पहला ऑल-वेदर रोड कनेक्शन भारत के लिए बेहद उपयोगी
चीन ने पहले ही वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब सभी मौसम वाली सड़क नेटवर्क विकसित कर चुका है लेकिन भारत के लद्दाख क्षेत्र की राजधानी लेह तक जाने वाली एक नई सड़क के निर्माण पर उसे आपत्ति है। अपनी-अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए किए जा रहे निर्माण कार्य पर चीन की इस तरह की दोहरी सोच आपसी संबंधों को संदेहास्पद स्थिति से उबरने नहीं देती।
चीनी मीडिया हाउस ‘द पेपर’ का कहना है कि भारतीय सेना ने युद्ध संचालन का समर्थन करने के लिए लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास दो सबसे अधिक ऊंचाई वाली टैंक रखरखाव सुविधाएं स्थापित की हैं। लेख में यहां तक कहा गया है कि विकास के चार महीने बाद, भारत ने रक्षा मंत्रालय के तहत सीमा सड़क संगठन (BRO) के साथ आगे कदम बढ़ाते हुए चीन-भारतीय सीमा पर गहन अवसंरचना विकास की घोषणा की है। दरअसल चीनी मीडिया का विशेष ध्यान भारत में लद्दाख क्षेत्र की राजधानी लेह तक जाने वाली एक नई सड़क के निर्माण पर था। लेख के अनुसार, अगस्त 2020 में, ग्लोबल टाइम्स ने बताया था कि भारत गुप्त सैन्य और टैंक आंदोलनों को सक्षम करने के लिए मनाली से लेह तक एक नई सड़क का निर्माण कर रहा है, जिससे यात्रा का समय 3 से 4 घंटे कम हो जाएगा और पाकिस्तानी सेना द्वारा लक्षित रास्तों से बचा जा सकेगा।
जबकि चीन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पीओके में सियाचिन के पास कंक्रीट निर्मित सड़क निर्माण शुरू कर चुका है। यह सड़क अवैध रूप से कब्जाए गए कश्मीर में बनाई जा रही है. जो दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन के नॉर्थ में बन रही है। सैटेलाइट की ताजा तस्वीरों से इस बात का खुलासा हुआ है। पीओके में किए जा रहे इस सड़क निर्माण का खुलासा उस वक्त हुआ जब यूरोपियन स्पेस एजेंसी की ओर से सैटेलाइट तस्वीरें जारी की गईं। इन तस्वीरों में साफ नजर आ रहा है कि चीन की ओर से आघिल पास के पास सड़क का निर्माण शुरू कर दिया गया है।
पहला ऑल-वेदर रोड कनेक्शन भारत के लिए है महत्वपूर्ण
चीन के इस बयान से इतर चीन और भारत के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब रणनीतिक रूप से स्थित लेह की ओर जाने वाली इस सड़क के पूरा होने पर भारत को देश को अन्य हिस्सों से जुड़ने वाला अपना पहला ऑल-वेदर रोड कनेक्शन प्राप्त हो जायेगा। सुरंग के 2025 तक पूरा होने की संभावना है। क्षेत्र में सभी मौसम वाली सड़कों की अनुपस्थिति में रसद बनाए रखना, विशेष रूप से लद्दाख की कठोर सर्दियों के दौरान, हमेशा सुरक्षा रणनीतिकारों के लिए चिंता का विषय रहा है। वर्तमान में, सुरक्षा बल सीमाओं पर सतर्कता बनाए रखने के लिए महीनों पहले से ही राशन और गोला-बारूद का स्टॉक कर लेते हैं। निम्मू-पदम-दारचा सड़क हिमाचल प्रदेश के मनाली से सिर्फ 298 किमी दूर है। यह तीसरी धुरी है और वर्तमान में चालू मनाली-लेह सड़क (428 किमी) और श्रीनगर-लेह सड़क (439 किमी) की तुलना में सबसे छोटा मार्ग है।
तारीफ की बात है कि इसी वर्ष 27 मार्च को हासिल की गई बीआरओ सीमा सड़क संगठन की सफलता ने चीन और पाकिस्तान की नज़रों से दूर, सबसे सुरक्षित आयुध डिपो के लिए दूर-दराज की ज़ांस्कर घाटी को खोलने का मार्ग प्रशस्त किया है। कारगिल में ज़ांस्कर रेंज, एक अनूठी स्वदेशी संस्कृति का घर, ज़ांस्कर घाटी को लेह की सिंधु घाटी से अलग करती है। यह भी सत्य है कि एक बार जब पश्चिमी लद्दाख की ज़ांस्कर घाटी में शिंकुला सुरंग खुल जाएगी, तो पाकिस्तान और चीन से घिरे उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों के करीब से गुजरने वाले मौजूदा मार्गों की तुलना में लद्दाख में सैनिकों का जमावड़ा बहुत तेज और कम उजागर होगा।
क्या है भारत चीन के बीच की जमीनी हकीकत
भारत और चीन के बीच मौजूदा सीमा विवाद के बीज तभी बो दिए गए थे जब 1950-51 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसी के बाद 1959 में तिब्बती विद्रोह हुआ था। ऐतिहासिक रूप से देखा जाये तो 1911 में ही किंग राजवंश के पतन के बाद ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन ने तिब्बत और ब्रिटिश उत्तर पूर्व भारत के बीच सीमा खींच दी थी, जो मुख्य रूप से वाटरशेड के सिद्धांत पर आधारित थी। आसान शब्दों में कहें तो वाटरशेड सिद्धांत, जलग्रहण क्षेत्र भूमि का वह क्षेत्र है जो किसी विशेष झील, नदी या अन्य जल निकाय में जाता है। जलग्रहण क्षेत्रों को भौगोलिक विशेषताओं द्वारा सीमांकित किया जाता है। ये प्राकृतिक सीमाएँ आमतौर पर कटक, पहाड़ियों या पहाड़ों द्वारा परिभाषित की जाती हैं जो एक जलग्रहण क्षेत्र को दूसरे से अलग करती हैं। एक कटक के एक तरफ की बारिश एक जलग्रहण क्षेत्र में बहेगी, जबकि कटक के दूसरी तरफ की बारिश एक अलग जलग्रहण क्षेत्र में बहेगी। इसी सि़द्धांत के तहत ब्रिटेन, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधियों ने 27 अप्रैल 1914 को शिमला में त्रिपक्षीय सम्मेलन में ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमाओं पर हस्ताक्षर किए थे। जैसा कि उल्लेख मिलता है मैकमोहन रेखा पर चीन की प्रतिक्रिया और भारत-चीन सीमा पर इसके आवेदन को साम्राज्यवादी विरासत के आधार पर सीधे खारिज ही कर दिया गया था। इसमें यह बात भी कह दी गई कि तिब्बत कभी भी एक संप्रभु राज्य नहीं था। तिब्बत पर अपना हक जताते चीन ने पूरे अरुणाचल प्रदेश पर ही अपना दावा पेश करना आरंभ कर दिया।
इधर भारत ने भी अक्साई चिन पर अपना दावा बनाए रखा, जिस पर चीन ने 1950 के दशक के अंत से 1962 के बीच धीरे-धीरे कब्जा किया। 1957 में भारत को एहसास हुआ कि चीन ने झिंजियांग के काशगर को तिब्बत के ल्हासा से जोड़ने वाली एक रणनीतिक सड़क भी बनाई है, जिसे अब एनएच जी219 कहा जाता है, जिसका 179 किलोमीटर हिस्सा भारतीय क्षेत्र अक्साई चिन से होकर गुजरता है। यही कारण है कि 3488 किलोमीटर लंबी सीमा (एलएसी) तीन अलग-अलग क्षेत्रों के साथ आज भी विवादित बनी हुई है। पश्चिमी (पूर्वी लद्दाख), मध्य (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड), और पूर्वी (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश)। सीमा समझौता वार्ता (2000-2002) की श्रृंखला के दौरान, चीनी प्रतिनिधिमंडल ने केवल मध्य क्षेत्र के मानचित्रों का आदान-प्रदान किया, जो सबसे कम विवादास्पद रहा, लेकिन अन्य दो क्षेत्रों के मानचित्रों की तुलना करने से इंकार कर दिया। एलएसी पर तनाव मुख्य रूप से दो पहलुओं से प्रभावित होता रहा। एक एलएसी को न मानचित्रों पर चित्रित किया जाना है और न ही जमीन पर सीमांकन किया जाना और दूसरे, सीमा के करीब बुनियादी ढांचे का विकास और निर्माण गतिविधियांे को बढ़ावा दिया जाना। भारत के विपरीत, चीन ने दो दशक पहले ही अपने बुनियादी ढांचे का निर्माण शुरू कर दिया था, जैसा कि पूरे तिब्बती पठार में सड़कों, रेलवे, हवाई ठिकानों, संचार सुविधाओं, ऑक्सीजन स्टेशनों, भंडारण सुविधाओं, सैन्य चौकियों का निर्माण जिसे प्रशिक्षण सुविधाओं के रूप में दिखाया जाता रहा। जबकि यह तैयारी तिब्बती सैन्य कमान, को लैस करने और सहायता करने के लिए बनाई गई। यह स्थान भारत केंद्रित पश्चिमी थिएटर कमान के अंतर्गत आता है ताकि वह उच्च ऊंचाई पर काम करने के लिए तैयार हो सके। इसे देखते हुए, पूर्वी लद्दाख के सामने पीएलए के निर्माण को पूर्व नियोजित योजना का ही हिस्सा कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
भारत के सड़क निर्माण पर चीन की आपत्ति कोई नई बात नहीं
चीन का सड़क नेटवर्क हमेशा से ही एक सैन्य संपत्ति के इस्तेमाल के लिए ही रहा जबकि भारत सड़क निर्माण कार्य अपने अन्यत्र स्थानों की दूरी कम करने के लिए करता आया है। फिर भी वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब दोनों पक्षों द्वारा सड़क निर्माण और बुनियादी ढांचे की गतिविधि को दोनों ही देशों द्वारा संदेह की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इस समय लद्दाख में मौजूदा तनातनी की एक वजह भारत का सड़क निर्माण भी है। 1950 के दशक में पूर्वी लद्दाख के कुछ हिस्सों पर चीन का कब्जा हो जाने के बाद, वह तिब्बत से पूर्वी तुर्किस्तान तक सड़क बना रहा था। इस सड़क निर्माण पर सबसे पहले कुछ भारतीय वैज्ञानिकों का ध्यान गया, जो अक्साई चिन (श्वेत रेगिस्तान) नामक एंडोर्फिक बेसिन झील से विभिन्न लवणों की व्यवहार्यता पर प्रयोग कर रहे थे। यह झील कभी न सूखने वाली झील के लिए भी जानी जाती है। यहां उन्हें चीनी सेना की मौजूदगी की जानकारी मिली जिसकी सूचना दिल्ली तक भी चली गई लेकिन पूछताछ में चीन ने इस निर्माण पर इंकार कर दिया, यह कहकर कि, वह यह निर्माण खगोलीय अनुसंधान के लिए कर रहा है तो भारत को इसकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। चीन की घुसपैठ और अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। उपर से मित्रता का दिखावा कर वह अपने क्षेत्र अपनी सीमाओं की सुरक्षा अैार उसके विस्तार के लिए लगातार काम करता आया है।
सीमाओं की सुरक्षा के साथ भीतरी जरूरतों पर भारत का जोर
लद्दाख आज दो मोर्चों पर असुरक्षा की चुनौती का सामना कर रहा है। पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से सैन्य खतरे के अलावा, अन्यत्र कारणों से इस क्षेत्र में हर दिन असुरक्षा की स्थिति बनी रहती है, जो स्थानीय लोगों की जरूरतों पर हावी हो जाती है। नई दिल्ली के साथ अनिर्णायक बैठकों के बाद विरोध प्रदर्शनों के अंतहीन चक्र और पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा विवाद के अनसुलझे होने के कारण पश्चिमी हिमालय के इस क्षेत्र का भविष्य अधर में लटका हुआ है। फिर भी कहना होगा केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से लद्दाख ने अविश्वसनीय विकास देखा है, खासकर बुनियादी ढांचे के मामले में। सीमा तनाव के बीच कनेक्टिविटी पर बहुत ज़ोर दिया जाना इस बात का प्रमाण है कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित बड़ी परियोजनाओं की गति लददाख की सीमाओं की सुरक्षा और विकास दोनों को ध्यान में रखकर बढ़ रही है। लद्दाख में 750.21 किलोमीटर सड़कें बनाई या अपग्रेड की गई हैं और 29 नए पुल और 30 नए हेलीपैड बनाए गए हैं, साथ ही सभी मौसम में चालू रहने वाली ज़ोजी-ला सुरंग, कारगिल-ज़ांस्कर रोड और निम्मो-पदुम-डार्च रोड जैसी परियोजनाएँ चल रही हैं। इसके अलावा, 2023 में सभी मौसम में चालू रहने वाली बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे लाइन के लिए सर्वेक्षण पूरा हो गया है, जो 40 स्टेशनों के साथ 498 किलोमीटर तक फैलेगी, इस परियोजना का अनुमानित बजट 990 बिलियन भारतीय रुपये (लगभग 12 बिलियन डॉलर) है।
निष्कर्ष
लेह लदाख सड़क भारत के लिए अहम तो चीन की परेशानी का कारण बन रही, लेकिन दो दशकों की योजना के बाद, लेह को मनाली से जोड़ने वाली लद्दाख की तीसरी धुरी, इस नव-निर्मित केंद्र शासित प्रदेश को साल भर संपर्क प्रदान करेगी, जो भारत के वाशिंदो के लिए तो लाभकारी होगी ही, सीमाओं पर सुरक्षा सख्ती बढ़ाने के हित में भी रहेगी। हमें पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत-चीन के सैनिकों में खूनी संघर्ष को भूलना नहीं है और फिर चीनियों के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए भी जरूरी है कि भारत भी दिखाने के और खाने के दांत का फर्क को समझ अपनी नीतियों योजनाओं को बढ़ावा दें।
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.
Get a daily dose of local and national news from China, top trends in Chinese social media and what it means for India and the region at large.