समकालीन वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में से एक माना जाता रहा है। भारत ने भी चीन के साथ संतुलित व्यापार हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास किए हैं, जिसमें चीन को भारतीय निर्यात पर गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करने जैसे द्विपक्षीय जुड़ाव शामिल है।

एक लंबे अर्से से चीन भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है, लेकिन इसकी अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में जिस तेज़ी से आगे बढ़ी है, उतनी तेजी से भारत की नहीं। बाजार विनिमय दरों का उपयोग करते हुए, चीन ने इस सदी के अंत तक विश्व सकल घरेलू उत्पाद का 3.6 प्रतिशत प्रतिनिधित्व किया, लेकिन भारत 2020 तक उस स्तर तक नहीं पहुँच पाया। लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं कि भारत आने वाले वर्षों में अपने विशाल जनसंख्या, परमाणु शक्ति, अभूतपूर्व सेना, बढ़ती हुई श्रम शक्ति, मजबूत अभिजात वर्ग की शिक्षा, उद्यमशीलता की संस्कृति और एक बड़े और प्रभावशाली प्रवासी समुदाय से जुड़ाव के कारण वैश्विक शक्ति संतुलन में एक महत्वपूर्ण कारक बना रहेगा। फिर भी यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत अकेले चीन को संतुलित नहीं कर सकता, जिसने अपने विकास में अभूतपूर्व बढ़त हासिल की है। चीन की अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से अभी भी लगभग पाँच गुना बड़ी है। 

आर्थिक जुड़ाव के समझौतों में आपसी कड़वाहट अप्रासंगिक होना जरूरी

दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए कई संवाद, समझौते और समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जाते रहे हैं। लेकिन इस तरह के आर्थिक जुड़ाव के समझौते चीन-भारत संबंधों में विश्वास की कमी को कम करने, समृद्धि और विकास के द्वार खोलने में फिलवक्त सहायक नहीं हो पा रहे हैं। 1962 में दोनों देशों के बीच हुए हिमालय सीमा युद्ध के बाद से ही भारत चीन के आपसी संबंध एक दूसरे के प्रति अविश्वास का दामन नहीं छोड़ पा रहे। बढ़ते भू रणनैतिक मामलों के कारण भारत चीन को लेकर अपनी चिंता को कम नही कर पा रहा, बावजूद इसके वह आपस में अच्छे संबंधों की उपस्थिति भी बनाए रखने का भरसक प्रयास करने में कोई कमी नही कर रहा।

यकीनन, जून 2020 में पूर्वी लद्दाख में सैनिकों के बीच घातक झड़प के बाद से हिमालयी सीमा विवाद ने द्विपक्षीय संबंधों को भारी नुकसान पहुंचाया। इसके एक साल पहले यानी 2017 में शी और मोदी की द्विपक्षीय संबंधों के सौहार्दपूर्ण व्यवहार ने 73 दिनों तक चले डोकलाम सीमा गतिरोध को कम करने में मदद की थी। लेकिन फिर चार साल पूर्व गलवान घाटी की झड़प ने एक नया रूख ले लिया और एक बार फिर भूरणनैतिक मसले आमने-सामने आ गये और परस्पर संबंधों में कड़ुवाहट बढ़ने लगी। यहां तक कि चीन ने भारत पर मुख्य भूमि चीन के विकास को रोकने के लिए ताइवान कार्ड खेलने जैसे आरोप लगा दिये, भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर ऐतराज जताना शुरू का दिया। यही नहीं अरूणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर चीनी क्षेत्र (दक्षिणी तिब्बत) होने का दावा करना, चीनी गांव बसा प्रदेश के जिलों को चीनी नाम देना जैसी वारदातें संबधों में दरार बढ़ाने लगी। सैन्य वार्ता के लगभग चार साल बाद भी ये तनाव जारी है।

एक तरफ जब चीन अमेरिका के साथ शीत युद्ध-शैली की प्रतिद्वंद्विता में उलझा हुआ हो और दूसरी ओर अमेरिका भारत के प्रति लचीला नरम पूर्ण समर्थन को रूख अख्तियार किये हुए हो तो ऐसे में चीन का अपने पड़ोसी के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की इच्छा में इजाफा दिखना श्रेयस्कर होता। ऐसा न कर पाना निश्चित तौर पर चीन के लिए यह एक खोया हुआ अवसर ही कहा जायेगा। आखिरकार, यह बीजिंग ही है जो इस बात पर जोर देता आया है कि सीमा विवाद को राजनीतिक और आर्थिक संबंधों से अलग रखा जाना चाहिए - या जैसा कि विदेश मंत्री वांग यी ने कहा, इसे समग्र संबंधों में परिभाषित नहीं करना चाहिए।

समकालीन परिदृश्य में भारत चीन एक दूसरे के बेहतरीन व्यापारिक साझेदार 

ये सर्वविदित है कि एशिया और दुनिया के दो दिग्गजों के बीच के आपसे संबंध जबरदस्त गति से आगे बढते़ रहे हैं। 1 अप्रैल, 1950 को भारत पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी ब्लॉक देश बन गया। 18 जुलाई, 1994 को भारत और चीन के बीच दोहरे कराधान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों ने डब्ल्यू टी ओ प्रतिबद्धताओं के अनुसार बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में भाग लेने में भी रुचि भी दिखाई। समकालीन वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में से एक माना जाता रहा है। भारत ने चीन के साथ अधिक संतुलित व्यापार हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास किए हैं, जिसमें चीन को भारतीय निर्यात पर गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करने के लिए द्विपक्षीय जुड़ाव शामिल हैं। वस्तुओं और सेवाओं के महान आदान-प्रदान के साथ ही, दोनों देश अविश्वसनीय गति से आगे बढ़ रहे हैं और सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और ये अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नए ट्रेंडसेटर के रूप में उभर रहे हैं।

पिछले एक दशक में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार चार गुना बढ़ गया है। भारत-चीन व्यापार लगातार तीसरे साल 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, जो वित्त वर्ष 23 में 113.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। पिछले कुछ वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि के साथ, कई भारतीय कंपनियों ने चीन में अपने भारतीय और बहुराष्ट्रीय दोनों तरह के ग्राहकों को सेवा देने के लिए चीनी परिचालन स्थापित करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा, 100 से अधिक चीनी कंपनियों ने भारत में कार्यालय/संचालन स्थापित किए हैं। मशीनरी और बुनियादी ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में कई बड़े चीनी नामों ने भारत में परियोजनाएं जीती हैं और भारत में परियोजना कार्यालय खोले हैं।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के हालिया डेटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में भारत में चीनी आयात 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया, जिससे भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में चीन की स्थिति मजबूत हुई। यह खुलासा भी बढ़ते तनाव के बीच हुआ है। दिसंबर 2022 में इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक विश्लेषण में भी यही बताया गया कि गलवान झड़प के बाद बीजिंग से आयात तेजी से बढ़ा। इस विश्लेषण के अनुसार इस दौरान भारत द्वारा खरीदी गई शीर्ष वस्तुएँ विद्युत मशीनरी और उपकरण, उनके पुर्जे, ध्वनि रिकॉर्डर, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण और उनके पुर्जे, कार्बनिक रसायन, प्लास्टिक और प्लास्टिक के सामान्य उत्पाद थे। भारत द्वारा आयातित सबसे मूल्यवान चीनी वस्तुएँ व्यक्तिगत कंप्यूटर थीं, जिनकी कीमत 2021-22 में $5.34 बिलियन थी, इसके बाद मोनोलिथिक इंटीग्रेटेड सर्किट-डिजिटल ($4 बिलियन), बैटरी में इस्तेमाल होने वाले लिथियम-आयन ($1.1 बिलियन), सौर सेल ($3 बिलियन) और यूरिया ($1.4 बिलियन) रहे। इसी दौरान चीन द्वारा भारत से खरीदी गई शीर्ष वस्तुएँ अयस्क, लावा, कार्बनिक रसायन, खनिज ईंधन, खनिज तेल और उनके आसवन के उत्पाद, बिटुमिनस पदार्थ, खनिज मोमय लोहा और इस्पात- एल्युमीनियम के सामान और कपास आदि थें।

व्यापारिक साझेदारी से रणनैतिक समाधान निकलना मुश्किल

देखा जाये तो आर्थिक जुड़ाव इतना सहज नहीं है। व्यापार घाटा और एंटी-डंपिंग जैसे कई मुद्दे सामने आए हैं जो प्रगतिशील आर्थिक वृद्धि और विकास में बाधा डालते हैं और इन्हें जितनी जल्दी हो सके सुलझाया जाना चाहिए। द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक जुड़ाव चीन और भारत के बीच रणनीतिक और सहकारी साझेदारी का एक अनिवार्य तत्व है। दोनों राज्यों ने समय-समय पर विभिन्न प्रकार के तंत्र भी स्थापित किए हैं और उनके बीच सहयोग को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए कई संवाद, समझौते और समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किए हैं।

बावजूद इसके चीन-भारत संबंध छिटपुट संघर्षों से प्रभावित रहे हैं, जो मुख्य रूप से उनकी 3,440 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर विवादों से उपजा है। भारत को लद्दाख, सिक्किम और अप्रत्यक्ष रूप से अरुणाचल प्रदेश में चीन से तिहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसे चीन अपना क्षेत्र बताता है। दोनों ही देश इस विवादित सीमा पर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की होड़ में लगे हुए हैं, जिसमें चीन सुरंगों और बंकरों में निवेश कर रहा है, जबकि भारत सड़क निर्माण के लिए पर्याप्त धन आवंटित कर रहा है। भारत ने कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में 113 सड़कों के विकास को मंजूरी दी है। वर्तमान में, चीन के साथ सीमा पर कम से कम 168 गाँव ऐसे हैं, जिनका कोई सड़क संपर्क नहीं है।

डॉ. राजेश्वरी (राजी) पिल्लई राजगोपालन चाइना पावर में लिखे अपने एक लेख में कहती है कि भविष्य में भारत और चीन के बीच संबंध अशांत या बदतर बने रहने की संभावना है। इस बात की बहुत कम संभावना है कि सीमा संघर्ष या दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव का कोई समाधान होगा। और जब तक सीमा पर सेनाएँ जमा रहेंगी, तब तक तनाव बढ़ने का जोखिम बना रहेगा। उनका मानना है कि चीन को बैचेन करने के लिए, भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपनी साझेदारी को तेज किया है, खासकर चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (या क्वाड) के माध्यम से।

निष्कर्ष

द्धिपक्षीय व्यापार में सहयोग के बावजूद चीन-भारत संबंधों की भूरणनैतिक स्थिति फिलहाल चिंताजनक बनी हुई है। लेकिन बीजिंग द्वारा 18 महीने की अनुपस्थिति के बाद नई दिल्ली में अपना एक नया दूत भेजना संबंधों के सुधार की दिशा में किया जा रहा कदम मान लेना उचित होगा। अप्रैल में सीमा तनाव कम करने के बारे में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भेजे गये सुलह संदेश के तुरंत बाद पूर्व सहायक विदेश मंत्री जू फेइहोंग की चीनी राजदूत के रूप में भारत में नियुक्ति भविष्य की भूरणनैतिक नीतियों के लिए “स्थिर और शांतिपूर्ण संबधों” की मजबूती के लिए सकारात्मक दस्तक जैसी है जो आपसी द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक जुड़ाव के संदर्भ में चीन और भारत के बीच रणनैतिक और सहकारी साझेदारी का एक अनिवार्य तत्व है।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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