनैतिक तौर पर उसके लिए श्रेयस्कर है। भारत-चीन संबंधों के जाने माने विशेषज्ञ ईवान लिडारेव बीबीसी को बताते है कि चीन के आर्थिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत दक्षिण एशियाई देशों को आर्थिक मदद दे रहा है। पिछले साल जब श्रीलंका आर्थिक संकट से गुज़र रहा था तब भारत ने उसे चार अरब डॉलर से अधिक की आर्थिक सहायता दी। श्रीलंका ने चीन से भी कई अरब डॉलर का कर्ज ले रखा है। भारत भी पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ईवान लिडारेव के अनुसार जो चीन, दक्षिण एशिया में भारत के साथ कर रहा है वही बात भारत, चीन को घेरने के लिए जापान, विएतनाम का साथ घनिष्ठ संबंध बना कर कर रहा है।
एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी के रूप में उभरने की कोशिश में चीन
पिछले कुछ वर्षों में चीन में व्यवसाय करना नाटकीय रूप से बदल गया है। चीनी अर्थव्यवस्था की असमान रिकवरी, बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिम, बढ़ती आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण दबाव, और चीन और वैश्विक स्तर पर विकसित कर डेटा अनुपालन व्यवस्था के साथ, कंपनियां तेजी से एक जटिल वातावरण में काम कर रही हैं। अपने कठोर शून्य-सीओवीआईडी के प्रतिबंधों को हटाने के बाद चीन को फिर से विदेषी खरीदारों के लिए खोलना जोखिम भरा रहा क्योंकि बढ़ती मुद्रास्फीति ने उपभोक्ताओं को चीनी सामान खरीदने के लिए अनिच्छुक सा बना दिया था। यहां तक की चीनी उपभोक्ता भी लगभग दो साल के लॉकडाउन और सीमा बंदी के बाद अपनी बचत को खर्च करने में अभी भी सावधानी बरत रहे है। अधिक डेवलपर्स डिफॉल्ट के कगार पर पहुंचने के कारण चीन का रियल एस्टेट संकट लगातार जारी है। घर की बिक्री दिसंबर 2020 के बाद से लगभग आधे स्तर पर रही है, जो एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का सबब बन गई है।
2023 में एक बड़ा बदलाव कर जब चीनी नेता शी जिनपिंग ने राष्ट्रीय वित्तीय नियामक प्रशासन की स्थापना कर वित्तीय उद्योग को विनियमित करने में चीन बैंकिंग और बीमा नियामक आयोग की भूमिका संभालने के लिए सीधे चीन की कैबिनेट को अख्तियार दिया, तब से स्थिति में सुधार के कुछ आसार नजर आने लगे। हांगकांग में नैटिक्सिस के एक अर्थशास्त्री गैरी एनजी ने कहा कि नियामक ग्रे क्षेत्रों को भरने के लिए ऐसे सुधार आवश्यक हैं। हालाँकि, अन्य कुछ परिवर्तनों ने निवेशकों को परेशान भी किया, जिसमें जासूसी विरोधी कानून भी शामिल है जिसने परामर्श और व्यावसायिक खुफिया कार्य करने वाले विदेशी व्यवसायों की वैधता पर सवाल उठाए हैं और जिसकी वजह से चीन सरकार को भारी विवाद का सामना करना पड़ा।
हालांकि चीनी विशेषज्ञों की माने तो चीन अपनी नीतिगत प्राथमिकताओं को समायोजित कर रहा है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में खुद को पुनः स्थापित कर रहा है। यकीनन चीनी बाजार महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रहा है। उपभोक्ता सेवाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं और अपनी उपभोग प्राथमिकताओं में बदलाव कर रहे हैं। लेकिन वे यह भी मानते है कि अत्यधिक उच्च मुद्रास्फीति दर के कारण वैश्विक मांग कम हो गई है, और क्षेत्रीय संघर्षों और चीन और पश्चिम के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण अंतर्राष्ट्रीय संबंध और अधिक जटिल हो गए हैं। चीन में काम करने वाले या बाजार में प्रवेश करने की योजना बना रहे व्यवसायों को काफी अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
राजनैतिक पेशबंदियां द्विपक्षीय व्यापार में संदेहास्पद स्थिति बनाती है
चीन कई संगठनों के लिए एक आकर्षक बाज़ार है। देश दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला तक यह अद्वितीय पहुंच प्रदान करता है। बावजूद इसके भारत-चीन के संबंध में कई नकारात्मक तत्वों से घिरे हुए हैं। इन नकारात्मक तत्वों में लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय विवाद (अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन के संबंध में) शामिल हैं, जो ऐतिहासिक और अधिक समसामयिक विवादों की वजह से गाहे-बगाहे तेज हो जाते है। दोधारी तलवार पर चलते व्यापारिक सबंध भी संदेहास्पद स्थिति से घिरे रहते है। चीन को लेकर भारत अपनी चिंताओं के चलते चीनी निवेश के संबंध में पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पाता, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे और दूरसंचार क्षेत्रों में शुरू में सुरक्षा चिंता और कथित चीनी जासूसी के कारण भी। इसी कारण भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने देश की संप्रभुता और अखंडता, उसकी रक्षा, सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक मानते हुए 2020 में, टिकटॉक, वीचैट और दर्जनों अन्य चीनी निर्मित ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के सामने आर्थिक विकास में साझेदारी जैसे संबंध निश्चित रूप से गौण हो जाते है।
हालांकि सुरक्षा के मददेनजर चिंता को लेकर भारत ही एक अकेला अपवाद नहीं है। अमेरिका के साथ-साथ कई अन्य देशों को भी चीन से व्यापार के बहाने देषों की सुरक्षा में सेंध लगाने पर ऐतराज है। यही वजह है कि आयात के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता से स्वयं को वे सहज महसूस नहीं कर पा रहे। बावजूद इसके चीन दुनिया भर के देशों के लिए एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार बना हुआ है।
निष्कर्ष
हालांकि दवाइयों के उत्पादन, टेक्नोलोजी और ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने के लिए भारत चीन की बातचीत चरम के नतीजे आषाजनक तस्वीर रख रहे है। चीन की मोबाइल फ़ोन उत्पादक कंपनियां अभी भी भारत में व्यापार कर रही हैं। भारतीय कंपनियां भी चीन की कंपनियों में निवेश कर रही हैं। लेकिन बार-बार सीमा पर दिये जाते तनाव के चलते भारत की ओर से व्यापार आगे बढ़ाने के लिए की जा रही समझाौता वार्ताओं का सिलसिला अपनी तेज गति नहीं ले पा रहा। ऐसे में कई तरह के आर्थिक द्विपक्षीय लाभ के मसौदे कागजों की धूल फांक रहे।
2024 एक एक प्रमुख चुनावी वर्ष है। ऐसे में राजनीतिक अस्थिरता बहुत अधिक देखने में आती है। वैश्विक आबादी का आधे से अधिक हिस्सा इस वर्ष चुनावों में भाग लेगा। निश्चित तौर पर विश्वभर में गंभीर परिणाम देखने में नजर आएंगे। जनवरी में ताइवान में चुनाव संपन्न होने के बाद डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के उम्मीदवार विलियम लाई के विजेता होने के साथ, सभी की निगाहें चल रहे बदलाव पर हैं, जो 20 मई को लाई के उद्घाटन के साथ समाप्त होगा। इधर नवंबर में होने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव विश्वभर के केंद्र पर होगा। इसके अलावा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में भी जून में चुनाव होने हैं। यूबीएस ने अपने आउटलुक में लिखता है-2024 में एशिया में भू-राजनीति के लिए आधार मामला एक तनावपूर्ण, लेकिन स्थिर स्थिति लिये होगा। कोई दो राय नहीं कि उच्च-स्तरीय अमेरिकी और चीनी अधिकारियों के बीच हाल ही में बढ़े संपर्क 2024 में अमेरिका-चीन संबंधों के लिए अधिक आशावादी पार्शवभूमि पेश करते हैं, जिसके प्रभाव से भारत अछूता नहीं रहेगा।
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
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